'एचआईवी/एड्स के खौफ में जी रही हैं आसनसोल की सेक्स वर्कर्स'

पश्चिम बंगाल के आसनसोल में पिछले चार साल से 'एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मरीज़ों के व्यक्तिगत आधार पर इलाज' योजना को रोका हुआ है। इसके चलते यौनकर्मियों की न तो एचआईवी की अनिवार्य जांच हो पो रही है और न ही उन्हें बचाव के लिए मुफ्त कंडोम दिए जा रहे है। इससे एड्स के खिलाफ भारत की लड़ाई कमजोर पड़ती दिखाई पड़ रही है।

Aritra BhattacharyaAritra Bhattacharya   18 Sep 2021 7:50 AM GMT

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एचआईवी/एड्स के खौफ में जी रही हैं आसनसोल की सेक्स वर्कर्स

रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्कर्स के लिए अनिवार्य एचआईवी स्क्रीनिंग बंद कर दी गई है। फोटो: गांव कनेक्शन

आसनसोल (पश्चिम बंगाल)। आसनसोल पश्चिम बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यहां बड़ी संख्या में कोयला खदानें और कारखानें है। दूर दराज के इलाकों से आए प्रवासी मजदूर भी यहां रहते है। इस क्षेत्र में चाबका, लचीपुर और सीतारामपुर जैसे कई रेड लाइट एरिया हैं जहां हजारों सेक्स वर्कर अपना गुजारा कर रही हैं। लेकिन आज वह एड्स के खतरे के मुहाने पर बैठी हैं। क्योंकि पिछले चार सालों से उनकी न तो एचआईवी (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस) संक्रमण के लिए अनिवार्य जांच की गई है और न ही उन्हें सुरक्षित यौन संबंध के लिए मुफ्त कंडोम या परामर्श दिया गया है।

सेक्स वर्कर की जांच और उन्हें दिए जाने वाले परामर्श, यह सभी केंद्र सरकार के ''एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मरीज़ों का व्यक्तिगत आधार पर इलाज" की गतिविधियों का हिस्सा हैं। जिसे राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) अपने स्तर पर चलाता है।

कोलकाता से करीब 210 किलोमीटर दूर स्थित पश्चिम बर्धमान के जिला मुख्यालय के रेड लाइट इलाकों में जांच और उन्हें दिए जाने वाले परामर्श गतिविधियों को फिर से शुरू कराने के लिए आसनसोल की एक सेक्स वर्कर मुर्शिदा शेख दर-दर भटक रही हैं।

दो महीने पहले सात जुलाई को, शेख ने वेस्ट बंगाल स्टेट एड्स प्रिवेंशन एंड कंट्रोल सोसाइटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अभिषेक तिवारी को एक पत्र लिखा था। उन्होंने इस पत्र में अपने समुदाय के सदस्यों और उनके ग्राहकों के यौन स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने लिखा, "चाबका, लचीपुर और सीतारामपुर के रेड लाइट इलाकों में एक हजार से ज्यादा यौन कर्मी रहती हैं… राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर स्थित ये क्षेत्र झारखंड सीमा से सटे हैं और खदानों व कारखानों से भरे हुए हैं। … यहां एसटीडी (यौन संचारित रोग) और एचआईवी के मामले बढ़ रहे हैं। खून की जांच की सारी गतिविधियां फिलहाल पूरी तरह से बंद हैं। "

शेख ने बताया , "हमें कंडोम नहीं मिल रहे हैं और ICTC (एकीकृत परामर्श और परीक्षण केंद्र) यहां से तकरीबन 18 किमी दूर हैं और वहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है।" शेख आसनसोल दरबार समिति की अध्यक्ष भी हैं। यह एक समुदाय आधारित संगठन है जो दरबार महिला समन्वय समिति से जुड़ा है। यह संस्था पश्चिम बंगाल में 65,000 से अधिक यौनकर्मियों का प्रतिनिधित्व करती है।

दरबार महिला समन्वय समिति द्वारा आयोजित आसनसोल में रेड लाइट क्षेत्रों में राशन का वितरण फोटो: रबी घोष

जब 'लक्षित हस्तक्षेप' को बंद कर दिया गया

2017 तक, 'एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मरीज़ों का व्यक्तिगत आधार पर इलाज' की NACO की इस पहल ने आसनसोल के आस-पास के इलाकों में काफी अच्छा काम किया था। इसकी कई सेवाओं और सुविधाओं का उद्देश्य यौनकर्मियों के स्वास्थ्य की निगरानी और सुधार करना था।

