वैज्ञानिकों ने तैयार किया कोकोपीट का सस्ता विकल्प, नर्सरी तैयार करने के लिए कर सकते हैं गन्ने की खोई का इस्तेमाल
Divendra Singh | May 27, 2021, 12:08 IST
नर्सरी तैयार करने के लिए अभी तक कोकोपीट का इस्तेमाल करने वाले किसानों के लिए वैज्ञानिकों ने आसानी से मिलने वाला सस्ता विकल्प ढूंढ लिया है।
अगर आप गन्ने की खेती करते हैं तो यह आपके काम की खबर हो सकती है, अभी तक किसान गन्ने की नर्सरी तैयारी करने के लिए कोकोपीट का इस्तेमाल करते थे, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका सस्ता और आसान विकल्प तलाश लिया है।
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ने की खोई यानी बगास को कोकोपीट की जगह इस्तेमाल किया है और इसका बढ़िया परिणाम भी मिला है। गन्ना शोध परिषद के निदेशक डॉ. ज्योत्स्येन्द्र सिंह बताते हैं, "अभी तक किसान कोकोपीट को तैयार करके बेड पर या फिर ट्रे पर गन्ने की नर्सरी तैयारी करते हैं, कोकोपिट दक्षिण भारत के राज्यों से आता है जो किसानों को काफी महंगा भी पड़ता है। हम बहुत दिनों से इसका विकल्प ढूंढ़ रहे थे।"
डॉ सिंह आगे कहते हैं, "गन्ने की खोई को छोटे टुकड़ों में कर के फिर छानकर कोकोपीट की जगह प्रयोग किया, कोकोपिट में ज्यादा लंबे समय तक नमी रहती है, हमने सोचा कि गन्ने की खोई को यूज करके देखते हैं, इतना मंहगा कोकोपीट क्यों खरीदें। इसके लिए हमने इसे वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी तीन अलग-अलग मिश्रण में मिलाकर तैयार किया, तब हमने देखा कि इसका रिजल्ट भी अच्छा है।"
पांच किलो कोकोपीट लगभग 200-250 रुपए में आता है, जबकि यही बगास से तैयार करने में प्रति किलो चार-पांच रुपए ही लगते हैं। अभी इससे भी ब्रिक बनाने का विकल्प तलाश कर रहे हैं, ताकि लाने और ले जाने में परेशानी न हों।
गन्ने को चीनी मिल या फिर कोल्हू पर क्रश करने के बाद रस निकलने के बाद बचा अपशिष्ट खोई या बगास कहलाती है। पहले इसका काम सिर्फ ईंधन के रूप में होता था, लेकिन धीरे-धीरे यह बड़े काम की साबित हो रही है। जबकि नारियल के छिलकों से को छोटे-छोटे टुकड़ों में करके फिर इसे छानकर कोकोपीट तैयार किया जाता है। क्योंकि नारियल का उत्पादन ज्यादातर दक्षिण भारत के राज्यों में होता है, इसलिए यहीं से पूरे देश में कोकोपीट जाता है।
गन्ना विकास विभाग की तरफ से यूपी के कई जिलों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को गन्ने की नर्सरी तैयार का काम दिया गया है। हम जल्द ही महिलाओं को भी खोई उपलब्ध कराने की कोशिश करेंगे, जिससे उनकी लागत कम हो जाए।
d2डॉ. ज्योत्स्येन्द्र सिंह बताते हैं, "गन्ने की खोई आसानी से आसपास ही मिल जाती है, जबकि कोकोपीट को बाहर से दूसरे प्रदेशों से मंगाना पड़ता है। अभी हमने गन्ना मिल के बगास का प्रयोग किया है, अगर कोई चाहे तो गन्ने के छिलके को छोटा-छोटा करके उसे भी तैयार कर सकता है। अभी हम इसे छोटा करने का विकल्प तलाश रहे हैं। अगर किसान चाहें तो भूसा तैयार करने की मशीन से भी इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में कर सकता है।"
अभी तक गन्ना मिल या फिर कोल्हू से निकलने वाली खोई को ईंट-भट्ठे वाले जलाने के लिए ले जाते थे, लेकिन अब यह भी किसानों के काम आ जाएगा।
