‘वीरप्पन के पास अद्भुत अतीन्द्रिय ज्ञान था’

गाँव कनेक्शन | Feb 07, 2017, 09:59 IST
New Delhi
नई दिल्ली (आईएएनएस)। वीरप्पन के मारे जाने के 13 वर्षो बाद 'ऑपरेशन कोकून' के दौरान उसकी हत्या की योजना बनाने और उसे मूर्त रूप देने वाले तमिलनाडु विशेष कार्य बल (एसटीएफ) के अगुवा रहे एक वरिष्ठ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ने कहा है कि खूंखार डाकू के पास एक अदभुत अतिन्द्रिय ज्ञान था।

के. विजय कुमार ने कहा, ''एक बार पेड़ से एक छिपकली उसके बाएं कंधे पर गिर गई और इस आदमी ने इसे दुर्भाग्य का संकेत माना और पीछे मुड़ा और तुरंत वहां से चला गया। इस तरह वह हल्के मशीन गन के साथ इंतजार कर रही एक टीम से बच गया।'' उन्होंने कहा, ''जब उसके शिकार का भाग्य अधर में लटका होता था तो वह कौड़ियां भी लुढ़काता था। कौड़ियों की संख्या विषम होने पर उसने पुलिस के मुखबिर के रूप में एक व्यक्ति की हत्या भी कर दी थी।''

कुमार की अगली पुस्तक 'वीरप्पन चेजिंग दी ब्रिगैंड' का विमोचन केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को करेंगे। इस पुस्तक में खूंखार जंगली डाकू के उत्थान और पतन की कहानी का स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से वर्णन है। अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी ने आगे कहा कि वीरप्पन के भाग्यशाली पलायन और अंतिम क्षण में पीछे मुड़ने का किताब में विस्तार से वर्णन है। तमिलनाडु काडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी रह चुके कुमार अभी गृह मंत्रालय में एक वरिष्ठ सुरक्षा सलाहकार हैं।

'ऑपरेशन कोकून' के बारे में विस्तार से बताते हुए कुमार ने कहा कि श्रीलंका में आतंकियों से संबंध रखने वाले एक प्रभावशाली व्यापारी ने एसटीएफ को सूचना दी। यह व्यापारी वीरप्पन को सूचना और अन्य लॉजिस्टिक समर्थन के साथ वीरप्पन की मदद कर रहा था।

कुमार ने कहा, ''वह अपनी छवि को लेकर चिंतित था। उसका अपराध राजद्रोह बिल्कुल नहीं था, लेकिन इस तरह के सीमांत तत्व अक्सर भूमिगत रहते हैं। यह सिद्धान्त है कि एक तृतीय श्रेणी का व्यक्ति प्रथम श्रेणी की गुप्त सूचना के साथ तृतीय श्रेणी की गुप्त सूचना रखने वाले प्रथम श्रेणी के व्यक्ति से प्रोटोकोल में ऊपर होता है। इसलिए उसके साथ संपर्क रखना हमारे लिए ठीक था।''

वीरप्पन की आंख की रोशनी कम हो रही थी और माना जा रहा था कि उक्त व्यापारी उसकी आंख के ऑपरेशन की व्यवस्था करेगा। इसके बाद एसटीएफ ने व्यापारी को अपनी योजना के बारे में बताया, जिससे वीरप्पन के साथ अंतिम मुठभेड़ के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। 'वीरप्पन चेजिंग दी ब्रिगैंड' में वीरप्पन के साथ मुठभेड़ की कहानी का विस्तृत वर्णन है। पुस्तक में एक अंशकालिक शिकारी से चंदन तस्कर और एक क्रूर भगोड़ा के रूप में वीरप्पन के नाटकीय उत्थान की कहानी लिखी गई है। उसने दो दशकों तक तीन राज्यों पर अपनी पकड़ बनाए रखी थी।

लेकिन प्रश्न है कि वीरप्पन को कुमार किस रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा, ''नफरत से नहीं, कोई विरोध नहीं था। मुझको एक काम करना था। उसको अपराधी ठहराना था। मैंने यथासंभव निर्लिप्त रहने की कोशिश की, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैंने उसकी विषाक्त उपस्थिति और उसके बड़े पापों को अपने मस्तिष्क से सदा के लिए मिटा दिया था।''

जब उनसे पूछा गया कि किताब लिखने में 13 साल क्यों लगे तो उन्होंने कहा, ''क्यों नहीं? मैं कई चीजों में फंस गया था। अगर मैं सनसनी फैलाना चाहता तो मुठभेड़ के ठीक अगले साल किताब की रचना करना सबसे अच्छा होता। लेकिन मुझको लगता है कि समय और दूरी भी निष्पक्षता, स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करते हैं।''

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