लॉकडाउन में बर्बाद हो गए बुंदेलखंड के खरबूजा किसान

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   5 Jun 2020 7:20 AM GMT

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ललितपुर (उत्तर प्रदेश)। मौसम के उतार चढ़ाव प्राकृतिक आपदा से बुंदेलखंड के किसानों की फसलें हमेशा बर्बाद होती रहीं, इस बार खरबूजे (चीमरी) की फसल वैश्विक कोरोना महामारी से हुए लॉकडाउन की वजह से बर्बाद हुई है, बाजार बंद होने से किसान मंडी नहीं पहुंच पाए।

गर्मी की शुरूआत में ही किसान के खरबूजे का उत्पाद शुरू ही हुआ था, उसी समय देश व्यापी लॉकडाउन से उत्पाद बाजार नहीं पहुंच सका। इस दौरान एक से दो रुपए किलो के भाव में ही बिका, समय पर बाजार ना मिलने से खरबूजा खेत पर सड़ता रहा कोई माटी मोल पूछने वाला नहीं था। ऐसे में हजारों किसानों की लागत भी नहीं निकली। लॉकडाउन से खरबूजे की खेती फायदे के बजाए नुकसान का सौदा हुआ, यहां तक किसानों की लागत भी नहीं निकल पायी।

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ये जमना वंशकार का परिवार है, कलौथरा गाँव के हैं, इनकी छह बेटियां हैं, दूसरे नम्बर की बिटिया की शादी करनी थी सात एकड़ में खरबूज की फसल बोई थी। लॉकडाउन के चलते काफी नुकसान हुआ।

"एक लाख पांच हजार रुपए में सात एकड़ जमीन ठेके पर लेकर खरबूजे की खेती की, जिसमें 45 हजार रुपए की लागत आयी। लॉकडाउन से महज 40 हजार का खरबूजा ही बिक पाया, "किसान जमना वंशकार (52 वर्ष) कहते हैं। जमना वंशकार ललितपुर जिले के पाली तहसील अंतर्गत कलौथरा गाँव के रहने वाले हैं।

जमना वंशकार की छह बेटियां हैं, मझली बेटी की शादी जून में करनी थी, घर की माली हालात ठीक नहीं थी। जमना ने खरबूजे की खेती करने की ठानी कि फायदा होगा तो बिटिया की शादी कर देंगे। कुछ घर से बाकी आपसी वालों से पैसा उधार लेकर खरबूजा वो दिया।


ललितपुर में सजनाम, जामनी, शहजाद, गोविन्द सागर, राजघाट, माताटीला सहित डेढ़ दर्जन के करीब बांध (डैम) हैं, ज्यादातर बांधों के भराव क्षेत्र खाली होने के बाद बड़े पैमाने पर खरबूजे (चीमरी) की खेती होती है। उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्य प्रदेश के कई बडे़ शहरों तक बुंदेलखंड के खरबूजे की मिठास पहुंचती हैं। यह हल्का मीठा होने के साथ पानी के स्वाद वाला होता है। खरबूजा गर्मियों में पानी से भरपूर फलों में से एक है। रबी की गेहूं कटाई के बाद गर्मियों में किसान इसे मुनाफे के सौदे के तौर पर करता है।

जमना को विश्वास था कि अच्छी फसल बिकेगी। जमना वंशकार कहते हैं, "आपसी वालों से पैसे लिए बाकी घर के पैसे मिलाकर खेत ले लिया, बिटिया के हाथ पीले कर देंगे। जैसे ही चीमरी (खरबूजे) की फसल आनी शुरू हुई लॉकडाउन लग गया। चीमरी बिकने शहर नही पहुंच पाई, खेत पर ही सड़ती रही उसे देखकर रोना आता था। जब बाजार खुला तब तक चीमरी की आखिरी दौर चल रहा था। उस समय 8 से 10 रुपए का भाव मिल गया, इस भाव से नुकसान की भरपाई नहीं हुई।"


जमुना वंशकार चिंता की बात करते हुऐ कहते हैं, "बिटिया की शादी 14 जून की हैं, चीमरी से नुकसान तो हो गया अब चिंता सता रही हैं कि कर्ज चुकाए कि बेटी की शादी के लिए पैसे का इंतजाम करें "

ये अकेले जमुना कि कहानी नहीं हैं जमुना की तरह जिले में हजारों एकड़ में खरबूज, तरबूज की खेती करने वाले हर एक किसानों की यही कहानी है। देश व्यापी लॉकडाउन से खरबूज की फसल बर्बाद होने से किसान प्रभावित हुए हैं।

लॉकडाउन की तमाम बंदिशों के चलते ना तो किसान खरबूज लेकर मंडी पहुंच पाये, ना ही खरबूजा व्यापारी किसान के खेतो पर आ सके! जिसका खामियाजा किसानों ने भुगता है।

कोरोनाफुट प्रिंट सीरीज की बाकी स्टोरी यहां पढ़ें- https://www.gaonconnection.com/search?search=CoronaFootprint


     

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