नेपाल के जंगल आग की चपेट में, स्थानीय लोग कर रहे हैं मानसून का इंतजार

कुछ दिनों पहले तक नेपाल के जंगलों का एक बड़ा हिस्सा आग की चपेट में था। देश के 77 में से लगभग 73 जिले जंगल की आग से प्रभावित थे। पिछले साल नवंबर के बाद से जंगलों में आग लगने की रिकॉर्ड 2700 घटनाएं हुई हैं। पिछले वर्षों की तुलना में यह बहुत ज्यादा है।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   8 April 2021 1:00 PM GMT

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नेपाल के जंगल आग की चपेट में, स्थानीय लोग कर रहे हैं मानसून का इंतजार

नेपाल के 77 में से लगभग 73 जिले जंगल की आग से प्रभावित थे। (फाइल फोटो- Shutterstock)

रोज की तरह सुजीता ढकाल आज सुबह भी जाग गई और काठमांडू में अपने घर की खिड़की से बाहर की ओर झाँकने लगी। उसने देखा कि बाहर धुंध छाई हुई है। इसके बाद अपनी आँखों को रगड़ते हुए वह बाहर निकल आई।

RECOFTC (द सेंटर फॉर पीपुल एंड फॉरेस्ट) नेपाल के साथ सहायक कार्यक्रम अधिकारी के रूप में काम करने वाली सुजीता ने गांव कनेक्शन से कहा, "मैंने देखा कि बाहर धुंध की एक मोटी चादर थी। मेरी आँखें जल रही थीं, और ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ी आपदा आने वाली है।"

कुछ दिनों पहले तक नेपाल के जंगलों का एक बड़ा हिस्सा आग की चपेट में था। देश के 77 में से लगभग 73 जिले जंगल की आग से प्रभावित थे। जाहिर है कि हवा जहरीली हो गई थी, यही वजह है कि सुजीता जैसे स्थानीय लोगों को आंखों में जलन और सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा धुएं की वजह से हवाई सेवाएं भी बाधित हो रही थी।

30 मार्च को नेपाल सरकार ने सभी शैक्षणिक संस्थानों को चार दिनों के लिए बंद कर दिया। हालांकि अच्छी बात यह रही कि दो दिन पहले ही बारिश हुई और इससे बड़ी संख्या में फंसे हुए वन्यजीवों को वहां से बाहर निकालने में मदद मिली। शैक्षणिक संस्थानों को 4 अप्रैल से फिर से खोल दिया गया।

हालांकि पहले की तुलना में जंगल में आग का विस्तार कम हुआ है। द काठमांडू पोस्ट के लिए पर्यावरण और पलायन संबंधी मामलों के रिपोर्टर चंदन कुमार मंडल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "एक हफ्ते पहले तक देश भर में पांच सौ से अधिक ऐसी जगहें थी जहां आग लगी हुई थी। लेकिन अप्रैल की पहली तारीख तक इसकी संख्या कम होकर 59 हो गई है। हालांकि खतरा अभी भी टला नहीं है, क्योंकि नेपाल में जंगलों में आग अप्रैल और मई के महीनों में ही सबसे ज्यादा फैलते हैं। नेपाल के जंगलों में फैले आग पर चंदन ने कई महत्वपुर्ण रिपोर्ट किए हैं।

सुजीता कहती हैं, "जब जंगल जल रहे थे और नागरिकों को इसकी वजह से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, स्कूल बंद हो गए थे और हवाई सेवाएं भी प्रभावित हो रही थीं, तब भी सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल घोषित नहीं किया था। क्या आप इस बात पर भरोसा कर सकते हैं?"

इस बीच, हाल ही में जंगल में आग लगने की घटनाओं ने देश के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के जलने और वायु प्रदूषण जैसे चिंताजनक मुद्दों के बीच की कड़ी को स्पष्ट कर दिया है। आईएसबी हैदराबाद में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में शोध कर रही दिव्या गुप्ता कहती हैं, "वायू प्रदुषण की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि काठमांडू के लोग अब दिल्ली-एनसीआर या बीजिंग में वायु प्रदूषण के स्तर के साथ अपनी तुलना करने लगे हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि जंगलों में आग और वायु प्रदूषण के बीच गहरा संबंध है।" दिव्या ने लगभग 10 वर्षों तक प्राकृतिक संसाधन शासन के मुद्दों पर काम किया है।

उन्होंने आगे बताया, "नेपाल के जंगलों में हाल ही में लगी आग, ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर लगी आग या अमेरिका में प्रशांत नॉर्थवेस्ट में लगी आग की याद दिलाती है। यहां आग लगने के कई कारण हैं, जिनमें एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन [बढ़ता तापमान और हीटवेव] भी है।

नेपाल के जंगल और आग

नेपाल का कुल वन क्षेत्र 64 लाख हेक्टेयर (झाड़ी सहित) है जो देश के कुल भौतिक क्षेत्र का लगभग 44.7 प्रतिशत है। पिछले तीन दशकों में सरकार ने धीरे-धीरे जंगलों को समुदाय आधारित वन प्रबंधन (CBFM) समूहों में स्थानांतरित कर दिया है। इसके ज़रिए अब लगभग 20 लाख हेक्टेयर या नेपाल के लगभग 34 प्रतिशत वन कवर का प्रबंधन किया जाता है।

