अभी नहीं थमेगा गर्मी का ग्राफ़, यूएनईपी ने जारी की चेतावनी रिपोर्ट

Gaon Connection | Nov 05, 2025, 17:24 IST
यूएनईपी की नई रिपोर्ट ने बताया कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो सदी के अंत तक धरती का तापमान 2.5°C तक बढ़ सकता है। हालांकि कुछ सुधार दिखे हैं, लेकिन असल कार्रवाई अभी बहुत पीछे है। COP30 से पहले यह रिपोर्ट पूरी दुनिया को चेतावनी और उम्मीद दोनों देती है।
Emissions Gap Report
दुनिया की बढ़ती गर्मी अब कोई दूर की आशंका नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की सच्चाई बन चुकी है। खेतों में सूखा, शहरों में लू, और समुद्र किनारे बढ़ता जलस्तर - सब इसी कहानी का हिस्सा हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नई “एमिशन्स गैप रिपोर्ट 2025” ने इस सच्चाई को और साफ़ कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर मौजूदा रफ़्तार से ही दुनिया चलती रही, तो सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। यह वही सीमा है, जिसके बाद धरती का जलवायु संतुलन बुरी तरह बिगड़ सकता है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि बीते साल की तुलना में तापमान वृद्धि के अनुमान में थोड़ी गिरावट आई है — पहले जहाँ यह 2.6 से 2.8°C मानी जा रही थी, अब यह घटकर 2.3–2.5°C रह गई है। लेकिन राहत की बात यह नहीं, बल्कि यह है कि यह गिरावट ज़्यादातर गणनाओं के तकनीकी अपडेट के कारण हुई है, न कि वास्तविक कार्रवाई से। असल में दुनिया अब भी 2.8°C वार्मिंग की राह पर चल रही है। यूएनईपी का कहना है कि अगर अभी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 1.5°C की सीमा आने वाले दशकों में अस्थायी तौर पर पार हो जाएगी — और अगर हालात यही रहे, तो यह “अस्थायी” बढ़त स्थायी संकट में बदल सकती है।

अधूरे वादे और धीमी प्रगति

पेरिस जलवायु समझौते के तहत देशों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन घटाने के जो वादे किए थे, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर तय योगदान (NDCs) कहा जाता है। यूएनईपी की रिपोर्ट बताती है कि इन वादों को लेकर दुनिया की रफ्तार बेहद धीमी है। पेरिस समझौते से जुड़े देशों में से केवल एक-तिहाई (जो मिलकर वैश्विक उत्सर्जन का 63% हिस्सा रखते हैं) ने ही इस साल अपने नए NDCs जमा किए हैं। इसका मतलब है कि अब भी दो-तिहाई देश जलवायु प्रतिबद्धताओं को लेकर ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।

emissions gap report unep
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यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन का कहना है, “दुनिया को तीन मौके मिले अपनी जिम्मेदारी निभाने के — लेकिन हर बार लक्ष्य अधूरे रह गए। अब वक्त बहुत कम है, पर उम्मीद अब भी ज़िंदा है। हमारे पास समाधान हैं — सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा, मीथेन उत्सर्जन घटाने के तरीके और हरित प्रौद्योगिकी — अब देशों को ‘ऑल इन’ होकर काम करना होगा, क्योंकि यही निवेश उनके भविष्य की गारंटी है।”

यह सिर्फ रिपोर्ट नहीं, चेतावनी है

कई जलवायु विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट को “एक चेतावनी दस्तावेज़” कहा है। रेचेल क्लीटस, यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट्स की सीनियर डायरेक्टर, कहती हैं - “यह रिपोर्ट दिल दहला देने वाली है। अमीर देशों की सुस्ती और जीवाश्म ईंधन उद्योग के दुष्प्रचार ने हमें इस मोड़ पर ला खड़ा किया है। अगर अब भी निर्णायक कदम नहीं उठे, तो यह मानवता के साथ विश्वासघात होगा।”

वह आगे कहती हैं कि जलवायु संकट अब सिर्फ पर्यावरणीय मामला नहीं रहा — यह आर्थिक अवसरों, रोज़गार और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा नया युग है। “अगर आगामी COP30 बदलाव का मोड़ नहीं बना, तो आने वाले वर्षों में शायद यह रिपोर्टें सिर्फ चेतावनी बनकर रह जाएँगी।”

बदलाव की दिशा और उम्मीद की राह

रिचर्ड ब्लैक, एम्बर थिंक टैंक के पॉलिसी डायरेक्टर, का कहना है कि स्थिति निराशाजनक होते हुए भी कुछ सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहे हैं। “केवल नीतियों और वादों को देखकर पूरी तस्वीर नहीं समझी जा सकती। कई देशों में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर झुकाव तेज़ी से बढ़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि अब जलवायु चिंता से ज़्यादा ऊर्जा सुरक्षा और लागत इस परिवर्तन को गति दे रहे हैं।”

कैथरीन अब्रू, इंटरनेशनल क्लाइमेट पॉलिसी हब की निदेशक, का मानना है कि पेरिस समझौता असफल नहीं हुआ — असफल वे देश हुए जिन्होंने अपने वादे निभाए नहीं। “कुछ ताकतवर देशों ने सहयोग कमजोर किया, लेकिन बाकी दुनिया पीछे हटने के मूड में नहीं है। 1.5°C की उम्मीद अब भी जिंदा है, और COP30 इसे नई ऊर्जा दे सकता है।”

आगे का रास्ता

अब सबकी नज़रें ब्राज़ील के बेलम शहर पर हैं, जहाँ अगले साल COP30 होने जा रहा है। यूएनईपी की यह रिपोर्ट उस वैश्विक सम्मेलन की दिशा तय करेगी। एक तरफ़ बढ़ता तापमान, घटता भरोसा और सुस्त नीतियाँ हैं — तो दूसरी ओर साफ़ ऊर्जा, साझेदारी और तकनीक में उम्मीद की रोशनी।

रिपोर्ट के आख़िरी शब्द दरअसल पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं — हम अभी भी दौड़ में हैं, बस रफ़्तार बढ़ाने की ज़रूरत है।”

यह वाक्य हमें याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन का संघर्ष अब भी जीता जा सकता है — बशर्ते कि देश, उद्योग और नागरिक सब मिलकर अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएँ। धरती को ठंडा करने का रास्ता अभी बंद नहीं हुआ है, बस हमें थोड़ी और तेज़ी से चलना होगा।

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