ई-संजीवनी- झारखंड में आदिवासी समुदायों के दरवाजों तक पहुंची स्वास्थ्य सेवाएं

कुछ समय पहले तक झारखंड के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोग बीमार पड़ने पर डॉक्टर से परामर्श तक नहीं ले पाते थे। इसका बड़ा कारण नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों का गांव से दूर होना और आने-जाने के लिए साधनों की कमी है। लेकिन अब ई-संजीवनी सर्विस गांवों के लोगों को उनके घर के आस-पास ही चिकित्सा परामर्श की सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   11 March 2022 7:29 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ई-संजीवनी- झारखंड में आदिवासी समुदायों के दरवाजों तक पहुंची स्वास्थ्य सेवाएं

कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर, नविता कुमारी झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र, सुंदरनगर में ई-संजीवनी के माध्यम से टेली मेडिसिन सेवा का संचालन करती हैं।

अंजलि झा बड़े प्यार से अपनी दो महीने की बेटी को मुस्कुराते हुए देख रही हैं। लेकिन आज जिस चेहरे पर मुस्कान नजर आ रही है, डेढ़ महीने पहले उसी चेहरे पर चिंता की लकीरे थीं। उनकी ये नन्ही सी बेटी काफी बीमार थी और जन्म के बाद से ही अपनी मां का दूध नहीं पी पा रही थी।

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के जेमको में रहने वाला ये परिवार हैरान और परेशान था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। इस बारे में सलाह देने के लिए आस-पास कोई बाल रोग विशेषज्ञ भी नहीं था। उनका बच्चा भूख से पूरे दिन रोता रहता। उसे कुछ आराम मिल जाए इसके लिए बस घरेलू उपचार का सहारा था।

संयोग से, बच्ची की दादी सुनीता झा ने ई-संजीवनी के बारे में सुना था। ये सर्विस सुंदरनगर में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWC) में टेलीमेडिसिन सेवाएं दे रहा है। बच्ची को वहां ले जाया गया और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHO) नविता कुमारी की मदद से परिवार एक डॉक्टर से वर्चुअली जुड़ा। डाक्टर ने फोन से ही बच्चे की बीमारी के बारे में जाना और जरूरी दवाइयों के बारे में सलाह दी। बच्ची अब पूरी तरह से ठीक है और परिवार राहत की सांस ले रहा है।


सुनीता ने कहा कि वह टेली-मेडिसिन सेवा की बहुत एहसानमंद है। बच्ची की दादी ने गांव कनेक्शन को बताया, "बच्चे की मां उसे दूध नहीं पिला पा रही थी। लेकिन वेलनेस सेंटर जाने के बाद, सब ठीक हो गया। इस मुफ्त ऑनलाइन सेवा का बहुत-बहुत शुक्रिया, जिसने मेरी पोती के चेहरे पर मुस्कान ला दी।"

चिकित्सा सेवाओं को घर के करीब लाना

झारखंड के आदिवासी बहुल राज्य में अंजलि झा जैसे कई लोग अपने इलाज के लिए ई-संजीवनी का सहारा ले रहे हैं।

इस ऐप को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने दूर-दराज के इलाकों रहने वाले लोगों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ऑनलाइन चैटिंग के जरिए विशेषज्ञों से चिकित्सा परामर्श प्रदान करने के लिए शुरू किया है।

राज्य भर में दो मेडिकल कॉलेज और 230 से अधिक डॉक्टरों को इस सेवा से जोड़ा गया है। ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF), जमीनी स्तर पर काम करने वाला एक संगठन है, जो झारखंड में 1,100 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में तकनीकी सेवाएं और प्रशिक्षण दे रहा है।

झारखंड में, अगस्त 2021 में इस योजना को शुरू किया गया था। तब से लेकर अब तक राज्य में तकरीबन 30000 से ज्यादा लोग एचडब्ल्यूसी मॉडल से परामर्श ले चुके हैं। हर एचडब्ल्यूसी में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी को रोजाना कम से कम दो रोगियों का परामर्श देना होता है।

सुंदरनगर की सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी नविता कुमारी ने गांव कनेक्शन से कहा, "जिन मरीजों को इलाज की जरूरत होती है, उन्हें उनके घर के नजदीकी केंद्र पर संबंधित डॉक्टरों से ई-संजीवनी ऐप के जरिए जोड़ा जाता है। इसके बाद वेलनेस सेंटर, ऐप पर डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं मरीज को उपलब्ध कराता है।" उन्होंने बताया कि इस इलाके में रह रहे तकरीबन 25,000 लोगों तक ये सुविधा पहुंचाने के लिए 19 आंगनवाड़ी हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में आती हैं।


सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी कहती हैं, "अगस्त 20121 को पूर्वी सिंहभूम में ये सेवा शुरू की गई थी। उसके बाद से अब तक एक दिन में कम से कम दस परामर्श दिए जाते हैं।" उन्होंने कहा कि इलाज के लिए आने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं।

ये स्वास्थ्य अधिकारी मरीज की सारी जानकारी मसलन उनकी बीमारी, उनका ब्लड प्रेशर, शुगर, ऑक्सीजन लेवल, वजन आदि का विवरण ऐप पर भरते हैं। फिर बीमारी के हिसाब से संबंधित चिकित्सा विशेषज्ञ के साथ मरीज की वीडियो कॉन्फ्रेंस शुरू की जाती है।

ऑनलाइन जांच के बाद डॉक्टर मरीज को दवाएं लिखता है और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी मरीजों को वो दवाएं मुफ्त में मुहैया कराते हैं। अगर स्वास्थ्य केंद्र पर दवाएं उपलब्ध नहीं हैं और रोगी को इन्हें बाहर से खरीदना है तो वे ऐसी स्थिति में मरीजों को दवाओं का पर्चा लिखकर दिया जाता है।

नविता कुमारी ने कहा, "मरीज टेलीमेडिसिन सेवाओं से खुश हैं। हम विशेषज्ञों की मदद से बेहतर तरीके से इलाज के बारे में भी जान पा रहे हैं। क्योंकि टेलीकांफ्रेंस हमारी मौजूदगी में ही होती हैं।"

ऑनलाइन परामर्श के फायदे

पूर्वी सिंहभूम के पोटका में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी सुकांत शीत ने कहा कि ऐप से दिए जा रहे ऑडियो-विजुअल परामर्श ने दूरदराज के इलाकों में रह रहे मरीजों को बड़ी राहत पहुंचाई है। उन्होंने बताया, " शहर से दूर गांवों में रहने वाले लोग गरीबी और आने-जाने के लिए साधनों की कमी के चलते अपना इलाज नहीं करा पाते थे।"

उन्होंने कहा कि वह खुद ई-संजीवनी के लिए पूर्वी सिंहभूम डॉक्टरों के पूल में एक डॉक्टर के रूप में शामिल हैं और वह टेली-परामर्श के जरिए रोजाना कम से कम पांच से छह मरीजों को देखते हैं।

शीत ने गांव कनेक्शन को बताया, "मुझे खुशी है कि मैं ऐसे जरूरतमंद मरीजों के लिए कुछ कर पा रहा हूं जिनके पास विशेष उपचार की सुविधा नहीं पहुंच पा रही थी। " उन्होंने कहा कि ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इस सेवा का फायदा उठा रहे हैं।

दीपक गिरी पूर्वी सिंहभूम में ई-संजीवनी के नोडल अधिकारी हैं। डॉक्टर के मुताबिक इस साल 22 फरवरी तक जिले में 749 टेली-कंसल्टेशन हो चुके हैं।


गिरी ने गांव कनेक्शन को समझाया, "अगस्त 2021 के बाद से कुल 99 वेलनेस सेंटर के पास ई-संजीवनी ऐप की सुविधा मौजूद है। सेवाओं के लिए जिला केंद्र में रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और सामान्य चिकित्सकों समेत बीस डॉक्टरों को सूचीबद्ध किया गया है, " वह आगे कहते हैं, "हमें ये भी ध्यान रखना है कि हर एचडब्ल्यूसी में जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हों ताकि मरीजों को उन्हें बाहर से खरीदने की जरूरत न पड़े।

टेली-परामर्श के परिणाम कई तरीकों से फायदेमंद रहे हैं। सरायकेला-खरसावां में जिला परियोजना प्रबंधक निर्मल दास कुमार, गांव कनेक्शन से कहा, " डॉक्टर अब और बेहतर तरीके से मरीजों का इलाज कर पा रहे हैं क्योंकि इससे जिला स्तर के अस्पतालों में भीड़ कम करने में मदद मिली है। साथ ही अस्पताल तक आने-जाने में मरीज का काफी समय और पैसों लग जाता था। अब पैसा और समय दोनों की बचत हो रही है।"

डॉक्टरों का एक विस्तृत नेटवर्क

टीआरआईएफ के झारखंड राज्य प्रमुख श्यामल सांता ने कहा कि ये सेवा (एचडब्ल्यूसी मॉडल के बिना) पहली बार 2020 में शुरू की गई थी, जब देश में कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी।

श्यामल ने गांव कनेक्शन को बताया, "राज्य सरकार ई-संजीवनी के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है, जबकि टीआरआईएफ इससे जुड़े लोगों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण देता है।"

