COP26: जलवायु न्याय के लिए बांग्लादेश के युवा कार्यकर्ताओं का कड़ा संघर्ष

बांग्लादेश में, युवा कार्यकर्ता अपने उन लोगों के लिए जलवायु न्याय की मांग कर रहे हैं, जो दुनिया में चक्रवात और बाढ़ जैसी बढ़ती मौसमी घटनाओं से सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं। सभी कार्यकर्ताओं की निगाहें स्कॉटलैंड के ग्लासगो में चल रहे जलवायु शिखर सम्मेलन COP26 पर लगी हैं। उन्हें उम्मीद है कि बांग्लादेश में साल दर साल जलवायु परिवर्तन के भयानक प्रभाव को कम करने के लिए सार्थक कदम उठाए जाएंगे।

Rafiqul Islam MontuRafiqul Islam Montu   9 Nov 2021 10:23 AM GMT

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COP26: जलवायु न्याय के लिए बांग्लादेश के युवा कार्यकर्ताओं का कड़ा संघर्ष

बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में जलवायु हड़ताल के दौरान प्रभावित इलाकों के लोगों के लिए जलवायु न्याय की मांग करते युवा जलवायु कार्यकर्ता। सभी तस्वीरें: रफीकुल मोंटू

ढाका ( बांग्लादेश)। दुनिया के कई दिग्गज नेताओं ने 2021 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, COP26 में पर्यावरण में सुधार करने और कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती करने का संकल्प लिया है। स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जिस स्थान पर सम्मेलन जारी है वहां से लगभग 8 हजार किलोमीटर दूर बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन की शिकार, अयना रानी सरकार अभी भी अपने गांव वापस जाने के लिए तरस रही हैं।

इस साल मई में अयना रानी का घर चक्रवात यास में बह गया था। खुलना जिले के कोयरा उपज़िला के गंटीरघेरी गांव की अयना को तटबंध पर शरण लेनी पड़ी। घटना के लगभग छह महीने बाद भी अयना यहीं रहती है। उनके सिर पर छत नहीं है और न ही वापस जाने के लिए कोई घर है।

अयना रानी अकेली नहीं हैं। बांग्लादेश में चक्रवात यास से गंगा डेल्टा के आसपास रहने वाले उनके जैसे सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे। देश की गरीब आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन तटीय क्षेत्रों में रहता है। यह क्षेत्र एक के बाद एक लगातार खतरनाक चक्रवातों की चपेट में आता रहा है। 2019 में चक्रवात फानी व चक्रवात बुलबुल, 2020 में चक्रवात अम्फान और 2021 में चक्रवात यास जिसने अयना के गांव उपजिला को तबाह कर दिया था।

चक्रवात यास की चपेट में आया, गंटीरघेरी गांव पिछले छह महीने से पानी में डूबा हुआ है। यहां रहने वाली अनीता रानी मंडल और करुणा रानी थंडर भी अयना रानी की तरह अपने जीवन को सामान्य स्थिति में लाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। जबकि घर के पुरुष काम की तलाश में बाहर गए हुए हैं।

बार-बार चक्रवात और बाढ़ की चपेट में आने वाले बांग्लादेश के गंटरघेरी, गबूरा, प्रतापनगर या कुरिकाहुनिया गांवों के गरीब समुदाय जलवायु पीड़ितों की आवाजें अभी तक विश्व समुदाय ने नहीं सुनी हैं। ऐसे में COP26 उनके लिए आशा की एक किरण बनकर आया है। बांग्लादेश के जलवायु कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि ग्लासगो में उनकी आवाज सुनी जाएगी। वे अयना रानी जैसे ग्रामीणों के लिए जलवायु कार्रवाई और जलवायु न्याय के लिए दबाव डाल रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनकी जलवायु परिवर्तन की समस्या में कोई भागीदारी नहीं है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव इन्हीं लोगों पर पड़ा है।

पिछले कुछ सालों से बांग्लादेश में जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। जब भी वैश्विक तापमान बढ़ता है, समुद्र का स्तर विनाशकारी परिणामों के साथ बढ़ने लगता है। बांग्लादेश की एक लंबी तटरेखा है। यह एक निचली भूमि वाला इलाका है और आबादी भी बहुत ज्यादा है। जो इसे जलवायु में होने वाले किसी भी तरह के परिवर्तन के लिए और भी अधिक संवेदनशील बना देता है।

