बुंदेलखंड: दिल्ली में मजदूरी करने वाला परिवार सब्जियों की तकनीकी खेती कर रहा अच्छी कमाई

किसान सुरेश प्रजापति का परिवार कभी दिल्ली में मजदूरी दिहाड़ी मजदूरी करता था। लेकिन अब पिछले कई वर्षों से गांव में नए तरीके से सब्जियों की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं, कर्ज़ में डूबा परिवार अब खुशहाल जिंदगी जी रहा है।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   21 Dec 2021 5:33 AM GMT

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ललितपुर, (बुंदेलखंड)। "परिवार में बहुत कुछ सुधार हुआ हैं अब तो पैसे की आय हैं, पहले कर्ज का बोझ था जब से सब्जी की खेती शुरू की तब से घर की तरक्की हो गई" परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक तरीके से सब्जियों की खेती करने वाले किसान सुरेश प्रजापति कहते हैं।

बुंदेलखंड में ललितपुर मुख्यालय से 55 किमी दूर विकास खंड महरौनी के गाँव खिरिया भारन्जू के किसान सुरेश कुमार प्रजापति (40 वर्ष) पहले गेहूं, चना, मटर और मसूर की खेती करते थे उसमें ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था सुरेश कुमार ने चार वर्ष पहले आधा एकड़ से टमाटर की खेती की शुरुआत की अब दो एकड़ में सब्जी की खेती करके अच्छा खासा कमा रहे हैं।

"हमारे सागर (मध्य प्रदेश) के रिश्तेदार ने टमाटर खेती करने की सलाह दी कि नई तकनीक से खेती करो इसमें ज्यादा मुनाफा हैं, पहले पचास डिसमिल में टमाटर की खेती की शुरूआत की अब दो एकड़ में खेती कर रहे हैं मुनाफा हो रहा है।" प्रजापति आगे जोड़ते हैं।

दिसंबर महीने में अपने खेत पर टमाटर तुड़वाते किसान सुरेश प्रजापति। फोटो- अरविंद सिंह परमार

ड्रिप इरीगेशन और मल्चिंग से मिला फायदा

बुंदेलखंड में पानी की कमी से किसानों की फसलें अक्सर धोखा दे जाती हैं, जिसका परिणाम बढ़ते कर्ज और पलायन की स्थिति से अधिकतर आबादी जूझती रही है। लेकिन ड्रिप इरीगेशन (टपक सिंचाई प्रणाली) से पानी की खपत काफी कम हो गई है। इसके साथ ही उत्पादन भी बढ़ा है। ड्रिप इरीगेशन के अलावा किसान मल्चिंग करके जहां खरपतवार की समस्या से निजात पा रहे हैं। वहीं स्टेकिंग (झाड़) बनाकर टमाटर बैंगन जैसे पौधों का मचान बनाने से क्वालिटी और उत्पादन दोनों बेतहर हुए हैं। सरकार के मुताबिक ड्रिप इरीगेशन, रेनगन आदि के प्रयोग से 70 फीसदी पानी की बचत होती है। सरकार प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरिए ऐसी योजनाओं पर 80-90 फीसदी तक सब्सिडी देती है। नवंबर 2021 में सरकार ने इस योजना को साल 2026 तक बढ़ा दिया है। हालांकि इन तरह की तकनीकी में शुरुआती पूंजी लग जाती है। लेकिन उसका लंबे समय तक फायदा भी मिलता है।

नई तकनीकों में लागत पर सुरेश कुमार प्रजापति कहते हैं, 'एक एकड़ में 15 हजार की मल्चिंग (पन्नी) 25 हजार का ड्रिप सिस्टम है। ड्रिप में पैसा एक बार लगाना होता है।"

वो आगे बताते हैं, "मल्चिंग विधि से सब्जियों की खेती में बेड बनाने वक्त बेसल डोज (प्राथमिक खाद जो मिट्टी में जाती है) में खाद सबसे ज्यादा लगती है। उसमें प्रति एकड़ करीब 10 हजार का खर्च आता है। फिर मजदूरी, फसल सुरक्षा के कीटनाशक आदि करते करते आखिर तक प्रति एकड़ एक लाख की लागत आ जाती है।"

