मई में तबाही: उत्तराखंड में भारी बारिश की लगातार बढ़ती घटनाएं

3 मई से 7 मई के बीच उत्तराखंड के कई जिलों से भारी बारिश, अचानक बाढ़ और भूस्खलन की खबरें आईं। इनमें बाजार और घर बह गए, खेत मिट्टी और कीचड़ से भर गए। क्या इन घटनाओं को देखते हुए मौसम विभाग के बादल फटने के मानकों को फिर से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए?

Megha PrakashMegha Prakash   2 Jun 2021 8:26 AM GMT

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मई में तबाही: उत्तराखंड में भारी बारिश की लगातार बढ़ती घटनाएं

COVID19 लॉकडाउन यहां के लोगों के लिए वरदान साबित हुआ क्योंकि जब ये भारी बारिश की घटनाएं हुईं, तो लोग ज्यादातर अपने घरों के अंदर थे और जान बच गई।

देहरादून (उत्तराखंड)। अधिकारिक रूप से मानसून का आना अभी बाकी है लेकिन हिमालयी राज्य उत्तराखंड ने मई के महीने में ही लगातार भारी बारिश, बाढ़ और आंधी तूफान का सामना किया। 30 मई की सुबह तकरीबन 3:30 बजे, पौड़ी गढ़वाल के बंगरी गांव के लोग तेज आवाज से साथ उठे। इसके बाद भारी बारिश होने लगी और अचानक बाढ़ आ गई जिसमें दो गौशालाएं बह गईं, घरों को नुकसान हुआ और पौड़ी-श्रीनगर हाईवे छह घंटे बंद रहा।

इस पहाड़ी राज्य में भारी बारिश की यह अकेली घटना नहीं थी। 3 मई से 7 मई के बीच राज्य के कई जिलों से एक के बाद एक अचानक बाढ़, भूस्खलन और आंधी तूफान की घटनाएं सामने आईं। स्थानीय लोग दहशत में आ गए। उन्हें इस साल फरवरी में चमोली जिले में आई विनाशकारी बाढ़ याद आने लगी जिसमें कम से कम 72 लोग मारे गए और 150 से अधिक लोग लापता हो गए। उस बाढ़ में तीन पनबिजली परियोजनाएं तपोवन, ऋषिगंगा और विष्णुगढ़ भी बह गईं थी।

भारी बारिश और बाढ़ से हुई तबाही पर लोगों की निगाहें टिकी हुई हैं।

3 मई शाम तकरीबन 4:00 बजे उत्तरकाशी जिले की चिन्यालीसौर तहसील के कुमरादा गांव के ऊपर जंगल में धमाके जैसी तेज आवाज हुई। इसके तुरंत बाद भारी बारिश शुरू हो गई। गंदा पानी, भारी चट्टानें और कीचड़ ने 400 हेक्टेयर कृषि भूमि को जलमग्न कर दिया।

कुमरादा गांव के निवासी और इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी गंगाधारपवार ने गांव कनेक्शन को बताया, "पहाड़ों से टूट कर गिरने वाली चट्टानों के मलबे और पानी के रास्ते में आने वाले दो घर तबाह हो गए। सौभाग्य से उनमें रहने वाले लोग तो बच गए लेकिन उनकी तीन भैंसों और बकरियों को नहीं बचाया जा सका।"

दो दिन बाद ऐसी ही घटना उत्तरकाशी से लगभग 265 किलोमीटर दूर चमोली जिले के घाट बाजार में देखने को मिली। घाट बाजार में फास्टफूड दुकान के मालिक और व्यापार संघ, विकास नगर (घाट) के अध्यक्ष चरनसिंह नेगी उस समय घर पर ही मौजूद थे क्योंकि कोविड19 लॉकडाउन के कारण सभी दुकानें बंद थीं।

