मौजूदा एमएसपी सिस्टम से किसानों को घाटा

अमित सिंहअमित सिंह   14 Jun 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी को लेकर देशभर में ज़ोरदार बहस छिड़ी हुई है। केंद्र सरकार और देश के अलग-अलग राज्यों की सरकारों की तमाम कोशिशों के बावजूद किसान का भला होता नहीं दिख रहा है। गरीबी, कर्ज़ और भुखमरी का शिकार किसान पहले भी आत्म हत्या कर रहा था और आज भी खुदकुशी करने को मजबूर है। 

मौजूदा समर्थन मूल्य

सरकार ने कुल 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में कुछ दिनों पहले ही इज़ाफा किया है। सरकार खासतौर पर दलहन की पैदावार बढ़ाने पर जोर दे रही है। एमएसपी बढ़ाना उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। खरीफ सीजन में बोई जाने वाली दलहन की एमएसपी 200 रुपए तक बढ़ा दी गई है। धान की एमएसपी भी 60 रुपए बढ़ाकर 1,470 रुपए प्रति क्विंटल कर दी गई। तुअर दाल की एमएसपी 200 रुपए बढ़ाकर 4,625 रुपए प्रति क्विंटल कर दी गई। मूंग और उड़द की एमएसपी में 150-150 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। अब मूंग की एमएसपी 4,800 रुपए प्रति क्विंटल और उड़द की एमएसपी 4,575 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। इस इज़ाफ़े के बाद भी अर्थशास्त्रियों को लगता है कि किसानों को उनके उपज की सही कीमत नहीं मिल रहा है।

लखनऊ यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सोमेश शुक्ला मौजूदा एमएसपी को जायज़ नहीं मानते उनके मुताबिक़, “किसानों को कीमतें तय करने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए। जब कारोबारी अपने उत्पाद की कीमत तय करने के लिए आज़ाद है तो किसानों को इसकी आज़ादी क्यों नहीं है।” उन्होंने कहा कि सरकार का एमएसपी तय करने का तरीक़ा ठीक नहीं है। किसानों को फसलों का सही मूल्य भी नहीं मिल रहा है।

हालांकि आर्थिक मामलों के जानकार एके अवस्थी इस बारे में बताते हैं, “सरकार एमएसपी तय करती है और वो किसानों को पहले से ही बता देती है। किसान फसल तैयार होने से पहले ही जानता है कि उसकी उपज की उसे क्या कीमत मिलने वाली है। हां ये बात सही है कि मौजूदा एमएसपी कम है इसे बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन हटाने की वकालत मैं नहीं करुंगा।”

वो आगे बताते हैं, “अगर सरकार ने एमएसपी हटा दी तो इससे किसानों को ज्यादा घाटा होगा। क्योंकि जो कीमत किसानों को सरकार अभी दे रही है, किसानों के हाथ में कीमत तय करने की ताकत देने के बाद हो सकता है किसान इससे भी कम कीमत पर अनाज बेचने को मजबूर हो जाएं।’’

हालांकि किसान भी एमएसपी हटाए जाने के पक्ष में नहीं हैं। यूपी के फैज़ाबाद ज़िले के किसान विवेक सिंह (30 वर्ष) कहते हैं, “अनाज की दलाली रोकने के लिए एमएसपी एक अच्छा जरिया है। सरकार को चाहिए कि वो सब्जियों पर भी एमएसपी लागू करे ताकि किसानों को अनाज की तरह की सब्जियों के भी वाजिब दाम मिलें। 

एमएसपी हटाने पर हो सकता है कि किसानों को और कम कीमत मिले अनाज की। उन्होंने आगे बताया कि किसानों को कीमतें तय करने की आज़ादी मिल जाएगी तो इसका फायदा मंदड़िये और दलाल उठाएंगे। 

एमएसपी का नियम हटाने से हालात और खराब हो जाएंगे। सरकार ने भले ही एमएसपी लागू की है लेकिन किसानों की लागत के हिसाब से नहीं है। एमएसपी पर बेचने के बावजूद किसानों को चावल, गेहूं और अरहर जैसी फसलों पर नुकसान हो रहा है। किसानों से कम कीमत पर खरीद कर कारोबारी उसी सामान को 600 गुना महंगी कीमत पर बेच रहे हैं।

यूपी के लखीमपुर खीरी के किसान दिलजिंदर सिंह (31 वर्ष) बताते हैं, “अगर सरकार ने एमएसपी हटा दी और किसानों को आज़ाद कर दिया तो ये कैसे तय होगा कि किसानों को मुंह मांगी कीमत मिलेगी। ऐसा भी हो सकता है कि दलालों की वजह से किसानों को मौजूदा एमएसपी से भी कम कीमत पर अनाज बेचने के लिए मजबूर होना पड़े।” 

