महाराष्ट्र: भारी बारिश से मराठवाड़ा में सोयाबीन और कपास की फसलें बर्बाद, किसान नेताओं को डर बढ़ न जाएं किसान आत्महत्याएं

बूंद-बूंद पानी को तरसने वाले महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में इस बार इतना पानी बरसा है कि पानी से किसान बर्बाद हो गए हैं। Marathwada में 2 दिनों में बारिश और बाढ़ में लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है। 22 लोगों की मौत हुई है और 393 पशुओं की जान गई है। विदर्भ में भी हालात बद्तर हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   30 Sep 2021 12:26 PM GMT

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महाराष्ट्र: भारी बारिश से मराठवाड़ा में सोयाबीन और कपास की फसलें बर्बाद, किसान नेताओं को डर बढ़ न जाएं किसान आत्महत्याएं

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में सितंबर महीने में लगातार बारिश और बाढ़ से सोयाबीन और कपास की लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई हैं।

सूखे और किसान आत्महत्या के लिए कुख्यात महाराष्ट्र का मराड़वाड़ा इस बार भारी बारिश और बाढ़ से पानी-पानी हो गया है। मराठवाड़ा में अतिवृष्टि और बाढ़ के चलते सोयाबीन, कपास और तुअर समेत खरीफ सीजन की करीब 30 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई है। पूरे मानसून सीजन में देश में इस बार सबसे ज्यादा बारिश मराठवाड़ा में हुई है।

27-28 सितंबर को चक्रवाती तूफान गुलाब (Cyclone Gulab) के चलते आया सैलाब इतना तेज था लातूर जिले के देवला गांव में किसान रामबाबा साहेब अपने खेत में सोयाबीन काट रहे थे, बाढ़ में वो बह गए। वो अपने घर के अकेले कमाने वाले थे। वहीं लातूर जिले में ही पोहरे गांव में किसान सदानंद शिंदे का एक मजदूर पत्नी और बेटा 36 घंटे तक खेत में फंसे रहे, टीन की शेड पर इस परिवार को एनडीआरएफ के हेलीकॉप्टर ने 29 तारीख की सुबह रेस्क्यू किया।

सितंबर महीने की अतिवृष्टि (heavy rainfall) से महाराष्ट्र के जिन 8 जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ उसमें उस्मानाबाद भी है। उस्मानाबाद (Usmanabad) में उमरगा तालुका के किसान अशोक पवार कहते है, "पूरा सितंबर महीना बारिश हुई है। फसलें तो पहले ही खराब होने लगी थी, 24-25 सितंबर से खेतों में पानी भरना शुरु हो गया था लेकिन 27-28 सितंबर को आई बाढ़ में सोयबीन, तुअर सब बर्बाद हो गया। 60 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ होगा।"

उस्मानाबाद के पडोसी जिले लातूर में भी बाढ़ और बारिश ने तबाही मचाई है। लातूर में निलंगा तालुका में उस्तरी गांव के किसान महारुद्ध शेट्टी के पास 8 एकड़ सोयाबीन थी उनके मुताबिक 95 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ है। ज्यादातर सोयबीन लगातार बारिश के चलते खेत में ही अंकुरित हो गई है। तो कपास की बोडें काले होकर गिर गए।

भारी और लगातार बारिश के बाद वर्धा जिले में एक सोयाबीन के खेत में भरा पानी। फोटो- चेतन बेले

मराठवाड़ा में 49 में से 30 लाख हेक्टेयर से ज्यादा फसल की खराब होनी की आशंका

"मराठवाड़ा में 25 से 30 लाख हेक्टेयर नुकसान की आशंका है। कुल बुवाई है 49 लाख हेक्टयर है। जुलाई तक नुकसान 5-6 लाख था, अगस्त सूखा गया लेकिन सितंबर में लगातार बारिश से नुकसान हुआ है। अभी दो दिन में साइक्लोन गुलाब (तूफान) के चलते बहुत नुकसान हुआ है। नुकसान के आंकलन और मुआवजे के लिए पंचानामा जारी हैं।" औरंगाबद मंडल के डिविजनल कमिश्नर सुनील केंद्रेकर गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं। औरंगाबाद मंडल में औरंगाबाद, नादेंड, उस्मानाबाद, लातूर, बीड़, परभनी, हिगौली और जलाना जिले शामिल हैं।

प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार बीड में 4 लाख, उस्मानाबाद 2 लाख और परभनी में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा के फसल नुकसान की आशंका है।

