कोविड के बाद डेंगू-मलेरिया के मामले ज़्यादा गंभीर क्यों हो रहे हैं? वैज्ञानिकों ने बताया सच
Gaon Connection | Jul 19, 2025, 17:10 IST
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि कोविड-19 का पिछला संक्रमण मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों को ज़्यादा गंभीर बना सकता है। इस शोध के अनुसार, जिन मरीज़ों को पहले कोविड हो चुका था, उनमें इन दोनों रोगों के जटिल रूप विकसित होने की संभावना कहीं ज़्यादा थी।
कोविड-19 से संक्रमित हो चुके लोगों को मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ होने का ख़तरा और अधिक है, ये हम नहीं कह रहे, वैज्ञानिकों ने एक स्टडी में इसका पता लगाया है।
यह अध्ययन कर्नाटक के मंगलुरु तालुक में 1 अगस्त 2022 से 19 अगस्त 2024 के बीच किया गया, जिसमें 293 वयस्क मरीजों को शामिल किया गया—जिनमें से 70 मलेरिया और 223 डेंगू से पीड़ित थे।
शोधकर्ताओं ने मरीजों से उनके कोविड-19 संक्रमण, टीकाकरण, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और अन्य स्वास्थ्य स्थितियों की जानकारी ली। इसके आधार पर पाया गया कि जिन मरीजों को पहले कोविड-19 हो चुका था, उनमें डेंगू और मलेरिया की जटिलताएँ अधिक गंभीर थीं। मलेरिया से पीड़ित उन मरीजों में जिनका कोविड इतिहास था, 85.7% को गंभीर मलेरिया हुआ। वहीं डेंगू के मरीजों में यह आंकड़ा 98.1% तक पहुँच गया, जो एक महत्वपूर्ण संकेत है।
शोध में यह भी देखा गया कि डेंगू के गंभीर मामलों में निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग से आने वाले लोग अधिक प्रभावित थे। अधिकांश मरीज पुरुष थे, और बहुत से लोग अकुशल या अर्धकुशल नौकरियों से जुड़े थे। कुछ को पहले से मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियाँ भी थीं, जो बीमारी की गंभीरता को और बढ़ा सकती हैं। मलेरिया के गंभीर मामलों में Plasmodium falciparum संक्रमण प्रमुख रहा, जबकि डेंगू के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या में भारी गिरावट एक सामान्य लक्षण थी।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 के बाद शरीर में बनी ‘इम्यून मेमोरी’ या लंबे समय तक सक्रिय सूजन प्रतिक्रिया (chronic inflammation) डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों की जटिलता को बढ़ा सकती है। कोविड-19, मलेरिया और डेंगू तीनों ही बीमारियों में शरीर में सूजन, रक्त कोशिकाओं की क्षति और अंगों पर असर पड़ता है—जो साथ मिलकर बीमारी को और अधिक गंभीर बना सकते हैं।
अध्ययन में शामिल सभी मरीजों को कोविड वैक्सीन की कम से कम एक खुराक मिली थी, और किसी को भी गंभीर कोविड नहीं हुआ था। फिर भी, डेटा से यह संकेत मिला कि तीन खुराक पाने वाले कुछ मरीजों में गंभीर मलेरिया का खतरा अधिक था। हालांकि, शोधकर्ता मानते हैं कि यह वैक्सीन की वजह से नहीं, बल्कि वैक्सीन द्वारा उत्पन्न इम्यून प्रतिक्रिया के प्रभावों के कारण हो सकता है, जो असल संक्रमण की तरह ही शरीर को सक्रिय करती है।
यह शोध भारत जैसे देशों के लिए बेहद अहम है, जहाँ डेंगू और मलेरिया पहले से ही बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ हैं। कोविड-19 की लहर के बाद अब इन रोगों की गंभीरता बढ़ने के कारणों को समझना आवश्यक है, ताकि नीति-निर्माताओं और स्वास्थ्यकर्मियों को संभावित जोखिम समूहों की पहचान करने में मदद मिल सके।
हालांकि अध्ययन के कुछ सीमित पहलू भी रहे। जैसे कि किसी भी मरीज को गंभीर कोविड नहीं हुआ था, और डेटा स्वयं-रिपोर्ट किया गया था, जिससे रीकॉल बायस की संभावना बनी रहती है। फिर भी, इस अध्ययन से एक अहम संबंध सामने आता है कि कोविड-19 का इतिहास डेंगू और मलेरिया की गंभीरता पर असर डाल सकता है।
शोधकर्ताओं की सिफारिश है कि मलेरिया और डेंगू के हर मरीज से उनका कोविड-19 इतिहास और वैक्सीनेशन की जानकारी ली जानी चाहिए। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस मरीज को अधिक सतर्कता की जरूरत है। इसके अलावा, आगे और भी गहन बायोमेडिकल शोधों की जरूरत है, ताकि यह पूरी तरह स्पष्ट किया जा सके कि कोविड-19 संक्रमण और इन बीमारियों के बीच बायोलॉजिकल कड़ी क्या है।