भारी बारिश से काफी नुकसान हुआ है और स्थानीय ग्रामीणों को लाखों का नुकसान हुआ है।

नेगी ने उस घटना को याद करते हुए बताया, "दोपहर 2:30 बजे के आसपास मौसम बदलने लगा। बादल छा गए और तेज बारिश शुरू हो गई।" नेगी ने गांव कनेक्शन को बताया, "ठीक वैसे ही जैसे कुमरादा में हुआ था, तेज विस्फोटक की आवाज हुई और उसके बाद सड़क पर कीचड़ वाले पानी की बाढ़ आ गई।"

नेगी ने बताया, "तीन किलोमीटर में फैला ये बाजार जर्जर हो गया था। बड़े-बड़े पत्थर, कीचड़, मलबा और उखड़े हुए पेड़ों ने हमारी दुकानों को तहस-नहस कर दिया। 32 दुकानें पूरी तरह ध्वस्त हो गईं।" नेगी की भी दुकान इस बाढ़ में बह गई।

बादल फटा बनाम क्लाउड बर्स्ट

वैसे तो स्थानीय निवासी इन घटनाओं को बादल फटना कहते हैं लेकिन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार तकनीकी रूप से इन घटनाओं को बादल फटने के श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। बादल फटने के लिए 1 घंटे में 10 सेंटीमीटर बारिश होनी चाहिए।

एक के बाद एक 'बादल फटा' की घटनाओं का कारण बताते हुए आईएमडी देहरादून के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने गांव कनेक्शन को बताया, "राज्य में पश्चिमी विक्षोभ और गरज के साथ तूफान के कारण बारिश हुई।"

राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल से जुड़े नंदकिशोर भी ऐसा ही कहते हैं, "यह बादल फटना नहीं था बल्कि एक विशेष स्थान पर कुछ समय के लिए भारी बारिश हुई और उसके बाद एकदम बाढ़ आ गई।"

स्थानीय लोगों के अनुसार, 2013 के केदारनाथ बाढ़ के बाद बादल फटा, अचानक बाढ़ और जंगल में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ एनवायर्नमेंट के प्रोफेसर अशोक प्रियदर्शन डिमरी के अनुसार, "उत्तरकाशी और चमोली में ये मौसमी घटनाएं संवहनी अस्थिरता और भौगोलिक लॉकिंग के कारण हो सकती है। इन स्थितियों में बादल जल्दी बनते हैं और थोड़े समय के भीतर तत्काल बारिश हो जाती है।"

उन्होंने बताया कि इस तरह की मौसमी घटनाएं बंद घाटियों में होती है जहां वातावरण में गर्मी की वजह से हवा लंबवत ऊपर की तरफ उठती है।

स्थानीय लोगों के अनुसार 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के बाद से बादल फटने, अचानक से बाढ़ आने और जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ी हैं।

बढ़ती आपदाएं

5 मई को अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया में भी बादल फटने की सूचना मिली थी। उस दिन काम के बाद शहर से गांव लौट रहे मानवेंद्रराणा ने गांव कनेक्शन को बताया, "तकरीबन 1:30 बजे दोपहर को अचानक मौसम बदल गया। काले बादल छा गए। तेज हवा चलने लगी। बादल गरजे, बिजली चमकी।"

औरेंजअलर्ट जारी किया गया। लेकिन चौखुटिया के लोगों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बाढ़ का पानी उनके खेत-खलिहानों, खेल के मैदानों और जानवरों को बहा ले जाएगा। राणा ने बताया, "राजमार्ग कीचड़ से अट गया था और पानी सड़कों पर बह रहा था।"

डर ने स्थानीय निवासियों को जकड़ लिया, जिन्हें इस साल की शुरुआत में चमोली जिले में इस साल की शुरुआत में विनाशकारी बाढ़ की याद दिला दी गई थी, जिसमें कम से कम 72 लोग मारे गए थे और 150 से अधिक लापता हो गए थे।

इसी बीच, ठीक उसी दिन टिहरी के नंदप्रयाग में भी अचानक बाढ़ आने की सूचना मिली थी। इसके बाद नैनीताल जिले के कैंची धाम में भी ऐसा ही हुआ।

