राजस्थान के किसानों की आमदनी बढ़ाएंगी मक्का की नई किस्में
राजस्थान के किसानों के लिए रबी और खरीफ दोनों मौसमों के लिए मक्का की दो नई किस्में विकसित की गई हैं।
Divendra Singh 7 Dec 2021 8:24 AM GMT
राजस्थान के कई जिलों में मक्का की खेती होती है, यहां के किसानों को अब प्राइवेट कंपनियों के बीज पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, वैज्ञानिकों ने खरीफ और रबी दोनों मौसमों के लिए मक्का की नई किस्में विकसित की हैं।
भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित रिसर्च स्टेशन ने मक्का की नई किस्में विकसित की हैं। सेवानिवृत्त संभागीय निदेशक अनुसंधान डॉ. प्रमोद रोकड़िया ने इन किस्मों को विकसित किया है। डॉ प्रमोद रोकड़िया बताते हैं, "कई साल पहले से इन किस्मों पर काम चल रहा था, इसमें एक किस्म रबी के लिए और दूसरी खरीफ सीजन के लिए, राजस्थान के कई जिलों में खरीफ और रबी सीजन में मक्का की खेती होती है।"
मक्का की पहली किस्म पीआरएचएम 1095 और दूसरी पीआरएचएम 1010 इजाद की गई है। इसमें पीआरएचएम 1095 किस्म खरीफ के लिए और दूसरी किस्म पीआरएचएम 1010 रबी के लिए विकसित की गई है।
डॉ रोकड़िया आगे कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि यहां के लिए पहले से कोई किस्म नहीं थी, लेकिन सभी किस्में प्राइवेट कंपनियों द्वारा विकसित की गईं थी, ये दोनों किस्में यही जिले में ही विकसित की गई हैं, जिससे किसानों को ज्यादा उत्पादन मिलेगा।"
खरीफ सीजन के लिए विकसित की गई पीआरएचएम 1095 किस्म 95 दिनों में तैयार हो जाती है और इससे प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल मक्के का उत्पादन होता है, जबकि पीआरएचएम 1010 रबी सीजन में बोई जाती है, जोकि 130-140 दिनों में तैयार होती है और इससे 105 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मक्का का उत्पादन होता है। ये किस्में माैसम की मार झेलने और कीट प्रकोप भी सह सकती हैं।
डॉ रोकड़िया बताते हैं, "रबी में ज्यादा दिनों की फसल होती है, जिससे उसमें उत्पादन भी ज्यादा मिलता है, जबकि खरीफ की कम समय की फसल होती है। यह दोनों किस्में मक्का में लगने वाले कई रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी होती हैं, जिसका मतलब कई रोगों से इसे नुकसान नहीं होता है।"
राजस्थान के चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, बूंदी, प्रतापगढ़, झालावाड़, अजमेर, टोंक, अलवर और जयपुर जिलों में मक्का की खेती होती है। इसमें चित्तौड़गढ़ में सबसे अधिक मक्का की खेती होती है, जबकि दूसरे नंबर पर बांसवाड़ा और तीसरे नंबर पर बूंदी जिला है।
यह शोध स्टेशन महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर के अंर्तगत आता है। डॉ रोकड़िया बताते हैं, "अभी हमने इन दोनों किस्मों को विकसित किया है, आगे विश्वविद्यालय इनके बीज तैयार करके किसानों के लिए उपलब्ध कराएगा।"
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