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बिहार: शिक्षकों के तीन लाख से ज्यादा पद खाली, 3,000 से ज्यादा प्राथमिक स्कूलों में मात्र एक टीचर, फिर क्यों नहीं हो रही शिक्षकों की भर्ती?

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बिहार में 94 हजार शिक्षकों की काउंसिलिंग और नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर हजारों अभ्यर्थी लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से आवाज उठा रहे हैं। यह हाल तब है जब सरकार खुद मान रही है कि प्रदेश में तीन लाख से ज्यादा अध्यापकों की जगह रिक्त है और स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। राज्य में 3,000 से ज्यादा ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां शिक्षकों की संख्या मात्र एक है। 

“दो लाख रुपए खर्च करके बीएड ट्रेनिंग और शिक्षक पात्रता परीक्षा पास की थी। इसके बाद अलग-अलग ब्लॉक में आवेदन करने में भी करीब 50 हजार रुपये खर्च हो गए। दो साल साल हो गए हैं, पता नहीं कब नियुक्ति मिलेगी। अब तो मां-बाप भी कहते हैं कि सरकारी टीचर की नियुक्ति की उम्मीद छोड़ दो, बाहर जाकर कुछ करो।” आकाश नाराजगी व्यक्त करते हुए कहते हैं।

बिहार की राजधानी पटना से लगभग 150 किलोमीटर दूर जमुई जिला के ब्लॉक चकाई के गांव सरोन में रहने वाले 27 वर्षीय आकाश बरनवाल उन 94 हजार अभ्यर्थियों में से एक हैं जो दो साल से बिहार के प्राइमरी स्कूलों में टीचर बनने का इंतजार कर रहे हैं।

वर्ष 2019 में बिहार सरकार ने बिहार के प्राइमरी स्कूलों में छठे चरण के तहत 94 हजार प्रारंभिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी किया।

प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए संबंधित राज्यों में होने वाली टीईटी परीक्षा या सीटीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) की परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य किया गया। 45 प्रतिशत अंकों के साथ माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण, स्नातक (आर्ट/साइंस) या बीएड (बैचलर इन एजुकेशन) कर चुके लोग इस परीक्षा की पात्रता रखते हैं। जब सरकार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए वेकेंसी निकालती है, तो टीईटी की परीक्षा ली जाती है।

ये सब पात्रता रखने वाले हजारों अभ्यर्थियों ने नियोजन प्रक्रिया को पास किया। इन अभ्यर्थियों की मेरिट लिस्ट भी जारी हो चुकी है, लेकिन अब सरकार काउंसलिंग कर इन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दे रही है। जिलों की मेरिट लिस्ट जनवरी-फरवरी 2021 से जारी होने लगी थी, जो अब लगभग पूरी हो चुकी है, बावजूद इसके अभ्यर्थी नियुक्ति के इंतजार में हैं।

बिहार की राजधानी पटना में रहने वाली विनीता कहती हैं कि इस नौकरी के इंतजार में हमें आर्थिक और सामाजिक, दोनों दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। वे कहती हैं, “28 साल की उम्र हो गई है मेरी। तीन साल से घर वाले शादी करना चाहते हैं, लेकिन इंतजार कर रही हूं कि एक बार नौकरी लग जाए तब शादी करूं। शादी करने के लिए लाखों रुपये का खर्च आता है। पड़ोसी ताना देते हैं कि तुम्हें तो 2018 में नौकरी मिल रही थी, अब कुछ नहीं होगा…शादी कर लो।”

विनीता ने 2015 में बीएड किया और फिर 2017 में सीटीईटी पास किया। वे नियुक्ति को लेकर हुए कई आंदोलनों में भाग ले चुकी हैं। 2019 से नियुक्ति का इंतजार कर रहीं विनीता निराश होते हुए कहती हैं, “सरकार चाहती ही नहीं है कि हमारी नियुक्ति हो। ठीक है इस समय कोरोना का समय है, लेकिन ऑनलाइन प्रक्रिया तो शुरू कर दे सरकार कम से कम।”

टीईटी (TET- Teacher Eligibility Test) परीक्षा का एक सामान्य नाम है और इसमें दो विभाजन हैं। सेंट्रल टीईटी (CTET-Central Teacher Eligibility Test) और स्टेट टीईटी (State Teacher Eligibility Test)। सेंट्रल टीईटी का उपयोग केंद्रीय बोर्ड स्कूलों आदि के लिए किया जाता है। राज्य टीईटी भर्ती प्रक्रिया है जो देश के सभी राज्यों में आयोजित की जाती है, वैसे ही बिहार में शिक्षक की नौकरी के लिए BTET (बिहार शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करना अनिवार्य होता है।  