मॉनसून के दौरान 91 लोगों की जान गई, 1500 पशु बने काल का शिकार

महाराष्ट्र सरकार से मिली जानकारी के अनुसार एक जून से लेकर 29 सितंबर तक अतिवृष्टि के चलते मराठवाड़ा में 91 लोगों की जान गई है जबकि 1496 पशुओं की मौत हुई है। जिसमें 22 लोगों की मौत अकेले 27-28 की बाढ़ के चलते हुई है।

मौसम विभाग के आंकड़ों की बात करें तो सितंबर महीने में मराठवाड़ा में 165.02 मिलीमीटर के मुकाबले 137 फीसदी ज्यादा (391.2 मिलीमीटर) बारिश हुई है। वहीं अगर 23 सितंबर से 29 सितंबर की बात करें तो मराठवाड़ा में 358 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है।

महाराष्ट्र के लातूर जिले में एक किसान महारुद्र शेट्टी के खेत में सोयाबीन की फसल जो दोबारा जमने लगी है।

मानसून सीजन में पूरे देश में सबसे ज्यादा बारिश मराठवाड़ा में

मराठवाड़ा में बारिश ने इस सीजन में रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार पूरे मॉनसून सीजन (1 जून से 30 सितंबर) तक दौरान मराठवाडा (मेट्रोलॉजिकल सब डिवीजन) ऐसा रीजन रहा है, जहां पूरे देश में सबसे ज्यादा बारिश हुई है। यहां औसत बारिश 668.8 मिलीमीटर की जगह 988.5 मिलीटमीर बारिश हुई जो 48 फीसदी अधिक है। मराठवाड़ा के 446 महसूल मंडल में से 361 में अतिवृष्टि हुई है।

सिर्फ मराठवाड़ा ही नहीं महाराष्ट्र के एक और सूखे इलाके विदर्भ में भी अतिवृष्टि ने तबाही मचाई है। विदर्भ में सितंबर महीने में 158.8 मिलीमीटर के मुकाबले 296.9 मिलीमीटर बारिश हुई है जो 87 फीसदी ज्यादा है, इस बारिश ने पहले से ही मौसम के सताए किसानों के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।

मानसून के दौरान देखिए किस तरह हुई बारिश? सितंबर में लगातार बारिश के साथ 23 से 29 सितंबर तक सबसे ज्यादा बारिश हुई।

विदर्भ में बाढ़ नहीं लेकिन लगातार बारिश से किसान तबाह

महात्मा गांधी की कर्मभूमि रही वर्धा जिले के सेलू में पासलगांव के किसान गजानन गिरडे ने पास 12 एकड़ जमीन है। इस सीजन में उन्होंने सोना गिरवीं रखकर 2 लाख रुपए का लोन लेकर सोयाबीन (8एकड़) और कपास (4 एकड़) बोई थी लेकिन ज्यादातर फसल बर्बाद हो गई है।

2 बेटियों और एक बेटे के पिता गजानन गिरडे (50वर्ष) कहते हैं, "सिर्फ मेरा ही नहीं सभी काश्तकारों का नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा नुकसान सोयाबीन का हुआ है क्योंकि वो फसल लगभग तैयार थी। कुछ किसानों की सोयाबीन कटकर खेत में पड़ी थी, लेकिन उन्हें इधर 8 दिन से हो रही बारिश के चलते उठाने का समय नहीं मिला तो वहीं अंकुर निकल आए हैं। कपास के डिडे गिर रहे हैं।"

गनानन के मुताबिक उनकी जमीन सामयिक (सभी भाइयों के नाम हैं) जिसके चलते वो साइन कराने आदि मुश्किलों के चलते बैंक से लोन नहीं ले पाते हैं।

"बैंक में सोना गिरवीं रखने पर 1.5 से 1.75 फीसदी तक ब्याज लगता है जबकि दुकानदार 3 फीसदी पर लोन देता है। अभी चिंता है कि 2 लाख का लोन कैसे चुकाएंगे, क्योंकि यहां खाने को कुछ नहीं बचा।"

कर्ज़ लेकर बोई थी फसलें अब कहां से चुकाएंगे

गजानन के मुताबिक मौसम साथ देता तो उनकी फसल करीब 5 लाख रुपए की होती, जिसमें 2 लाख लोन और ब्याज देने के बाद भी उनके पास ढाई लाख से ज्यादा बच जाते लेकिन अब हाथ खाली हैं। गजानन को चिंता ये भी है कि जिस सोयाबीन का अभी 6000-6500 का भाव मिल रहा है पानी लगते ही वो आधे दाम पर आ जाती है।

