बोतलबंद पानी भी नहीं सुरक्षित: टाइफाइड का खतरा बढ़ा
Gaon Connection | Jul 25, 2025, 13:42 IST
बारिश का मौसम सिर्फ राहत नहीं, बीमारियों का खतरा भी लाता है। इस बार टाइफाइड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि असमय बारिश और गंदा पानी इसके पीछे बड़ा कारण हैं। बोतलबंद या फिल्टर पानी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं।
बारिश के साथ देशभर में टाइफाइड के मामलों में अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद जैसे शहरों में सरकारी अस्पतालों और क्लीनिकों में तेज़ बुखार, पेट दर्द, कमजोरी और सिरदर्द की शिकायतें करने वाले मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है- ये सभी टाइफाइड के लक्षण हैं।
इस बढ़ते संक्रमण के पीछे वजह वही पुरानी है – दूषित पानी और गंदा खाना। लेकिन समस्या अब केवल सड़क के किनारे मिलने वाले नलों या गंदे ठेलों की नहीं रह गई है। अगर आप मानते हैं कि बोतलबंद या फ़िल्टर किया हुआ पानी पूरी तरह सुरक्षित है, तो आपको दोबारा सोचने की ज़रूरत है।
बारिश केवल सड़कों को ही नहीं, बल्कि सीवर, पाइपलाइनों और पानी की टंकियों को भी बहा ले जाती है। ऐसे में सैल्मोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) जैसे बैक्टीरिया आपके ग्लास में बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं।
लखनऊ के लोक बंधु अस्पताल के जनरल फिजिशियन डॉ. अजय त्रिपाठी बताते हैं, “यह बैक्टीरिया गर्म और नमी भरे मौसम में आसानी से पनपता है। एक बार शरीर में जाने के बाद यह रक्तप्रवाह में फैल जाता है। इसके प्रसार का मुख्य कारण है, गंदे पानी, शौच, भोजन और खराब स्वच्छता से जुड़ी आदतें।”
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताबिक मानसून के दौरान जलजनित रोगों में 30-50% तक की वृद्धि देखी जाती है। टाइफाइड, हैजा और हेपेटाइटिस A जैसे संक्रमण इस मौसम में सबसे अधिक फैलते हैं, कारण हैं लीक हो चुकी पाइपलाइनें, खुले नाले और खराब साफ-सफाई।
टाइफाइड एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो दूषित भोजन और पानी के ज़रिए शरीर में प्रवेश करता है। इसके लक्षणों में लगातार तेज़ बुखार, पेट में दर्द, भूख न लगना, थकान, दस्त या कब्ज़ शामिल हैं। यदि समय पर इलाज न हो, तो आंतों में छेद, सेप्सिस और जानलेवा स्थिति बन सकती है। भारत में हर साल लगभग 1 करोड़ टाइफाइड के मामले सामने आते हैं।
लोगों में एक भ्रम है कि बोतलबंद या फिल्टर किया गया पानी सुरक्षित होता है। लेकिन मानसून में नल की सप्लाई या बोरवेल का पानी अक्सर सीवेज और कीटनाशकों से मिल जाता है। और यदि आपकी पानी की टंकी साफ नहीं है, तो वह एक जीवाणुओं की नर्सरी बन जाती है।
आपका वाटर प्यूरीफायर भी तब तक असरदार नहीं जब तक कि उसे नियमित रूप से साफ और मेंटेन न किया जाए। पुराने फ़िल्टर माइक्रोब्स को रोकने में विफल हो जाते हैं। UV लैंप समय के साथ निष्क्रिय हो सकता है।
ऐसे में उबालना आज भी सबसे भरोसेमंद तरीका है। 5-10 मिनट तक पानी उबालने से अधिकांश बैक्टीरिया और वायरस मर जाते हैं। यात्रा के दौरान या बाढ़ग्रस्त इलाकों में WHO-प्रमाणित पानी शुद्ध करने वाली टैबलेट्स भी कारगर हैं।
