हिमाचल प्रदेश: कहीं आपके सेब के बाग में तो नहीं लग रही हैं यह बीमारियां, समय रहते करें प्रबंधन
मौसम में बदलाव के चलते इस समय सेब की फसल में कई तरह के रोग-कीट का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए समय रहते अगर प्रबंधन न किया गया तो किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
Divendra Singh 23 Jun 2021 10:20 AM GMT
एक बार फिर हिमाचल प्रदेश के सेब किसानों की मुसीबत बढ़ गई है, पिछले साल कीट और रोगों की वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था, इस बार फिर कई किसानों की बाग में बीमारी देखी जा रही है।
कृषि विज्ञान केंद्र, रोहडू़ के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह बताते हैं, "हमारे पास पिछले कुछ दिनों से कई किसानों के फोन आ रहे हैं। बहुत से किसानों के सेब के बाग में इस समय स्कैब के साथ ही दूसरी बीमारियां भी बढ़ रही हैं। समय पर छिड़काव करके किसान नुकसान से बच सकते हैं।"
पिछले साल भी हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में स्कैब का प्रकोप देखा गया था, जिससे किसानों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ा था। हिमाचल प्रदेश में सबसे साल 1977 में पहली बार स्कैब देखा गया था। साल 1982 से 1983 के बीच यहां के बागवानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार फिर यहां के बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है। इसके बाद पिछले साल फिर इसे देखा गया।
स्कैब का असर पत्तियों और फलों दोनों पर पड़ता है, शुरूआत में गहरे धब्बे पड़ते हैं और उनका विकास रुक जाता है। संक्रमित फल अल्पविकसित अवस्था में पेड़ पर से गिर जाते हैं।
शिमला के किसान अजय ठाकुर बताते हैं, "अभी थोड़े बहुत बाग में फलों धब्बे दिख रहे हैं, वैज्ञानिक से सलाह लेकर दवाई का छिड़काव शुरू कर दिया है। पिछले साल ज्यादा नुकसान हुआ था, लेकिन अभी शुरूआत हुई है।"
बारिश के मौसम में जब बाग में अधिक नमी बनी रहती है, तब कई तरह की बीमारियों को बढ़ने का मौका मिल जाता है। स्कैब के साथ ही पत्ते झड़ने व अल्टरनेरिया धब्बा रोग की समस्या भी इस समय बढ़ जाती है।
शिमला के गवास ग्राम पंचायत के सेब किसान जिग्गी चौहान बताते हैं, "अगर किसान सही तरीके बाग की देखभाल करे तो उसे नुकसान ही न उठाना पड़े। हमारे यहां तो अभी ऐसा कुछ नहीं देखा गया है। कई किसानों से सुनने में आ रहा है कि उनके बाग में फंगल का अटैक है। हमने तो अपनी पूरी जिंदगी में स्कैब नहीं देखा था, पिछले साल ही सबसे पहले स्कैब देखा। बारिश में ये बढ़ जाता है।"
वो आगे कहते हैं, "ज्यादातर किसानों को पता ही नहीं है कि कब कौन सी दवा का छिड़काव करना है, इसलिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही दवा का छिड़काव करना चाहिए।"
स्कैब के साथ ही इस समय सन जोस स्केल रोग भी बढ़ने लगता है, इसके प्रकोप में आने के बाद पेड़ों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं और वो सूखने लगते हैं। इसके साथ ही छाया और अधिक नमी वाले बगीचों में आल्टर्नेरिया के अधिक लक्षण दिखाई देते हैं। शुरू में यह सेब की पत्तियों पर दिखता है, फिर ये गोलाकर हरे रंग के धब्बे पहले भूरे और फिर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्तियों का शेष भाग पीले रंग का होता जाता है। संक्रमित फलों पर भी भूरे रंग के धब्बे होते हैं। इससे फलों की वृद्धि भी रुक जाती है। लगातार बारिश, वातावरण में नमी और तापमान में गिरावट के कारण यह रोग फैलता है।
इस समय रोगों और कीटों से बचने की सलाह देते हुए डॉ. नरेंद्र सिंह कहते हैं, "लगातार मौसम में बदलाव और जलवायु परिवर्तन भी रोगों के बढ़ने का एक कारण है। इसके साथ किसानों को कीटनाशक और फंगीसाइड का पूरा शेड्यूल फॉलो करना चाहिए, अगर एक भी छिड़काव छूट गया तो नुकसान उठाना पड़ सकता है।"
डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय ने कृषि परामर्श भी जारी किया है। इसमें स्कैब, अल्टरनेरिया लीफ, अल्पविकसित पत्तियों का गिरना जैसी बीमारियों से उपाय बताए गए हैं।
फल के बढ़ने के समय (चौथे छिड़काव के 20 दिन बाद)
सेब में स्कैब प्रबंधन के लिए प्रोपीनेब @ 0.3% (600 ग्राम / 200 लीटर पानी) या ज़िनेब @ 0.3% (600 ग्राम / 200 लीटर पानी) का छिड़काव करें।
टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG @ 0.04% (80 ग्राम / 200 लीटर पानी) समय से पहले पत्ती गिरने के प्रबंधन के लिए अनुशंसित है।
सेब में समय से पहले पत्ती गिरने और अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट के प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजिम 25% + फ्लुसिलाज़ोल 12.5% एससी @ 0.08% (160 मिली / 200 लीटर पानी) की सिफारिश की जाती है।
इस वर्ष, दो नए कवकनाशी- कर्सर 40% ईसी (फ्लूसिलाज़ोल 40% ईसी @ 0.025%) (50 मिली/200 लीटर पानी) पेटल फॉल/मटर चरण में सेब की पपड़ी के लिए, और लस्टर 37.5% एसई (कार्बेंडेज़िम 25% + फ़्लुसिलाज़ोल 12.5% एसई) @0.08% (160ml / 200L पानी) समय से पहले पत्ती गिरने के लिए और पंखुड़ी गिरने / मटर के दाने के बराबर फल होने पर अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट और फल विकास (चौथे स्प्रे के 20 दिन बाद) को निर्धारित किया गया है।
सन जोस स्केल से बचाव: एचएमओ चार लीटर प्रति 200 लीटर पानी का घोल बनाकर टाइटक्लस्टर अवस्था से पहले छिड़काव करना चाहिए। नवजात रेंगते हुए स्केल को नष्ट करने के लिए मई में क्लोरपैरिफॉस 20 ईसी 400 मिली लीटर प्रति 200 लीटर पानी का घोल का बनाकर छिड़काव करें।
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