कोविड होने पर स्टेरॉयड ले रहें हैं तो इन बातों का रखें खयाल, डायबिटीज के मरीज रहें अलर्ट
कोरोना मरीजों और उससे ठीक हुए लोगों में फंगल इंफेक्शन के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य के जानकार इसकी वजह स्टेरॉयड के ज्यादा इस्तेमाल को बता रहे हैं। इस बीच कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मधु पाई ने स्वास्थय कर्मियों के लिए स्टेरॉयड के इस्तेमाल को लेकर जानकारी दी हैं।
गाँव कनेक्शन 25 May 2021 10:58 AM GMT
इस वक्त पूरा देश कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से जूझ रहा है। भले ही कई राज्यों के रिकवरी रेट में पहले से सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी रोजाना हजारों लोग मर रहे हैं। इस बीच कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी के एपिडेमियोलॉजी एवं ग्लोबल हेल्थ विभाग के कनाडा रिसर्च चेयर प्रोफेसर मधु पाई ने इलाज में इस्तेमाल हो रहे स्टेरॉयड को लेकर आगाह किया है। अपने ट्विटर हैंडल पर उन्होंने स्वास्थ्य कर्मियों के लिए स्टेरॉयड के इस्तेमाल को लेकर जानकारी दी हैं।
प्रोफेसर मधु पाई ने 25 मई को किए पोस्ट में लिखा है कि कोविड-19 के लिए स्टेरॉयड प्रमाणित जीवन रक्षक दवाएं हैं, लेकिन उनका सही और तर्कसंगत उपयोग किया जाना चाहिए। गलत उपयोग के कारण म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) और अन्य समस्याएं हो सकती हैं। उन्होंने अपने पोस्ट में एक चार्ट के जरिए इसके इस्तेमाल को लेकर जानकारी दी है।
Steroids are proven, life-saving meds for #COVID19. But they should be used correctly and rationally. Incorrect use can result in mucormycosis & other issues.@IndiaCOVIDSOS has put together these tips for physicians on rational use of steroids in Covidhttps://t.co/4ULwPIj9g5 pic.twitter.com/0lAyjTjAGu
— Madhu Pai, MD, PhD (@paimadhu) May 25, 2021
हल्के लक्षण वाले कोविड मरीजों के लिए सलाह
ऐसे कोरोना पॉजिटिव मरीजों को उन्होंने लक्षण के मुताबिक देखभाल और जरूरत पड़ने पर स्टेरॉयड इनहेलर (बुडेसोनाइड) लेने की सलाह दी। हालांकि 50 और 65 साल से ऊपर के मरीजों को इसके बावजूद हाई रिस्क पर रहने की बात कही। जिनका ऑक्सीजन लेवल 92 या इससे अधिक है और तो उनके लिए स्टेरॉयड इनहेलर (बुडेसोनाइड) फायदेमंद हो सकता है।
शुगर के मरीजों के लिए क्या रखना है ध्यान कोरोना शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को बिगाड़ सकता है।
समय-समय पर इसे चेक करके सुनिश्चित करें कि यह कंट्रोल में है। इसके लिए डॉक्टर की सलाह पर दवाएं लें।
डायबिटीज की गंभीर समस्या के लक्षण के कुछ संकेत हैं, जो इस प्रकार हैं। जैसे उल्टी आना, पेट की ऐठन, पेशाब का ज्यादा आना, थकान या भ्रम होना।
हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीजों को ओरल स्टेरॉयड बिल्कुल न दें। ये इनके लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि स्टेरॉयड वायरस को नहीं खत्म करता।
कोविड मरीजों के लिए सामान्य निर्देश
मास्क ज़रूर पहने। जिस जगह पर आप आइसोलेट हैं वह जगह हवादार हो।
6 मिनट टहलने के बाद अपना ऑक्सीजन लेवल चेक करें, ऐसा दिन में 3-4 बार करें।
डॉक्टर की सलाह पर बुडेसोनाइड (1600 mcg/day in total) के दो पफ दिन में दो बार इनहेल करें।
इनहेलर का इस्तेमाल करने के बाद साफ पानी कुल्ला जरूर करें।
गंभीर कोविड-19 मरीजों के लिए सलाह
कोरोना के गंभीर मरीजों को डॉक्टर की सलाह पर ओरल स्टेरॉटड (डेक्सामेथासोन) दी जाती है, जिनका ऑक्सीजन लेवल 92 से कम होता है। साथ ही ब्लड शुगर लेवल (180 या उससे कम) भी कंट्रोल रखना पड़ता है। बुखार आने पर स्टेरॉटड की जगह पैरासिटामाल या ब्रूफेन देनी चाहिए।
मरीज की विशेष देखभाल करें और अस्पताल ले जाएं
दिन में कम से कम एक बार ब्लड शुगर लेवल को जरूर चेक करें।
ऑक्सीजन लेवल ऑक्सीजन सिलेंडर या ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के जरिए 92 या इससे अधिक रहे। साथ ही
ऑक्सीजन लेने वाले इक्विपमेंट्स को साफ सुथरा रखे।
कोविड को फैलाने से बचने के लिए मास्क पहने साथ ही फंगस के खतरे को कम करें।
ओरल स्टेरॉयड के विकल्प
डेक्सामेथासोन (dexamethasone) 8 एमजी (6 एमजी साल्ट) या मेथिलप्रीडनीसोलोन (methylprednisolone) 32 एमजी या प्रीडनिसोन (prednisone) 40 एमजी
ये टेबलेट हैं और इनमें से कोई एक दिन में एक बार देनी है।
ये दवा 5 दिन तक ले सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा 10 दिन
5 से 10 दिन के बाद इसे बंद कर दें।
स्टेरॉयड को ज्यादा समय तक और उसकी ज्यादा डोज नहीं लेनी चाहिए।
म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) होने पर...