जंगलों में लगी आग का सीधा संपर्क वायु प्रदूषण से है। फोटो- The Kathmandu Post

जंगल में आग लगने का मौसम नवंबर महीने से शुरू होता है और दक्षिण पश्चिम मानसून के आगमन तक चलता है। हिमालयी देश में मानसुन 10 जून के आसपास आता है। सीबीएफएम समूह जंगल की आग के प्रबंधन के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। काठमांडू के निवासी और इंटरन्यूज अर्थ जर्नलिजम नेटवर्क के साउथ एशिया कॉर्डिनेटर रमेश भूषाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "नेपाल के जंगलों में आग आम बात है। इनमें से कुछ प्राकृतिक कारणों की वजह से व कुछ मानव-प्रेरित कारणों से होते हैं। स्थानीय लोगों को खेती के लिए या अपने मवेशियों हेतु चारे की व्यवस्था करने के लिए भूमि को खाली करना होता है। इसके लिए वे झाड़ियों को जला देते हैं। ।

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन इस साल जो हुआ है वह अभूतपूर्व है। पिछले साल नवंबर के बाद से जंगलों में आग लगने की रिकॉर्ड 2700 घटनाएं हुई है। पिछले वर्षों की तुलना में यह बहुत ज्यादा है।

सुजीता कहती हैं, "इस साल जंगल में आग लगने की ज्यादा घटनाओं के लिए विभिन्न कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। सबसे पहला कारण, नेपाल में इस बार सर्दियों में सामान्य से कम बारिश होना है, इसके साथ ही मौसम के पूर्वानुमान से पता चला है कि पूर्व-मानसून के मौसम में भी सामान्य से कम बारिश होगी। इससे जंगलों में सूखापन बढ़ गया है।"

जानकारों के मुताबिक दूसरा कारण यह है कि पिछले साल COVID-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण, स्थानीय लोग जलावन टहनियों और सूखी घास इकट्ठा करने के लिए जंगलों में नहीं जा सके। इसके साथ ही, पशुओं को चराने के लिए भी जंगलों में नहीं ले जाया जाता था। इससे जंगलों में सुखापन बढ़ गया, जिससे आग लगने की आशंका भी बढ़ गई। इसके अलावा लोगों ने खेती करने या अवैध शिकार करने के लिए भी जंगलों में आग लगा दी।

नेपाल में आग लगने की घटना नवंबर में ही शुरू हो गई थी। (फाटो-
The Kathmandu Post
)

सुजीता कहती हैं कि हालांकि सामुदायिक समूहों को जंगलों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन उनके पास मानव संसाधनों की कमी है। इसके साथ ही जंगल में आग का सामना किस तरह करना है, इसे लेकर ना तो उन्हें प्रशिक्षण दिया गया है और ना ही उनके पास आवश्यक उपकरण हैं।

गुप्ता कहते हैं कि नेपाल को अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण लगातार जंगल में आग, भूकंप, सूखा और बाढ़ जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ता है। ये आपदाएं बड़े पैमाने पर आती हैं और क्षेत्र को व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं। इन आपदाओं से निपटने के लिए देश के पास संसाधनों की कमी है।

नेपाल सरकार ने एक दशक पहले 2010 में अपनी वन अग्नि प्रबंधन रणनीति तैयार की थी। वन अग्नि प्रबंधन के लिए रणनीति के चार स्तंभ हैं - नीति, कानूनी और संस्थागत विकास और सुधार; शिक्षा, जागरूकता बढ़ाने, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी विकास; भागीदारी (स्थानीय समुदाय को शामिल करना) अग्नि प्रबंधन और अनुसंधान; और समन्वय और सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, नेटवर्किंग और बुनियादी ढाँचा विकास।

इस रणनीति का लक्ष्य जीवन, संपत्ति, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान को कम करने के लिए और वनों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए जंगल में लगने वाली आग को ठीक से प्रबंधित करना है।

सुजीता ने कहा, "लेकिन, यह सब केवल कागजों पर ही सिमट कर रह गया है। इस रणनीति के जारी होने के एक दशक बाद भी इसके लिए कोई कार्ययोजना तैयार नहीं हो पाई है। हमारे जंगलों में आग लगी है और हमें अभी भी नहीं पता है कि पिछले साल नवंबर के बाद से आग की वजह से हमें कुल कितने क्षेत्र में फैले वन का नुकसान हुआ है।"

बहरहाल, यहां के लोग दक्षिण पश्चिम मानसून की प्रतीक्षा में एक उम्मीद के साथ आसमान की ओर नज़रे जमाए हुए हैं। उन्हें लगता है कि इससे देश के जलते हुए जंगलों को हो रहे नुकसान को कुछ कम किया जा सकता है।

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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