हाथ नहीं फिर भी जज्बा बरकरार
गाँव कनेक्शन 23 March 2017 10:57 AM GMT
बसु जैन
एटा। मुंह में कलम, बांहों में उत्तर पुस्तिका और मन में हौसला। दस साल पहले कुदरत ने धर्मवीर के हाथ छीन लिए, लेकिन धर्मवीर ने हार नहीं मानी। धर्मवीर इन दिनों जैथरा के गंगा शिक्षण संस्थान में इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रहा है। हाथ नहीं होने के बाद भी वह मुंह में कलम दबाकर तय समय में पूरा प्रश्नपत्र हल करता है।
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बदायूं जिले के गाँव नगला तोड़ी निवासी लालाराम के बेटे धर्मवीर शर्मा को बचपन से पढ़ने की ललक है। हाथ कट गए, तो लगा कि सबकुछ खत्म हो गया। बिना हाथ के शिक्षा का ख्बाव महज ख्बाब बनकर रह जाने वाला था। लेकिन धर्मवीर ने हिम्मत नहीं हारी। जैसे-जैसे सही होने लगा, तो तरह-तरह से पेंसिल और कलम पकडऩे के गुर सीखने लगा। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत आई, लेकिन फिर उसकी कलम कापी पर मुंह से ही चलने लगी। धर्मवीर बताते हैं, “वर्ष 2014 में मैंने हाईस्कूल परीक्षा में भाग लिया और मुंह से कलम पकड़कर परीक्षा दी। लेकिन यहां भी मेरे हाथ निराशा लगी और मैं उत्तीर्ण नहीं हो सका।” मगर फिर भी उसका हौसला नहीं टूटा। इसके बाद फिर से 2015 में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
मैं हमेशा क्लास में अव्वल रहा, मेरी तमन्ना है कि वह पढ़ लिखकर परिवार के लिए कुछ बेहतर कर सके। लेकिन 2007 के हादसे में मैंने दोनों हाथ गवां दिए।धर्मवीर
इन दिनों जैथरा के गाँव नगला हाजू निवासी नाना देशराज के सहयोग से धर्मवीर जैथरा के शिक्षण संस्थान से इंटरमीडिएट की परीक्षा दे रहा है। उसकी प्रतिभा और हौसले को देख हर कोई धर्मवीर का कायल है। धर्मवीर बताते हैं कि परिवार में सबसे बड़ा हूं। तीन भाई और तीन बहनों की जिम्मेदारी है। इसलिए चाहता हूं कि अपने परिवार का सहारा बन सकूं। कुदरत ने हाथ छीन लिए, लेकिन शिक्षा की ललक ने आगे बढ़़ाया। अब पीछे हटना नहीं चाहता।
पहले पेज पर लिखते हैं अपील
धर्मवीर परीक्षा में उत्तर पुस्तिका के पहले पेज पर अपील में लिखते हैं कि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं। कृपया उत्तर पुस्तिका के मूल्यांकन में नरमी बरती जाए। अपील में वे बाद में गलती की माफी भी मांगते हैं और घटना का हवाला देते हैं।
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