13 साल की लड़की, 38 साल का दुल्हा और शादी के लिए एक लाख रुपये

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में पुलिस और जिला प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई कर बाल विवाह को रोका। लेकिन गैर लाभकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने चेताया कि कोविड महामारी के कारण ऐसी घटनाएं अभी और बढ़ेंगी।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   8 July 2021 12:04 PM GMT

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मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)। दो जुलाई को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला प्रशासन को एक गुमनाम फोन कॉल के जरिए गांव में बाल विवाह के बारे में जानकारी मिली। फोन करने वाले ने जिलाधिकारी प्रवीण कुमार को सूचना दी कि जिले के लालगंज क्षेत्र के एक गांव में एक नाबालिग लड़की की शादी की जा रही है।

बिना समय गंवाए जिला प्रोबेशन अधिकारी शक्ति त्रिपाठी, बाल संरक्षण अधिकारी रमेश पूजा मौर्य, शैलेन्द्र सिंह और राजलक्ष्मी यादव के नेतृत्व में अधिकारियों की टीम लालगंज पुलिस के साथ मौके पर पहुंची। पुलिस ने दुल्हे भानु प्रसाद शुक्ला समेत उसके छह साथियों को गिरफ्तार कर लिया। भानु प्रसाद शुक्ला की उम्र लगभग 38 या 40 के बीच है, जबकि लड़की की उम्र महज 12 से 13 साल की है। लड़की का संबंध कोल जनजाति से है।

पुलिस पूछताछ में 'दुल्हे' ने कबूल किया कि उसने शादी करने के लिए 13 वर्षीय लड़की के परिवार वालों को एक लाख रुपये दिए हैं। इससे यह मानव तस्करी का मामला भी बन जाता है।

मिर्जापुर के जिला प्रोबेशन अधिकारी शक्ति त्रिपाठी ने गांव कनेक्शन को बताया, "जब हम गांव पहुंचे तो पता चला कि लड़की आठवीं कक्षा की छात्रा थी। लड़की को तो ये भी नहीं पता था कि उसकी शादी किसके साथ हो रही है और वह शादी के बाद कहां जाएगी।"

कोरोना महामारी में देश भर में बाल विवाह के मामले बढ़े हैं। फोटो: पिक्साबे

आगे की जांच में पता चला कि 38 वर्षीय व्यक्ति और उसके पुरुष साथी भारत-नेपाल सीमा के पास से आए थे। त्रिपाठी ने बताया, "उनके साथ एक भी महिला नहीं थी। ग्रामीणों के मुताबिक लड़की आदिवासी कोल समुदाय से थी और लड़का शुक्ला यानि ऊंची जाति का था।" उन्होंने कहा, "हम अपराधियों को दंड दिलाने के लिए पोस्को सहित सख्त कानूनों का इस्तेमाल करेंगे।"

महामारी के इस दौर में बाल विवाह और मानव तस्करी का यह एकमात्र मामला नहीं है। इस क्षेत्र में काम करने वाले कई संगठन और कार्यकर्ता महामारी के कारण भारत में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी के बारे में चेतावनी देते रहे हैं। परिवारों के पास रोजगार नहीं है और लड़कियां शिक्षा व्यवस्था से बाहर हो गई है (ऑनलाइन कक्षाओं के लिए जरूरी इंटरनेट और स्मार्टफोन न मिल पाने के कारण)। इसीलिए समय से पहले किशोर लड़कियों की शादी की जा रही है। बाल तस्करी के मामले भी बढ़े हैं।

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में मानव तस्करी और यौन शोषण के खिलाफ काम कर रहे गोरानबोस ग्राम बिकास केन्द्र (जीजीबीके) की कार्यक्रम समन्वयक सुभाश्री रप्तन ने गांव कनेक्शन को बताया, "लॉकडाउन और महामारी के समय में बाल विवाह और तस्करी के बढ़ते मामले निश्चित रूप से एक गंभीर चिंता का विषय है।"

रप्तन ने कहा, "हाशिये पर आ चुके इन समुदायों में बाल विवाह रोक तो दिया जाता है। लेकिन हमारी व्यवस्था और निगरानी तंत्र इतना कमजोर है कि अधिकारियों के वहां से जाते ही बच्चों की शादी करा दी जाती है।"

महामारी, बाल विवाह और बाल तस्करी

जिस दिन दो जुलाई को मिर्जापुर जिला प्रशासन को सूचना दी गई, ठीक उसी दिन वहां से लगभग 115 किलोमीटर दूर सोनभद्र जिले के ओबरा थाने में भी एक गुमनाम फोन आया। फोन करने वाले ने पुलिस को सूचना दी कि उसके अधिकार क्षेत्र के एक गांव में बाल विवाह होने वाला है।

