जंगलों की खुशबू, नदियों की लय और पहाड़ों की साँस: ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ का सफ़र

Divendra Singh | Nov 22, 2025, 15:24 IST
बारह जनजातियाँ, चवालीस कलाकार, एक सपना-आदिवासी संगीत को उसके सही सम्मान तक पहुँचाना। ‘रिदम ऑफ़ द अर्थ’ एक आंदोलन है, एक यात्रा है, एक बयान है।
rhythm of the earth tribal music band (2)
कोई छत्तीसगढ़ के किसी गुमनाम से गाँव से आया है। कोई मेघालय की पहाड़ियों में घने बादलों से ढके एक छोटे से बस्ती से। कोई गुजरात के किसी सूखे, पथरीले लेकिन बेहद जीवंत आदिवासी गाँव से।

प्रदेश अलग, भाषाएँ अलग, रिवाज़ अलग लेकिन एक ऐसी भाषा है जो इनके बीच कभी दीवार नहीं बनने देती-संगीत की भाषा।

यही तो है रिदम ऑफ़ द अर्थ-एक ऐसा बैंड जो सीमाएँ नहीं, दिलों को जोड़ता है। एक ऐसा मंच, जहाँ धुनों में मिट्टी की ख़ुशबू है और सुरों में सदियों पुरानी कहानियाँ।

इस साल, टाटा स्टील फाउंडेशन के वार्षिक कार्यक्रम संवाद, जो देशभर के आदिवासी समुदायों को एक साझा मंच देता है, में इस बैंड के 12 जनजातियों के 44 युवा कलाकार इकट्ठा हुए। और इसी मंच पर उन्होंने लद्दाख के प्रसिद्ध बैंड Da Shugs के साथ मिलकर अपना दूसरा एल्बम जारी किया-एक ऐसा एल्बम, जिसमें भारतीय जंगलों, पहाड़ों, नदियों और आदिवासी आत्मा की स्पंदनाओं को सुना जा सकता है।

rhythm of the earth tribal music band (3)
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संगीत जो नस्ल, भाषा और भूगोल से ऊपर है, उराँव, हो, मुंडा, टो, कार्बी, खासी, मिसिंग, बोडो, गारो… कितनी ही जनजातियों की विरासतें इस बैंड में एक साथ सांस लेती हैं। किसी के हाथ में पारंपरिक नगाड़ा है, किसी के कंधे पर बांसुरी, कोई मंडर बजाता है, कोई ढोल।

रिदम ऑफ़ द अर्थ की सदस्य अंकिता टोप्पो अपने अनुभव को शब्दों में इस तरह बयां करती हैं, “रिदम्स की शुरुआत कोई एक साल में नहीं हुई। यह एक सोच थी—एक सपना कि संगीत लोगों को जोड़ सकता है। आदिवासी संगीत हमारी विरासत है, पर वरासत तभी जिंदा रहती है जब उसे आगे ले जाया जाए और आज के समय में उसे आगे ले जाने के लिए क्रिएटिविटी, इनोवेशन और एक-दूसरे का साथ-सबकी ज़रूरत है।”

अंकिता मुस्कुराती हैं और आगे जोड़ती हैं, "संगीत में एक जादू है। वो लोगों को साथ लाता है, एक-दूसरे की भाषा समझने लायक बना देता है। हमने अपने-अपने समुदायों के गीत ही नहीं, एक-दूसरे के गीत भी सीखे। यह यात्रा स्टेज तक पहुंची, लेकिन पहचान स्टेज भर नहीं होती—इसलिए हमने सीखा कि हम सिर्फ़ परफ़ॉर्मर नहीं, बल्कि संगीत बनाने वाले भी बनें। यही हमारी पहचान है-रिदम्स ऑफ़ द अर्थ।”



24 से ज़्यादा गीत: जंगलों, नदियों, पहाड़ों और संस्कृति की आवाज़

अब तक रिदम ऑफ़ द अर्थ के 24 से अधिक गीत रिलीज हो चुके हैं। हर गीत एक अलग भाषा में, एक अलग कथा के साथ। इन गीतों में- जंगल की सरसराहट है, नदी की गहराई है, पहाड़ की शांति है और आदिवासी संस्कृति की जड़ों में बसी दृढ़ता है।

गीत लिखे गए हैं युवा हाथों से, धुनें बनी हैं युवाओं की कल्पना से और सुर निकले हैं उन्हीं युवाओं के भीतर बसे अपने-अपने समुदायों से। यही इस बैंड को खास बनाता है- यह संग्रह नहीं, जीवंत संस्कृति है।