इस पहल के अंतर्गत एचआईवी संक्रमण की आशंका के चलते इन महिलाओं की हर तीन महीने में एक बार खून की जांच की जाती थी। डॉक्टर उन्हें सप्ताह में तीन बार यौन संचारित रोगों और अन्य बीमारियों के लिए मुफ्त परामर्श और दवाएं देते थे और उनमें से हर एक को रोजाना सात कंडोम दिए जाते थे।

यौनकर्मियों के बीच अपनी पहुंच बनाने वाले कार्यकर्ताओं और हमउम्र शिक्षकों ने एचआईवी/एड्स और यौन स्वास्थ्य के बारे में इन लोगों के बीच काफी जागरूकता बढ़ाई। उन्हें कंडोम का इस्तेमाल करने और सुरक्षित यौन बनाने की सलाह दी। एचआईवी की जांच में रिपोर्ट पोजेटिव आने पर कई यौनकर्मियों को एंटी-रेट्रोवायरल उपचार केंद्रों से जोड़ा भी जोड़ा गया था।

2017 की शुरुआत में रेड लाइट इलाके के यौनकर्मियों और उनके परिवार वालों ने कुछ कार्यकर्ताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। जिसके बाद से चीजें बिगड़ना शुरु हो गईं। ये सभी कार्यकर्ता 'लक्षित हस्तक्षेप' के कार्यान्वयन से जुड़े हुए थे। आसनसोल दरबार समिति के फील्ड कोर्डिनेटर रबी घोष ने गांव कनेक्शन को बताया, "उन्हें सेक्स वर्कर्स के बीच काम करने का कोई अनुभव नहीं था और न ही कभी वह उनके संपर्क में आए थे। जमीन स्तर पर क्या काम करना है, उन्होंने हमसे इसकी सलाह तक नहीं ली और पैसे की धोखाधड़ी की।"

आसनसोल दरबार समिति के फील्ड समन्वयक रबी घोष ने चाबका में यौनकर्मियों को बेबी फूड के पैकेट सौंपे। फोटो: रबी घोष।

चबका में रहने वाले घोष खुद एक सेक्स वर्कर के बेटे हैं। उन्होंने कहा, "भ्रष्टाचार के बारे में हमने जिला मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार से शिकायत की थी और कहा था कि हम पूरी जिम्मेदारी के साथ इस योजना को चलाने के लिए तैयार हैं। लेकिन, मार्च 2017 से योजना के लिए दिए जाने वाले पैसे पर रोक लगा दी गई। अधिकारियों को इस बारे में हमनें कई पत्र लिखे। हमारे प्रतिनिधि दल के कई सदस्यों ने उनसे मुलाकात भी की। इसके बावजूद भी योजना को फिर से शुरू नहीं किया गया।"

मार्च 2017 तक घोष, नाको की इस योजना से एक संपर्ककर्मी कार्यकर्ता के तौर पर जुड़े रहे लेकिन उसके बाद चीजें बदलना शुरु हो गई।

उनके अनुसार, यौनकर्मियों के लिए अनिवार्य एचआईवी जांच को भी बंद कर दिया गया और सरकार की ओर से रेड लाइट इलाकों में एक भी स्क्रीनिंग कैंप का आयोजन नहीं किया गया है।

घोष शिकायत करते हुए कहते हैं, "हमने दरबार महिला समन्वय समिति की मदद से आसपास के इलाकों में कई बार खून की जांच करवायी लेकिन ये काफी नहीं थी। पैसे की कमी के चलते कंडोम बांटने और जागरूकता व परामर्श जैसी गतिविधियां भी पूरी तरह से ठप हो गई हैं।"


'लक्षित हस्तक्षेप' का महत्व और दायरा

राज्य एड्स नियंत्रण समितियों और गैर सरकारी संगठनों/समुदाय आधारित संगठनों के सहयोग से नाको ने 'लक्षित हस्तक्षेप' को तैयार किया था और इसे चला भी रहा था। यह योजना एचआईवी/एड्स के खिलाफ भारत की लड़ाई की आधारशिला है।

