लॉकडाउन: मंडी तक नहीं पहुंच पाया बुंदेलखंड का किसान, गड्ढे में फेंक दिये कई कुंतल टमाटर

Arvind Singh Parmar | Apr 28, 2020, 05:05 IST
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ललितपुर (उत्तर-प्रदेश)। "कोई खरीदने वाला नहीं है, ऐसे में हम क्या करते, लॉकडाउन होने से सब बंद है, टमाटर कौड़ियों के भाव बिक रहा है। टमाटर की तुड़वाई और भाड़ा भी जेब से गया। ऐसे में हम क्या करते, खेत पर बने सरकारी गड्ढे में टमाटर फेंकना पड़ा, अब तो गड्ढा भी भरने वाला है।" टमाटर न बिक पाने से दुखी किसान इमरत अहिरवार कहते हैं।

इमरत अहिरवार (52 वर्ष) ललितपुर जिले के मैलवारा गाँव के रहने वाले हैं। इस बार डेढ़ एकड़ में टमाटर की फसल लगाई थी और जब टमाटर की फसल अच्छी तैयार हुई तो लॉकडाउन लग गया। अब मजबूरी में उन्हें टमाटर तोड़कर गड्ढे में फेंकना पड़ रहा है।

इमरत अहिरवार 23 अप्रैल को जैसे-तैसे 36 कैरेट टमाटर मंडी में कौड़ियों के भाव बेचकर आए, मंडी से वापस अपने खेत पर खाली कैरट रखते वक्त बिक्री की पर्ची दिखाते हुए कहते हैं, "40 से लेकर 80 रुपए प्रति कैरट का भाव मिला, एक कैरट में 25 किलो टमाटर आता है, टमाटर का नौ कुंतल माल 2580 का हुआ। उसी में से 225 रुपए कमीशन और पल्लेदार के आढतिया ने काट लिए, 540 रुपए भाड़ा का देना पड़ा, मेरे हाथ 1815 रुपए ही आए।"

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देश में लॉकडाउन की वजह से देश के सब्जी और फल किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसान मंडियों तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं, जिस कारण कहीं किसान फसल सड़कों पर फेंक रहे तो कहीं मवेशियों को खिला रहे।

डेढ एकड़ टमाटर की बर्बाद फसल हो गई इमरत अहिरवार सरकारी गड्ढे में टमाटर फेकते हुऐ भावुक होकर कहते हैं, "देख लो साहब, घबरा रहें हैं हम। टमाटर देखकर दर्द होता हैं मंडी जाते समय पुलिस मारती है, परेशान हो गये, साहब। तभी ये गड्ढा भर दिया, अब हम कहां से कर्जा भरेंगे, मोड़ा मोडी (लड़का-लड़की) को खाने को नहीं है। हमारा इसी में से निकलता था, हर साल का काम था। लॉकडॉउन से दिमाग खराब है, ऐसा लगता हैं कि फांसी लगा लें।"

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किसानों की मुसीबत कोरोना वायरस के चलते हुऐ लॉकडाउन से बढ़ी हैं, समय से किसान मंडी नहीं पहुंच पाए। बाजार बंद होने से होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे, मैरिज हॉल, आदि पर ताला जड़ गया। यात्राएं बद हो गई सामूहिक शादी समारोह जैसी गतिविधि ठप्प पड़ी। टमाटर जैसी अन्य सब्जियों की माँग में कमी और मंडियों तक माल नही पहुंचने से किसानों को खामियाजा भुगतना पड़ा। सीधा असर सप्लाई पर पड़ा है। सरकार ने किसानों को लेकर अब राहत दी हैं लेकिन राहत का फायदा किसानों को नहीं हुआ।

इमरत की पत्नि शीला अहिरवार (50 वर्ष) कहती हैं, "पिछले साल साढ़े तीन से चार लाख का टमाटर बिका हुआ था। टमाटर की बर्बादी को देखकर घर के लोग रोते हैं, कहते हैं कि इस बार बर्बाद हो गए। बांस, सुतरी (रस्सी) खरीदी मजदूर लगाए, इस बार मजदूरी तक का पैसा नहीं निकला। जिस समय टमाटर की भरमार शुरू हुई उसी समय बीमारी के लॉकडाउन से पकी पकाई फसल गड्ढे में फेंकनी पड़ी।"

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इसी गाँव के मैलवारा टपरियन के राजकुमार (35 वर्ष) कहते हैं, "पहले टमाटर अच्छा बिकता था, उसी से घर का खर्चा पानी होता था, इस बार तो सड़ रहा हैं माटी मोल गया। बेंच नहीं पाये सड़ के टपकता रहा।" इमरत अहिरवार की तरह जिले के टमाटर की खेती करने वाले अधिकतर किसानों का एक जैसा हाल है। खरीफ में उर्द की फसल चौपट होने के बाद उन्हे विश्वास था कि टमाटर की खेती से नुकसान की भरपाई कर लेंगे। लॉकडाउन की दोहरी मार ने कमर तोड़ दी।

वहीं ललितपुर मुख्यालय 60 किमी दूर महरौनी के खिरिया भारन्जू में सुरेश प्रजापति की तरह एक दर्जन किसान टमाटर की खेती में लगे हैं। लॉकडाउन से दो एकड़ में हुए नुकसान से दुखी युवा किसान सुरेश प्रजापति (32 वर्ष) कहते हैं, "टमाटर की आवक शुरू होते लॉकडाउन लग गया, टमाटर लेकर मंडी नहीं पहुंच पाये एक महीने से ऐसा ही हाल हैं, इन दिनों में पांच कुंतल भी नहीं बेच पाए। टमाटर टपक टपक कर खेत में सड़ रहे हैं।"

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सुरेश प्रजापति दो दिन पहले मध्यप्रदेश की टीकमगढ़ मंडी में 50 कैरेट टमाटर लेकर गये, वो नहीं बिके। मंडी के व्यापारी ने टमाटर लेने से मना कर दिया व्यापारी ने कहा था ग्राहक नहीं आयेगा तो हम किसको बेच दें। वहां से वापस लाने की बात करते हुए सुरेश प्रजापति कहते हैं, "वहां से वापस आकर हीरानगर बावरी के फुटकर दुकानदार को तीन सौ रुपए में 50 कैरेट टमाटर दे आए। क्या करते कौड़ियों के भाव है। कोई नहीं पूछता। इसी में सात सौ रुपए मिलाकर एक हजार भाड़ा देना भी लगा। "

सुरेश प्रजापति कहते हैं, "अगर जिले में कोल्ड स्टोरेज होते तो आज हमें टमाटर की ये स्थिति नहीं झेलनी पड़ती, आँखों के सामने टमाटर पककर सड़कर बर्बाद हो गया जिसका नुकसान हम जैसे किसानों को उठाना पड़ रहा है।"

सीफेट (सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्टिंग इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजीज) की एक रिपोर्ट के अनुसार "भारत फलों और सब्जियों का दूसरे सबसे बड़ा उत्पादक देश है, बावजूद इसके देश में कोल्ड स्टोर और प्रसंस्करण संबंधी आधारभूत संसाधनों के अभाव में हर साल दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की फल और सब्जियां नष्ट हो जाती हैं। इसमें सबसे ज्यादा बर्बादी आलू, टमाटर और प्याज की होती है। "

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