चार-पांच महीने में धनिया की फसल से होता है बढ़िया मुनाफा, पढ़िए कब और कैसे करें बुवाई?

Divendra Singh | Nov 14, 2018, 09:41 IST
किसान इस समय बुवाई करके हरा धनिया से भी अच्छा मुनाफा कमा सकता है।
#Coriander crop
लखनऊ। धनिया एक ऐसी फसल होती है, जिसे किसान मसालों के रूप में तो बेचता ही है, साथ ही हरे धनिया से भी अच्छा मुनाफा कमा सकता है।

इसकी खेती पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कनार्टक और उत्तर प्रदेश में अधिक की जाती है।

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के किसान अमित पटेल पिछले कई वर्षों से धनिया की खेती कर रहे हैं। वह दिन में सिर्फ दो घंटे की मेहनत करके हरी धनिया बेचकर हर महीने 15 से 20 हजार रुपए आसानी से कमा लेते हैं। अमित की माने तो सालाना डेढ़ बीघे खेत से धनिया की खेती कर दो लाख रुपए कमा रहे हैं। 12 महीने धनिया की फसल उगाने वाले अमित पटेल (28 वर्ष) उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले से 26 किलोमीटर दूर मलवां ब्लॉक के रहने वाले हैं।

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अमित पटेल बताते हैं, "हमारे यहां बंदर बहुत ज्यादा हैं। कोई भी फसल की बुवाई करो तो ये बहुत नुकसान करते हैं, इसलिए मैंने सोंचा क्यों न धनिया की फसल की जाये। तब धनिया की खेती शुरू की और पिछले 13 वर्षों से धनिया की खेती कर रहा हूं और अच्छा मुनाफा मिल रहा है।" वो आगे बताते हैं, "सुबह शाम मिलाकर दो घंटे ही खेत पर निराई करने जाता हूं। बाजार से हर दिन भाव के हिसाब से 800 से लेकर 2000 रुपये तक कमा लेता हूं।"

अमित पटेल बताते हैं, "एक बीघा में 40 क्यारी बनाते हैं, इसके बाद बुवाई कर देते हैं। ऐसे में 40 दिन में धनिया बेचने के लिए तैयार हो जाती है।" वहीं, बाराबंकी के बेलहरा गाँव के किसान रामकुमार (45 वर्ष)बताते हैं, "हरी धनिया की फसल के लिए दोमट मिट्टी उत्तम है। धनिया की फसल में इस बात का ध्यान रखना है कि खेत में पानी न रुकता हो। जबसे हरी धनिया की खेती की है तबसे हर दिन 800-1200 रुपये तक की बिक्री हो जाती है।"

लगभग 3 लाख टन के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ भारत विश्व में धनिया का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। इसके उत्पादन में वर्ष दर वर्ष व्यापक उतार चढ़ाव रहता है।

मिट्टी और जलवायु

धनिया के लिए दोमट, मटियार या कछारी भूमि जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश और अच्छी जल धारण की क्षमता हो, उपयुक्त होती है। खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। इस फसल को शुष्क ठण्डे मौसम की आवश्यकता होती है।

धनिया की उन्नत किस्में

पंत धनिया -1, मोरोक्कन, सिम्पो एस 33, गुजरात धनिया -1, गुजरात धनिया -2, ग्वालियर न.-5365, जवाहर धनिया -1, सी. एस.-6, आर.सी.आर.-4, यु. डी.-20,436, पंत हरीतिमा, सिंधु जैसी किस्मों की खेती कर सकते हैं।

भूमि की तैयारी

अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए अच्छे तरीके से बुवाई से पहले पलेवा लगाकर भूमि की तैयारी करनी चाहिए। जुताई से पहले 5-10 टन प्रति हेक्टेयर पक्की हुई गोबर की खाद मिलाएं। धनिया की सिंचित फसल के लिए 5-5 मीटर की क्यारियां बना लें, जिससे पानी देने में और निराई-गुड़ाई का काम करने में आसानी होती है।

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बुवाई का समय

धनिया की फसल के लिए अक्टुंबर से नवंबर तक बुवाई का उचित समय रहता है। बुवाई के समय अधिक तापमान रहने पर अंकुरण कम हो सकता है। बुवाई का निर्णय तापमान देख कर ले। क्षेत्रों में पला अधिक पड़ता है वहां धनिया की बुवाई ऐसे समय में न करें, जिस समय फसल को अधिक नुकसान हो।

बीज की मात्रा व बीजोपचार

अच्छे उत्पादन के लिए धनिया का 15 से 20 किग्रा प्रति बीज पर्याप्त होता है। बीजोपचार के लिए दो ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। बुवाई से पहले दाने को दो भागों में तोड़ देना चाहिए। ऐसा करते समय ध्यान दे अंकुरण भाग नष्ट न होने पाए और अच्छे अंकुरण के लिए बीज को 12 से 24 घंटे पानी में भिगो कर हल्का सूखने पर बीज उपचार करके बोए।

बुवाई की विधि

25 से 30 सेमी. कतार से कतार को दुरी और 5 से 10 सेमी. पौधों से पौधे की दुरी रखना चाहिए। असिंचित फसल से बीजों को 6 से 7 सेमी. गहरा बोना चाहिए और सिंचित फसल में बीजों को 1.5 से 2 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए, क्योंकि ज्यादा गहरा बोने से सिंचाई करने पर बीज पर मोटी परत जम जाती हैं, जिससे बीजों का अंकुरण ठीक से नहीं हो पाता हैं।

निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण

धनिये में शुरूआती बढ़वार धीमी गति से होती हैं इसलिए निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकलना चाहिए। सामान्यतः धनिये में दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली निराई-गुड़ाई के 30-35 दिन पर अवश्य कर देना चाहिए। दूसरी निराई-गुड़ाई 60 दिन बाद करें। इससे पौधों में बढ़वार अच्छी होने के साथ-साथ बचे हुए खरपतवार भी नष्ट हो जाते हैं और उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालीन 1लीटर प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी में मिलाकर अंकुरण से पहले छिड़काव करें पर ध्यान रखें की छिड़काव के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए और छिड़काव शाम के समय करें तो उचित रहता हैं।

सिंचाई

फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचित क्षेत्र के लिए सामान्यतः पलेवा के अलावा दो-तीन सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। वैसे सिंचाई की संख्या बुवाई के समय, भूमि का प्रकार औश्र स्थानीय मौसम के ऊपर निर्भर होने के आधार पर सिंचाई संख्या कम और ज्यादा भी हो सकती हैं।

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