सफल किसान की कहानी: गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए कृषि मंत्री से सम्मानित कमल किशोर से जानिए खेती का सही तरीका

गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए कमल किशोर को कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने भी सम्मानित किया है, कमल किशोर दूसरे किसानों के लिए भी मिसाल बन रहे हैं।

Sumit YadavSumit Yadav   13 Jan 2021 3:18 PM GMT

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उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। ज्यादातर लोगों को लगता है कि धान-गेहूं जैसी परंपरागत फसलों की खेती में सफलता नहीं पा जा सकती है, ऐसे लोगों को किसान कमल किशोर गलत साबित करते हैं, तभी तो गेंहू के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए कृषि मंत्री ने भी उन्हें सम्मानित किया है।

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के पुरवा ब्लॉक के मछिगवां सदकू गाँव के रहने वाले 58 वर्षीय किसान कमल किशोर ने 12वीं तक पढ़ाई की है। कमल किशोर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमने खेती की शुरुआत 2004 में की थी, शुरुआत में खेती करने में लागत अधिक लगाने के बाद भी बेहतर उत्पादन नहीं मिलता था। लेकिन हमने कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर खेती करनी शुरू की और आज बेहतर उत्पादन मिल रहा है। खेती में ज्यादातर किसानो को अधिक लागत के बाद भी अच्छा उत्पादन नहीं मिलता है, जिससें आज लोगों का रुझान खेती से कम हुआ है। जबकि आधुनिक तकनीक और विशेषज्ञों की सलाह से हम कम लागत के बाद भी अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।

गेहूं उत्पादन में सफलता की कहानी लिखने वाले कमल किशोर किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। गेंहू का रिकॉर्ड उत्पादन कर प्रदेश में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले कमल किशोर को एक हेक्टेयर में 82 कुंटल 40 किलोग्राम उत्पादन के लिए 23 दिसंबर 2020 को "किसान दिवस" पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही द्वारा सम्मानित किया गया।

कमल किशोर आगे बताते हैं कि गेहूं की फसल की तैयारी हम बरसात खत्म होने के बाद ही करने लगते हैं। पिछले साल हमने खेत में ब्लॉक से ढैंचा लेकर बो दिया था और फिर ढैंचा कटवा कर उसमें गोबर की खाद डाल कर पानी भर दिया। जिससे गोबर के साथ ढैंचा सड़ने लगा। इसके बाद खेत की अच्छे से जुताई कराई और खेत को बुआई के लिए तैयार किया।

गेहूं बुवाई का सही समय 25 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच सबसे सही होता है। इस समय बोया गया गेहूं अच्छी वृद्धि के साथ बेहतर उत्पादन देता है। अब हमारे बीज की बारी आती है। अच्छी फसल के लिए बीज का अच्छा होना बेहद महत्वपूर्ण है। बीज हमेशा किसी प्रमाणित जगह या फिर राजकीय बीज भंडार से ही खरीदें। सही बीज में अच्छे जमाव के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता होती हैं, जिसमें अधिक बियास के साथ रोग काम लगता है और उत्पादन भी अच्छा होता है। इसलिए सदैव प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें।

कमल किशोर आगे बताते हैं, "खेत तैयार करने के साथ ही बीज लेकर हम उसका शोधन करते हैं। बीज का शोधन करने के लिए ट्राइकोडर्मा 5-6 ग्राम की मात्रा को लेकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधित करते हैं और उसे फिर 12 घंटे के लिए छाया में सुखाने के लिए छोड़ देते हैं। शोधित बीज में जड़ों का मजबूत जमाव होता है साथ ही गेहूं में फुटाव भी अच्छा होता है।

23 दिसम्बर, 2020 को किसान दिवस के अवसर पर दूसरे किसानों के साथ ही कमल किशोर को भी सम्मानित किया गया। फोटो: ट्वीटर