सरल शब्दों में पूरा मामला समझिये, आखिर पेंच फंसा कहा है

नियुक्ति को लेकर लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से आंदोलन कर रहे हैं और बिहार प्रारंभिक शिक्षक नियोजन ट्विटर हैंडल के एडमिन पटना के रहने वाले सौरव कुमार हमें बताते हैं कि आखिर नियुक्ति में पेंच कहाँ फंसा है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर शुरू से पूरी कहानी बताते हुए कहते हैं, “2019 में सरकार नोटिफिकेशन जारी करती है। आपको यह भी बता दें कि ये नियुक्ति 2014 में होनी थी। 2019 में हमने इसके लिए लंबा आंदोलन किया था, तब जाकर वैकेंसी आई। हम लगातार कहते रहे हैं कि पूरा प्रोसेस ऑनलाइन कराया जाए, लेकिन सरकार ने सब ऑफलाइन कराने का फैसला लिया। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग अभ्यर्थियों को 4 फीसदी आरक्षण दिया जाए। इस फैसले को भी 6 महीने हो गए हैं। सरकार भी इस पर तैयार है, फिर काउंसलिंग क्यों नहीं हो रही?”

सौरव ने आगे बताया, “सरकार ने नियुक्ति को लेकर कई लूप छोड़े। 23 नवंबर 2019 को आवेदन की प्रक्रिया ख़त्म हो गई थी। इसके बाद जनवरी 2020 में पटना हाई कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन) कोर्स करने वाले छात्रों को भी इस नियुक्ति में मौका दिया जाए। सरकार 6 महीने तक इस पर विचार करती रही, जबकि कोर्ट ने इसके लिए एक महीने का ही समय दिया था। 6 महीने बाद प्रदेश सरकार ने कहा कि ठीक है, हम NIOS के छात्रों को मौका देंगे। जून 2020 में इन अभ्यर्थियों ने आवेदन किया।”

अपनी बात जारी रखते हुए वे आगे कहते हैं, “इसके बाद सरकार ने कहा कि NIOS के उन्हीं कैंडिडेट को इसमें शामिल किया जाएगा जो 23 नवंबर 2020 तक नियुक्ति की शर्तों को पूरा करते हैं। अब जो दिसंबर 2020 तक शर्तों को पूरा कर रहे थे, वे कोर्ट चले गए। वे कोर्ट से स्टे आर्डर ले आए, क्योंकि सरकार ने कहा कि इसे लेकर हमारी स्टडी नहीं है। कोर्ट का फैसला इनके खिलाफ आया। एक और पेंच फंसा डीएलएड/बीएड अभ्यर्थियों को लेकर।”

इसके अलावा सौरव ने कहा, “2017 तक पांचवीं तक की क्लास में टीचर के लिए डीएलएड पास छात्र ही अप्लाई कर सकते थे। 2018 में सरकार ने नियम बदला और कहा कि वन टू फाइव तक के लिए बीएड के छात्रों को भी मौका मिलना चाहिए। 2019 में जब सरकार ने वैकेंसी निकाली तो नोटिफिकेशन में उन्होंने बीएड अभ्यर्थियों को वन टू फाइव के लिए शामिल किया। इसका डीएलएड अभ्यर्थी लगातार विरोध करते रहे। इसके बाद दिसंबर 2019 में सरकार ने डीएलएड के अभ्यर्थियों को वन टू फाइव के लिए प्राथमिकता दे दी।”

अभ्यर्थी लगातार नियुक्ति को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। 

“इसके बाद बीएड वाले अभ्यर्थी कोर्ट चले गए जहां फैसला आया कि सभी को सामान मौक़ा दिया जाए। एक साल तो पूरा खप गया इन्हीं सब में और जब सब फाइनल हो गया है, मेरिट लिस्ट तक जारी हो गयी है, बावजूद इसके सरकार काउंसलिंग नहीं करा रही है। यह बात सच है कि इस समय कोरोना है, ये प्रोसेस तो ऑनलाइन भी हो सकता है।” नाराजगी व्यक्त करते हुए सौरव ने अपनी बात खत्म की।

बिहार में शिक्षकों की भारी कमी

बिहार में 2015-2016 के बाद से शिक्षकों की कोई नियुक्ति नहीं हुई है, जबकि इसके बाद से स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार बढ़ी है। वर्ष 2015-2016 में बिहार शिक्षा परियोजना की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें विधिवत बताया गया प्रदेश में कितने टीचर्स हैं, कितने स्कूल हैं और उनकी स्थिति क्या है। सर्व शिक्षा अभियान और यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार में कुल 41,762 प्राथमिक और 26,523 मध्य विद्यालय है।

बिहार में 3276 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जहां बच्चों को पढ़ाने को जिम्मेदारी मात्र एक 1 शिक्षक पर है। 12,507 ऐसे विद्यालय हैं जहाँ 2 शिक्षक ही हैं और 10,595 विद्यालय ऐसे हैं जहाँ 3 शिक्षक, 7170 विद्यालय जहां 4 शिक्षक, 4366 विद्यालय जहां 5 शिक्षक और 3874 विद्यालय ऐसे हैं जहां 5 से अधिक शिक्षक नियुक्त हैं।