Da Shugs: लद्दाख से आया वह साथ जिसने संगीत को नए आयाम दिए

लद्दाख का बैंड Da Shugs न सिर्फ़ एक पार्टनर है, बल्कि एक मार्गदर्शक भी। उन्होंने इन युवाओं को सिखाया कि संगीत सिर्फ़ ताल और सुर नहीं होता- यह जीवन की समझ है, एक करुणा है, एक संवाद है। Da Shugs ने सिखाया कि “संगीत तब तक अधूरा है जब तक वह आत्मा को न छू ले।” और यही सीख रिदम ऑफ़ द अर्थ के हर गीत में महसूस होती है।

संवाद: जहाँ कहानी शुरू नहीं होती, बल्कि आगे बढ़ती है

टाटा स्टील फाउंडेशन के सीईओ सौरव रॉय बताते हैं, "रिदम्स ऑफ़ द अर्थ, आदिवासी संगीत और वाद्यों की सामूहिक स्मृतियों का एक दस्तावेज़ है। हमने हमेशा देखा कि आदिवासी संगीत मुख्यतः परफ़ॉर्मेंस पर आधारित होता है। लेकिन संगीत केवल स्टेज नहीं—यह सोच, शब्द, सुर और कहानी का संगम है। हम चाहते थे कि युवा सिर्फ़ कलाकार न हों-वे रचनाकार भी बनें। रिदम्स की अवधारणा इसी प्रयास से जन्मी।”

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उनके शब्दों से साफ़ झलकता है कि यह बैंड सिर्फ़ एक प्रोजेक्ट नहीं-यह पीढ़ियों को जोड़ने वाला एक पुल है।

गाँव से बड़े मंच तक का भावनात्मक सफर

उराँव समुदाय से आने वाली मानती तिग्गा, जो रांची की हैं, रिदम ऑफ़ द अर्थ की सबसे चमकती आवाज़ों में से एक हैं।

वह बताती हैं, " “मैं पहली बार 2022 में संवाद आई थी। तब मुझे रिदम्स के बारे में कुछ पता नहीं था। बाद में मैं ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम में गई और वहाँ समझ आया कि अपनी भाषा, अपने गीतों को पहचान मिलना कितना ज़रूरी है। मुझे हमेशा गाँव के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाना पसंद था, पर कभी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा मंच मिलेगा।”

rhythm of the earth tribal music band
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वह रुककर हौले से हँसती हैं, "पहली बार स्टेज पर गई तो दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि लगा आवाज़ बाहर सुनाई दे रही होगी। डर भी लगा… लेकिन जैसे ही गाने की शुरुआत हुई, लगा कि मेरी मिट्टी मेरे साथ खड़ी है। उस दिन डर हमेशा के लिए चला गया।”

उनकी आँखों में चमक है, "अब जब भी गाती हूँ, लगता है मैं सिर्फ़ अपने लिए नहीं, अपनी पूरी जनजाति के लिए गा रही हूँ।”

रिदम ऑफ़ द अर्थ: सिर्फ़ संगीत नहीं, एक आंदोलन

रिदम ऑफ़ द अर्थ के गीतों में सिर्फ़ ताल नहीं, इतिहास की प्रतिध्वनि है। उनकी धुनों में जीवन की कड़वाहट भी है और उम्मीद की मिठास भी।
ये बैंड- संगीत को जीवित रखता है, संस्कृति को आगे बढ़ाता है और युवाओं की पहचान को नई उड़ान देता है।

इस बैंड में शामिल हर युवा अपने समुदाय की कहानी लेकर आता है और जब ये सभी एक साथ गाते हैं, तो यह सिर्फ़ संगीत नहीं, धरती की धड़कन लगता है।

जैसे जंगल सांस ले रहा हो, जैसे नदी बह रही हो, जैसे पहाड़ गुनगुना रहे हों।

रिदम ऑफ़ द अर्थ बताता है कि संगीत किसी एक जनजाति का नहीं-यह सबकी साझा मिट्टी से जन्मा है। यह बैंड सिर्फ़ गा नहीं रहा, यह पहचान लिख रहा है। यह सिर्फ़ ताल नहीं बना रहा, यह एकता बुन रहा है। और हर बार जब यह बैंड मंच पर आता है, तो ऐसा लगता है-धरती अपने ही बच्चों की आवाज़ में गा रही है।

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