'बर्डमैन ऑफ चेन्नई', जो अपनी पूरी कमाई पक्षियों के खाने पर खर्च कर देते हैं

Divendra SinghDivendra Singh   19 Nov 2019 6:58 AM GMT

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रोयापेट्टे, चेन्नई(तमिलनाडू)। जानवरों और इंसानों की दोस्ती तो आपने बहुत देखी होगी, ऐसी ही एक दोस्ती आज हम आपको दिखने जा रहे हैं। चेन्नई में रहने वाले जोसेफ सेकर वैसे तो कैमरा मेकैनिक हैं, लेकिन लोग उन्हें 'बर्डमैन ऑफ चेन्नई' के नाम से भी जानते हैं।

तमिलनाडू के सबसे व्यस्त शहर चेन्नई के रोयापेट्टे मुहल्ले में जोसेफ सेकर कैमरा मैकेनिक का काम करते हैं, लेकिन हर दिन सुबह-शाम हजारों की संख्या में तोते, कबूतर जैसे हजारों पक्षी उनकी छत पर आ जाते हैं। जहां पर वो उन्हें चावल खिलाते हैं। पिछले 28 साल से पक्षियों को खिलाने वाले सेकर अपने काम की शुरूआत के बारे में कहते हैं, "मैं 27 साल पहले इस किराए के घर में आया था, जब से हम यहां पर आए तभी से हम यहां पर चावल और पानी रख देते थे। पहले कई गौरैया, कौवे और कबूतर आकर खाते थे, लेकिन 2014 में सुनामी के बाद तोते आने लगे।"


वो आगे बताते हैं, "शुरू में पांच-दस तोते आते थे, जल्द ही एक साल के अंदर, 1,000 से अधिक तोते आने लगे। और संख्या लगातार बढ़ती ही रही। अब तो किसी भी मौसम में कम से कम 300 तोते तो यहां आते ही हैं।बारिश में तो 4000, 5000, 6000 तक तोते आते हैं। साइक्लोन के समय तो ये संख्या और बढ़ जाती है। ये तो गर्मी से नफरत करते हैं, सर्दी और बरसात के मौसम में संख्या बढ़ जाती है।"

हर सेकर इन पक्षियों को 60 किलो तक चावल खिला देते हैं, साइक्लोन के समय तो 75 किलो तक चावल लग जाता है, जबकि गर्मियों में 35 किलो में ही काम चल जाता है।

"अब हम उन्हें दिन में दो बार खिलाते हैं, सुबह छह से सात के बीच शाम को, फ़ीड समय जलवायु के अनुसार बदलता रहता है। आमतौर पर वे 3:45 से 6 बजे के बीच यहां आते हैं। बारिश के दिनों में, यह दो या तीन बजे से शुरू होता है और लगभग छह बजे खत्म हो जाता है, "उन्होंने आगे बताया।


लेकिन इस सब के बीच सेकर की जिंदगी में बहुत सी परेशानियां भी हैं, किराए के घर से मकान मालिक अब उनपर घर छोड़ने का दबाव बना रहा है। वो बताते हैं, " यह एक किराये का घर है, और मेरे घर के मालिक भी संपत्ति का निपटान करना चाहते हैं। मेरे पास फंड नहीं है। मुझे फंड की तलाश है। मैं अपने पिता की जमीन और शायद मेरे सभी कैमरों को बेचने की योजना बना रहा हूं, तब कोई समस्या नहीं होगी। राज्य या केंद्र सरकार मदद करे तो अच्छा रहेगा।"

वो आगे कहते हैं, "मैं कैमरा रिपेयरिंग से कमाता हूं, इसी कमाई से इन पक्षियों को खिलाता हूं। एक दिन में लगभग 2000-2500 रुपए इसमें खर्च हो जाते हैं। मुझे लोगों से एक हजार तक की मदद मिल जाती है। लोग मुझे एक हजार रुपए का चावल दे देते हैं, जिससे मेरा बोझ कम हो जाए। लेकिन मैं एक वन-आर्मी की तरह हूं। मुझे चावल खरीदना है, चावल रखना है, जगह साफ करनी है। रोजाना यह एक रूटीन काम है। इसकी वजह से मेरा कारोबार भी प्रभावित हुआ। मैं अपने बिजनेस को दोपहर तीन बजे बंद कर देता हूं। कैमरा सर्विसिंग का काम मैं सुबह दस-साढे दस बजे शुरू करता हूं और तीन बजे बंद कर देता हूं। उसके बाद मेरी तोतों की सेवा शुरू होती है। सब ठीक है, कोई दिक्कत नहीं है।"


सेकर को अभी सरकार से मदद की उम्मी है, वो कहते हैं, "इन कैमरों को राज्य या केंद्र सरकार कोई भी ले सकता है। जहां तक कैमरों का सवाल है, यह मेरे लिए संग्रहालय है, लेकिन तोतों के लिए यह वह जगह है जहां वो रहते हैं। कोई भी इसे एक संग्रहालय के रूप में बना सकता है, मैं सभी से यही निवेदन करता हूं। नागालैंड सरकार ने मुझे वहां दस दिन रहने के लिए बुलाया है। अभी तक मैं जा नहीं पाया हूं। मैं लगातार इसे टाल रहा हूं।"

    

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