इसके अलावा, अपनी टंकी की सफाई करवाना बेहद ज़रूरी है। टंकी की अंदरूनी सतह पर बनने वाली गंदगी और जैव-परत में लाखों रोगजनक पनप सकते हैं। हर छह महीने में फ़िल्टर बदलें, TDS चेक कराएं और UV लैंप समय पर बदलें। अगर संभव हो तो रसोई में सीधे एक UV यूनिट लगवाएं – यह अंतिम सुरक्षा कड़ी बन सकती है।
पानी की गुणवत्ता जाँचने के लिए घरेलू टेस्टिंग किट उपलब्ध हैं, जो क्लोरीन, गंदलापन और बैक्टीरिया की जांच कर सकते हैं। अधिक सटीक रिपोर्ट के लिए NABL-मान्यता प्राप्त लैब में माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्टिंग कराना बेहतर होगा।
खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने निर्देश दिए हैं कि सभी खानपान स्थलों पर पीने योग्य पानी का ही उपयोग होना चाहिए। लेकिन ज़्यादातर स्कूलों, ऑफिसों और सोसाइटीज़ में इस नियम का पालन नहीं होता।
सावधानी है ज़रूरी
पुणे में हाल ही में एक परिवार को लगातार बुखार, उल्टी और प्लेटलेट्स की गिरावट के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। शुरुआत में इसे डेंगू समझा गया, लेकिन जांच में टाइफाइड निकला। पता चला कि उनकी बिल्डिंग की अंडरग्राउंड टंकी में बारिश के दौरान सीवेज मिल गया था – जबकि परिवार एक हाई-एंड वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर रहा था। यह उदाहरण बताता है कि अगर स्रोत ही दूषित हो, तो कोई भी प्यूरीफायर मदद नहीं कर सकता।
आप क्या कर सकते हैं?
इस बढ़ते संक्रमण के पीछे वजह वही पुरानी है – दूषित पानी और गंदा खाना। लेकिन समस्या अब केवल सड़क के किनारे मिलने वाले नलों या गंदे ठेलों की नहीं रह गई है। अगर आप मानते हैं कि बोतलबंद या फ़िल्टर किया हुआ पानी पूरी तरह सुरक्षित है, तो आपको दोबारा सोचने की ज़रूरत है।
बारिश केवल सड़कों को ही नहीं, बल्कि सीवर, पाइपलाइनों और पानी की टंकियों को भी बहा ले जाती है। ऐसे में सैल्मोनेला टाइफी (Salmonella Typhi) जैसे बैक्टीरिया आपके ग्लास में बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं।
लखनऊ के लोक बंधु अस्पताल के जनरल फिजिशियन डॉ. अजय त्रिपाठी बताते हैं, “यह बैक्टीरिया गर्म और नमी भरे मौसम में आसानी से पनपता है। एक बार शरीर में जाने के बाद यह रक्तप्रवाह में फैल जाता है। इसके प्रसार का मुख्य कारण है, गंदे पानी, शौच, भोजन और खराब स्वच्छता से जुड़ी आदतें।”
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के मुताबिक मानसून के दौरान जलजनित रोगों में 30-50% तक की वृद्धि देखी जाती है। टाइफाइड, हैजा और हेपेटाइटिस A जैसे संक्रमण इस मौसम में सबसे अधिक फैलते हैं, कारण हैं लीक हो चुकी पाइपलाइनें, खुले नाले और खराब साफ-सफाई।
टाइफाइड एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो दूषित भोजन और पानी के ज़रिए शरीर में प्रवेश करता है। इसके लक्षणों में लगातार तेज़ बुखार, पेट में दर्द, भूख न लगना, थकान, दस्त या कब्ज़ शामिल हैं। यदि समय पर इलाज न हो, तो आंतों में छेद, सेप्सिस और जानलेवा स्थिति बन सकती है। भारत में हर साल लगभग 1 करोड़ टाइफाइड के मामले सामने आते हैं।
