देश में पहली बार नई तकनीक के इस्तेमाल से हुआ मारवाड़ी घोड़ी 'राज-हिमानी' का जन्म

अच्छे नस्ल के घोड़ों की समस्या जल्द ख़त्म हो सकती है, वैज्ञानिकों ने एक ऐसे प्रयोग में सफलता हासिल की है, जिससे बढ़िया नस्ल के घोड़े पैदा किए जा सकते हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   5 Oct 2023 5:17 AM GMT

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देश में पहली बार नई तकनीक के इस्तेमाल से हुआ मारवाड़ी घोड़ी राज-हिमानी का जन्म

देश में अच्छे नस्ल के घोड़ों की कमी एक गंभीर समस्या है, ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस प्रयोग से अच्छे नस्ल के घोड़ों की संख्या बढ़ाई जा सकती है।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के बिकानेर स्थित इक्वाइन प्रोडक्शन कैंपस में वैज्ञानिकों द्वारा भ्रूण प्रत्यर्पण तकनीक और हिमीकृत वीर्य का प्रयोग करते हुए भारत में पहली बार घोड़ी के बच्चे का जन्म हुआ है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम हिमीकृत वीर्य से उत्पन्न होने के कारण “राज-हिमानी” रखा है।

अभी तक सरोगेट माँ से बच्चे का जन्म होता आया है, लेकिन भ्रूण माँ के पेट में तैयार कर साढ़े सात दिन बाद उसे सरोगेट माँ के पेट में डालकर बच्चा पैदा कराना नई तकनीक है।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ तिरुमला राव तल्लूरी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "देश में घोड़े पर भ्रूण स्थातंरण तकनीक का प्रयोग पहली बार नहीं हुआ है, पहले भ्रूण अच्छी नस्ल की घोड़ी में तैयार करने के बाद उसे सरोगेट माँ में रखकर बच्चा पैदा करना देश में पहली बार हुआ है।" राज हिमानी का जन्म चार अक्टूबर को सुबह 03:40 के करीब हुआ, जन्म के समय उसका वजन 35 किलो था।

इस प्रकिया के बारे में डॉ तल्लूरी विस्तार से बताते हैं, "सबसे पहले हमने फ्रॉजेन सीमेन से मारवाड़ी नस्ल की घोड़ी को कृत्रिम गर्भाधान तकनीक से गर्भवती कराया, उसके बाद जब वो घोड़ी गर्भवती हो गई तो साढ़े सात तीन बाद उस भ्रूण को निकालकर सरोगेट मदर की कोख में डाल दिया गया और अब 11 महीने बाद राज हिमानी का जन्म हुआ।"


मारवाड़ी नस्ल का नाम राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र पर पड़ा है, क्योंकि मारवाड़ क्षेत्र इनका प्राकृतिक आवास होता है। मारवाड़ क्षेत्र में राजस्थान के उदयपुर, जालोर, जोधपुर और राजसमंद ज़िले और गुजरात के कुछ निकटवर्ती क्षेत्र शामिल हैं। मारवाड़ी घोड़ों को मुख्य रूप से सवारी और खेल के लिए पाला जाता है।

डॉ तल्लूरी आगे कहते हैं, "अभी तक सिर्फ फ्रेश सीमेन के इस्तेमाल से भ्रूण प्रत्यारोपण किया गया था, लेकिन पहली बार फ्रोजन सीमेन के इस्तेमाल से ये प्रयोग किया गया है। घोड़े के सीमेन को आप 100 साल तक भी फ्रीज करके रख सकते हैं, यही इसकी ख़ासियत होती है।"

"आमतौर पर एक घोड़ी अपने जीवन में आठ-दस बच्चे दे सकती है। इसलिए एक घोड़ी से ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे लेने के लिए उसके एम्ब्रयो को प्रिजर्व करके फिर दूसरे सरोगेट में उसे ट‍्रासंफर कर देते हैं, यही काम हम भी कर रहे हैं। इस तकनीक से हम 20-30 बच्चे ले सकते हैं।" उन्होंने आगे कहा।

इससे पहले 19 मई 2023 को एक सरोगेट माँ को एक ब्लास्टोसिस्ट-स्टेज भ्रूण के ट्रांसफर से 23.0 किलो के मादा घोड़े का जन्म हुआ है। नवज़ात घोड़े का नाम 'राज-प्रथम' रखा गया था।

मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल की आबादी तेज़ी से घट रही है। साल 2019 में जारी 20वीं पशुगणना के मुताबिक देश में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की संख्या 33,267 है। जबकि घोड़े और टट्टू की सभी नस्लों की संख्या 3 लाख 40 हज़ार है, जो 2012 में 6 लाख 40 हज़ार थी।

इस तकनीक से आम अश्व पालक को लाभ होगा और उच्च गुणवत्ता के अश्वों को पैदा करने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों के सफल प्रयोग पर केंद्र के निदेशक डॉ टी के भट्टाचार्य कहते हैं, "भारत मे अश्व संख्या तीव्र गति से गिर रही है। इसके मुख्य कारणों में से एक बांझपन और बच्चा पैदा करने में असक्षम घोड़ियां भी है। यह तकनीक ऐसे जानवरों से बच्चा लेने में लाभदायक सिद्ध हो सकेगी और बढ़िया नस्ल के जानवरों से अधिक संख्या में बच्चे प्राप्त करने में कारगर होगी।"

इस टीम ने आज तक 18 मारवाड़ी घोड़ियों का भ्रूण विट्रीफाई करने में सफलता प्राप्त कर ली है और इनसे सफल गर्भधान और बच्चा पैदा करने पर अनुसंधान जारी है।

nrce #horse 

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