"अगर मंत्रालय इसलिए बनाया गया है कि देश में सहकारिता को बढ़ावा दिया जाएगा तो ये स्वागत योग्य कदम है।"

नए बनाए गए सहकारिता मंत्रालय की रुपरेखा फिलहाल जारी नहीं हुई है लेकिन सरकार ने कहा कि यह सहकारिता मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा। गांव कनेक्शन ने देश के अलग-अलग जानकारों से इस बारे में बात की, पढ़िए वो क्या कहते हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   7 July 2021 1:51 PM GMT

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अगर मंत्रालय इसलिए बनाया गया है कि देश में सहकारिता को बढ़ावा दिया जाएगा तो ये स्वागत योग्य कदम है।

7 जुलाई को नरेंद्र मोदी कैबिनेट का हुआ विस्तार।

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में सिर्फ मंत्रालय में ही फेरबदल नहीं हुआ है, एक नया मंत्रालय भी बनाया गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने 'सहकार से समृद्धि' के नारे के साथ सहकारिता मंत्रालय का गठन किया है।

"अगर मंत्रालय इसलिए बनाया गया है कि देश में सहाकारिता को बढ़ावा दिया जाएगा तो ये स्वागत योग्य कदम है।" देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं। वो लगातार कॉपरेटिव खेती की वकालत करते रहे हैं।

शर्मा फोन पर आगे कहते हैं, "देश में जिस तरह से निजीकरण का दौर चल रहा है, ऐसे में अगर प्रधानमंत्री कॉपरेटिव की बात करते हैं, एक मंत्रालय बनाते हैं तो अच्छा लेकिन ये तभी लोगों के हित का है तब कॉपरेटिव की मूल भावना के तहत काम हो।"

"अमूल के कॉपरेटिव ढांचे को आगे बढ़ाए जाने की जरुरत है। साथ ही ये भी ध्यान रखना होगा कि डॉ वर्गीज कुरियन क्या चाहते थे। किस बात पर उन्होंने असंतोष जताया था।" वो आगे जोड़ते हैं।

अपनी बात को बढ़ाते हुए देविंदर शर्मा कहते हैं, "मैं ये भी कहता रहा हूं कि भारत में खेती में जो तीन कानून आने चाहिए थे उसमें ये होना चाहिए। अमूल का दूध में जो संगठनानत्मक ढांचा और कार्यप्रणाली है उसे सब्जी, दहलन आदि किसानों में आजमाया जाना चाहिए। अब अगर प्रधानमंत्री सहकारिता को बढ़ावा दे रहे हैं तो उम्मीद करता हूं इस दिशा में भी कुछ काम होना चाहिए।"

देविंदर शर्मा, खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ

मंत्रिमण्डल सचिवालय के बयान में कहा गया कि "यह सहकारिता मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा। सहकारी समितियों को जमीनी स्तर तक पहुंचने वाले एक सच्चे जनभागीदारी आधारित आंदोलन को मजबूत बनाने में भी सहायता प्रदान करेगा।"

दुनिया के सबसे बड़े कॉपरेटिव 'इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) के प्रबंध निदेशक और सीईओ डॉ.एस अवस्थी ने कहा, "हमारे देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करते हुए सहकारिता मंत्रालय बनाना एक ऐतिहासिक कदम है। प्रधानमंत्री को बधाई।"

अमूल के प्रबंध निदेशक आर.एस सोढ़ी ने सहकारिता मंत्रालय बनाए जाने के भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने ट्विट पर लिखा कि एक क्रांतिकारी कदम है। सहकारी समितियों के जरिए छोटे किसान, श्रमिक और व्यापारी बड़े उद्मम से जुड़कर लाभ कमा सकेंगे।

अमूल गुजरात के 36 लाख किसान परिवारों की अपनी संस्था है, जिसकी नींव करीब 75 साल पहले रखी गई थी। अमूल के एमडी सोढ़ी ने कुछ समय पहले गांव कनेक्शन को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, "आज देश के 18500 गांवों में सहकारी मंडलियां (दुग्ध समितियां) हैं। करीब 80 डेरी प्लांट हैं। 50 हजार करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर है। अमूल आज देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी है। जिसे छोटे-छोटे लोगों ने मिलकर कर बनाई है।"

देश के 10 राज्यों के करीब 3 लाख किसानों के साथ काम कर रहे कृषि आधारित स्टार्टअप देहात के संस्थापक श्याम सुंदर सिंह के मुताबिक नए मंत्रालय में क्या होगा और क्या नहीं, इसे पब्लिक नहीं किया गया है लेकिन अगर ये इसमें किसान उत्पादक संगठन शामिल किए जाते हैं तो किसानों का काफी भला हो सकता है। वो कहते हैं, " देश में कॉपरेटिव का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन पिछले 15 वर्षों में सरकार सहकारी समितियों के मॉडल से एक स्टेप उठकर किसान उत्पादक संगठनों (FPO) का गठन किया। एफपीओ, कॉपरेटिव और प्राइवेट कंपनी के बीच की कड़ी हैं। एफपीओ को लेकर ये सरकार काफी गंभीर है, 10 हजार एफपीओ की बातें हो रही है। ऐसे में अगर मंत्रालय के अधीन इन्हें लाया जाता है तो एफपीओ मूवमेंट और किसानों को फायदा मिलेगा।"

खेती किसानी की बात करें तो भारत इफको और अमूल के रूप में किसानों की दो दिग्गज सहकारी संस्थाएं हैं। कृषि जानकार, कृषि अर्थशास्त्री और किसानों के हिमायती भारत में लंबे समय से कॉपरेटिव खेती की मांग करते रहे हैं। सहकारिता मंत्रालय इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि देश में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के कई संगठनों ने मोर्चा खोल रहा है। उनका आरोप है कि ये किसानों के कम और कॉर्पोरेट के हक में ज्यादा हैं।

"देश में लड़ाई चल रही है कॉरपोरेट और कॉपरेटिव की। हमारे देश को कॉपरेटिव की जरुरत है।"

सहकारिता के हिमायती किसान नेता और मध्य प्रदेश में किसान कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष केदार शंकर सिरोही कहते हैं, "देश में लड़ाई चल रही है कॉरपोरेट और कॉपरेटिव की। हमारे देश को कॉपरेटिव की जरुरत है। कॉर्पोरेट की सरकार ने कॉपरेटिव बनाया है तो इसके मायने समझने पड़ेंगे।"

वो कहते हैं, "हमारे देश को कॉपरेटिव की बहुत जरुर है। ये मकसद तब पूरा होगा जब ये मंत्रालय सहकारिता की भावना और सिद्धांत पर चलेगा। हमें नजर रखनी होगी कि कहीं ये कॉपरेटिव आगे चलकर कार्पोरेट के न हो जाएं।

सिरोही के मुताबिक सहकारिता की मूल भावना कहती है कि किसानों का किसानों, किसानों के लिए। यानि किसान लोग आप में मिलकर काम करें और जो उसका लाभ हो वो उन्हीं किसानों के बीच बंट जाए।

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