शुरुआत में, ई-संजीवनी पर परामर्श सिर्फ ई-संजीवनी ओपीडी मेथड से होता था, जोकि मरीज से डॉक्टर को एंड्राएड ऐप या फिर किसी भी वेब ब्रॉउजर से जोड़ता था। एचडब्ल्यूसी की शुरूआत मई 2021 में सीएचओ द्वारा एक ब्राउज़र आधारित सेवा के माध्यम की गई, जिसे ई-संजीवनी-एचडब्ल्यूसी पद्धति कहा जाता है। दोनों तरीके ऑनलाइन वीडियो परामर्श का समर्थन करती हैं।


जहां डॉक्टरों के लिए दो राज्य स्तरीय केंद्र हैं, वहीं प्रत्येक जिले का अपना डॉक्टर केंद्र भी है। रांची के राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (RIMS) के 40 विशेषज्ञ डॉक्टर, देवघर, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIMS) से 23 डाक्टर और झारखंड के 24 जिलों के कई चिकित्सा सलाहकार इससे जुड़े हैं। वे रोजाना सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच परामर्श के लिए उपलब्ध रहते हैं।

टीआरआईएफ के प्रवीर महतो के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्री ने बार-बार सेवाओं की समीक्षा करते रहे हैं, जबकि राज्य स्तरीय गैर संचारी रोग प्रकोष्ठ और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रकोष्ठ ने परियोजना के लिए जिलों के साथ निगरानी और समन्वय किया। उन्होंने कहा कि टीआरआईएफ सेवा को सुचारू रूप से चलाने के लिए डॉक्टरों और सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के आईडी निर्माण की प्रक्रिया में मदद कर रहा है।

हाल ही में, झारखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के प्रबंध निदेशक रमेश घोलप ने रांची में एक बैठक बुलाई, जहां उन्होंने बड़े सरकारी डाक्टरों को ई-संजीवनी के जरिए हर एक एचडब्ल्यूसी में रोजाना कम से कम दो परामर्श दिए जाने के निर्देश दिए हैं। झारखंड में कुल 1,640 में से 1,158 सक्रिय एचडब्ल्यूसी हैं जिन्हें चिह्नित किया गया है।

वन और नक्सल प्रभावित गांवों को भी फायदा

पश्चिम सिंहभूम जिले के सारंडा वन क्षेत्र के गांवों के लोग भी टेली-मेडिसिन सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं। कुछ साल पहले तक जिले में चाईबासा के जिला स्तरीय सदर अस्पताल में भी कोई विशेषज्ञ डाक्टर उपलब्ध नहीं था। यहां रह रहे लोगों को अपने इलाज के लिए खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब, ग्रामीणों के पास ई-संजीवनी सुविधा वाले एचडब्ल्यूसी में जाने के बाद, 10 से 30 मिनट के भीतर किसी विशेषज्ञ से ऑनलाइन परामर्श करने का विकल्प मौजूद है।

डुमरिया जैसे नक्सल प्रभावित गांवों में लोगों के पास सरकारी अस्पतालों तक आने-जाने के लिए कोई सीधा साधन नहीं है। परिवहन की कमी के चलते वे अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाते हैं। लेकिन इस ऐप से उन्हें बहुत मदद मिली है।

डॉक्टरों के साथ-साथ विशेष रूप से झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों को उम्मीद है कि सरकार ई-संजीवनी सेवा में और सुधार करेगी ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीजों को उनके घर के नजदीक ही समय पर बेहतर उपचार मिल सके। संथाल परगना के ग्रामीण आदिवासी भी इस विशेष उपचार सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।


पूर्वी सिंहभूम के कई गांवों में जहां तकनीकी कारणों से टेलीकांफ्रेंसिंग सेवा अभी तक लागू नहीं हुई है, वहां के निवासी और पैरा मेडिकल स्टाफ, ई-संजीवनी शुरू होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

पूर्वी सिंहभूम में हरलुंग पंचायत के लुपुंगडीह गांव में एचडब्ल्यूसी की कर्मचारी पुष्पा रानी महतोसाह ने गांव कनेक्शन को बताया, "लगभग 5,600 की आबादी वाले इस इलाके को उम्मीद है कि टेलीमेडिसिन सेवाएं जल्द ही शुरू हो जाएंगी।"

यह कहानी TRIF के सहयोग से प्रकाशित की गई है।

Also Read: खेती से लगातार नुकसान उठा रहे यूपी के इन किसानों को मछली पालन ने उबारा

tirf #tribal #Jharkhand #Health #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.