लगातार तीसरे साल महाराष्ट्र में मौसम बना आफत

महाराष्ट्र में ये लगातार तीसरा साल है जब मौसम के चलते किसानों को भारी नुकसान हुआ है। साल 2019 के पोस्ट मानसून हुई बारिश से मराठवाडा में 60-70 फीसदी फसलों का नुकसान हुआ था, जिसके बाद किसानों की आत्महत्याओं की खबरें बढ़ गई थी। गांव कनेक्शन ने मराठवाड़ा के कई जिलों से उस दौरान खबरें की थीँ। इसके साथ फरवरी 2021 में ओलावृष्टि से अंगूर समेत कई फसलों को नुकसान हुआ था तो पश्चिमी महाराष्ट्र में जुलाई से अक्टूबर में हुई बारिश से प्याज, हल्दी, सोयाबीन समेत कई फसलों को भारी नुकसान हुआ था। किसान नेताओं को डर है ये लगातार हो रहा ये घाटा किसानों को फिर आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर न कर दें।

कहीं बढ़ न जाएं किसान आत्महत्या!

"लगातार तीसरा साल है जब किसान को नुकसान हो रहा है। आत्महत्याएं बढ़नी ही हैं। खेती की लागत इतनी बढ़ चुकी है। सरकार को कुछ गंभीर कोशिशें करनी होंगी।" महाराष्ट्र में किसानों के बड़े नेता विजय जवांधियां कहते हैं।

वो आगे कहते हैं, "प्राकृतिक आपदा से नुकसान पर महाराष्ट्र में आपदा राहत कोष से किसान को 6800 रुपए प्रति हेक्टेयर मिलते हैं। ये रकम काफी कम है। मैंने कई बार सरकार को खत लिखा है कि इसे कम से कम 15000 प्रति हेक्टयेर और मुआवजे के लिए दो हेक्टयेर का बैरियर हटाया जाए।"

ये भी देखें- ग्राउंड रिपोर्ट: वो कर्ज़ से बहुत परेशान थे, फांसी लगा ली... 35 साल के एक किसान की आत्महत्या

किसानों के मुताबिक सोयाबीन की खेती में प्रति एकड़ करीब 20 हजार रुपए की लागत आती है और 10-12 कुंटल प्रति एकड़ का उत्पादन हो जाता है लेकिन जो परिस्थितियां हैं उसमें 2-4 कुंटल प्रति एकड़ ही उत्पादन होता है।

महाराष्ट्र में हुई मौसम की टेढ़ी चाल का खामियाजा न सिर्फ वहां के किसान बल्कि अरहर खाने वाले और कॉटन उपयोग करने वाले उपभोक्ताओं को भी उठाना पड़ सकता है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में तुअर (अरहर) और कपास की बड़े पैमाने पर खेती होती है।

दलहन उत्पादन पर पड़ेगा असर

उस्मानाबाद जिले में तहसील भूम के चिंचपूर गांव के किसान अमित परांडकर कहते हैं, 20 एकड़ में तुअर बोई थी लेकिन अब खेत में कुछ बचा नहीं है। वो गांव कनेक्शन को बताते हैं, "यहां डेढ हफ्ते से बारिश हो रही थी लेकिन 4-5 दिनों इतनी बारिश हुई की न सोयाबीन बची और तुअर, कुछ भी नहीं बचा।"

मौसम और पानी की बारे में बात करते हुए किसान अशोक पवार कहते हैं, "जुलाई में जब किसान को पानी चाहिए था बारिश नहीं थी, तो सोयाबीन, तुअर और उड़द सबको नुकसान हुआ। अब इतनी बारिश हो गई कि कुछ बचा नहीं।"

वो आगे कहते हैं, "मराठवाड़ा की मिट्टी (कॉटन ब्लैक सॉइल) ऐसी ही कि पानी मिलने पर क्लै जैसी हो जाती है। तो पानी उसमें ज्यादा देर तक रुखता है और जब पानी नहीं होता है तो दरारें पड़ जाती है। मिट्टी उपजाऊ है लेकिन पानी का कम ज्यादा होने पर नुकसान हो जाता है।"

जवांधियां इसलिए भी ज्यादा फ्रिकमंद नजर आते हैं, क्योंकि वो आने वाले समय में खेतिहर मजदूरों के लिए काम नहीं देख पा रहे। वो कहते हैं, "किसान का जो होना है वो होगा कि वो जैसे तैसे गुजारा कर लेगा। आपदा का पैसा बीमा का पैसा लेकिन खेतिहर मजदूर क्या करेगा। न सोयाबीन कटाई का काम है, कपास चुनने का है। उसके पास काम नहीं है इसलिए सरकार को तत्काल रोजगार गारंटी (नरेगा) के काम शुरु करवाने होंगे।"


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