चेहरे के एक तरफ या आंखों में सूजन
मुंह में छाले या नाक, मुंह व त्वचा में काले या भूरे रंग के धब्बे दिखना
अचानक नए तरह का सिर दर्द होना
साइनस का दर्द या कंजेशन होना
स्टेरॉटड के फायदे और नुकसान
इनहेलर स्टेरॉयड के लिए सलाह – कोविड के हल्के लक्षण होने पर इनहेल्ड स्टेरॉयड मरीज में कोरोना के लक्षणों को ज्यादा दिन तक नहीं रहने देता। साथ ही विशेष देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती।
ओरल स्टेरॉटड के इस्तेमाल के फायदे – गंभीर हालत (ऑक्सीजन लेवल 92 से कम होने पर) पर डॉक्टर की सलाह से ओरल स्टेरॉटड का इस्तेमाल (सही डोज और कितनी बार लेनी है) जिंदगी बचा सकता है।
ओरल स्टेरॉटड के इस्तेमाल के नुकसान – हल्की बीमारी में ओरल स्टेरॉटड का इस्तेमाल फायदेमंद नहीं बल्कि नुकसानदेह हो सकता है। कोविड और स्टेरॉयड मरीज (जो डायबिटिक हो या जिसमें इसका पता न हो) के ब्लड शुगर लेवल को बिगाड़ सकते हैं। साथ ही बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन को बढ़ा सकते हैं। स्टेरॉयड का उपयोग तभी करें जब निगरानी और आगे की देखरेख संभव हो।
'काला, सफेद और पीला कवक' (ब्लैक, व्हाइट, येलो फंगस)
कोविड-19 से संक्रमित रोगियों या इससे ठीक होने वाले रोगियों में ब्लैक फंगस या म्यूकोर्मिकोसिस के मामले दर्ज किए गए है। नाक के रास्ते एंडोस्कोपिक करने पर काले रंग के मृत ऊतक दिखाई देते हैं, जो ब्लैक फंगस के संक्रमण की पुष्टि करते हैं। यह आमतौर पर नाक या मुंह को प्रभावित करता है और संक्रमण मस्तिष्क तक भी पहुंच सकता है।
इसी परीक्षण से वाइट फंगस के संक्रमण को पहचाना जा सकता है, जो कि ब्लैक फंगस की तुलना में घातक हो सकता है। क्योंकि यह मस्तिष्क, श्वसन अंगों, पाचन तंत्र, गुर्दे, नाखून और जननांगों जैसे महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करता है।
हालांकि अभी तक येलो फंगस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन यह बताया गया है कि इसके सामान्य लक्षण सुस्ती, भूख न लगना और वजन कम होना हैं। इससे भी बदतर लक्षणों में धंसी हुई आँखें, फोड़े का बनना और मवाद का रिसाव शामिल हैं।
इसके बढ़ने पर यह किसी अंग के निष्क्रिय होने या मौत का कारण भी बन सकता है। ये फंगल संक्रमण हालांकि दुर्लभ और अत्यधिक घातक है और मृत्यु दर 25 प्रतिशत से 90 प्रतिशत के बीच है।
'येलो फंगस' के बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
माइक्रोबायोलॉजिस्ट मेघना कुलकर्णी के अनुसार, ये फंगस (ब्लैक, वाइट या यलो) आमतौर पर मनुष्यों को संक्रमित नहीं करते हैं, लेकिन कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले रोगी अक्सर उनके हमले के शिकार हो जाते हैं।
सामान्य रूप से फंगस इंसास के रोगाणु नहीं होते हैं। वे आमतौर पर पौधों को प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा, बहुत कम फंगस वास्तव में जानवरों को प्रभावित करते हैं। "मनुष्यों में इसका संक्रमण तभी संभव है, जब एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो-डेफिशियेंसी सिंड्रोम) के मामले में प्रतिरक्षा बहुत कम हो।
येलो फंगस के उपचार के बारे में पूछे जाने पर माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने कहा कि आमतौर पर डॉक्टरों द्वारा रोगियों का इलाज करते समय एक सामान्य एंटीफंगल दवा दी जाती है। " इन दवाओं का सख्त चिकित्सा व्यवस्था के तहत पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐंटिफंगल दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव भी होते हैं," उन्होंने साफ किया।
ब्लैक और वाइट फंगस के साथ येलो फंगस का भी मामला आया
हाल में देशभर के कई राज्यों से ब्लैक फंगस और वाइट फंगस के संक्रमण के मामलों सामने आए। इस बीच उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के एक अस्पताल में 'येलो फंगस' का पहला मामला सामने आया है। राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से करीब 40 किलोमीटर दूर गाजियाबाद में ईएनटी सर्जन बृजपाल त्यागी के हर्ष ईएनटी अस्पताल से येलो फंगस का पहला मामला सामने आया है। त्यागी ने एक मीडिया रिपोर्ट में कहा, "सीटी स्कैन में मरीज का साइनस सामान्य लग रहा था, लेकिन जब हमने उसकी एंडोस्कोपी की तो हमने पाया कि वह तीन (ब्लैक, वाइट या येलो) अलग-अलग प्रकार के फंगस से संक्रमित है।"
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