कद्दू: कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली सब्जी की फसल
Sushil Singh | Apr 15, 2017, 11:47 IST
स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
सुल्तानपुर। सब्जी की खेती में कददू का प्रमुख स्थान है। इसकी उत्पादकता एवं पोषक महत्त्व अधिक है। इसके फलों से सब्जी और कुछ मिठाई बनाई जाती हैं। पके कददू पीले रंग के होते हैं तथा इसमें कैरोटीन की मात्रा भी पाई जाती है। इसके फूलों को भी लोग पकाकर खाते हैं। इसका उत्पादन असाम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से किया जाता है।
इसके लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। कददू की खेती के लिए शितोष्ण एवं समशितोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है इसके लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना चाहिए।
इसके लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। यह 5.5 से 6.8 पीएच तक की भूमि में उगाया जा सकता है।
इसमें पूसा विश्वास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सी एस 14, सी ओ1 एवम 2, पूसा हाईब्रिड एक और कासी हरित प्रजातियां हैं।
आर्गनिक खाद: कद्दू की फसल और अधिक पैदावार लेने के लिए उसमें कम्पोस्ट खाद का होना बहुत जरूरी है। इसके लिए एक एकड़ भूमि में लगभग 40-50 कुंतल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद और 20 किलो ग्राम नीम की खली वजन और 30 किलो अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर खेत में बोवाई के पहले इस खाद को समान मात्रा में बिखेर दें और फिर अच्छे तरीके से खेत की जुताई कर खेत को तैयार करें इसके बाद बोवाई करें। फिर जब फसल 20-25 दिन की हो जाए तब उसमे नीम का काढ़ा और गौमूत्र लीटर मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर 10-15 दिन के अंतर पर छिड़काव करें।
250 से 300 कुन्तल सड़ी गोबर की खाद आखरी जुताई के समय खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 80 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागों में टाप ड्रेसिंग में देना चाहिए। पहली बार तीन से चार पत्तियां पौधे पर आने पर तथा दूसरी बार फूल आने पर नत्रजन देना चाहिए।
जायद में कद्दू की खेती के लिए प्रत्येक सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन खरीफ अर्थात बरसात में इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। पानी न बरसने पर एवं ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 8-10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए फसल में 3-4 बार हलकी निराई-गुड़ाई करें। गहरी निराई करने से पौधों की जड़ें कटने का भय रहता है।
भारत में पैटीपान, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक नामक किस्में छोटे स्तर पर उगाई जाती हैं।
बोने का समय इस बात पर निर्भर करता है की इसे कहां पर उगाया जा रहा है। मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में दो बार बोया जाता है फ़रवरी-मार्च, जून-जुलाई। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बोवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है नदियों के किनारे इसकी बोवाई दिसंबर में की जाती है।
2.5 से 3 किलो ग्राम बीज प्रति एकड़ पर्याप्त होता है।
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सुल्तानपुर। सब्जी की खेती में कददू का प्रमुख स्थान है। इसकी उत्पादकता एवं पोषक महत्त्व अधिक है। इसके फलों से सब्जी और कुछ मिठाई बनाई जाती हैं। पके कददू पीले रंग के होते हैं तथा इसमें कैरोटीन की मात्रा भी पाई जाती है। इसके फूलों को भी लोग पकाकर खाते हैं। इसका उत्पादन असाम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से किया जाता है।
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