सुंदरगढ़, ओडिशा में खदानों का खेल, कई नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद कोयला खदानों का विस्तार जारी

रायगढ़-सुंदरगढ़ राजमार्ग से रोजाना 2,000 से अधिक ट्रक गुजरते हैं। कोयले से भरे ये ट्रक 45 गांवों के घर, फसल और जल निकायों पर कोयले की धूल की परत चढ़ा जाते हैं। कोल कॉरिडोर बनाने का वादा अभी तक अधूरा है। लेकिन बावजूद इसके, कुल्दा खदान के विस्तार को अनुमति मिल गई है।

Bijaya BiswalBijaya Biswal   12 Aug 2021 1:16 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सुंदरगढ़, ओडिशा में खदानों का खेल, कई नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद कोयला खदानों का विस्तार जारी

"कुछ इस तरह हम मर जाएंगे, कोयले में दफन होकर" - वो कहती हैं,

50 वर्षीय ज्योति की निराशा बेवजह नहीं है। उनका घर रायगढ़-सुंदरगढ़ राजमार्ग के पास ही है। यहां की कुल्दा कोयला खदानों को महानदी कोलफील्डस लिमिटेड (एमसीएल) संचालित करती है और उसने इनकी समस्याओं को अनदेखा किया हुआ है। ये कोयला खदानें 2007 से सक्रिय हैं।

इस राजमार्ग से रोजाना 2,000 से अधिक ट्रक गुजरते हैं जो उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले की हेमगिर तहसील से जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) रायगढ़, छत्तीसगढ़ तक कोयला ले जाते हैं। हर रात ज्योति ट्रकों के शोर के बीच सोती है और जब सुबह उठती है तो उसके चेहरे पर कोयले की धूल जमी होती है।

ज़ाहिर है उसके घर की दीवारें भी जर्जर हो चुकी हैं। लेकिन वह शुक्रगुजार है कि वे अभी भी खड़ी हैं और उसके सर पर छत मौजूद है। ज्योति कहती है, "पड़ोसी गांव कुल्दा की स्थिति बदतर है। खदान में होने वाले विस्फोट की वजह से कई लोगों के घरों की दीवारें गिर चुकी हैं।"

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (एनवायर मेंटल इम्पेक्ट असेसमेंट- ईआईए) 2006, अधिसूचना के अनुसार किसी खनन कंपनी के संचालन शुरू करने से पहले जन सुनवाई जरुरी है।

ज्योति कहीं और जाकर रहना चाहती हैं। कोयले के ढ़ेर और खत्ते वाले 'काले साम्राज्य' से दूर एक घर बनाना चाहती है। जहां वह कानों की अपनी उंगलियों से बंद किए बिना सो सके। ताजा हवा में सांस ले सके, जिसमें कोयले की गंध या धूल ना हो।

1987 में औपचारिक तौर पर महानदीकोलफील्ड्स लिमिटेड ने इन गांवों का अधिग्रहण किया था। फिर भी अधिकांश ग्रामीणों को अब तक मुआवज़े का भुगतान नहीं किया गया। औपचारिक रूप से अपने भूमि का स्वामित्व खो देने के बाद वे उसे बेच नहीं सकते या उसे गिरवी रखकर उस पर लोन नहीं ले सकते। ज्योति धीरे से कहती है, "हमारे पास सिर्फ एकमात्र विकल्प है- रुकना और इंतज़ार करना।"

यह क्षेत्र, विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों मसलन खड़िया, उरांव और गोंड आदिवासियों का घर है।

फिर वह फुसफुसाती है,'तभी जब, कोयला खत्म हो जाए' लेकिन वह जानती है ऐसा संभव नहीं है। महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड के स्वामित्व वाले आईबी वैली कोल फील्ड, ओडिशा में 22.3 बिलियन टन कोयले का भंडार है। यह भारत में तीसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार है। मतलब साफ है, अभी और न जाने कितनी पीढ़ियां कोयले की इस धूल में सांस लेती रहेंगी।

कोल कोरिडोर, जो अभी तक नहीं बना

हेमगिर तहसील को संवैधानिक रूप से अनुसूचित क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है। यह क्षेत्र, विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों मसलन खड़िया, उरांव और गोंड आदिवासियों का घर है। ये समुदाय काफी गरीब हैं और अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष करते रहे हैं। हाइवे के दोनों तरफ उनके धान के खेत हैं। इनकी फसल की क्वालिटी अच्छी नहीं रहती और रंग में भी थोड़ी मैली दिखती है। मंडियो में वे अपनी फसल को सिर्फ 5 से 7 रुपये किलो में बेचने के लिए मजबूर हैं जबकि भाव 11 से 13 प्रति किलोग्राम का है।

थर्मल प्लांटों को सप्लाई किए गए कोयले में राख की मात्रा 40-43.8 प्रतिशत है (जो अनुमति सीमा से 34 प्रतिशत अधिक है)।