बार-बार आने वाले चक्रवातों और बाढ़ ने यहां के लोगों की आजीविका और सेहत को प्रभावित किया है। इससे गांव विस्थापित हो रहे हैं और लोग पलायन के लिए मजबूर हैं। हर बार जब भी समुद्र का स्तर बढ़ता है इसके तटीय क्षेत्रों के बड़े हिस्से जलमग्न हो जाते हैं। गांव के गांव डूब जाते है और कभी-कभी तो हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं।

बांग्लादेश के बारिसल मंडल मुख्यालय में युवा जलवायु कार्यकर्ताओं की पहल पर वैश्विक जलवायु हड़ताल।

जलवायु न्याय की मांग क्यों है

बांग्लादेश की इस अनिश्चित स्थिति को देखते हुए, युवा जलवायु कार्यकर्ताओं ने विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में जोखिम वाली आबादी के लिए कुछ करने के लिए कदम उठाया है। वे राजनेताओं, नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों का ध्यान अयना रानी और उनके जैसे कई अन्य लोगों के सामने आने वाली भयानक समस्याओं की ओर आकर्षित कर रहे हैं।

युवा कार्यकर्ता चक्रवात और बाढ़ के कारण किसानों और मछुआरों की साल दर साल होने वाली परेशानियों को सामने लेकर आ रहे हैं। वे उन महिलाओं, बच्चों और किशोरों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्हें जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार मौत और बीमारी का खतरा बना रहता है। इस संबंध में ये कार्यकर्ता नियमित रूप से राजनेताओं, नीति निर्माताओं, विकास संगठनों और विशेषज्ञों के साथ क्षेत्र-आधारित परामर्श बैठकें करते हैं।

फ्राइडे फॉर फ्यूचर बांग्लादेश नामक जमीनी स्तर के आंदोलन के संस्थापक सदस्य सोहनुर रहमान ने गांव कनेक्शन को बताया, "बांग्लादेश के कई हिस्से खासकर तटीय क्षेत्रों को खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस संबंध में हम विश्व समुदाय से न्याय, निष्पक्षता और जवाबदेही चाहते हैं, " सोहनूर यूथनेट फॉर क्लाइमेट जस्टिस के कोऑर्डिनेटर भी हैं। यह संकट के दौरान तट के आसपास रहने वाले समुदायों के लिए काम करने वाला एक बड़ा युवा नेटवर्क है।

युवा कार्यकर्ता ने कहा, "हम चाहते हैं कि विश्व समुदाय कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु फंडिंग सुनिश्चत करने के अपने वादों को पूरा करे।"

पिछले कुछ सालों से बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में जलवायु न्याय के लिए कार्यकर्ताओं का संघर्ष तेज हुआ है।

स्वीडिश युवा जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के जलवायु कार्यक्रम देश में लागू किए जा रहे हैं।

कॉक्स बाजार में आयोजित जलवायु हड़ताल को संबोधित करते हुए युवा जलवायु कार्यकर्ता जावेद नूर शांत

मुजीब जलवायु समृद्धि योजना

देश में जोरदार और मुखर जलवायु सक्रियता ने सरकारी नीति निर्माताओं को ध्यान अपनी ओर खींचा है। वैसे इसका प्रभाव पहले से ही कई सरकारी नीति योजनाओं में भी देखा जा सकता है। 2019 में, बांग्लादेश ने जलवायु परिवर्तन को 'प्लैनिटेरी इमरजेंसी' घोषित किया था।

हाल ही में, ग्लासगो में COP26 में, बांग्लादेश सरकार ने 'मुजीब जलवायु समृद्धि योजना' की घोषणा की, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस योजना का नाम राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के सम्मान में रखा गया है।

बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना ने COP26 में इस योजना को पेश करते हुए कहा, "यह योजना कम कार्बन रणनीति के माध्यम से हमारे विकास पथ का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार की गई है। अन्य CVF( क्लाइमट वल्नरबल फोरम) सदस्य भी जलवायु समृद्धि प्राप्त करने के लिए जलवायु लचीलापन की अपनी ऐसी योजनाएं विकसित करेंगे। "

बांग्लादेश में जलवायु कार्यकर्ता पहले से ही ऐसे कदम उठाते आ रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पहल की और उन उपायों को आगे बढ़ा रहे हैं जिनसे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुरंत मदद की जा सके। इसके साथ-साथ वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धन भी जुटा रहे हैं।

