नैनो तरल यूरिया के फायदे जानते हैं? नहीं तो कृषि जानकारों से जानिए

नैनो तरल यूरिया क्या है, किसानों के लिए कैसे वो फायदेमंद है। नैनो तरल यूरिया का छिड़काव कैसे करना चाहिए? ऐसे कई सवालों का जवाब इफको और कृषि विशेषज्ञों ने दिए हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   4 Dec 2021 1:49 PM GMT

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लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। नैनो तरल यूरिया यानि आधा लीटर की शीशी में वो खाद, जो एक बोरी यूरिया से कहीं ज्यादा काम करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक नैनो तरल यूरिया से न सिर्फ उत्पादन बढ़ता है बल्कि फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। नैनो तरल यूरिया, दानेदार यूरिया से सस्ती भी है।

"नैनो तरल यूरिया उपज बढ़ाने का एक साधन है, ये उपज की गुणवत्ता बढ़ाने का साधन है। साथ ही इससे खेती की लागत में भी कमी आती है।" प्रो. केएन तिवारी बताते हैं। प्रो. तिवारी कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान विभाग के हेड हैं। साथ ही वो इफको और नैनो प्रोजेक्ट से जुड़े हैं।


फसलों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए किसान यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अभी तक यूरिया सफेद दानों के रुप में उपलब्ध थी, जिसका इस्तेमाल करने पर आधे से भी कम हिस्सा पौधों को मिलता था, बाकि जमीन और हवा में चला जाता था। भारत नैनो तरल यूरिया को लॉन्च करने वाला पहला देश है। मई 2021 में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने इसे लॉन्च किया था। इससे पहले नैनो तरल यूरिया को 94 से ज्यादा फसलों को देश भर में 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण (एफएफटी) पर परिक्षण किया गया था। इसके बाद आम किसानों को दिया गया।

इफको के मुताबिक इसके धान, आलू, गन्ना, गेहूं और सब्जियों समेत सभी फसलों पर बेहद अच्छे परिणाम मिले हैं। उत्तर प्रदेश में इफको के राज्य विपणन प्रबंधक अभिमन्यु राय कहते हैं, "नैनो तरल यूरिया के कई फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा है कि धान, गेहं, तिलहन और सब्जियां जो भी उगाई जाती हैं उनकी क्वालिटी बढ़ती है। 500 लीटर की यूरिया की शीशी पूरे एक एकड़ खेत के लिए काफी है। साथ में इसका प्रयोग करने से पर्यावरण,जल और मिट्टी में जो प्रदूषण हो रहा है वो नहीं होगा।"

वो आगे बताते हैं, "इसका ट्रांसपोर्टेशन और रखरखाव खर्च बहुत सस्ता है। अगर पहले किसान को 10 बोरी यूरिया ले जाना हो तो ट्रैक्टर लाना चाहिए। लेकिन नैनो तरल यूरिया की 10 बोतल को किसान एक झोले में रखकर मोटर साइकिल पर लेकर आसानी से जा सकता है।"

राय के मुताबिक अभी एक रैक (52000 बोरी) तो पूरी ट्रेन आती है, लेकिन नैनो तरल यूरिया की 52000 बोतलें तो सिर्फ एक ट्रक में ही आ जाएंगी। भारी भरकम गोदाम की जरुरत नहीं होगी। इससे लागत कम आएगी तो किसानों को सस्ती खाद मिलेगी।

इफको के राज्य विपणन प्रबंधक अभिमन्यु राय

नैनो तरल यूरिया की खूबियां गिनाते हुए प्रो. केएन तिवारी कहते हैं, "किसान भाइयों आप नाइट्रोजन की खुराक पूरी करने के लिए मुख्य रुप से यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। शायद आपको ये जानकारी नहीं होगी कि जो यूरिया आप डालते हैं रबी की फसलें (गेहूं, सरसों आदि) मुश्किल से 40 से 50 फीसदी फसल उपयोग कर पाती है। जबकि खरीफ की फसलें (धान मक्का) 25 से 30 फीसदी इस्तेमाल कर पाते हैं। यानि अगर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन देते हैं तो फसलें सिर्फ 25 फीसदी ले पाती हैं। बाकी का 75 फीसदी गैस बनकर हवा में उड़ जाता है या पानी की अधिकता होने पर वो फसलों के जड़ों के नीचे चला जाता है, पौधे उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "नैनो यूरिया का अविष्कार इन्हीं सब खामियों को दूर करने के लिए किया गया है। नैनो तरल यूरिया का उपयोग हम फसल की पत्तियों पर छिड़काव के माध्यम से करते हैं। छिड़काव के लिए एक लीटर पानी में 2-4 मिलीलीटर नैनो यूरिया मिलाना होता है। यानि जो 15 लीटर की टंकी होती है फसल की जरुरत के अनुसार 30-60 मिलीलीटर मिलाना होता है। एक फसल में दो बार नैनो यूरिया का छिच़काव करना चाहिए।"

वैज्ञानिकों के मुताबिक नैनो तरल यूरिया के कणों का साइज इतना कम है कि ये पत्ती से सीधे पौधे में प्रवेश कर जाता है। प्रो. तिवारी बताते हैं, "जब हम पत्तियों पर इसका छिड़काव करते हैं तो सारा का सारा नाइट्रोजन पत्तियों को स्टोमेटा (Stoma रंध्र) और फ्लोएम (Phloem) है, उससे इसकी साइज बहुत छोटी रहती है तो जिससे से सीधे ये पत्तियों में प्रवेश हो जाता है। और पौधे की जरुरत के अनुसार नाइट्रोजन को रिलीज करता है। जबकि दानेदार यूरिया का नाइट्रोजन सिर्फ एक हफ्ते तक काम में आता है।"

