जानिए, रेस्क्यू कर लाए गए जानवरों की दिलचस्प और दिल को छू लेने वाली कहानियां

आपने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर विद्या बालन की “शेरनी” फिल्म देख ली होगी। अब जानिए कि कैसे रेस्क्यू कर लाए गए हाथी, बाघ और अन्य जानवर प्राणी उद्यानों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

Subha RaoSubha Rao   24 Jun 2021 7:55 AM GMT

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जानिए, रेस्क्यू कर लाए गए जानवरों की दिलचस्प और दिल को छू लेने वाली कहानियां

लखनऊ चिड़ियाघर बचाए गए जानवरों के बीच रिश्तों की कई कहानियों का घर है। सभी तस्वीरें: गांव कनेक्शन

एक ऐसे समय में जब हर कोई वन अधिकारियों, बाघों और जंगलों के बारे में बात कर रहा है, इस दौरान ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक शानदार फिल्म 'शेरनी' आई है। विद्या बालन-स्टारर इस फिल्म की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। यह फिल्म उन लोगों के योगदान के बारे में सोचने पर मजबूर करती है जो रेस्क्यू कर लाए गए जानवरों की देखभाल करते हैं और उनका पुनर्वास करते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मध्य में 29 हेक्टेयर में फैला नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान में रेस्क्यू किए गए जानवरों की कई कहानियां है और इन कहानियों को सुना रहे हैं बगीचे के पशु चिकित्सक अशोक कश्यप।


लेखक-गीतकार और स्टोरीटेलर नीलेश मिसरा के द स्लो ऐप के फॉरेस्टर चैनल में आप अशोक कश्यप पर फिल्माए गए इस एपिसोड का लुत्फ उठा सकते हैं।

कश्यप कहते हैं, "हमारा मकसद जानवरों को कैद करना नहीं है बल्कि उन्हें संरक्षण देना है। हम यहां ऐसे जानवरों को लाते हैं जो घायल हो जाते हैं और जिन्हें देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे जानवर जिन्हें 'लोगों के लिए खतरनाक' माना जाता है उन्हें एक सुरक्षित जगह उपलब्ध कराने के लिए हम यहां लाते हैं।"

कश्यप बताते हैं कि वे इस गार्डन में लगभग 24 सालों से काम कर रहे हैं। वे जानवरों के व्यवहार पर नज़र रखने और उनकी निगरानी करने का काम करते हैं। इसके साथ ही जानवरों का इलाज करना, उन्हें बीमारियों से बचाना और उनकी देखभाल करना भी कश्यप की जिम्मेदारी है। इसके अलावा जानवरों के खानपान व बाड़ों में उनके रहने के लिए पर्याप्त जगह पर भी ध्यान दिया जाता है।

पशु चिकित्सक अशोक कश्यप

कश्यप ने आगे कहा, "जब किसी जानवर को बचाकर यहां लाया जाता है, तो हम उसे पहले आइसोलेशन (अलग-थलग) में रखते हैं। जानवर पहले से ही बहुत उत्तेजित होते हैं, इसलिए हम उनसे ज्यादा बातचीत या मिलने की कोशिश नहीं करते हैं। हम इलाज शुरू करने से पहले जानवरों को घर बसाने का समय देते हैं।"

दो हाथियों के बीच हो गई दोस्ती

कश्यप याद करते हुए बताते हैं कि साल 2000 में एक गर्भवती हाथी चंपाकली को दुधवा नेशनल पार्क से बगीचे में लाया गया था। लगभग उसी समय राजस्थान में कहीं से एक और हाथी भी लाई गई थी। कश्यप ने कहा कि साथ में रहते हुए दोनों हाथियों में काफी अच्छी दोस्ती हो गई थी और वे अपना सारा समय एक साथ ही बिताते थे।

महावत के साथ हाथी।

कश्यप ने आगे एक भावुक कर देने वाली कहानी बताई। उन्होंने कहा, "वो (दोनों हाथी) एक साथ खाते थे, एक साथ चलते थे… अचानक एक रोज़ चंपाकली गिर गई। इस वजह से उसके पेट का अजन्मा बच्चा भी मर गया। इस घटना के दूसरे दिन से ही चंपाकली की सहेली यानी दूसरे हाथी ने खाना खाना बंद कर दिया। वह बेसुध हो गई थी। हमने उसे भूख बढ़ाने के लिए दवाएं दीं, लेकिन उसने 13 या 14 दिनों तक कुछ नहीं खाया और अंत में मर गई।" यह बताते हुए कश्यप उदास हो गए।

कश्यप ने बताया कि बड़े जानवरों के बजाय उनके छोटे बच्चों के देखभाल में ज्यादा परेशानी आती है। उन्होंने इससे संबंधित तेंदुए के एक बच्चे की कहानी बताई। उन्होंने बताया, "एक बार तेंदुए के एक छोटे बच्चे को रेस्क्यू के बाद लाया गया था। हमें चौबीसों घंटे उसकी देखभाल करनी पड़ती थी। हम उसे हर दो-तीन घंटे में दूध पिलाते थे। उसके लिए कुलर की व्यवस्था की गई ताकि कमरे का तापमान उसके अनुकूल रहे। पूरी तरह सामान्य होने के बाद ही उसे अन्य तेंदुओं के पास एक बाड़े में रहने के लिए भेजा गया।" कश्यप ने कहा, "हम मानते हैं कि जानवरों को ऐसा माहौल दिया जाना चाहिए कि वे पूरी तरह स्वतंत्र महसूस कर सकें।"

छह मिनट के इस लघु फिल्म का अंतिम कुछ मिनट इतना प्यारा है कि यह आपके दिल को छू लेगा।

नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान में बंदर।

वीडियो में कश्यप ने दो बंदरों के बारे में एक दिलचस्प कहानी बताई है। उन्होंने कहा, "मैं एक बार बंदरों के एक जोड़े को दवा देने गया था। महिला बंदर ने पहले दवाई ली और एक कोने में चली गई। फिर पुरुष बंदर को जब मैंने दवा देने की कोशिश की तो अचानक उसने मुझे पकड़कर खींच लिया। इस दौरान मैं अपना संतुलन खो बैठा और गिर गया। इसके बाद महिला बंदर दौड़ कर आई, और उसने अजीब इशारों से पुरुष बंदर को डांटा और बड़ी सहानुभूति के साथ मेरी ओर देखने लगी।" कश्यप आगे कहते हैं, "वह (महिला बंदर) जानती थी कि मुझे इससे आश्चर्य हुआ है। वह समझ गई थी।"

इस लघु फिल्म का छायांकन और निर्माण अभिषेक वर्मा, यश सचदेव और मोहम्मद सलमान द्वारा किया गया है, एडिटिंग राम सागर ने व ग्राफिक्स का काम कार्तिकेय उपाध्याय द्वारा किया गया है।

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