आलू की खेती में ड्रोन का इस्तेमाल, लागत और समय दोनों की बचत

खेती-किसानी में तकनीकियों का इस्तेमाल भी जरूरी हो गया है, सरकार भी खेती में ड्रोन को बढ़ावा दे रही है। ऐसे में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान आलू की फसल में ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है, वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी मदद से समय और लागत दोनों की बचत होती है।

Divendra SinghDivendra Singh   14 Feb 2022 8:04 AM GMT

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आलू की खेती में ड्रोन का इस्तेमाल, लागत और समय दोनों की बचत

पिछले कुछ वर्षों में खेती में ड्रोन का प्रयोग बढ़ा है, इससे न केवल समय की बचत होती है, साथ ही खेती की लागत में भी कमी आ जाती है। केंद्र सरकार भी खेती में ड्रोन को बढ़ावा दे रही है।

आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश ने आलू की फसल में ड्रोन की मदद ली है, जिसके अच्छे परिणाम भी आए हैं। सीपीआरआई के मोदीपुरम और जालंधर स्थित क्षेत्रीय स्टेशन पर साल 2020 से ड्रोन का प्रयोग शुरू हुआ है।

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, मोदीपुर के उपनिदेशक व प्रधान वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार बताते हैं, "हम बहुत दिनों से आलू में ड्रोन की मदद लेना चाहते थे, लेकिन पहले ड्रोन को इस्तेमाल करने के लिए नियम बहुत सख्त थे। साल 2020 के आखिर में हमें ड्रोन के इस्तेमाल की परमिशन मिल गई।"

वो आगे कहते हैं, "हम ड्रोन की मदद से आलू में प्रयोग कर रहे हैं, पिछले साल 2020-21 और इस साल 2021-22 में हमने प्रयोग किया है, जिसके बेहतर रिजल्ट भी मिले हैं। हमने एग्रो केमिकल्स के स्प्रे के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया था।"

1 फरवरी को बजट पेश करते हुए ड्रोन की खूबियां गिनाते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, "खेती-किसानी में ड्रोन का इस्तेमाल होगा। जिससे फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेख, कीटनाशकों का छिड़काव में मदद मिलेगी।"

ड्रोन के इस्तेमाल पर डॉ कुमार कहते हैं, "यहां सेंटर पर आलू के बीज का उत्पादन किया जाता है, फसल को बचाने के लिए कई तरह के स्प्रे किए जाते हैं। जैसे कि जोकि आलू के वायरस के जो वेक्टर होते हैं, उनके नियंत्रण के लिए किया जाता है और दूसरा पछेती झुलसा से फसल बचाने के लिए भी तीन-चार स्प्रे करने होते हैं, तो ऐसे मानकर चलिए की कम से कम पांच-छह स्प्रे एक सीजन में हो जाता है।"


अभी तक किसान छोटे स्प्रेयर या फिर ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर से दवाओं का छिड़काव करते हैं।"खेत में ट्रैक्टर ले जाने से फसल को भी नुकसान होता है और अगर मिट्टी गीली है तो ट्रैक्टर को खेत में ले जाना भी मुश्किल होता है, तो ये सब देखते हुए हम लोगों के लिए ड्रोन का इस्तेमाल सबसे मददगार साबित हो सकता है, "डॉ मनोज कुमार ने आगे कहा।

सीपीआरआई द्वारा किए गए प्रयोग के अनुसार लगातार ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर से स्प्रे होता ही रहता है, इससे ये होता कि इससे खेती की लागत बढ़ जाती है। साथ ही ट्रैक्टर माउंटेड स्प्रेयर से मजदूर स्प्रे करते हैं, अगर किसान या फिर मजदूर छिड़काव करते समय मास्क का इस्तेमाल करता तब भी तेज हवा चलने पर वो फंगीसाइड या पेस्टिसाइड सांस के जरिए अंदर भी ले रहे होते हैं। कितना भी बचाओ लेकिन कुछ न कुछ अंदर चला जाता है।

