यहां से प्रशिक्षण लेकर शुरू कर सकते हैं खेती और बागवानी से जुड़े स्टार्टअप

Ashwani Kumar Dwivedi | Apr 25, 2019, 06:02 IST
सीआईएसएच देता है युवाओं को रोजगार परक प्रशिक्षण, स्टार्टअप शुरू करने के लिए सरकार देती है 25 लाख तक का लोन
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लखनऊ। "संस्थान द्वारा आम, अमरूद, जामुन, आंवला, विदेशी सब्जियां, मशरूम आदि की खेती पर शोध के साथ युवाओं के लिए रोजगारपरक प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं। संस्थान के द्वारा विकसित की गयी फलों की प्रजातियों की मांग इस समय उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में भी हैं। साथ ही यह किसानों, बागवानों के लिए भी काफी फायदेमंद हैं, "यह कहना है, डॉ शैलेश राजन का जो वर्तमान में सेंट्रल इंस्टीटयूट ऑफ़ सबट्रापिकल हाॅटीकल्चर (केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) लखनऊ के निदेशक हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 25 किमी की दूरी पर हरदोई मार्ग पर 132 हेक्टेयर में विकसित राष्ट्रीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के अंतर्गत कार्य कर रहे सीआईएसएच (केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) द्वारा जो कार्यक्रम चलाए जा रहे है उनके बारें में गाँव कनेक्शन से साक्षात्कार के दौरान संस्थान के निदेशक डॉ शैलेश राजन ने उपयोगी जानकारी साझा की।

उद्यमिता प्रशिक्षण कराता है संस्थान

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डॉ शैलेश राजन

डॉ शैलेश राजन बताते हैं "युवाओं के लिए रोजगार सृजन के लिए संस्थान द्वारा उद्यमिता सम्बन्धी कई तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जिनमें से एक है "एग्री क्लिनिक,ऍग्री बिज़नेस सेंटर " इसके तहत 35 युवाओं के ग्रुप जो स्नातक हो उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता हैं साथ ही उन्हें तकनीक भी सिखाई जाती है। उद्यान और बागवानी के रोजगार में सफल होने और असफलता से कैसे बचे विशेष रूप से इसकी ट्रेनिंग दी जाती हैं। एंटरप्रेन्योरशिप के लिए प्रोजेक्ट बनाना, डीपीआर बनाने में भी संस्थान द्वारा की मदद की जाती है। और इसके बाद बैंक आसानी से 25 लाख तक का लोन नया उद्यम शुरू करने के लिए दे देती हैं।

आगे डॉ. शैलेश एक और कोर्स के बारे में बताते हैं जो "एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ़ इण्डिया" द्वारा संचालित है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 8 तरह की ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें से प्रमुख है बागवानी, नर्सरी, जैविक खेती, आम की बागवानी, केले की खेती, ड्रिप सिचाई, ग्रीन हाउस मैनेजमेंट इसके साथ और बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जिनसे सम्बंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहे है। इन कार्यक्रमों में छात्र तो बड़ी मात्रा में हिस्सा ले ही रहे है साथ ही प्रौढ़, बुजुर्ग और महिलाएं भी प्रशिक्षण लेकर सफलतापूर्वक घर की छत पर नर्सरी उगा रही हैं।
एक कार्यक्रम अभी संस्थान द्वारा चलाया गया था " रेडी टू फ्रूट मशरूम बैग" का जिसमें ट्रेनिंग देने के साथ अभ्यर्थियों को रेडी टू फ्रूट बैग भी दिये गये थे। इसमें बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती हैं सिर्फ नमी बनाये रखना होता है और उसमें से मशरूम की फसल घर पर ही उगाई जा सकती हैं उसे स्पान करने की भी जरूरत नहीं होती। और इसे लोग बहुत पसंद भी कर रहें हैं। इसके अलावा हर तीसरे महीने हम संस्थान में उद्यमिता विकास के लिए कार्यशाला का आयोजन करते हैं जहां वो जान सकते हैं जिसमें संस्थान द्वारा चलाये जा रहे कार्यकर्मों की जानकारी दी जाती हैं। जिनमें वो भागदारी करके फायदा ले सकते हैं । बहुत से क्षेत्रों में हमारे संस्थान ने कई और संस्थाओं के एमओयू किया है कुछ लोग अपना व्यवसायीकरण करना चाहते हैं जैसे हाइड्रो पोनिक्स है, व्यवसायी बनना चाहते हैं, वो छोटी यूनिट लगाकर किचन गार्डन को घर की बालकनी में उगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं तो ऐसी व्यवसायी भी हमसे जुड़े हुए हैं।

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फल, सब्जी की नयी किस्मों की खेती से होगा किसानों को मुनाफा

डॉ शैलेश राजन ने बताया, "उत्तर भारत के उपोष्ण क्षेत्र में विभिन्न फसलों पर संस्थान काम कर रहा हैं । मुख्य रूप से आम पर करते हैं इसके आलावा अमरूद पर भी शोध हो रहा। इसके अतिरिक्त बेल की भी दो किस्में संस्थान द्वारा विकसित की गयी हैं। इसके आलावा आंवला पर भी काम किया जा रहा हैं। जामुन की दो किस्में विकसित की गयी हैं जिनमें एक बिना बीजा का है और दूसरी प्रजाति में बीज के साथ गूदा की मात्रा काफी है और दोनों ही किस्मों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसके साथ स्ट्राबेरी की आधुनिक खेती,पाॅली हाउस में खेती करने के तरीके, ड्रिप सिंचाई और सिंचाई के नए तरीके हाइड्रोपोनिक्स पर भी काम किया जा रहा है। इन तकनीकों का प्रशिक्षण भी किसानों को दिया जा रहा है। ये किसानों के लिए काफी बेहतर और फायदेमंद है।"

विदेशी सब्जियों की भारतीय बाजार में मांग बढ़ी हैं

डॉ शैलेश राजन बताते हैं कि कुछ साल पहले तक कम लोग ही ब्रोकली, पाकचुई जैसी सब्जी के बारे में जानते थे। आजकल भारतीय बाजार में विदेशी सब्जियों की भी मांग बढ़ी हैं और किसान विदेशी सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं। आजकल उपभोक्ता के पास खाने पीने की चीजों के बारे में विकल्पों की कमी नहीं है। हर व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है। इसी के चलते लोगों के खाने के तौर तरीकों में भी बदलाव हुआ है। संस्थान किसानों को विदेशी सब्जियों को उगाने, उनके देख-रेख संबंधी प्रशिक्षण दे रहा है। चूंकी अभी हमारे यहाँ इन सब्जियों का उत्पादन कम है और इनकी मांग अधिक हैं इसलिए इन सब्जियों के अच्छे भाव किसानों को मिल रहे हैं। इसके साथ सलाद वाली सब्जियों की मांग भी बाजर में बढ़ी है जैसे बर्गर पिज्जा में प्रयोग होने वाले सलाद जो पहले बाहर से आयात किये जाते थे उन्हें भी किसान संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करके अब अपने खेतों में उगा रहे हैं ।

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