लोगों में एक भ्रम है कि बोतलबंद या फिल्टर किया गया पानी सुरक्षित होता है। लेकिन मानसून में नल की सप्लाई या बोरवेल का पानी अक्सर सीवेज और कीटनाशकों से मिल जाता है। और यदि आपकी पानी की टंकी साफ नहीं है, तो वह एक जीवाणुओं की नर्सरी बन जाती है।
आपका वाटर प्यूरीफायर भी तब तक असरदार नहीं जब तक कि उसे नियमित रूप से साफ और मेंटेन न किया जाए। पुराने फ़िल्टर माइक्रोब्स को रोकने में विफल हो जाते हैं। UV लैंप समय के साथ निष्क्रिय हो सकता है।
बाहर से लाया गया बर्फ वाला गन्ने का रस या कोल्ड ड्रिंक भी एक जोखिम है। बर्फ अक्सर गंदे पानी से बनती है और खराब हालात में रखी जाती है।
ऐसे में उबालना आज भी सबसे भरोसेमंद तरीका है। 5-10 मिनट तक पानी उबालने से अधिकांश बैक्टीरिया और वायरस मर जाते हैं। यात्रा के दौरान या बाढ़ग्रस्त इलाकों में WHO-प्रमाणित पानी शुद्ध करने वाली टैबलेट्स भी कारगर हैं।
इसके अलावा, अपनी टंकी की सफाई करवाना बेहद ज़रूरी है। टंकी की अंदरूनी सतह पर बनने वाली गंदगी और जैव-परत में लाखों रोगजनक पनप सकते हैं। हर छह महीने में फ़िल्टर बदलें, TDS चेक कराएं और UV लैंप समय पर बदलें। अगर संभव हो तो रसोई में सीधे एक UV यूनिट लगवाएं – यह अंतिम सुरक्षा कड़ी बन सकती है।
पानी की गुणवत्ता जाँचने के लिए घरेलू टेस्टिंग किट उपलब्ध हैं, जो क्लोरीन, गंदलापन और बैक्टीरिया की जांच कर सकते हैं। अधिक सटीक रिपोर्ट के लिए NABL-मान्यता प्राप्त लैब में माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्टिंग कराना बेहतर होगा।
खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने निर्देश दिए हैं कि सभी खानपान स्थलों पर पीने योग्य पानी का ही उपयोग होना चाहिए। लेकिन ज़्यादातर स्कूलों, ऑफिसों और सोसाइटीज़ में इस नियम का पालन नहीं होता।
सावधानी है ज़रूरी
पुणे में हाल ही में एक परिवार को लगातार बुखार, उल्टी और प्लेटलेट्स की गिरावट के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। शुरुआत में इसे डेंगू समझा गया, लेकिन जांच में टाइफाइड निकला। पता चला कि उनकी बिल्डिंग की अंडरग्राउंड टंकी में बारिश के दौरान सीवेज मिल गया था – जबकि परिवार एक हाई-एंड वाटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर रहा था। यह उदाहरण बताता है कि अगर स्रोत ही दूषित हो, तो कोई भी प्यूरीफायर मदद नहीं कर सकता।
आप क्या कर सकते हैं?
- टाइफाइड, हैजा, हेपेटाइटिस जैसे रोग मानसून में आसानी से फैलते हैं, लेकिन थोड़ी सी सतर्कता आपको इनसे बचा सकती है:
- पानी को 5-10 मिनट तक उबाल कर पिएं – यह सबसे कारगर तरीका है।
- साफ़ पानी की टंकी सुनिश्चित करें – ओवरहेड और अंडरग्राउंड दोनों की सफाई जरूरी है।
- वाटर प्यूरीफायर की नियमित सर्विस कराएं और फ़िल्टर समय पर बदलें।
- बर्फ या ठंडी चीज़ें जिनके स्रोत की जानकारी न हो, उनसे बचें।
- घर के पानी की गुणवत्ता जाँचने के लिए टेस्टिंग किट का उपयोग करें।
- बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को उबला हुआ पानी ही दें।
- हर घूंट ज़रूरी है – लेकिन केवल तब जब वह सुरक्षित हो।