साल 2013 में आयी आपदा से अब तक नहीं उबर पाए केदार घाटी के कई गाँव

Robin Singh ChauhanRobin Singh Chauhan   17 Oct 2019 8:23 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

रोबिन सिंह, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग(उत्तराखंड)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ धाम का तीन बार दौरा कर चुके हैं, धाम में पुनर्निर्माण कार्य किये जा रहे हैं, लेकिन केदार घाटी के कई गाँवों में मुश्किलें 2013 की आपदा के बाद भी कम नहीं हुई हैं।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्तमुनि ब्लॉक के हाट गाँव के लोग कई साल पुल की मांग कर रहे हैं, दरअसल सड़क और गाँव के बीच में मंदाकिनी नदी बहती है। अपने नजदीकी बाजार तक पहुंचने के लिए लगभग तीन किमी के दुर्गम रास्तों से गुजरना पड़ता है। सबसे मुश्किल स्कूली बच्चों के लिए आती है। दरअसल जिस जंगल के रास्ते से वो गुजरते हैं वहां अक्सर उनका सामना जंगली जानवरों से होता है। बाघ, भालू जैसे जानवरों के हमले का खतरा हमेशा मंडराता है।

हाट गाँव के श्रेष्ठमणि गोस्वामी कहते हैं, "स्कूल जाने के लिए बच्चे चार-पांच किमी घूमकर जाते हैं, ये ऐसा रास्ता है जिससे होकर कोई अकेला नहीं जा सकता है, क्योंकि उस रास्ते में जगली जानवरों का खतरा होता है। उस रास्ते पर कई बार बाघ भी देखा गया है, बच्चों को बहुत परेशानी होती है। पहले यहां नदी पार करने के लिए एक ट्रॉली थी वो भी सरकार ने बंद कर दी। जब अधिकारियों के पास गए तो उन्होंने कहा कि बजट नहीं है। सड़क गाँव से इतना नजदीक है फिर भी हमें कई किमी दूर घूमकर आना पड़ता है। हम कितने साल से प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही है।"

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर स्थित सौड़ी-गबनीगांव के दांयी ओर मंदाकिनी नदी के छोर पर बसे हाट गांव की आबादी 250 के आसपास है। हर दिन जंगल से होकर स्कूल जाने वाली सिमरन कहती हैं, "कई बार तो अकेले जाना होता है, उस दिन तो हम स्कूल हीं नहीं जाते हैं, जंगल से जाने में बहुत डर लगता है, कई बार हमने जंगल में बाघ भी देखा है।"

उसी गाँव के निवासी ताजभर सिंह खत्री बताते हैं, "हमारी जो ग्राम पंचायत है ये ठीक नेशनल हाईवे के पास में है, गाँव के पास से ही मंदाकिनी नदी निकलती है। एक तरफ हाईवे और दूसरी तरफ गाँव बीच में मंदाकिनी नदी बहती है। पहले हमारे गाँव से एक पुल लगा हुआ था, जो साल 2013 में आयी आपदा में बह गया था, जिसके बाद प्रशासन ने एक अस्थायी रूप से ट्राली चलाने की व्यवस्था की थी, लेकिन वो भी बंद हो गई। अब जो पीडब्ल्यूडी या प्रशासन जो भी इसका संचालन करता था, जिसके पास भी जाओ तो कहते हैं कि अब हमारे पास कोई भी बजट नहीं है। हर महीने इस पर 15 से 20 लाख रुपए का खर्च आता है, जिसे हम वहन नहीं कर सकते हैं।"

आपदा से पहले यहां ग्रामीण बेडूबगड़ से होते हुए गौरीकुंड हाईवे तक पहुंचते थे। वर्ष 2013 की आपदा में बेडूबगड़ का पुल बह जाने से ग्रामीणों को आवाजाही करने में मुश्किलें पैदा होने लगी। इसके बाद लोनिवि ऊखीमठ द्वारा हाट गांव के समीप ट्राली व पुल का निर्माण किया। बरसात के समय ग्रामीण ट्राली का प्रयोग करते थे।

ये भी पढ़ें : उत्तराखंड में जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा, प्रदेश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल 'डोबरा-चांठी'

    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.