बुवाई के तरीकों के बारे में कमल बताते हैं, "बुवाई हम हमेशा मशीन से ही करते हैं, मशीन से बुवाई में बीज बहुत कम मात्रा में लगता है और खाद का प्रयोग भी संतुलित मात्रा में होता है। मशीन से बुवाई करने में पूरा बीज मिट्टी में जाता है, साथ ही खाद भी बीज के साथ रहती हैं। जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं कि गेहूं का बीज अधिकतम 3 से 4 इंच की गहराई में बोना चाहिए, जिससे पूरा बीज जमाव ले और उसमें वृद्धि भी पर्याप्त मात्रा में आए, इससे हमारे बीज और खाद की बचत होती है। इससे हमारी लागत घटती है। छिड़काव विधि से हमारा बहुत बीज ऊपर पड़ा रहा जाता है, जिसमे जमाव नहीं आता है जबकि कुछ बीज अधिक गहराई में चला जाता है और कभी-कभी वह भी जमाव नहीं लेता है और हमें नुकसान उठाना पड़ता है।"

गेहूं की खेती में सबसे जरूरी होता है, उर्वरकों का सही प्रयोग, उर्वरकों व खाद के सही प्रयोग के बारे में कमल किशोर कहते हैं, "हमारे अंधाधुंध रासायनिक खादों/उर्वरकों के प्रयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति कम हो गयी है, इसके बजाय हम जैविक खाद/हरी खाद/गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं। गोबर की खाद का उपयोग करने के बाद हम रासायनिक खादों का उपयोग नही या बहुत ही कम मात्रा में करते हैं।जैविक खाद और गोबर की खाद खेत को लंबे समय के लिए उपजाऊ बनाती है। इसलिए हम महंगी रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खाद के उपयोग को प्राथमिकता देते हैं। जैविक खाद बहुत लाभदायक सिद्ध हुई है। जहां तक हो सकता है हम जैविक और गोबर की खाद का भरपूर उपयोग करते हैं।

गेहूं की सिंचाई की सही तकनीक के बारे में कमल आगे बताते हैं कि बुवाई के बाद महत्वपूर्ण बात है पानी लगाना,गेहू की बुआई के बाद पहला पानी 20 से 23 दिन में लगा देता हूँ,यह समय बियास और जड़े निकलने का होता है।इसलिए समय से पानी उसके बियास को बढ़ा देता है।पानी लगाने के बाद जब खेत में चलने पर पैर सधने लगते हैं तो हम खरपतवार की दवा का उपयोग करते हैं।क्योंकि यह समय फसल के बियासने का होता है और इसी समय फसल में खरपतवार भी असर दिखाना शुरू करते हैं।यहाँ पर अगर हम जरूरत समझे तो अपनी फसल में 25 किलोग्राम प्रति बीघे की दर से यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि दवा हमेशा कृषि रक्षा इकाई से ही खरीदते हैं जो कि पूरी तरह विश्वसनिय होती है। हमनें कई बार देखा है कि कई किसानों ने बाजार से दवा लेकर छिड़काव कर दिया, उसने असर नहीं किया,किसान ने दुबारा फिर छिड़काव किया तो उससे उसकी फसल पर दुष्प्रभाव पड़ा और फसल कमजोर हो गई। इसलिए दवा का प्रयोग हम हमेशा बेहद सावधानी से करते हैं।


इसके बाद हम खेत में रोलर 'गेहूं को कुचल देते हैं' कुचलने से गेहूं में ठीक दोगुना वृद्धि आती है और इसके बाद 25-25 दिन के अंतराल पर पांच पानी लगाते हैं। गेहूं में बाली निकलने के समय यदि जरूरी हुआ तो बेहद हल्की मात्रा में यूरिया का छड़काव कर देते हैं, जिससे कि बाली जल्दी निकल आती है और बाली में दाना भी भरपूर बनता है। कमल किशोर बताते हैं कि हमें हम प्रतिदिन अपने खेतों का निरीक्षण अवश्य करते हैं,जिससें कि हमारे खेतों में हो रहे बदलाव का हमें समय से पता चलता रहता है। इस बार भी हमने 10 बीघे गेहूं बोया है। समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों की राय हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।फसल संबंधित किसी भी तरह की जानकारी के लिए 1551 पर कॉल कर सलाह लेते हैं, जहां से हमें विशेषज्ञों द्वारा बेहतर और उचित सलाह मिलती हैं,जो हमारे लिए बेहद लाभप्रद और सहायक होती हैं।

