आपकी थाली में मौजूद चावल और रोटी में कम हो रहे हैं पोषक तत्व
शरीर में जिंक और आयरन जैसे पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए बढ़िया खाना खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि आपकी थाली में मौजूद चावल और रोटी में अब पहले की तरह पोषक तत्व नहीं रह गए हैं।
Divendra Singh 22 Jun 2021 12:14 PM GMT
गेहूं और चावल हर किसी के खाने का एक जरूरी हिस्सा होता है, कहीं पर चावल की खपत ज्यादा है तो कहीं पर गेहूं की, लेकिन क्या आपको पता है कि आपकी थाली में मौजूद चावल और गेहूं के आटे से बनी रोटी में अब जरूरी पोषक तत्व ही नहीं बचे हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल से जुड़े कई संस्थानों के वैज्ञानिकों के शोध में यह बात सामने आयी है। अपने शोध में कृषि वैज्ञानिकों ने पाया है कि चावल व गेहूं में आवश्यक पोषक तत्वों का घनत्व अब उतना नहीं है, जितना कि 50 साल पहले खेती से मिलने वाले चावल व गेहूं में होता था। शोधकर्ताओं ने पाया है कि भारत में उपजाए जाने वाले चावल और गेहूं में जिंक और आयरन की कमी हो गई है।
वैज्ञानिकों की टीम ने राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक, उड़ीसा और भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान में स्थित जीन बैंक से चावल की 16 और गेहूं की 18 किस्मों पर शोध करने बाद यह पता लगाया है।
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इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सोवन देबनाथ गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "यह रिसर्च हमने दो सालों तक किया है, 2018-19 और 2019-20 में हमने ये रिसर्च की है। रिसर्च के लिए हमने धान के बीज राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक से लिए थे और गेहूं के बीज भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान से इकट्ठे किए और फिर उसे उगाया। क्योंकि यह जो सारी किस्में बहुत पुरानी हैं। बीज को इकट्ठा करने के बाद हमारी कोशिश थी कि हम एक्सपेरीमेंट के लिए सारी किस्मों को खेत में लगाएं, लेकिन ये सारी किस्में इतनी पुरानी है कि ज्यादा बीज मिल ही नहीं पाए, इसलिए जितने बीज मिले उन्हें हमने गमलों में लगाना पड़ा।"
सोवन देबनाथ, बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट शोधार्थी और आईसीएआर के वैज्ञानिक हैं।
सभी बीजों को बुवाई के लिए सात किलो मिट्टी की क्षमता वाले मिट्टी के गमलों का चयन किया गया। इन्हें बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च फार्म पर रखा गया है।
सोवन आगे बताते हैं, "बीजों की बुवाई के लिए हमने ऐसी मिट्टी का चयन किया था, जिसमें पोषक तत्वों की कमी न रहे, इसलिए हमने यूनिवर्सिटी की मिट्टी में सारे बीज की बुवाई की थी। दो साल तक बुवाई और हार्वेस्ट करने के बाद हमने विश्लेषण किया तो पाया कि पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय गेहूं और धान में जिंक और आयरन की काफी कमी आ गई है।"
शोधकर्ताओं ने पाया कि 1960 के दशक में जारी चावल की किस्मों के अनाज में जिंक और आयरन का घनत्व 27.1 मिलीग्राम / किलोग्राम और 59.8 मिलीग्राम / किलोग्राम था। यह मात्रा वर्ष 2000 के दशक में घटकर क्रमशः 20.6 मिलीग्राम/किलोग्राम और 43.1 मिलीग्राम/किलोग्राम हो गई।
जबकि 1960 के दशक में गेहूं की किस्मों में जिंक और आयरन का घनत्व 33.3 मिलीग्राम / किलोग्राम और 57.6 मिलीग्राम / किलोग्राम था। जबकि, वर्ष 2010 में जारी की गई गेहूं की किस्मों में जिंक एवं आयरन की मात्रा घटकर क्रमशः 23.5 मिलीग्राम / किलोग्राम और 46.5 मिलीग्राम / किलोग्राम रह गई।
शोधकर्ताओं ने अलग-अलग साल में विकसित किस्मों में जिंक और आयरन की मात्रा की तुलना की, जैसे कि 1960 में विकसित किस्म की तुलना 1970 में विकसित किस्म से। इस तरह 50 साल में विकसित किस्मों की तुलना करके जिंक और आयरन की सही मात्रा का पता लगाया।
जिंक और आयरन की कमी के बारे में सोवन देबनाथ समझाते हैं, "गेहूं और धान में इस तरह जिंक और आयरन की कमी के कई कारण हो सकते हैं। क्योंकि यह जो जिंक और आयरन हैं, एक-दूसरे टकराते हैं, क्योंकि यह दोनों एक ही जरिए से पौधों में जाते हैं, तो इसमें यह होता है कि अगर किसी एक की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो दूसरे को जाने नहीं देता, इसमें एक मात्रा ज्यादा है तो दूसरे को जाने नहीं देगा इसमें एक तो यह कि इनकी जो मात्रा है उनमें तो कमी आयी ही है, लेकिन इन दोनों में जो टकराव है वो भी बढ़ गया है, इस समय आप खेत में कितना भी जिंक डाल दें कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।"
ऐसे में जब आयरन और जिंक की कमी से लाखों लोग प्रभावित हैं, इसकी कमी को पूरा करने के लिए सरकार जिंक और आयरन की गोलियां उपलब्ध कराने की पहल भी की है, लेकिन चावल और गेहूं में जरूरी पोषक तत्वों की कमी एक गंभीर समस्या है। बायोफोर्टिफिकेशन जैसे अन्य विकल्पों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जिसके द्वारा सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य फसलों का उत्पादन किया जा सकता है।
खाद्यान्नों में इस तरह की कमी के कई संभावित कारण हो सकते हैं, इनमें से एक 'डाईल्यूशन इफेक्ट' है, जो अनाज की उच्च उपज की प्रतिक्रिया में पोषक तत्वों के घनत्व में कमी के कारण होता है। इसका मतलब यह है कि उपज में वृद्धि दर की भरपाई पौधों द्वारा पोषक तत्व लेने की दर से नहीं होती है।
दो साल के शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि पिछले 50 वर्षों में जिंक और आयरन की भारी गिरावट आयी है, जबकि उपज में कोई कमी नहीं आयी है। किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए जिंक और आयरन की ज्यादा मात्रा का उपयोग करते है, जिससे उपज तो बढ़ी लेकिन पोषण तत्व की कमी हो गई है। साथ ही 1990 के बाद विकसित गेहूं और धान की नई किस्में जिंक और आयरन की कमी पूरा करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए इनपर ध्यान देने की जरूरत है।
शोधकर्ताओं की टीम में सोवन देबनाथ के अलावा बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ता बिस्वपति मंडल, सुष्मिता साहा, दिब्येंदु सरकार, कौशिक बातबयल, सिद्धू मुर्मू, और तुफलेउद्दीन बिस्वास; ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन व्हींट ऐंड बार्ली इम्प्रूवमेंट के धीमान मुखर्जी, और राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र, कटक के भास्कर चंद्र पात्रा शामिल हैं।
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