उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव – "कोविड नियमों का पालन कराना किसी चुनौती से कम नहीं"

कोरोना के बढ़ते मामलों और मौतों के बीच उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के अंतिम चरण के तहत आज वोटिंग हो रही है। जबकि राज्य सरकार और उच्च न्यायालय एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे है कि भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में कोविड-19 के प्रोटोकॉल को लागू करना कितना संभव है? पढ़िए गाँव कनेक्शन की रिपोर्ट।

Ramji MishraRamji Mishra   29 April 2021 12:43 PM GMT

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शाहजहांपुर के कासरक गांव में स्थित एक प्राथमिक विद्यालय के प्रांगण में लगे पेड़ों पर बैठे पक्षी आज (29 अप्रैल) काफी शोर मचा रहे हैं। क्योंकि उनके नीचे स्कूल की कक्षाओं के बाहर लंबी लाइनें लगी हैं। अभी सुबह के 9 भी नहीं बजे हैं और लोग पहले से ही उत्तर प्रदेश में चल रहे ग्राम पंचायत चुनावों में वोट डालने के लिए पहुंच चुके हैं।

कोरोना की दूसरी लहर के बीच भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य यूपी में 15 अप्रैल से शुरू हुए पंचायत चुनाव के चौथे और अंतिम चरण की वोटिंग चल रही है। इस बार इन चुनावों ने काफी आलोचना झेली है। इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से मतदान के दौरान कोविड-19 के प्रोटोकॉल सुनिश्चित नहीं करने के लिए यूपी राज्य चुनाव आयोग की खिंचाई भी शामिल है।

शाहजहांपुर के खतौआ गांव के परमानंद पुरी ने कहा, "अधिकारियों द्वारा कोरोना संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए गए होंगे, लेकिन वो सिर्फ कागजों पर ही दिखे। हालांकि कुछ गांवों लोग इसे लेकर जागरूक दिखे।" उन्होंने आगे कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने शारीरिक दूरी का पालन करने को गंभीरती से नहीं लिया। वे इकट्ठा होंगे और चर्चा करेंगे, लेकिन चुनाव स्थगित किया जा सकता था।"

त्रिस्तरीय पंचायत के चौथे चरण के मतदान में लोगों की भीड़ दिखी, कोई भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए नहीं दिखा। फोटो: रामजी मिश्रा।

चुनाव अधिकारी भी मतदान केंद्रों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। शाहजहांपुर के एक निर्वाचन अधिकारी ने कहा, "पंचायत चुनाव कराने की चुनौतियां कभी इतनी बड़ी नहीं रहीं, जितनी इस साल हैं। पंचायत चुनावों में पूरी तरह से कोविड 19 प्रोटोकॉल लागू करना असंभव है और ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतियां और भी ज्यादा हैं।"

शालपुर नवदिया गाँव में भारी संख्या में लोग वोट देने के लिए उमड़े। उनमें 80 साल की रामदेवी भी शामिल थीं। उन्होंने कहा कि वह जानती हैं कि उन्होंने मुंह ढका था, लेकिन अन्य नियमों से वे अनजान थीं। मुंह और नाक पर दुपट्टा लपेटे हुए उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि मुझे अपना वोट डालना है, लेकिन इसके अलावा किसी ने मुझे और कुछ नहीं बताया।

शुरू हुआ आरोपों का दौर

विवाद और संघर्ष ने उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों को प्रभावित किया है। राज्य में चार चरण के पंचायत चुनाव 15 अप्रैल को शुरू हुए और मतों की गिनती और परिणामों की घोषणा 2 मई को होगी। पंचायत चुनाव के तीन चरण खत्म हो चुके हैं और चौथे चरण का मतदान आज 29 अप्रैल को शुरू हो रहा है।

दो दिन पहले, 27 अप्रैल को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी राज्य चुनाव आयोग को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें इस बात का कारण पूछा गया की कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन क्यों नहीं किया गया। इसके अलावा भी आरोप है कि पुलिस और चुनाव आयोग ने कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया।

अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह पंचायत चुनावों के चौथे चरण (आज चौथे चरण) में ऐसे सभी उपायों को तुरंत लागू करे, ताकि मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा सके। नहीं तो 27 अप्रैल के आदेश के मुताबिक चुनाव प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

तीसरे चरण के मतदान में भी लोग एक दूसरे के पास दिखे। फोटो: वीरेंद्र सिंह

इस बीच, 25 अप्रैल को राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय पर पंचायत चुनाव कराने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया। प्रेस को दिए गए बयान में राज्य सरकार ने कहा ,"हाई कोर्ट के आदेश पर पंचायत चुनाव कराने के निर्णय को योगी सरकार का निर्णय बताकर इसका गलत प्रचार किया गया।"

वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की राज्य स्तरीय शाखा के तहत लखीमपुर खीरी में संगठन के 1,500 से अधिक सदस्यों ने 2 मई को होने वाली मतगणना के लिए होने वाले अभ्यास सत्र का बहिष्कार करने की भी चेतावनी दी है। संघ का आरोप है कि अकेले लखीमपुर खीरी जिले के कम से कम 32 शिक्षकों की मौत पंचायत चुनावों में उनकी ड्यूटी के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण से हुई है।