जबकि ड्रोन बिना खेत में गए कम समय में ज्यादा एरिया में छिड़काव कर देता है। कृषि मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में खेती में ड्रोन के इस्तेमाल के लिए मंजूरी देते हुए मानक संचालन प्रक्रिया यानि नियम कायदे तय किए थे। मंत्रालय ने कहा था कि ड्रोन के इस्तेमाल से खेती के कई कामों में किसानों को बड़ा फायदा मिलेगा। जिसमें कीटनाशकों का छिड़काव, फसल का रखरखाव में मदद मिलेगी।

ड्रोन के लिए गाइडलाइंस तय करते हुए कृषि मंत्रालय ने कहा था कि कई राज्यों में टिड्डियों के हमलों को रोकने के लिए पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। सरकार कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों को शामिल करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है, जिससे कृषि क्षेत्र की उत्पादकता के साथ-साथ दक्षता बढ़ाने के संदर्भ में स्थायी समाधान किया जा सके।

वो आगे समझाते हैं, "एक बात और अगर खेत में गए हैं तो एक पौधे की बीमारी दूसरे पौधे में ट्रांसफर हो जाती है, लेकिन अगर ड्रोन से करते हैं तो पौधे को छूना नहीं पड़ता है, ऐसे में वायरस से होने वाली बीमारियां एक पौधे से दूसरे पौधे तक नहीं जा पाती हैं।"

आलू किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान झुलसा बीमारी से ही होता है। डॉ मनोज बताते हैं, "बारिश होने पर पछेती झुलसा के बढ़ने का सबसे ज्यादा चांस होता है और खेत गीला है तो स्प्रे करना मुश्किल हो जाता है, लेकिन ड्रोन से ये मुश्किल भी आसान हो जाती है।"


"हम किसानों से कहते हैं पछेती झुलसा से बचाव के लिए पौधों में ऊपर से नीचे तक छिड़काव करें, जिससे हर पत्ती तक दवा पहुंच जाए, जोकि दूसरे स्प्रे से नहीं हो पाता है, लेकिन ड्रोन की हवा से ये काम भी आसान हो जाता है, नीचे तक की पत्तियों तक पहुंच जाता है, "उन्होंने बताया।

ड्रोन के इस्तेमाल से समय और लागत दोनों बचते हैं। डॉ मनोज कहते हैं, "हमने हिसाब लगाया है कि 20 मिनट में एक हेक्टेयर में छिड़काव हो जाता है, वैसे में दिन भर ट्रैक्टर चलता है तो तीन-चार हेक्टेयर से ज्यादा नहीं कवर हो पाता है। और इससे एक दिन में 15 हेक्टेयर से क्षेत्र में छिड़काव हो जाता है।"

ड्रोन आधारित छिड़काव के कई फायदे हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार आमतौर पर दूसरे स्प्रेयर से एक हेक्टेयर में छिड़काव के लिए 700-800 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसमें 40 लीटर पानी में ही छिड़काव हो जाता है।

आलू ही नहीं दूसरी फसलों के लिए ड्रोन मददगार साबित हो सकते हैं। फसल में कहां रोग लगा है, कहां कीट लगे हैं। फसल में किस पोषक तत्व की कमी है। ऐसे कई खेती के कामों को ड्रोन के जरिए आसानी से हो सकेंगे। समय पर बीमारियों का पता चलने से किसानों की इनपुट लागत कम होगी और उत्पादन बढ़ सकेगा। इसके अलावा ड्रोन का इस्तेमाल कीटनाशकों और पोषकतत्वों को छिड़काव भी किसानों की काफी मदद करेगा।

कृषि मंत्रालय ड्रोनों की खरीद के लिए 'कृषि मशीनीकरण पर उप मिशन' के तहत वित्तीय सहायता भी दे रहा है। इसके तहत कृषि ड्रोन की लागत का 100 प्रतिशत तक या 10 लाख रुपये, जो भी कम हो, के अनुदान दिया जाएगा। यह धनराशि कृषि मशीनरी प्रशिक्षण और परीक्षण संस्थानों, आईसीएआर संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा ड्रोन की खरीद के लिए अनुदान के रूप में दी जाएगी। इसके तहत किसानों के खेतों में बड़े स्तर पर इस तकनीक का प्रदर्शन किया जाएगा।

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