यौनकर्मियों में एडस जैसी बीमारियों का जोखिम ज्यादा होता है। यही वजह थी कि इन क्षेत्रों के लिए इस योजना को बनाया और चलाया गया । इसके अंतर्गत 100 से 250 व्यक्तियों की निगरानी के लिए एक हमउम्र शिक्षक और एक संपर्ककर्मी कार्यकर्ता नियुक्त किया गया। ये सेक्स वर्कर्स को कंडोम, लुब्रीकेंट और दवाएं मुहैया कराते हैं और उनके स्वास्थ्य की निगरानी भी करते हैं। इन्हें नाको की तरफ से फंडिग और संस्थागत समर्थन दिया जाता है।

एक डॉक्टर, एक काउंसलर, एक प्रोजेक्ट मैनेजर, एक परियोजना निदेशक और सामुहिक स्तर पर अन्य कर्मचारी इन शिक्षकों और कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहते हैं और काम में इनका सहयोग भी करते हैं। नाको के दिशानिर्देशों के अनुसार, इन्हें हर छह महीने में सभी यौनकर्मियों के लिए अनिवार्य एचआईवी जांच समेत, नियमित स्वास्थ्य जांच और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना होता है।

यौनकर्मी समुदाय के कार्यकर्ताओं और समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि आसनसोल जैसी जगहों सहित देश के कई रेड लाइट क्षेत्रों में 'लक्षित हस्तक्षेप' को रोक दिया गया है। जहां बड़ी संख्या में अस्थाई आबादी रहती है। उनके अनुसार, इससे एड्स के खिलाफ भारत की लड़ाई गंभीर रूप से प्रभावित हुई है और यौनकर्मियों व उनके ग्राहकों को विशेष रूप से कोविड-19 महामारी में एचआईवी और अन्य संक्रमणों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है।

दरबार महिला समन्वय समिति के प्रॉतिम रॉय ने गांव कनेक्शन को बताया, "आसनसोल के अलावा, पश्चिम बंगाल के कई अन्य हिस्सों जैसे इस्लामपुर, अलीपुरद्वार, पंजीपारा और सूरी में पिछले दो से तीन सालों से अलग-अलग समय के लिए यौनकर्मियों के लिए चलाई जा रही इस योजना पर रोक लगा दी गई है।"

रॉय ने कहा, "यौनकर्मियों की समय-समय पर कोई जांच नहीं की जाती है। ऐसे में यह पता लगा पाना बड़ा मुश्किल है कि कौन एचआईवी पॉजिटिव है और कौन नहीं। लॉकडाउन में, इनमें से कितने लोग तो अपने मूल स्थान पर लौट गए और वहां भी उन्होंने यौन कार्य किया। लेकिन वहां कंडोम उनकी पहुंच से बाहर है। ऐसा लगता है मानों एचआईवी संक्रमण और ट्रांसमिशन की संभावना को व्यापक रूप से खुला छोड़ दिया गया है।"

भारत के कई हिस्सों में 'लक्षित हस्तक्षेप' पर रोक

सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी 'लक्षित हस्तक्षेप' की इस पहल पर रोक लगा दी गई है।

ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स - एक ऐसा मंच है जो देश के 17 राज्यों के पांच लाख से ज्यादा यौनकर्मियों का प्रतिनिधित्व करता है। इस संस्था के कॉर्डिनेटर अमित कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "उदाहरण के तौर पर राजस्थान के अजमेर को ही ले लीजिए। हमारे आंकड़ों के अनुसार जिले में तकरीबन तीन हजार पांच सौ यौनकर्मी हैं और उनके ग्राहकों में अजमेर आने वाले विदेशी पर्यटक भी हैं। जिनका सालभर राज्य में आना जाना लगा रहता है।"

वह कहते है, "बिहार के पटना में चार हजार से अधिक यौनकर्मी हैं और यह एक महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र भी है। 'लक्षित हस्तक्षेप' योजना को अजमेर और पटना दोनों जगहों पर एक साल या उससे अधिक समय के लिए रोक लगा दी गई है। यहां कोई चिकित्सा शिविर या कंडोम वितरण नहीं हो रहा है जिससे यौनकर्मियों और उनके ग्राहकों को एडस जैसी बीमारियों के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।"

'लक्षित हस्तक्षेप' के कामकाज पर सार्वजनिक क्षेत्र में कोई आधिकारिक डेटा नहीं है। इस संबंध में नाको की वेबसाइट पर उपलब्ध अंतिम वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 2018-19 की है।