यूथनेट फॉर क्लाइमेट जस्टिस के अनुसार, स्थानीय लोगों की समस्याओं और मांगों की पहचान करने और उन्हें अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए जलवायु कार्यकर्ता तट से सटे कई क्षेत्रों पर काम कर रहे हैं।

कई जगहों पर तो स्थानीय स्तर पर जलवायु समस्याओं को हल करने के लिए खुद जलवायु कार्यकर्ताओं ने पहल की है। वे मामले को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क करते हैं। काम करने का यह तरीका सकारात्मक परिणाम दिखा रहा है।

जलवायु कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते कोयला बिजली परियोजनाएं रद्द

बांग्लादेश में जलवायु कार्यकर्ताओं ने सरकार को 10 कोयला बिजली परियोजनाओं के अनुबंधों को रद्द करने के लिए प्रभावित किया है। ये उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। युवा जलवायु कार्यकर्ता और क्लाइमेट जस्टिस-बांग्लादेश के संस्थापक जाबेद नूर शांताव ने गांव कनेक्शन से कहा, "अगर कोयले से चलने वाली बिजली संयंत्र परियोजना ने उड़ान भरी होती, तो यह हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ी आपदा होती। हमने ऐसा नहीं होने दिया। " वह दक्षिण पूर्वी बांग्लादेश के एक शहर कॉक्स बाजार में 'कोयला-विद्युत परियोजना' के खिलाफ आंदोलन में सबसे आगे थे। यह क्षेत्र दुनिया के सबसे लंबे प्राकृतिक समुद्री समुद्र तट के लिए प्रसिद्ध है।

युवा जलवायु कार्यकर्ता ने आगे कहा,"अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को बचाना चाहते हैं, तो हमें कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से दूर जाना होगा। हमें नए ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की जरूरत है। रिन्युएबल ऊर्जा में ज्यादा निवेश, हमारे देश को कम कार्बन उत्सर्जित करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खुद को बचाने में मदद कर सकता है, "

शान्ताव खुश होते हुए कहते हैं, "हम इस आंदोलन के जरिए सरकार को समझाने में सफल रहे। हमने विभिन्न स्तरों के सरकारी अधिकारियों के साथ चर्चा की। उसके बाद, हमें पता चला कि सरकार ने 10 कोयला बिजली परियोजनाओं को रद्द कर दिया है।"

तटबंधों को बह जाने से रोकने के लिए

बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी तट पर सतखिरा जिले के एसएम शाहीन आलम के लिए चक्रवात और बाढ़ की तबाही कोई नया मंजर नहीं है। वह बचपन से अक्सर अपने माता-पिता को इन आपदाओं में जीवित बने रहने के लिए संघर्ष करते हुए देखते आए हैं। आज वह खुद एक जलवायु कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं।

यूथनेट फॉर क्लाइमेट जस्टिस (सतखिरा यूनिट) के कोर्डिनेटर के रूप में शाहीन आलम ने न केवल अपने गांव बल्कि अन्य गांवों में भी पेयजल संकट से निपटने के लिए पहल की है। उन्होंने अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर तटबंधों को बह जाने से रोकने के लिए पेड़ भी लगाए हैं।

शाहीन आलम बताते हैं, "मैं जिस इलाके में रहता हूं, वहां जान-माल का जबरदस्त नुकसान हुआ है। स्थानीय स्तर पर हम सीमित साधनों से समस्याओं को हल करने की कोशिश कर रहे हैं।" युवा कार्यकर्ता ने कहा, "हम पेरिस जलवायु समझौते को लागू करवाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि विश्व समुदाय की सहमति ग्लोबल वार्मिंग की दर को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की हो, तभी हमारी जलवायु समस्या का बड़े पैमाने पर समाधान हो पाएगा। "

यूएनडीपी-बांग्लादेश से जुड़े, जलवायु विशेषज्ञ ए के एम मामुनूर राशिद, ने गांव कनेक्शन को बताया, "जलवायु परिवर्तन के परिणामों का सामना हम से कहीं अधिक ये युवा करने जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और उससे संबंधित आपदाएं उनके लिए अधिक वास्तविक हैं।" वह आगे कहते हैं, "युवाओं को जलवायु परिवर्तन के बारे में समझने, योजना बनाने और निर्णय लेने का मौका दिया जाना चाहिए। अगर हम उन्हें एक प्रमुख भूमिका में नहीं रखते, तो यह हमारी ओर से अंतर-पीढ़ीगत अन्याय होगा। "