प्रभारी इंस्पेक्टर अभय सिंह के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम गांव पहुंची और वहां एक नाबालिग लड़की और उससे उम्र में काफी बड़े एक व्यक्ति की शादी को रुकवाया। पुलिस ने दूल्हे संजय बैगा, उसके पिता छोटेलाल बैगा को गिरफ्तार कर लिया। दोनों जेल में हैं। लड़की के माता-पिता को सलाह दी गई है कि वे अपनी बेटी की शादी तब तक न करें जब तक वह कानूनन शादी की उम्र की ना हो जाए।

भारत सरकार के बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929 के अनुसार, विवाह के समय लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष होनी चाहिए। इसके बावजूद देश में बाल विवाह के मामले नहीं रुके, खासकर निम्न आय वर्ग के परिवारों में। महामारी में यही वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।

पिछले सितंबर में गांव कनेक्शन ने पश्चिम बंगाल में बाल विवाह पर एक ग्राउंड रिपोर्ट की थी, जिसमें बताया गया कि कोविड-19 महामारी के चलते बाल विवाह तेजी से बढ़े हैं। मार्च 2020 से अगस्त 2020 के बीच राज्य के कूचबिहार जिले में बाल विवाह के कम से कम 119 मामले दर्ज किए गए।

परिवारों के पास रोजगार नहीं है और लड़कियां शिक्षा व्यवस्था से बाहर हो गई है। इसीलिए समय से पहले किशोर लड़कियों की शादी की जा रही है। बाल तस्करी के मामले भी बढ़े हैं। फोटो: पिक्साबे

आदिवासी समुदाय खासकर दूरदराज के गांव मानव तस्करी का ज्यादा खतरा होता है। यह किसी से छिपा नहीं है कि इन इलाकों के बच्चों को अक्सर झूठी शादी के जाल में फंसाकर राजस्थान, नेपाल, हरियाणा पंजाब आदि भेज दिया जाता है। बिचौलिए इन क्षेत्रों में लोगों की गरीबी का फायदा उठाते है। वे बेबस माता-पिता को शादी का पूरा खर्च उठाने की पेशकश करते हैं और उन्हें एक या दो लाख रुपये देकर लड़की को शादी कर वहां से ले जाते हैं। और फिर उन लड़कियों से जिंदगी भर बंधुआ मजदूरी कराई जाती है और उनका यौन शोषण किया जाता है।

सोनभद्र जिले के प्रोबेशन अधिकारी अमरेंद्र पोतस्यायन ने गांव कनेक्शन को बताया, "मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच सोनभद्र जिले में 12 बाल विवाह रोके गए।" उन्होंने बताया कि इससे एक साल पहले (2019- 20) पांच बाल विवाह रोके गए थे। पोतस्यायन कहते हैं, "मामलों में वृद्धि चिंताजनक है महामारी के कारण बाल विवाह की घटनाएं बढ़ी है लेकिन हम इस कुप्रथा को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।"

सोनभद्र जिले के विपरीत मिर्जापुर में बाल विवाह के मामले बहुत कम सामने आए हैं। मिर्जापुर की बाल संरक्षण अधिकारी पूजा मौर्य ने गांव कनेक्शन को बताया, "मार्च 2019 से मार्च 2020 तक हमने एक बाल विवाह को रोका था। मार्च 2020 से इस साल मार्च तक एक भी मामला सामने नहीं आया है। अब सिर्फ दो जुलाई वाला बाल विवाह का मामला सामने आया है जिसे हमने रोक दिया।"

बाल कल्याण समिति, लखनऊ की सदस्य संगीता शर्मा के अनुसार, जब ऐसे मामलों में छोटे बच्चे और पैसा शामिल होता है तो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोस्को) अधिनियम लागू होता है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि यह (दो जुलाई को मिर्जापुर में बाल विवाह के लिए एक लाख रुपए दिया जाना) स्पष्ट रूप से बाल तस्करी का मामला है।

रप्तन ने इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए ग्राम स्तरीय बाल संरक्षण समिति, ब्लॉक स्तरीय बाल संरक्षण समितियों और एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आइसीपीएस) की भूमिका को सक्रिय और मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, "मानव तस्करी रोकथाम देखभाल और पुनर्वास विधेयक 2021, मददगार हो सकता है अगर यह एक व्यापक विधेयक हो, जो जबरन शादी, बाल विवाह आदि सहित तस्करी के विभिन्न रूपों के बारे में बात करे।" केंद्र ने हाल ही में इस बिल के मसौदे के लिए सुझाव मांगे हैं।

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अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

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