स्थानीय ग्रामीणों का लाखों का नुकसान हुआ। उदाहरण के लिए घाट बाजार में फास्टफूड बेचने वाले चंदन सिंह नेगी की दुकान भी बाढ़ में बह गई. उनके सिर पर 5 लाख रुपये का कर्ज है, जो उन्होंने 2019 में इस दुकान को शुरू करने के लिए लिया था। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, "पता नहीं, अब कैसे कर्ज चुकाऊंगा।"

मुकेश सिंह रावत भी बर्बाद हो गए। रावत भी घाट बाजार में एक स्टोर चलाते थे। आपदा से ठीक एक दिन पहले उन्होंने करीब 8 लाख रुपये का माल खरीदा था। साथ ही वह जो गेस्ट हाउस बनवा रहे थे, वह भी बाढ़ में बह गया। उन्होंने बताया कि उन्हें 30 लाख रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है।

आपदाओं को फिर से परिभाषित करना

राज्य के अधिकारियों के अनुसार, तीन से सात मई के बीच हुई घटनाओं को बादल फटने की श्रेणी में नहीं, बल्कि भारी बारिश की श्रेणी में रखा गया। उनके अनुसार बादल फटने के लिए निर्धारित आईएमडी की शुरुआती सीमा की समीक्षा होनी चाहिए।

डिमरी के अनुसार हिमालय के अंदरूनी इलाकों में बारिश के पैटर्न को सूक्ष्म स्तर पर रेनगेज से नहीं नापा जाता। उदाहरण के लिए 10 मिनट की छोटी अवधि में होने वाली 15 मिलीमीटर या 20 मिलीमीटर की बारिश को दर्ज नहीं किया जाता। और बादल फटने की अधिकांश घटनाएं इन्हीं घाटियों में कहीं होती हैं।

डिमरी कहते हैं, "चूंकि आईएमडी स्टेशन आम तौर पर हिमालय की तलहटी में होते हैं या फिर 2000 मीटर की ऊंचाई पर, इसीलिए वे सूक्ष्म स्तर पर बारिश की निगरानी या उसे माप नहीं सकते।"

आईएमडी के एक वैज्ञानिक ने कहा, "पश्चिमी विक्षोभ और आंधी गतिविधि के कारण राज्य में बारिश हुई।"

कोविड19 लॉकडाउन आपदा में एक वरदान साबित हुआ है, क्योंकि जब ये घटनाएं हुईं, उस समय ज्यादातर लोग अपने घरों में थे और उनकी जान बच गई।

डीमरी कहते हैं, "उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की इतनी सारी घटनाओं को देखते हुए जोखिमों और खतरों का उचित तरीके से विश्लेषण होना चाहिए ताकि बादल फटने की घटनाओं के सिलसिले में आपदा की चेतावनी और उनके प्रबंधन के तंत्र को बेहतर किया जा सके।"

इस बीच मानसून आने से पहले ही उत्तराखंड सरकार विकट मौसमी घटनाओं से निपटने की तैयारी कर रही है। जिला प्रमुखों को ब्लॉक स्तर पर आपदा नियंत्रण कक्ष तैयार करने के लिए कहा गया है। प्रत्येक जिले में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने से संबंधित सभी विभागों में एक नोडल अधिकारी होगा।

इन नोडल अधिकारियों की जिम्मेदारी होगी कि राहत शिविर लगाने के लिए जगह की पहचान करें, वहां के लिए पर्याप्त अनाज स्टॉक मुहैया कराएं, आपात स्थिति में लोगों को इलाके से निकलना पड़े तो सुरक्षित सुरक्षितलैंडिंग के लिए हेलीपैड तैयार रखें।

जिला प्रबंधन को जेसीबी जैसी भारी मशीनरी तैयार रखने के भी निर्देश दिए गए हैं ताकि भूस्खलन की स्थिति में सड़कों और राजमार्ग को तुरंत साफ किया जा सके। भूस्खलन से पहाड़ों पर आपूर्ति और परिवहन बाधित हो सकती है।

अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

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