मामुनूर रशीद के अनुसार, यह समय की जरुरत है कि युवा अपनी आवाज जोरदार तरीके से उठाए और स्पष्ट रूप से अपनी बात रखें। उनकी आवाज को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णय लेने वाले मंचों में सुना जाना चाहिए।


युवाओं को प्रशिक्षण

यूएनडीपी-बांग्लादेश, ब्रिटिश काउंसिल-बांग्लादेश, एक्शन एड-बांग्लादेश, चेंज इनिशिएटिव कुछ ऐसे संस्थान हैं जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए युवाओं को प्रशिक्षित और सशक्त बनाने के लिए काम कर रहे हैं।

यूएनडीपी-बांग्लादेश युवाओं को जलवायु जोखिम मूल्यांकन, स्थानीय अनुकूलन योजना और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन ट्रैकिंग में शामिल कर रहा है। वे चाहते हैं कि युवा अर्थव्यवस्था और समाज को कम कार्बन जलवायु वाली अर्थव्यवस्था और समाज में बदल दें। वैसे युवा कार्यकर्ता पहले से ही इस काम में जुटे हुए हैं।

यूएनडीपी-बांग्लादेश के मार्गदर्शन में, जलवायु कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय परिषद की एक जलवायु सहिष्णुता परियोजना का ऑडिट किया और परियोजना पर एक रिपोर्ट भी पेश की है। यूथनेट फॉर क्लाइमेट जस्टिस भी ऐसा ही काम कर रहा है।

यूएनडीपी-बांग्लादेश से प्रशिक्षित एक युवा जलवायु कार्यकर्ता कालू तालुकदार ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम तटीय बांग्लादेश में पटुआखली जिले के रंगबाली उपजिला में किसानों को धान की खेती करने में मदद कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते कई लोगों को नुकसान हुआ। जिसकी वजह से उन्होंने धान की खेती बंद कर दी थी। लेकिन हमारी मदद से, वे अब फिर से धान की खेती करने लगे हैं। पैदावार भी अच्छी हो रही है। "

ब्रिटिश काउंसिल और एक्शनएड बांग्लादेश भी विभिन्न जलवायु संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिए युवा जलवायु कार्यकर्ताओं के माध्यम से नीति निर्माताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

इंटरनेशनल क्लाइमेट साइंस एंड इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट (ICCCAD) के निदेशक सलीमुल हक ने कहा कि पर्यावरण को लेकर युवाओं की आवाज तेज होती जा रही है।

हक आगे कहते हैं, "बांग्लादेश के युवा देश में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लोगों तक पहुंचाने के लिए पिछले कुछ सालों से काफी काम कर रहे हैं। वे ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहे हैं। कुछ ने अंतरराष्ट्रीय बैठकों में भी भाग लिया है और उन्हें विश्व स्तर पर सुना जा रहा है।" उन्होंने कहा, "राष्ट्रीय स्तर पर युवा समूहों ने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर संसदीय समिति के साथ बहुत प्रभावी ढंग से बातचीत की है ताकि 'प्लैनिटेरी इमरजेंसी' घोषित करने के उनके प्रस्ताव को लागू करने में मदद मिल सके।"

युवा जलवायु कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत रंग लाई है। इस साल अगस्त में संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की छठी आंकलन रिपोर्ट जारी की गई।

चक्रवात अम्फान के बाद बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी तट पर पीने के पानी की भारी कमी थी। युवा जलवायु कार्यकर्ता शाहीन आलम एक गांव में पानी लेकर जा रहे हैं.

IPCC की रिपोर्ट 66 देशों के 134 वैज्ञानिकों ने तैयार की है।

बांग्लादेश के तटीय इलाकों में रहने वाले अयना रानी जैसे न जाने कितने लोग एक दशक से भी ज्यादा समय से मौसम की मार झेलते आ रहे हैं। उनकी रोजी-रोटी भी छिन गई, रहने के लिए घर भी नहीं है और न ही गुजारा करने के लिए किसी तरह की बचत है। इनमें से सैकड़ों लोग तो विस्थापित हो चुके हैं।

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