गोवंश बढ़ा लेकिन देशी खाद नहीं  

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गोवंश बढ़ा लेकिन देशी खाद नहीं  किसान गोबर की जगह कर रहे रासायनिक खाद का प्रयोग

सुधा पाल

लखनऊ। यूपी में गोवंशों (गाय-बैल) की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होने के बावजूद भी देशी खाद के प्रयोग में कमी आ रही है। किसान लगातार रासायनिक खादों का उपयोग कर रहे हैं जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है।

लखनऊ के पशु चिकित्सा अधिकारी वीके सिंह ने बताया, “साल 2007 में हुई पशुगणना के अनुसार प्रदेश में 1 करोड़ 91 लाख गोवंश थे। पांच साल बाद फिर से हुई 2012 की पशु्गणना में इनकी संख्या बढ़कर एक करोड़ 95 लाख 57 हजार हो गई। इससे इस बात का अंदाजा साफ तौर पर लगाया जा सकता है कि प्रदेश में इन पशुओं के संरक्षण के लिए पशुधन जैसी योजनाएं बनाई जा रहीं हैं।

अधिक और बेहतर उत्पादन के लिए किसान मुफ्त में मिलने वाली प्राकृतिक गोबर खाद को छोड़कर बाजारों में मिलने वाली महंगी खाद और उर्वरक की भारी संख्या में खरीदारी कर रहा है। इंडिया वाटर पोर्टल के मुताबिक भारत इस समय रासायनिक खादों की खपत करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। देश में 34 फीसदी नाइट्रोजन और 82 फीसदी फास्फेट के अलावा अन्य सौ फीसदी रासायनिक खाद हम दूसरे देशों से खरीदते हैं।

अनाज उत्पादन की बढ़ती जरूरत को देखते हुए रासायनिक खाद के आयात का प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है। डॉ. वीके का कहना है, “पुराने जमाने में खाद को बाहर से नहीं खरीदना पड़ता था, पूरी खेती गोबर की खाद से ही की जाती थी। इससे फसलों का अच्छा और स्वस्थ उत्पादन होता था।” प्रतापगढ़ के सरुआ गाँव के किसान राजेंद्र बताते हैं, “हमारे यहां पिताजी के जमाने से ही खेती होती आ रही है। पहले मजदूरों से साल भर का इकट्ठा गोबर खेतों में बहाया जाता था जिसे पांस कहते थे। तब कोई चीज (खाद या उर्वरक) बाजार से नहीं लिया जाता था। अब समय बदल गया है, कौन मजदूर बुलाए, गोबर इकट्ठा करे और खाद बाजार में आराम से उपलब्ध है तो जरूरत क्या है ये सब करने की।

गोबर खाद का इस्तेमाल अब खत्म सा हो गया है। गाँव के लोग भी अब गोबर का इस्तेमाल खाद के तौर पर कम करते हैं।
डॉ वीके सिंह, उपनिदेशक (पशुपालन विभाग, उप्र)

वर्ष 2015-16 में यूरिया का 40 लाख टन अतिरिक्त उत्पादन किया गया था जिससे देश में यूरिया की कमी नहीं हुई। खेती के लिए स्वस्थ मिट्टी में एनपीके (नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस) का अनुपात 4-2-1 का होता है, लेकिन एक सरकारी शोध में पाया गया कि यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से देश में यह अनुपात लगभग 8-3-1 हो चुका है। 2013 तक तो उर्वरकों पर सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी 76,000 करोड़ का आंकड़ा पार कर गई। बाराबंकी के हतमापुर गाँव के किसान मुन्ना बताते हैं कि जब बाजार से ही खाद मिल रही तो खाद बनाने के झंझट में कौन पड़े। खाद बनवाने की प्रक्रिया में समय लगता है इसलिए बाजार से ही खाद ले लेते हैं।

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के महासंघ के अध्यक्ष बलराम सिंह के बताया, “एक एकड़ खेत में लगभग दो क्विंटल रासायनिक खाद का उपयोग किसान करते हैं। इन रासायनिक खादों की कीमत 18 रुपए से 36 रुपए तक है। समय के साथ इन रासायनिक खादों की कीमतों में बढ़ोतरी आई है।” उन्होंने बताया, “250 रुपए में बिकने वाली यूरिया डाई पोटाश की कीमत बढ़कर 700 रुपए क्विंटल हो गई थी। किसानों की बढ़ती मांग और इनसे होने वाले ज्यादा उत्पादन की वजह से ही इनके दाम भी बढ़े। लगभग एक एकड़ के लिए किसानों को लगभग 7 हजार से ज्यादा की खाद लग जाती है।”

      

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