26 अप्रैल को उत्तर प्रदेश राज्य चुनाव आयोग को लिखे एक पत्र में, राज्य-स्तरीय शिक्षक संघ ने पंचायत चुनावों की मतगणना स्थगित करने की अपील की है। राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की लखीमपुर हरिहर इकाई के प्रमुख संतोष मौर्य ने कहा, "अभी तक हमारी जानकारी में चुनाव ड्यूटी में लगे 32 शिक्षकों की मौत कोरोना की वजह से हुई है।"

चुनाव और कोविड प्रोटोकॉल

उच्च न्यायालय और राज्य सरकार के बीच दावों और आरोपों के बीच जमीनी हकीकत का सवाल कहीं खो जाता है। चुनावों के दौरान इन कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन क्या किया जाता है? उन्हें लागू करना कितना मुश्किल है? कितने लोग वास्तव में इसके बारे में जानते हैं और उनका पालन करने के लिए तैयार हैं?

कोविड-19 प्रोटोकॉल बिल्कुल स्पष्ट हैं कि क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं। आजमगढ़ जिले के सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी राकेश कुमार सिंह ने इन प्रोटोकॉल के बारे में विस्तार से बताया," चुनाव प्रचार अभियान में तीन से अधिक लोग इकट्ठा नहीं हो सकते हैं, वे रैली नहीं निकाल सकते और हर समय मास्क पहनना अनिवार्य है।" सिंह ने आगे बताया कि प्रोटोकॉल को मुख्य रूप से मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया। हम इससे अधिक नहीं कर सकते। उम्मीदवारों को व्यक्तिगत रूप से जानकारी देना संभव नहीं है।

इस बीच, जो लोग लोकतंत्र को बनाए रखने और एक सुचारु चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए मैदान में थे, उनके अनुभव काफी कठिन रहे हैं। क्योंकि उन्होंने भारी भीड़ में नियमों के पालन कराने की कोशिश की।

एक पुलिसकर्मी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "19 अप्रैल को चुनाव के दूसरे चरण के दौरान, बिसौली तहसील में लगभग 200 महिला मतदाताओं को नियंत्रित करने के लिए एक पुलिसकर्मी तैनात था।" उन्होंने आगे कहा, "चुनाव ड्यूटी के दौरान आप उनसे केवल शारीरिक दूरी बनाए रखने का अनुरोध कर सकते थे, जो बहुत तनावपूर्ण था। क्योंकि कई महिलाएं तर्क करती थीं, तो कई झगड़ा करने लगती थीं।"


शाहजहाँपुर जिले की मुख्य विकास अधिकारी प्रेरणा शर्मा ने कहा,"हमने विभिन्न राजनीतिक दलों को विस्तार से प्रोटोकॉल के बारे में समझाया। हमने उन्हें कम से कम दो गज की दूरी और डबल मास्क पहनने के बारे में भी बताया। साथ ही कहा कि अनुशासन और नियमों का पालन करना सुनिश्चित किया जाए।"

उत्तर प्रदेश राज्य चुनाव आयोग के अनुभाग अधिकारी जगदीश जायसवाल ने कहा, "हालांकि नियमों का पालन हो, यह सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और चुनाव अधिकारियों को तैनात किया गया। फिर भी यह एक चुनौतीपूर्ण काम है।"

उन्होंने आगे बताया, "जब वोटिंग स्लिप को इकट्ठा करना होता है तो सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं है और स्याही लगाते समय तो बिल्कुल भी नहीं। यहां एक ही इंक पैड और मार्कर है, जो सभी के लिए उपयोग किया जाता है।"

जगदीश जायसवाल ने यह भी कहा कि कोविड-19 प्रोटोकॉल सुनिश्चित करना जिला प्रशासन की जिम्मेदारी थी। यह पूछे जाने पर कि क्या पंचायत चुनाव स्थगित नहीं किए जा सकते हैं, उन्होंने कहा,"यह उच्च न्यायालय का निर्णय था कि चुनाव हों और हम उन निर्देशों का पालन कर रहे हैं।"

लेकिन, यह स्पष्ट हो रहा है कि प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए तैनात लोगों की संख्या अपर्याप्त है। उत्साहित भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है। शारीरिक दूरी बनाए रखने की उनसे की बार-बार की जा रही अपील उनके कानों पर पड़ना मुश्किल है।

इस बीच, तिलहर तहसील के कपसेरा में कासरक से लगभग 15 किलोमीटर दूर एक मोड़ पर कुछ लोग सीधे रूप से सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को तोड़ते दिखते हैं। कुछ पेड़ों के नीचे तो दुकानों के चौखटों पर खड़े हैं। वहीं कुछ अपनी गाड़ियों के पास भी दिखे। इनमें से कई तो बिना मास्क के भी दिखे।

चुनाव आयोग से लखनऊ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे पास प्रोटोकॉल के बारे में सख्त निर्देश हैं, लेकिन उन्हें लागू करना काफी अलग बात है। जनता सहयोग नहीं करती, भीड़ भारी पड़ती है, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हम अपना काम करने से इनकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह हमारी नौकरी है। हमने हाल ही में कोरोना से एक अपने को खो दिया।"

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