किसान आंदोलन से जुड़ी सबसे बड़ी खबर, आंदोलन खत्म, इन शर्तों पर बनी बात

गाँव कनेक्शन | Dec 09, 2021, 09:04 IST
किसान आंदोलन से जुड़ी इस वक्त की सबसे बड़ी खबर है। 378 दिन बाद किसान आंदोलन आखिरकार खत्म हो गया है। सिंघु बॉर्डर पर हुई बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन वापस लेने का ऐलान किया।
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नई दिल्ली। एक साल 14 दिन की लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार किसान आंदोलन खत्म हो गया है। सिंघु बॉर्डर पर हुई निर्णायक बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए आंदोलन वापसी का ऐलान किया। सिंघु बॉर्डर पर बृहस्पतिवार की सुबह से किसानों ने तंबू-टेंट हटाने शुरु कर दिए थे। लेकिन संयुक्त मोर्चा ने कहा 11 दिसंबर को सभी किसान मोर्चों पर जीत का जश्न मनाया जाएगा, उसके बाद वापसी होगी।

तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी यूपी, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के किसान 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए थे। सरकार के तीन कृषि कानूनों की वापसी, एमएसपी के मुद्दे पर समिति बनाने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजे, आंदोलन के दौरान जिन किसानों पर पुलिस केस हुए हैं उस संबंध में कई दौर की वार्ता के बाद किसानों की वापसी की बात सहमित बनी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि किसान दिल्ली से 11 दिसंबर को वापस करेंगे। क्योंकि 10 दिसंबर को सीडीएस विपिन रावत का अंतिम संस्कार किया जाएगा, इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा ने अपनी जीत का जश्न 11 दिसंबर को मनाने का ऐलान किया है।

संयुक्त किसान मोर्चा की 40 सदस्यीय समिति के युवा किसान नेता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा, "हम अपनी जीत का श्रेय उन लोगों को देते हैं, जिन्होंने शहादत दी है। जो हमारे पास जो कल ड्राफ्ट आया था, वो आज लिखित रुप में कृषि मंत्रालय की तरफ से आया, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने हमारी सभी मांगें मान ली है। इसलिए हमने किसान आंदोलन वापस लेन का फैसला लिया है।"

उन्होंने कहा कि लेकिन सरकार ये न समझे की आंदोलन वापसी के बाद सरकार कोई ढुलमुल रवैया अपना लेगी। 15 जनवरी को दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा की समीक्षा बैठक होगी जिसमें हम देखेंगे कि सरकार के वादों पर क्या हो रहा है।"

वहीं किसान नेता इंद्रजीत सिंह ने कहा, "यह ऐतिहासिक जीत है,जीत के फूल हम शहीदों के चरणों में चढा रहे हैं। एक साल के आंदोलन में एक नई ताकत हिंदुस्तान में पैदा हुई है, जिसका नाम है एसकेएम, जिसे हम मजबूत करेंगे। जब हम आए थे तो लाठियां बरस रही थी, लेकिन जब वापस जाएंगे फूल बरसेंगे। सभी नाकों, टोल प्लाजा और गांवों में जश्न मनाएंगे।"

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15 दिसंबर को पंजाब में जहां कहीं भी धरना लगे हैं उन्हें हटा लिया जाएगा। पंजाब के कई जिलों में टोल प्लाजा, रिलायंस के पंप और कई मॉल पर किसानों के धरने चल रहे हैं। पंजाब के किसान नेताओं ने उन्हें हटाने का फैसला किया है।

सरकार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा को दिए गए पत्र की मुख्य बातें

1) एमएसपी पर प्रधानमंत्री ने स्वयं और बाद में कृषि मंत्री ने कमेटी बनाने की घोषणा की है, जिस कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि और कृषि वैज्ञानिक सम्मिलित होंगे। यह स्पष्ट किया जाता है कि किसान प्रतिनिधि में SKM के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। कमेटी का एक मैनडेट यह होगा कि देश के किसानों को एमएसपी मिलना किस तरह से सुनिश्चित किया जाए। सरकार वार्ता के दौरान पहले ही आश्वासन दे चुकी है कि देश में एमएसपी पर खरीदी की अभी की स्थिति को जारी रखा जाएगा।

2) जहां तक किसानों को आंदोलन के वक्त के केसों का सवाल है, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्णतया सहमति दी है कि तत्काल प्रभाव से आंदोलन संबंधित सभी केसेों को वापस लिया जाएगा।

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2A) किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार के संबंधित विभाग और एजेंसियों और दिल्ली सहित सभी संघ शासित क्षेत्र में आंदोलनकारियों और समर्थनों पर बनाए गए आंदोलन संबंधित सभी केस भी तत्काल प्रभाव से वापस लेने की सहमति है। भारत सरकार अन्य राज्यों से अपील करेगी कि इस किसान आंदोलन से संबंधित केसों को अन्य राज्य भी वापस लेने की कार्रवाई करें।

3) मुआवजे का जहां तक सवाल है, इसके लिए भी हरियाणा और यूपी सरकार ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है।

उपर्युक्त दोनों विषयों (क्रमांक 2 एवं 3) के संबंध में पंजाब सरकार ने भी सार्वजनिक घोषणा की है।

4) बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स/संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।

5) जहां तक पराली के मुद्दे का सवाल है, भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 एवं 15 में क्रिमिनल लाइबिलिटी से किसान को मुक्ति दी है। उपरोक्त प्रस्ताव से लंबित पांचों मांगों का समाधान हो सकता है। अब किसान आंदोलन को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रहता है।

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