वो आगे बताते हैं, “दरअसल हर अनाज मंडी में दलालों और कारोबारियों की साठगांठ होती है जो पहले से ही तय कीमत पर सामान खरीदते हैं ऐसे में किसान चाहकर भी बढ़ी हुई कीमत पर सामान नहीं बेच सकता है क्योंकि मंडियों में सक्रिय दलाल कम कीमत पर ही अनाज खरीदेंगे।’’

सीनियर प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सोमेश शुक्ला कहते हैं, “सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे किसान आज़ादी से अपने सामान बेच सकें। किसान कम कीमत पर अनाज सिर्फ इसलिए बेचने को मजबूर नहीं है कि उसके पास पैसे नहीं हैं उसका घर नहीं चल रहा है। सरकार ने किसानों के लिए स्टोरेज की व्यापक व्यवस्था नहीं की है, इस वजह से भी किसान अपनी पैदावार होते ही कम कीमत पर अपना अनाज बेचने को मजबूर है।’’

यूपी के लखीमपुर के रहने वाले किसान मनीष वर्मा (32वर्ष) बताते हैं, “एमएसपी रहे या जाए दुकानदार और बड़े कारोबारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। वो किसानों से कम कीमत पर खरीदकर कई गुना महंगी कीमत पर उसी अनाज को बेचेंगे। अगर एमएसपी नहीं रहेगी तो अनाज और भी कम कीमत पर बिकेगा।” 

वो आगे बताते हैं, “अगर किसानों को कीमतें तय करने की आज़ादी दे दी जाए तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनके अनाज ज्यादा कीमत पर ही बिकेंगे इसका उल्टा भी हो सकता है और हो सकता है कि कुछ किसानों को इसका फायदा भी हो जाए।’’

सीनियर इकोनॉमिस्ट एके अवस्थी कहते हैं, “किसानों द्वारा पैदा किए अनाज की प्रोसेसिंग करने की योजना अच्छी है लेकिन किसानों के पास इतना समय नहीं होता कि वो पहले प्रोसेसिंग करें फिर उस अनाज को बाज़ार में बेचें। उन्हें तो अपने अनाज की कीमत जल्द से जल्द चाहिए ताकि वो अपना पेट पाल सकें।’’

यूपी के लखीमपुर खीरी के किसान दिलजिंदर सिंह (32 साल) बताते हैं, “भारतीय किसान मजबूर है वो पैदावार होते ही अपना घर चलाने के लिए अनाज बेच देता है। प्रोसेसिंग करना उसके बस की बात नहीं है। हमारे देश का किसान अमेरिका या यूरोपीय देशों के किसानों की तरह समृद्ध नहीं है। किसान की इसी मजबूरी का फायदा कारोबारी और बड़े आढ़ती उठाते हैं।’’

लखनऊ यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सोमेश शुक्ला कहते हैं, “कारोबारियों की जमात किसानों का इसलिए फायदा उठाती है क्योंकि उनके पास ताकत है लॉबी है किसानों के पास कोई ताकत या लॉबी नहीं है। एक कारोबारी दिवालिया होता है तो वो कंपनी बंद कर देता है। विदेश भागा जाता है लेकिन जब एक किसान दिवालिया होता है तो खुदकुशी करता है। देश के कितने बड़े कारोबारियों के साथ इस तरह का हादसा पेश आता है।’’

यूपी के फैज़ाबाद ज़िले के किसान विवेक सिंह (30 साल) के मुताबिक़, “अगर किसान अपनी उपज की ज्यादा से ज्यादा कीमत चाहता है तो वो खुद अपनी उपज की प्रोसेसिंग करे। लेकिन हर किसान के लिए ये मुमकिन नहीं है। गरीब किसान ज्यादा दिनों तक अपना अनाज अपने पास नहीं रख सकता है।”

 वो अनाज नहीं बेचेगा तो भूखा मर जाएगा। सरकार को चाहिए की मौजूदा एमएसपी पर दोबारा विचार करे और कीमतों को दोबारा रिवाइज़ करे। किसान प्रोसेसिंग तभी कर पाएगा जब सरकार उसे इस तरह की सुविधाएं मुहैया कराएगी। क्योंकि गरीब किसान के लिए ये बिलकुल भी संभव नहीं है कि वो पहले फसल पैदा करे और फिर उसकी प्रोसेसिंग के लिए दूसरी चीज़ों की व्यवस्था करे।

 

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