खराब फसल के लिए ग्रामीण पर्यावरण प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराते हैं। खदान से निकलने वाला कचरा पीने के पानी को गंदा कर रहा है, खुदाई वाली जगहों में रिसाव के कारण जलस्तर सूखता जा रहा है। शोरगुल और घुटन भरे माहौल में स्कूलों को पढ़ाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

कुल्दा खदानों को 2018 में केवल एक साल के लिए 40 प्रतिशत क्षमता बढ़ाने की पर्यावरणीय मंजूरी दी गई थी। यानी 10 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से लेकर 14 एमटीपीए कोयले का खनन 2018 में किया जा सकता था। साल 2019 में इसे फिर से एक और साल के लिए मंजूरी मिल गई और आखिर में साल 2020 में इस पर्यावरणीय मंज़ूरी को हमेशा के लिए बढ़ा दिया गया।

जनवरी 2021 में, एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी (इएसी) ने 16.8 एमटीपीए के लिए खादान के 20 प्रतिशत और अधिक क्षेत्र के विस्तार की सिफारिश की है। हालांकि महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड ने कोयला खदानों में ट्रकों की आवाजाही के लिए एक विशेष कोरिडोर का इस्तेमाल करने का दावा किया था, जिसके बाद ही इसे पर्यावरण मंजूरी दी गई । लेकिन जिस कोरिडोर की बात की गई है वह तो कभी अस्तित्व में था ही नहीं।

2016 में, इसके लिए नौ ग्राम पंचायतों ने कानूनी हस्तक्षेप की मांग की और ओडिशा न्यायालय ने 2018 के अंत तक युद्ध स्तर पर एक कॉल कोरिडोर तैयार करने का आदेश दिया था। एक साल बाद एक मल्टीटेक्निकल समिति ने यहां किसी भी तरह के स्पेशल कोरिडोर नहीं बनाए जाने की पुष्टि की।

ग्रामीणों का शांतिपूर्ण धरना

दिसंबर 2020 में, ग्रामीणों ने कोयले से होने वाले प्रदूषण के विरोध में जन शक्ति विकास परिषद नामक एक संगठन बनाया। प्रभावित गांवों में 35 किलोमीटर तक पैदल मार्च करने के बाद उन्होंने महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड को एक पत्र सौंपा। इस पत्र में ट्रकों को उनके 11 गांवो से ना होकर गुजरने की मांग की गई थी।


इस साल जनवरी में, नौ प्रभावित पंचायतों के निवासियों ने इएसी को लिखे पत्र में अपनी मांगों को दोहराया। जब उन्हें इन मोर्चों पर कोई सफलता नहीं मिली तो 19 जनवरी को, 45 गांवों के 5,000 से ज्यादा लोगों ने रायगढ़ सुंदरगढ़ मार्ग पर पड़ने वाले टपरिया में, कोयले लेकर जाने वाले ट्रकों को रोककर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया।

फरवरी में, जन शक्ति विकास परिषद को विरोध करने से रोकने के लिए टपरिया में धारा 144 लगा दी गई। कम से कम 150 प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया और उन पर हत्या के प्रयास, डकैती, जबरन वसूली सहित कई आरोप लगा दिए गए। प्रदर्शनकारियों को सुंदरगढ़ के कंदाढूढ़ा में स्थानांतरित कर दिया गया।

अगले महीने मार्च 2021 में, जब अधिकांश गिरफ्तार प्रदर्शनकारी जेल में अपनी जमानत का इंतजार कर रहे थे तो उनके बच्चों ने विरोध प्रदर्शन जारी रखा। 23 मार्च को पुलिस दल की आठ पलटन, कंदाढूंढा पहुंची और 12 से 14 साल के 40 स्कूली बच्चों को हिरासत में ले लिया। 29 घंटे तक उन्हें हेमगिर पुलिस स्टेशन में ही रखा गया और कहा गया कि अगर वे अपने माता-पिता को जेल जाने से बचाना चाहते हैं तो विरोध करना बंद कर दें।

मार्च 2021 में, जबकि अधिकांश गिरफ्तार प्रदर्शनकारी जेल में अपनी जमानत का इंतजार कर रहे थे, उनके बच्चों ने विरोध जारी रखा।

जन सुनवाई जिसका कोई मतलब नहीं

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (एनवायरमेंटल इम्पेक्ट असेसमेंट- ईआईए) 2006, अधिसूचना के अनुसार किसी खनन कंपनी के संचालन शुरू करने से पहले जन सुनवाई जरुरी है। यह पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया का एक जरुरी हिस्सा है। जन सुनवाई में स्थानीय लोगों को अपनी समस्याओं और चिंताओ को सामने रखने का एक मौका दिया जाता है। विशेषज्ञ पैनल द्वारा परियोजना को मंजूरी देने से पहले कंपनी को उनकी सभी शंकाओ और समस्याओं पर जवाब देना होता है।