इन आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में मात्र 42 हजार प्राथमिक विद्यालय में से 3874 विद्यालय ही ऐसे हैं जहां पर्याप्त शिक्षक हैं, ऐसा कहा जा सकता है।

बिहार के मध्य विद्यालयों की संख्या भी बहुत अच्छी नहीं कही। राज्य में 3462 ऐसे मध्य विद्यालय हैं जहां 5 से कम शिक्षक हैं। 2831 मध्य विद्यालयों में 5 शिक्षक हैं जबकि 3507 विद्यालय ऐसे हैं जहां 6 शिक्षक, 3567 विद्यालयों में 7, 3397 विद्यालयों में 8 और 12,406 विद्यालयों में 8 से अधिक शिक्षक हैं।

बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में 2007-08 में कुल बच्चों का नामांकन 14,629,233 था जो 2015-16 में बढ़कर 16,170,088 हो गया।

बिहार में प्राथमिक शिक्षकों के तीन लाख से ज्यादा पद खाली

बिहार में प्राथमिक शिक्षकों के 3 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। बिहार समेत देश के अन्य राज्यों में प्राथमिक शिक्षकों की भारी कमी है। पंजाब के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने इसकी जानकारी मांगी तो पता चला कि पूरे भारत में प्राथमिक शिक्षकों के 10 लाख से अधिक पद खाली हैं। इनमें से अकेले बिहार में 3 लाख पद ख़ाली हैं। बिहार में 42,606 प्राथमिक और 28,638 माध्यमिक विद्यालय हैं। प्राथमिक शिक्षकों की आखिरी नियुक्ति साल 2015 में की गई थी।

इसके करीब 4 साल बाद दोबारा नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन ये प्रक्रिया एक बार फिर अधर में लटकी है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते बिहार में शिक्षा पर भी असर पड़ रहा है। पिछले साल फरवरी में पटना हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर चिंता जाहिर की थी। कोर्ट ने कहा था, “बिहार की शिक्षा व्यवस्था युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रही है और इसमें तभी सुधार आएगा जब सभी सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू करेंगे।”

बिहार सरकार ने खुद विधानसभा में पिछले साल बताया था कि प्रदेश में शिक्षकों (1 से 12 तक) के तीन लाख से ज्यादा पद रिक्त हैं।

बिहार सरकार के अनुसार प्रदेश में शिक्षकों की 3 लाख ज्यादा स्थान रिक्त हैं। 

बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर लगातार आवाज उठा रहे संगठन युवा हल्ला बोल के संयोजक अनुपम सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, “सरकार बार-बार कह रही है कि मामला कोर्ट में है, लेकिन सच तो यह है कि सरकार की इच्छा शक्ति ही नहीं है। सरकार अगर अपनी तरफ से थोड़ी भी पहल करे तो मामला भी सुलझ जाता और 94 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हो गई होती। शिक्षक ही नहीं, बिहार में दूसरे विभागों में भी हजारों पद खाली हैं और यह बात सिर्फ 94 हजार टीचरों की नहीं है, इससे जुड़े लाखों परिवारों की है। प्रदेश में मात्र प्राथमिक शिक्षकों के ही तीन लाख से ज्यादा पद खाली हैं।”

“ऐसे समय में जब कोरोना काल में सबकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है, अगर ये नियुक्तियां हो गई होती तो कम से कम इनके परिवार की कुछ तो मदद होती। सरकार को इस पर जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए। अभ्यर्थी बहुत परेशान हैं।” अनुपम आगे कहते हैं।

शिक्षक भर्ती को लेकर नीतीश सरकार की ढिलाई को देखते हुए ‘युवा हल्ला बोल’ के नेशनल कॉर्डिनेटर गोविंद मिश्रा ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री किसी और राजनीतिक बॉस के इशारे पर बहाली पूरी नहीं कर रहे तो वो भी स्पष्ट कर दें। इससे आपके लिए भी सही रहेगा और हमारे लिए भी। आपका भी मुख्यमंत्री का मुखौटा हट जाएगा और हम भी सही व्यक्ति के समक्ष अपनी मांग रख सकेंगे।

नोट- अभ्यर्थियों के इस मामलों को लेकर गांव कनेक्शन ने बिहार के प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के निदेशक रंजीत कुमार से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। उनके कार्यालय भी फोन किया गए लेकिन फोन नहीं उठा। शिक्षा मंत्री विजय चौधरी के कार्यालय में फोन करने पर उधर से पूछा गया कि किस विषय पर बात करनी है, सवाल सुनने के बाद बताया गया कि मंत्री जी ऑफिस में नहीं हैं और उन्होंने मोबाइल नंबर देने से मना कर दिया।

(यह खबर पहली बार 12 मई को प्रकशित की गयी थी, 24 मई को इसमें कुछ नए तथ्य और रिपोर्ट शामिल किये गए)

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