टमाटर की खेती में प्रति एकड़ एक लाख की लागत 4 लाख का मुनाफा

इस साल एक एकड़ में टमाटर से चार लाख का मुनाफा पाने की बात करते हुऐ प्रजापति कहते हैं, 'अभी टमाटर फरवरी तक चलेगा और मुनाफा बढ़ेगा इसके साथ एक एकड़ में मिर्च, बैगन भी लगा हैं सब मिलाकर करीब 6 लाख का मुनाफा मिलना तय है। यह सब परंपरागत खेती में नहीं हो पाता।' शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, बैगन, के साथ वो कई और तरह की सब्जियां लगाने लगे हैं। बरसात में ककडी, कद्दू, लौकी करेला की खेती करते हैं।

हरी मिर्च तोडती कुमुम देवी।

मां बताया कैसे कटते थे पहले दिन

सुरेश कुमार प्रजापति की मां 55 वर्षीय कुसुम (तेराबाई) परंपरागत खेती से कर्ज़ में डूबने की बात करते हुए बुंदेली बोली में कहती हैं, "गेहूँ, चना अलसी बो दिया जो कुछ पैदाबार हुई उसे बेचकर कर्ज का पैसा चुकाऊने परेशान होत रय। पानी था नहीं खेती के लिए, तीन चार बोर (बोरिंग) कराये वो सफल हो गय, ईश्वर ने खूब पानी दिया। अब अच्छे से कछवाव (सब्जी की खेती) कर रय। ठेका-बटिया पर खेत लेकर उसमें खाने के लिए गेहूं बो देते हैं।'

सब्जी की खेती आ रही आमदनी से घर में खुशहाली भी आई है। कुसुम कहती हैं, "चार पईसा (रूपया) बचन (सेविंग) लगे अच्छे सुख में मौडा-मौडी (लडका-लडकी) खा रय पी रय अपन खा रय पी रय। पहले पईसा नई बचत तो बिल्कुल। का हतो काय में से कड़त तो पईसा (रूपया) पहले जोई-जोई नई चुका पाऊत ते कै जो लम्बरदार को देने जो बानिया (साहूकार) को देने सब कर्ज चुकाने में पैसा चला जाता था।'

परिवार पलायन करके दिल्ली मजदूरी के लिये जाता था

पुराने दिन याद करते हुऐ सुरेश प्रजापति के भाई रामचरन प्रजापति (45 वर्ष) कहते हैं,"दिल्ली जाकर हमारे परिवार ने तीस रुपया दिन से मजदूरी की। दिल्ली नहीं जाते थे तो गांव में 5 रुपए की दिहाड़ी करते थे। कर्ज़ लेना पड़ता था फिर भी कई बार खर्च़ नहीं चलता था। फिर सब्जी की खेती करने के लिए मन बनाया अब हमें कर्ज नहीं लेना पड़ता हैं अपना खर्च चलाता है। बाल बच्चों को पढ़ाते लिखाते हैं।"


रामचरन प्रजापति अपने टमाटर के खेत में।

देश में बढ़ रहा है बागवानी फसलों का रकबा

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक देश में 2020-21 में बागवानी फसलों (फल-सब्जी) के रकबे और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी हुई थी। साल 2020-21 में करीब 27.59 मिलियन हेक्टयर में बागवानी का रकबा है, जिसमें से 331.05 मिलियन टन उपज अनुमानित है। साल 2019-20 में 26.48 मिलियन हेक्टेयर में 320.47 मिलियन टन उत्पादन हुआ था। 29 अक्टूबर 2021 को जारी आंकड़ों के मुताबिक 865 हजार हेक्टेयर में टमाटर की खेती हुई थी, जिसमें से 21056 हजार मीट्रिक टन उत्पादन अनुमानित है।

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