कोकोपिट में लगभग एक महीने में नर्सरी तैयार होती है, इसी तरह खोई में तैयार करने में भी एक महीने का समय लग जाता है। नर्सरी ट्रे में इसमें 95-96 प्रतिशत तक जमाव होता है।
वैज्ञानिकों ने अभी इसे गन्ने की नर्सरी तैयार करने में प्रयोग किया है, अगर सब सही रहा तो दूसरे पौधों की नर्सरी तैयार करने में प्रयोग कर सकते हैं। ज्यादातर लोग पौधों की नर्सरी तैयार करने के लिए कोकोपीट का इस्तेमाल करते हैं, नर्सरी के व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए यह बेहतर और सस्ता विकल्प हो सकता है।
उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के वैज्ञानिकों ने गन्ने की खोई यानी बगास को कोकोपीट की जगह इस्तेमाल किया है और इसका बढ़िया परिणाम भी मिला है। गन्ना शोध परिषद के निदेशक डॉ. ज्योत्स्येन्द्र सिंह बताते हैं, "अभी तक किसान कोकोपीट को तैयार करके बेड पर या फिर ट्रे पर गन्ने की नर्सरी तैयारी करते हैं, कोकोपिट दक्षिण भारत के राज्यों से आता है जो किसानों को काफी महंगा भी पड़ता है। हम बहुत दिनों से इसका विकल्प ढूंढ़ रहे थे।"
डॉ सिंह आगे कहते हैं, "गन्ने की खोई को छोटे टुकड़ों में कर के फिर छानकर कोकोपीट की जगह प्रयोग किया, कोकोपिट में ज्यादा लंबे समय तक नमी रहती है, हमने सोचा कि गन्ने की खोई को यूज करके देखते हैं, इतना मंहगा कोकोपीट क्यों खरीदें। इसके लिए हमने इसे वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट और मिट्टी तीन अलग-अलग मिश्रण में मिलाकर तैयार किया, तब हमने देखा कि इसका रिजल्ट भी अच्छा है।"
पांच किलो कोकोपीट लगभग 200-250 रुपए में आता है, जबकि यही बगास से तैयार करने में प्रति किलो चार-पांच रुपए ही लगते हैं। अभी इससे भी ब्रिक बनाने का विकल्प तलाश कर रहे हैं, ताकि लाने और ले जाने में परेशानी न हों।
गन्ने को चीनी मिल या फिर कोल्हू पर क्रश करने के बाद रस निकलने के बाद बचा अपशिष्ट खोई या बगास कहलाती है। पहले इसका काम सिर्फ ईंधन के रूप में होता था, लेकिन धीरे-धीरे यह बड़े काम की साबित हो रही है। जबकि नारियल के छिलकों से को छोटे-छोटे टुकड़ों में करके फिर इसे छानकर कोकोपीट तैयार किया जाता है। क्योंकि नारियल का उत्पादन ज्यादातर दक्षिण भारत के राज्यों में होता है, इसलिए यहीं से पूरे देश में कोकोपीट जाता है।
गन्ना विकास विभाग की तरफ से यूपी के कई जिलों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को गन्ने की नर्सरी तैयार का काम दिया गया है। हम जल्द ही महिलाओं को भी खोई उपलब्ध कराने की कोशिश करेंगे, जिससे उनकी लागत कम हो जाए।
d2डॉ. ज्योत्स्येन्द्र सिंह बताते हैं, "गन्ने की खोई आसानी से आसपास ही मिल जाती है, जबकि कोकोपीट को बाहर से दूसरे प्रदेशों से मंगाना पड़ता है। अभी हमने गन्ना मिल के बगास का प्रयोग किया है, अगर कोई चाहे तो गन्ने के छिलके को छोटा-छोटा करके उसे भी तैयार कर सकता है। अभी हम इसे छोटा करने का विकल्प तलाश रहे हैं। अगर किसान चाहें तो भूसा तैयार करने की मशीन से भी इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में कर सकता है।"
अभी तक गन्ना मिल या फिर कोल्हू से निकलने वाली खोई को ईंट-भट्ठे वाले जलाने के लिए ले जाते थे, लेकिन अब यह भी किसानों के काम आ जाएगा।