कृषि वैज्ञानिक डॉ धीरज तिवारी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए हमें कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, बुवाई के बाद गेहूं में सबसे प्रमुख बात सिंचाई प्रबंधन की होती है जो क्षेत्र और मिट्टी पर भी निर्भर करती हैं। गेहूं की फसल में पहला पानी 21 दिन पर लगाना चाहिए इस समय फसल में चंदेरी जड़ें निकलने का समय होता है। अगली महत्वपूर्ण सिंचाई 65 दिन के आसपास करें इस समय फसल में गांठ बनने का समय होता है। और इसके बाद लगभग 85 दिन पर बाली बनने के समय पानी का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है। गेहूं की पूरी फसल में अच्छी पैदावार के लिए 21 दिन के अंतराल पर 5 से 6 पानी लगाना चाहिए। इसके बाद फसल में पोषक तत्व प्रबंधन की बारी आती हैं। गेंहू की पूरी फसल चक्र में 132 KG खाद का प्रयोग दो चक्र में करना चाहिए, पहली सिंचाई के बाद हमें फसल में टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए, और दूसरी बाली बाली निकलने के समय हमें फसल में छिड़काव करना चाहिए।


इस समय गेहूं की फसल में खरपतवार के उपचार का समय है, गेंहू में मूख्यतः दो तरह के खरपतवार पाए जाते हैं, एक चौड़ी पट्टी वाले और दूसरे सकरी पट्टी वाले। इनके उपचार के लिए यदि हमारी फसल 25-30 दिन की है तो सल्फोसल्फ्यूरान 75WP प्रति एकड़ की दर से 40-45 दिन की फसल होने पर क्लोडिनाफ्रॉक/फिनॉक्सफ्रॉक 10 ईसी को 400 मिलीलीटर पानी मे घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

डॉ धीरज तिवारी आगे बताते हैं कि समय समय पर गेहूं की पानी का प्रबंधन करते रहे,फसल बोने के समय बीज को उपचारित करने के बाद ही बोएं, बीज हमेशा प्रमाणित प्रयोग करें, उपचारित बीज में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है,साथ ही फसल में बियास ज्यादा आता है। अच्छी पैदावार के लिए गेंहू की बुआई समय से करें। समय-समय पर विशेषज्ञों की सलाह लेते रहे। गेंहू की फसल में कुछ विशेष सावधानियां और समय प्रबंधन से हम कम लागत के साथ अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

कमल किशोर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि इस तरह से हम खेती करके कम लागत के साथ अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। पिछले साल हमने PBW 2967 बीज बोया था, पूरी तरह से जैविक और हरी खाद का प्रयोग किया, गोबर का प्रयोग किया सही समय प्रबंधन और विशेषज्ञों की सलाह से एक हेक्टेयर में 82 कुंटल 40 किलोग्राम गेंहू का उत्पादन कर प्रदेश में दूसरा स्थान हासिल किया है। जिसके लिए शासन द्वारा "किसान दिवस" के अवसर पर लोक भवन में आयोजित 'किसान सम्मान समारोह' में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की अध्यक्षता में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही जी की उपस्थिति में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रशस्ति पत्र के साथ ही 75 हजार रुपये देकर सम्मानित किया गया।यह सम्मान और पुरस्कार हमें और अधिक लगन के साथ प्रथम स्थान प्राप्त करने की प्रेरणा देता है, हमारा लक्ष्य प्रदेश ही नही देश में भी उत्कृष्ट उत्पादन करने का है।

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