कुल्दा, बसुंधरा और सिआरमल खदानों के संबंध में 2018 और 2019 में की गई जन सुनवाई में साफ नजर आता है कि कैसे स्थानीय लोगों के लिए प्रदूषण और बेरोजगारी से संबंधित पुरानी अनसुनी शिकायतों के चलते, ये सुनवाई बेमानी हो गई हैं।

सीएजी की रिपोर्ट ने माना

स्थानीय लोग यहां कैसा जीवन गुजार रहे हैं इसका खुलासा भारत सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की 2019 की ऑडिट रिपोर्ट से हो जाता है। रिपोर्ट का शीर्षक है- खनन गतिविधियों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और कोल इंडिया लिमिटेड में इसके रोकथाम के उठाए गए कदमों का आकलन।" इस रिपोर्ट के अनुसार, महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड ने अपने वादे के बावजूद कुल्दा, बसुंधरा खनन स्थलों पर पानी के छिड़काव की व्यवस्था नहीं की।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि थर्मल प्लांटों को सप्लाई किए गए कोयले में राख की मात्रा 40-43.8 प्रतिशत है (जो अनुमति सीमा से 34 प्रतिशत अधिक है)। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोयला कंपनी ने अभी तक खादानों से निकलने वाली धूल से निपटने के लिए वाशरीज चालू नहीं की हैं। रिहायशी कॉलोनियों में भी सीवेजट्रीटमेंट प्लांट स्थापित नहीं किए गए हैं।

कैग रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2013 और 2018 के बीच महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड की बसुंधरा खदानों से लगभग 59 लाख लीटर अशोधित पानी को जल निकायों में छोड़ा गया। अशोधित पानी में आर्सेनिक, लेड और कॉपर मौजूद है जो भूमिगत जल को प्रदूषित कर रहा है। स्थानीय ग्रामीण अपने पीने की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं।

2018 में सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड रुरल एंड ट्राइबल डेवलपमेंट (सीआईआरटी) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर)-नमाति एनवायरमेंट जस्टिस प्रोग्राम ने जमीनी सच्चाई को सामने लाने वाली एक संयुक्त रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में उन विशेष प्रावधानों का ज़िक्र है जिनका उल्लंघन महानदी कोल फील्ड्स लिमेटिड ने किया है.


रिपोर्ट में कहा गया है कि खादान से छोड़े गए गंदे पानी में टीएसएस (टोटल सस्पेंडिड सॉलिड) की मात्रा 428 मिलीग्राम प्रति लीटर थी जबकि निर्धारित सीमा 100 मिलीग्राम प्रतिलीटर है। और एसपीएम(सस्पेंडिड पर्टिक्यलिट मैटर) 724 था जबकि निर्धारित सीमा 500 है।

2013 में वसुंधरा खदान के पास एक जरुरत से ज्यादा भर दिए खत्ते में दबकर 13 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। नियमों की अनदेखी और लापरवाही के बावजूद इएसी ने हाल ही में 'राष्ट्रीय हित' में इन खानों के विस्तार को मंजूरी दी है।

इस बीच अनुसूचित क्षेत्रों का आदिवासी समुदाय लगातार प्रभावित हो रहा है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा कोयला खनन के लिए भूमि अधिग्रहण कोल बियरिंग एरिया (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम 1957 के तहत किया जाता है, जो पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्र तक विस्तार) अधिनियम 1996, (जिसे PESA के नाम से जाना जाता है) से लगभग 40 सालों पुराना है.

इसका मतलब है कि अनुसूचित क्षेत्रों में भी भूमि अधिग्रहण से पहले प्रभावित समुदायों से परामर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं है। ओडिशा सरकार ने PESA अधिनियम के तहत ग्राम सभाओं के साथ परामर्श की आवश्यकता को और कमजोर कर दिया है। ग्रामसभा की बजाय जिला परिषद को (जिला स्तर पर) परामर्श के लिए निकाय के रूप में नामित किया गया है।

राज्य सरकार खनन क्षेत्र में आदिवासी समुदायों जिन कठिनाइयों का सामना कर रहें है, उसे जानने की बजाय साउंड प्रूफ और एयर कंडीशनिंग स्कूल पर पैसा खर्च करने जा रही है। वह एक अलग कोल कोरिडोर की जरुरत को गंभीरता से नहीं ले रही है। सरकार ने रायगढ़ सुंदरगढ़ मार्ग पर स्थित स्कूलों के लिए जिला खनिज फाउंडेशन के तहत धनराशि जारी की है। उसके अनुसार स्थानीय समुदाय के कल्याण के लिए ऐसा किया गया है।

बिजया बिस्वाल एक डॉक्टर और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता हैं जो वर्तमान में पूरे ओडिशा में स्वास्थ्य असमानता के कारणों और उससे पड़ने वाले प्रभावों पर काम कर रही हैं। उनके विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

coal mines #mining #odisha #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.