इस अध्ययन से यह भी साफ होता है कि सिर्फ कोविड से उबर जाना काफी नहीं है—इसके बाद भी शरीर में ऐसी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं बनी रह सकती हैं जो भविष्य की बीमारियों को और जटिल बना दें। महामारी के बाद की दुनिया में, यह समझना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि वायरस का असर सिर्फ तत्काल संक्रमण तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह भविष्य में दूसरी बीमारियों की प्रकृति को भी बदल सकता है।
यह अध्ययन कर्नाटक के मंगलुरु तालुक में 1 अगस्त 2022 से 19 अगस्त 2024 के बीच किया गया, जिसमें 293 वयस्क मरीजों को शामिल किया गया—जिनमें से 70 मलेरिया और 223 डेंगू से पीड़ित थे।
शोधकर्ताओं ने मरीजों से उनके कोविड-19 संक्रमण, टीकाकरण, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और अन्य स्वास्थ्य स्थितियों की जानकारी ली। इसके आधार पर पाया गया कि जिन मरीजों को पहले कोविड-19 हो चुका था, उनमें डेंगू और मलेरिया की जटिलताएँ अधिक गंभीर थीं। मलेरिया से पीड़ित उन मरीजों में जिनका कोविड इतिहास था, 85.7% को गंभीर मलेरिया हुआ। वहीं डेंगू के मरीजों में यह आंकड़ा 98.1% तक पहुँच गया, जो एक महत्वपूर्ण संकेत है।
शोध में यह भी देखा गया कि डेंगू के गंभीर मामलों में निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग से आने वाले लोग अधिक प्रभावित थे। अधिकांश मरीज पुरुष थे, और बहुत से लोग अकुशल या अर्धकुशल नौकरियों से जुड़े थे। कुछ को पहले से मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियाँ भी थीं, जो बीमारी की गंभीरता को और बढ़ा सकती हैं। मलेरिया के गंभीर मामलों में Plasmodium falciparum संक्रमण प्रमुख रहा, जबकि डेंगू के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या में भारी गिरावट एक सामान्य लक्षण थी।
COVID-19 infection severe malaria dengue epidemiological study from Southern India
अध्ययन में शामिल सभी मरीजों को कोविड वैक्सीन की कम से कम एक खुराक मिली थी, और किसी को भी गंभीर कोविड नहीं हुआ था। फिर भी, डेटा से यह संकेत मिला कि तीन खुराक पाने वाले कुछ मरीजों में गंभीर मलेरिया का खतरा अधिक था। हालांकि, शोधकर्ता मानते हैं कि यह वैक्सीन की वजह से नहीं, बल्कि वैक्सीन द्वारा उत्पन्न इम्यून प्रतिक्रिया के प्रभावों के कारण हो सकता है, जो असल संक्रमण की तरह ही शरीर को सक्रिय करती है।
COVID-19 infection severe malaria dengue epidemiological study from Southern India
हालांकि अध्ययन के कुछ सीमित पहलू भी रहे। जैसे कि किसी भी मरीज को गंभीर कोविड नहीं हुआ था, और डेटा स्वयं-रिपोर्ट किया गया था, जिससे रीकॉल बायस की संभावना बनी रहती है। फिर भी, इस अध्ययन से एक अहम संबंध सामने आता है कि कोविड-19 का इतिहास डेंगू और मलेरिया की गंभीरता पर असर डाल सकता है।
शोधकर्ताओं की सिफारिश है कि मलेरिया और डेंगू के हर मरीज से उनका कोविड-19 इतिहास और वैक्सीनेशन की जानकारी ली जानी चाहिए। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस मरीज को अधिक सतर्कता की जरूरत है। इसके अलावा, आगे और भी गहन बायोमेडिकल शोधों की जरूरत है, ताकि यह पूरी तरह स्पष्ट किया जा सके कि कोविड-19 संक्रमण और इन बीमारियों के बीच बायोलॉजिकल कड़ी क्या है।
इस अध्ययन से यह भी साफ होता है कि सिर्फ कोविड से उबर जाना काफी नहीं है—इसके बाद भी शरीर में ऐसी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएं बनी रह सकती हैं जो भविष्य की बीमारियों को और जटिल बना दें। महामारी के बाद की दुनिया में, यह समझना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि वायरस का असर सिर्फ तत्काल संक्रमण तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह भविष्य में दूसरी बीमारियों की प्रकृति को भी बदल सकता है।