इतिहास की कई कहानियाँ सुनाते हैं केरल के पहले हेरिटेज गाँव कल्पथी के 'अग्रहारम'

Pankaja Srinivasan | Jun 07, 2023, 10:01 IST
पलक्कड़ ज़िले के कल्पथी में कई मंदिरों के आसपास बना हर एक पारंपरिक घर अपने आप में इतिहास की कई गाथा समेटे हुए है।
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कल्पथी (पलक्कड़), केरल। नीला नदी को देखकर ही ठँडक महसूस होती है। शाँत, शीशे जैसा पानी, किनारों पर झाड़ियाँ और कई सारे पेड़ रविवार की सुबह उमस भरी गर्मी से कुछ राहत देते हैं। हमारे पीछे से वरदराजा पेरुमल मँदिर से घंटियों की आवाज़ आती है।

मैं लेखिका और पत्रकार लता अनंतरामन के साथ पलक्कड़ ज़िले के कलपथी में टहलने गई थी। सड़क के दोनों ओर लाइन से सुंदर घर बने हुए हैं, जिनके मुख्य दरवाज़ों से अंदर की लाल फर्श और पीछे के दरवाज़े से पीछे के छोटे बगीचों को भी देखा जा सकता है।

पलक्कड़ शहर में और उसके आसपास 18 अग्रहारम हैं और पूरे केरल में विशेष रूप से तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर और वायनाड में कई और भी हैं। ये ऐसी बस्तियाँ हैं जो तंजौर (तंजावुर, तमिलनाडु) में कावेरी बेसिन के परिवारों के यहाँ प्रवासित होने और 15वीं शताब्दी में कहीं नीला नदी के तट पर बसने के समय आई थीं।

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वे अपने साथ अपनी जीवन शैली, रीति-रिवाज और परंपराएँ भी लेकर आए और अग्रहारम में एक-दूसरे के करीब रहे, और यहाँ पर देवी देवताओं के मँदिर का भी निर्माण किया, इसलिए यहाँ विष्णु, शिव, गणेश के कई मँदिर देखे जा सकते हैं।

कल्पथी की रहने वाली केएन लक्ष्मीनारायणन ने अपनी किताब कावेरी से नीला तक में यहाँ के इतिहास के बारे में लिखा है। इसमें वह मँदिर के आसपास के घरों की तुलना "माला पर गुँथे हुए फूलों" से करती हैं, जहाँ मँदिर लटकन का प्रतिनिधित्व करता है!

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हम जिन अग्रहारम में चलते हैं, वे हैं गोविंदराजपुरम, न्यू कलपथी और ओल्ड कलपथी। हम एक घर के बाहर लगे फूलों को देखने के लिए रुकते हैं, तभी महिला बाहर निकलती है और मुस्कुराती है। हम थोड़ा रुकते हैं, फिर लक्ष्मी विलास में कॉफी पीने के लिए आगे बढ़ते हैं, जो निश्चित रूप से 100 साल से अधिक पुराना है।

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अभी 9 ही बजे हैं लेकिन नाश्ता ख़त्म होने को था, हमारी अच्छी किस्मत रही होगी हमें खाने को मिल जाता है, उसे पाकर हम खुश हो जाते हैं। "दोपहर का भोजन तैयार है, यदि आप चाहते हैं," आनंदन मामा पूछते हैं। लेकिन हम कॉफी पीकर बाहर आ जाते हैं।

हम सुंदर सड़क से होते हुए पापड़ा कारा थिरुवु से गुजरते हैं। इसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि पापड़ बनाने वाले कभी यहाँ रहा करते थे। वह पता कितना मज़ेदार होगा! वहाँ एक कलचेट्टी (पत्थर के बर्तन) वाली गली हुआ करती थी और यहाँ तक कि एक पूसनिकाई थिरावु (कद्दू बेचने वाले वहाँ तेज कारोबार करते थे)। इनमें से अधिकांश सड़कों का नाम बदल दिया गया है।

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2008 में, कल्पथी को एक हेरिटेज एरिया घोषित किया गया था।

कल्पथी का निकटतम रेलवे स्टेशन पलक्कड़ है और निकटतम हवाई अड्डा तमिलनाडु में सीमा पार कोयम्बटूर में है। हर साल 14 नवंबर से 16 नवंबर के बीच आयोजित होने वाले 10 दिवसीय रथ उत्सव के दौरान कल्पथी उत्साह से भर जाता है। जब कल्पथी के चार मंदिरों के रथों को गाँव की सड़कों से खींचा जाता है।

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