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क्या है लाइवस्टॉक बिल 2023, जिसका विरोध कर रहे हैं पशु प्रेमी

Divendra Singh | Jun 20, 2023, 11:31 IST
पशुओं के आयात-निर्यात पर खुली छूट देते लाइवस्टॉक बिल का पूरे देश में विरोध किया जा रहा है, विशेषज्ञों की माने तो इसके कई तरह के दुष्परिणाम हो सकते हैं।
#Livestock
पिछले दो-दिन दिनों से सोशल मीडिया पर हैशटैग #SayNoToLivestockBill2023 ट‍्रेंड चलाया जा रहा है, आखिर ये लाइवस्टॉक बिल 2023 क्या है, जिसके विरोध में हज़ारों लोग एकजुट गए हैं।

पशुधन विधेयक ड‍्राफ्ट को पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर 7 जून को अपलोड किया था, धीरे-धीरे जैसे इसकी जानकारी पशु प्रेमियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पहुँची हैं, इसका विरोध शुरू हो गया है।

केंद्रीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य हरियाणा के गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी के कर्ताधर्ता मोहन जी अहलूवालिया भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। अभी तक उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय और दूसरे मंत्रालयों को इस बिल के विरोध में 3467 मेल भेजे हैं। मोहन जी अहलूवालिया गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "लाइवस्टॉक अगर भारत में कमोडिटी में शामिल हो गया तो इसे भी किराने के दुकान के किसी सामान की तरह बेचा या खरीदा जाएगा। अभी तक इसके लिए किसी मेले को लगाने के लिए परमिशन की ज़रूरत होती है। लेकिन इस बिल के आ जाने से उसकी भी ज़रूरत नहीं होगी।"

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विधेयक ड्राफ्ट के अनुसार, नए प्रस्तावित कानून का उद्देश्य "पशुधन और पशुधन उत्पादों के आयात के नियमन के साथ-साथ पशुधन और पशुधन उत्पादों के निर्यात के प्रचार और विकास के लिए उपाय" तैयार करना है।

पशु अधिकारों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) की सीईओ भारती रामचंद्रन पशुधन आयात और निर्यात विधेयक 2023 पर कहती हैं, "प्रस्तावित पशुधन और पशुधन उत्पाद [आयात और निर्यात] विधेयक, से भारत में जिंदा पशुओं के निर्यात की परमिशन दी जा रही है, जिसके परिणाम बेजुबान जानवरों के साथ ही इंसानों के लिए भी घातक हो सकती है। "

ड्राफ्ट बिल में पशुधन के लिए "कमोडिटी" शब्द का प्रयोग किया गया है। प्रस्तावित विधेयक में इसके दायरे में "सभी घोड़े (गधे, घोड़े, खच्चर सहित सभी जीवित घोड़े), गोजातीय (मवेशी, भैंस, बैल बोवाइन में आने वाले किसी भी जानवर सहित सभी गोवंशीय जानवर) शामिल हैं। कैप्राइन, ओवाइन, स्वाइन, केनाइन, फेलिन, एवियन, प्रयोगशाला जानवर, जलीय जानवर और कोई भी अन्य जानवर जो केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है, सिवाय उनके जो किसी अन्य अधिनियम में निषिद्ध हैं।

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"जहाँ कई देश पशुओं के आयात-निर्यात पर रोक लगा रहे हैं, वहीं भारत में कुत्ते और बिल्ली को भी इसमें शामिल करने से नए कानूनी और अवैध तरीकों के द्वार खुल जाते हैं, "भारती रामचंद्रन ने आगे कहा।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन के अनुसार यह विशेष रूप से चिंताजनक है। हर जानवर का जीवन समान रूप से महत्वपूर्ण है - हालांकि, आयात और निर्यात की अनुमति देने वाले जीवित जानवरों की सूची में कैनाइन और फेलिन जैसी प्रजातियों को जोड़ने से जानवरों की यातना, व्यापार और मृत्यु के लिए कई कानूनी और अवैध रास्ते खुल जाएँगे।

पशुधन और पशुधन उत्पादों के सभी आयात, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बताया गया है, देश में जमीन, समुद्र या हवाई मार्ग या दूसरे किसी रास्ते से प्रवेश करने की इजाज़त दी जाएगी।

मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव ने एक ट्वीट में कहा, "मैं बहुत दुखी हूँ, मैं कुत्ते-बिल्लियों के लिए बुरा महसूस कर रहा हूँ कि उन्हें लाइवस्टॉक में शामिल कर उन्हें निर्यात कर सकते हैं, उन्हें मार सकते हैं। इस तरह का बिल कैसे पास हो सकता है। हम सबको मिलकर इसे रोकना होगा।"

ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर #SAYNOTOLIVESTOCKBILL2023 हैशटैग के साथ इसी तरह के पोस्ट किए जा रहे हैं।

लंबी यात्रा के दौरान पशुओं की मौत

जानवर भयानक पीड़ा में हफ्तों और महीनों बिताते हैं, ट्रकों और जहाजों में भरकर कम जगह में ज्यादा जानवरों को ले जाने के लिए उन्हें भरकर ले जाया जाता है। इन लंबी यात्राओं में सैकड़ों जानवर संक्रमण, बीमारियों का इलाज नहीं होता है, बीमारी और खाना-पानी की कमी से इनकी मौत तक हो जाती है।

सितंबर 2022 में, गल्फ लाइवस्टॉक के एक जहाज के डूबने के बाद, न्यूजीलैंड ने समुद्र के द्वारा जानवरों के लाइव निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसमें लगभग 6,000 गायों और 41 लोगों की मौत हो गई थी। इस साल अप्रैल में, ब्राजील की एक ट्रायल कोर्ट ने देश के सभी बंदरगाहों से जीवित मवेशियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुनाया। ब्राजील की ट्रायल कोर्ट में संघीय न्यायाधीश जाल्मा गोम्स ने फैसले में कहा, "जानवर कोई सामान नहीं हैं। वे संवेदनशील जीव हैं, वो भी भूख, प्यास, दर्द, ठंड, पीड़ा, भय महसूस करते हैं।

परिवहन के दौरान जानवरों की मौत के कई बहुप्रचारित मामले हुए हैं, उनमें से सबसे प्रमुख क्वीन हिंद, रोमानिया से सऊदी अरब के लिए 14,000 भेड़ों को ले जाने वाला एक निर्यात जहाज के डूबने से भेड़ों की मौत हो गई।

दिसंबर 2020 में, कोविड 19 महामारी के दौरान एल्बिक नामक जहाज पर 1,800 बैल स्पेन से तुर्की को निर्यात किए गए थे। महामारी के कारण किसी भी बंदरगाह पर जानवरों को उतारने में जहाज की अक्षमता के कारण इस यात्रा में 11 दिन लगने थे, जिसमें तीन महीने से अधिक का समय लगा। जानवर भूखे रहे; करीब 200 बैलों की मौत हो गई और उनके शव को समुद्र में फेंक दिया गया। जहाज़ स्पेन लौट गया जहाँ बीमार और बीमार घोषित किए गए जानवरों को बेच दिया गया, सभी को मार दिया गया। ऐसे सैकड़ों मामले हैं।

अगली महामारी की ओर अग्रसर

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि पशुओं का लाइव परिवहन "बीमारी फैलाने के लिए आदर्श रूप से अनुकूल है"। साल-दर-साल, जूनोटिक रोगों के कारण लाखों पक्षी और जानवर मर जाते हैं। साल 2020 में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, करोड़ों लोग इस बीमारी से संक्रमित हुए और लाखों लोगों की मौत भी हो गई। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ था, जब जूनोटिक बीमारियों से इंसान प्रभावित हुए हों।

खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार इंसानों में कई तरह की जुनोटिक बीमारियाँ होती हैं। मांस की खपत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। एएफओ के एक सर्वे के अनुसार, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के 39% लोगों के खाने में जंगली जानवरों के मांस की खपत बढ़ी है। जोकि जुनोटिक बीमारियों के प्रमुख वाहक होते हैं।

पूरे विश्व की तरह ही भारत में भी जुनोटिक बीमारियों के संक्रमण की घटनाएँ बढ़ रहीं हैं। लगभग 816 ऐसी जूनोटिक बीमारियाँ हैं, जो इंसानों को प्रभावित करती हैं। ये बीमारियाँ पशु-पक्षियों से इंसानों में आसानी से प्रसारित हो जाती हैं। इनमें से 538 बीमारियाँ बैक्टीरिया से, 317 कवक से, 208 वायरस से, 287 हेल्मिन्थस से और 57 प्रोटोजोआ के जरिए पशुओं-पक्षियों से इंसानों में फैलती हैं। इनमें से कई लंबी दूरी तय करने और दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। इनमें रेबीज, ब्रूसेलोसिस, टॉक्सोप्लाज़मोसिज़, जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई), प्लेग, निपाह, जैसी कई बीमारियाँ हैं। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्लेग से देश के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 12 लाख लोगों की मौत हुई है। हर साल लगभग 18 लाख लोगों को एंटीरेबीज का इंजेक्शन लगता है और लगभग 20 हजार लोगों की मौत रेबीज से हो जाती है।

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