वो आगे बताते हैं, "ये बेकार जाने वाली यूरिया हवा, पानी, मिट्टी को सबको दूषित करता था। और अधिक मात्रा देने से खासकर सब्जियों में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।"

कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय मृदा विज्ञान विभाग के हेड प्रो. केएन तिवारी

किसान के वैज्ञानिक बेटे ने की है नैनो तरल यूरिया की खोज

नैनो यूरिया की खास बात ये भी है कि इसकी खोज करने वाले वैज्ञानिक डॉ. रमेश रालिया एक किसान का बेटे हैं। जिन्होंने नैनो फर्टीलाइजर के क्षेत्र में कई मुकाम गढ़े हैं। अमेरिका समेत कई देशों में काम करने के बाद वो भारत लौटे और इफको के साथ मिलकर नैनो का उपहार किसानों को दिया है।

डॉ रमेश रालिया इफको की गुजरात के गांधीनगर के कलोल में स्थित रिसर्च सेंटर "नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र" के रिसर्च एंड डेवलपमेंट हेड और सेंटर के जनरल मैनेजर हैं। मूल रुप से राजस्थान में जोधपुर जिले के गांव खारिया खंगार से रहने वाले डॉ. रालिया के मुताबिक उनके माता-पिता गांव में ही रहते और खेती करते हैं। किसान के बेटे डॉ रमेश रालिया के नाम नैनो टेक्नॉलोजी में फिलहाल 15 पेटेंट हैं। इफको का नैनो यूरिया तरल उसमें से एक है।

डॉ रालिया कहते हैं, "नैनो तरल यूरिया पौधों की नाइट्रोजन की पूर्ण खुराक देता है। इसको 94 से ज्यादा फसलों में देशभर के अलग-अलग कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि संस्थानों और किसानों के खेतों में आजमाया गया है।"

किसान के वैज्ञानिक बेटे डॉ. रमेश रालिया ने की है नैनो तरल यूरिया की खोज

नैनो यूरिया और साधारण यूरिया के रासायनिक फर्क को डॉ. रालिया साधारण शब्दों में बताते हैं, " साधारण यूरिया को पौधा आयन (Lon) के रुप में लेता है नैनो यूरिया को पार्टिकल के रुप में होता है। पार्टिकल आयनों का एक समूह होता है। आयन रिएक्टिवेट (रसायन प्रतिक्रिया की अवस्था- जिसके रासायनिक गुण अन्य पदार्थों से मिलने परिवर्तित हो जाएं) की स्थिति होती है, जबकि पार्टिकल (कण) एक स्टैबल (स्थिर) अवस्था होती है। स्थिर रुप में होने के चलते कण पौधे के अंदर पहुंचकर नाइट्रोजन छोड़ते हैं, जिससे नाइट्रोजन को पौधा बहुत अच्छे तरीके ग्रहण कर पाते हैं।"

नैनो तरल यूरिया को लेकर कई किसानों का ये कहना है कि इसके छिड़काव में वक्त लगता है, मजदूरी की लागत बढ़ जाती है।

नैनो तरल यूरिया से बचेगी सरकार की करोड़ों की सब्सिडी

रासायनिक उर्वरकों पर सरकार भारी सब्सिडी देती है। नवंबर 2021 की बात करें तो जो यूरिया 266.50 पैसे की 45 किलो मिलती है सरकार उस पर 2000 रुपए प्रति बोरी की सब्सिडी देती है। ताकि किसानों को सस्ती यूरिया मिलती रहे।

इफको के यूपी में मार्केटिंग हेड अभिमन्यु राय के मुताबिक नैनो यूरिया से सरकार की बहुत बड़ी राशि भी बचेगी जो कंपनियों और विदेशों को सब्सिडी के रुप में जाती है।

वो कहते हैं, "यूरिया पर बहुत बड़ी राशि सरकार सब्सिडी के रुप में कंपनियों को देती है। जो यूरिया किसान को 266.50 रुपए की बोरी मिलती है, सरकार उस पर 1000-2000 रुपए तक सब्सिडी देती है, ये सब्सिडी समय-समय पर बदलती रहती है। जिस आधार पर विदेश से इंपोर्टेड यूरिया मिलती है उसी के आधार पर सब्सिडी घटती-बढ़ती रहती है। इस वक्त यूरिया पर करीब 2000 रुपए की सब्सिडी है। तो उस सब्सिडी की बचत होगी।"

रासायनिक उर्वरकों को फैक्ट्री से रिटेल प्वाइंट यानि बिक्री तक पहुंचाना भी बड़ा काम है। राय के मुताबिक नैनो तरल यूरिया से ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरोज में बहुत बड़ी बचत होगी। अभी एक रैक (52000 बोरी) तो पूरी ट्रेन आती है लेकिन नैनो तरल यूरिया की 52000 बोतलें तो सिर्फ एक ट्रक में ही आ जाएंगी। भारी भरकम गोदाम की जरुरत नहीं होगी। और किसान को ले जाने में फायदा है।


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