योजना के कामकाज को लेकर उठाए गए कई सवालों के साथ, इसे रोक देने के कारणों और उदाहरणों को लेकर नाको के अधिकारियों भवानी कुशवाहा, उप निदेशक, टीआई और शोबिनी राजन, उप महानिदेशक को ईमेल किया गया था। लेकिन कई बार याद दिलाने के बावजूद इन सवालों का जवाब नहीं दिया गया।

एचआईवी संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी

'लक्षित हस्तक्षेप' के कामकाज और एचआईवी की घटनाओं पर उनके प्रभाव पर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है जिस कारण यौनकर्मियों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और इसका समर्थन करने वाले समूहों को एचआईवी के मामले बढ़ने का डर सता रहा है। इसके पीछे को एक कारण महामारी भी है। कुछ मामलों में, ये आशंकाएं निराधार नहीं है इनके सबूत भी मौजूद हैं।

महाराष्ट्र के सांगली, सतारा और कोल्हापुर जिलों में यौनकर्मियों के एक मंच, संग्राम (संपदा ग्रामीण महिला संस्था) से जुड़ी मीना सेशु ने गांव कनेक्शन को बताया, " कई यौनकर्मी जिनकी कई सालों से जांच की रिपोर्ट निगेटिव आ रही थी। वह लंबे समय से सुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाती आ रहीं थी। लेकिन अब उनकी एचआईवी रिपोर्ट पाजेटिव आई है।"

सेशु आगे कहती हैं, "जब हमने उनसे बात की, तो पता चला कि कई यौनकर्मी कोविड महामारी के शुरुआती चरण में अपने घरों पर वापस लौट गईं थीं। वहां उन्होंने अपना काम जारी रखा, लेकिन कंडोम तक उनकी पहुंच नहीं थी।"

उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में यौनकर्मी कंडोम के इस्तेमाल पर जोर नहीं दे सकती हैं। यह एक बड़ी समस्या है। जबकि शहरी क्षेत्रों में असुरक्षित यौन संबंध के जोखिम के बारे में जागरूकता बहुत अधिक है।

सेशु के अनुसार, रेड लाइट एरिया में व्यक्तिगत आधार पर इलाज जैसी पहल के कारण एचआईवी के नए मामलों का पता चला जाता था। वह कहती हैं, "हम समय-समय पर परीक्षण करने, मामलों का पता लगाने और उन्हें अनिवार्य परामर्श और परीक्षण केंद्रों से जोड़ने में सक्षम थे।" कार्यकर्ता चेतावनी देते हुए कहती हैं, "योजना का रोकने का मतलब है, संक्रमण के उच्च जोखिम वाले इलाकों में काम कर रहे छोटे-छोटे प्रबंधन समूहों पर विराम लगा देना। यह एचआईवी / एड्स को रोकने के हमारे प्रयासों के लिए काफी नुकसानदायी साबित हो सकता है।"

सेशु ने जोर देकर कहा, "यौनकर्मियों को कुछ दिनों के लिए भी एसटीडी के लिए कंडोम, ल्यूब और डॉक्टर से परामर्श और दवाएं नहीं देना, उन्हें असुरक्षित बनाता है और उनकी जान को खतरे में डालता है।"

ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स से जुड़े अमित कुमार ने सार्वजनिक क्षेत्रों में इस योजना पर किसी भी तरह की जानकारी अपडेट न करने से होने वाली समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया।

कुमार पूछते हैं, " अगर कहूं कि मैं एक सेक्स वर्कर हूं या मेरे कई लोगों के साथ यौन संबंध हैं, और मुझे एचआईवी पॉजेटिव होने का डर है। ऐसे में मुझे किससे बात करनी चाहिए या मुझे परीक्षण केंद्रों और उपचार के बारे में जानकारी कहां से मिलेगी।" कुमार ने कहा कि इसके बावजूद भी, नाको इस योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं देता है।

कुमार ने कहते हैं, " योजना को रोक देने से यौन क्रिया बंद नहीं होती हैं। बल्कि ऐसे में एचआईवी संक्रमण और इसके फैलने की संभावना काफी बढ़ जाती है।" वह आगे कहते हैं, " हम एक ऐसे अंधेरे में जी रहें हैं, जहां नए मामलों की तलाश करना मुमकिन नहीं है। इससे एड्स के खिलाफ चलाई जा रही लड़ाई को एक बड़ा झटका लगेगा।"

यह लेख, पॉपुलेशन फर्स्ट के सहयोग से चलाई जा रही लाडली मीडिया फैलोशिप 2021 का एक हिस्सा है।

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अनुवाद : संघप्रिया मौर्या

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