नदियों को बांधे और जोड़े बिना बाढ़ और सूखे से बचने का नया विज्ञान खोजने की जरुरत

गाँव कनेक्शन | Feb 12, 2017, 15:09 IST
River Panchayat
नई दिल्ली (भाषा)। गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी जैसी नदियों की अविरल धारा और निर्मलता सुनिश्चित करने के लिए जल विशेषज्ञों ने तालाबों, छोटी नदियों को बचाने के कार्य से ग्राम पंचायतों को जोड़ने और नदियों को बांधे और जोड़े बिना बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति से बचने का नया विज्ञान खोजने की जरुरत बतायी है।

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि सरकार और समाज दोनों को मिलकर साझा भविष्य की चिन्ता करनी है। हमें समझना होगा कि नदी के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या है? उन्होंने कहा कि नदी को जोड़ने से बाढ़ और सूखे से छुटकारा नहीं मिलेगा।

उन्होंने कहा कि नदियों के रख रखाव का काम नदी-पंचायत बनाकर उसे सौंप दिया जाए। उसमें समाज और सरकार दोनों के लोग हों तो नदी विवाद नहीं होगा। नदी जोड़ो योजना तो इतने विवाद पैदा कर देगी कि कोई उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय आसानी से फैसला नहीं कर पाएगा। नदियों के विवाद को निपटाने का कोई स्पष्ट कानून नहीं है, अदालतों के सामने स्पष्टता नहीं है। इस विषय पर ध्यान दिये जाने की जरुरत है।

सिंह ने कहा कि असल में नदियों को बांधे और जोडे बिना बाढ और सूखे से कैसे बचें, इसका नया विज्ञान खोजने की जरुरत है। इन प्रश्नों को विभिन्न राजनीतिक दलों को उठाना चाहिए और आम लोगों को भी जन प्रतिनिधियों से चर्चा करनी चाहिए।

सेव गंगा मूवमेंट की संयोजक एवं जल संसाधन मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति की सदस्य रमा राउत ने कहा कि हमें गंगा को संवैधानिक दृष्टि से हमारी राष्ट्रीय नदी बनाने की दिशा में जरुरी कदम उठाना चाहिए और इस उद्देश्य के लिए विधिक प्रावधान करना चाहिए।

राउत ने कहा कि समयबद्ध तरीके से गंगा नदी के पारिस्थितिकी प्रवाह को सुनिश्चित किया जाना चाहिए, नदियों में गंदगी का शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित करना चाहिए और गंगा, यमुना जैसी नदी की साफ सफाई को सिर्फ ठोस कचरा चुनने-बीनने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। भारतीय समाज की जीवन रेखा नदियों को समाप्त कर विकास हासिल नहीं किया जा सकता।

नदी वापसी अभियान के विजय कुमार ने कहा कि गंगा के नाम पर देश में खेल हो रहा है। निर्मल गंगा और अविरल गंगा का अर्थ घुमा फिराकर समझाया जाता है। अविरलता का अर्थ है कि प्रवाह में कोई अड़चन नहीं हो। बैराज उस अविरलता को खत्म करता है। फरक्का बैराज से कई तरह के नुकसान हुए हैं। उससे टकराकर पानी पीछे लौटता है। इससे कोसी और दूसरी सहायक नदियों का बहाव ठीक नहीं रह पाता।

उन्होंने कहा कि ऐसे में केवल कागजी जमा खर्च से गंगा साफ नहीं होंगी और नदियों का संरक्षण नहीं किया जायेगा। जल क्षेत्र के दिग्गज दिवंगत अनुपम मिश्र की पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब' में कहा गया है कि नदी को शुद्ध साफ पानी वर्षा से मिलता है। दोनों किनारों पर, नदी के पनढाल क्षेत्र में बने असंख्य तालाबों से रिसकर आया जल भी वर्षा का मौसम बीत जाने पर नदी में शेष महीनों में पानी देता रहता था।

इसमें कहा गया है कि ताल शब्द हम सबने सुना है। ताल से ही मिलते-जुलते दो शब्द चाल और खाल हैं। ये हिमालय के तीखे ढलानों पर भी आसानी से बनाए जाते थे। इन तालों, खालों और चालों से वहां पानी की सारी जरुरतें पूरी हो जाती थीं और शेष जलराशि रिसकर भूजल का संवर्धन कर दूर बह रही नदी में मिलती थी।

पुस्तक में कहा गया है कि मैदानों में गाँव-गाँव, शहर-शहर में बने असंख्य तालाबों से खेती-बाड़ी, उद्योग और पेयजल की आपूर्ति होती थी। नदी से इन कामों के लिये जलहरण नहीं होता था। शहर, उद्योग और खेती से भी इतना जहर नहीं निकलता था। ‘‘हमारी विकास की नई शैली ने गंगा की जलराशि का तीन कामों से हरण किया है और उसमें इन तीनों से निकलने वाला जहर इसमें मिलाया।''

विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा समेत हर बड़ी नदी इन्हीं कारणों से गन्दी हुई है और छोटी, सहायक नदियां या तो सुखा दी गई हैं या मार दी गई हैं। जल क्षेत्र से जुड़ी संस्था सह्रस्त्रधारा की रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी नदियों को बचाये बिना हम गंगा, यमुना जैसी बड़ी नदियों का संरक्षण नहीं कर सकते। देश के हर इलाके में विकास और भूमाफिया का कहर छोटी नदियों को झेलना पड़ रहा है। इसके कारण जल ग्रहण क्षेत्र का अतिक्र्रमण हुआ और प्रवाह रुका है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तालाब, छोटी नदियां बची रहेंगी तब उसका साफ पानी नदी में ही जाएगा। आज तो देश के कुछ हिस्सों के तालाबों को भी नदियों के, नहरों के पानी से भरा जा रहा है। यह पद्धति कुछ समय के लिये लोकप्रिय हो सकती है, पर पर्यावरण के लिहाज से बिलकुल अच्छी नहीं है।

इसमें कहा गया है कि अंग्रेज जब यहां आये थे तो हमारे देश में 25 से 30 लाख बडे तालाब थे लेकिन आज तालाब क्रमिक रुप से नष्ट हुए हैं। छोटी नदियों और तालाब का संरक्षण वक्त की जरुरत है।

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