मौसम का बदलाव किसान के पेट पर लात मार रहा है

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मौसम का बदलाव किसान के पेट पर लात मार रहा है

देश की मशहूर पर्यावरणविद् एवं सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की डायरेक्टर जनरल सुनीता नारायण देश की

वो बुलंद आवाज़ हैं जिनका हमेशा यह मानना रहा है कि भारत का पर्यावरणवाद, असल में गरीबों का पर्यावरणवाद है। गाँव कनेक्शन के लिए वसंती हरिप्रकाश ने उनसे हाल ही में दिल्ली में बातचीत की।

सवाल : भारत से हज़ारों मील दूर पेरिस में विश्व के बड़े नेता 'कोप-21 सम्मेलन' में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने को मिले। आप हमें सरल भाषा में बताएं इसका मतलब और इसका क्या परिणाम पड़ रहा है हमारे देश के किसानों पर?   

जवाब : हमें कोई लेना-देना नहीं है शब्दों से। (जलवायु परिवर्तन) वैसे भी इसका मतलब क्या है? अंग्रेजी में क्लाइमेट चेंज कहते हैं। क्लाइमेट चेंज का क्या मतलब है? ये तो साइंटिफिक बड़े-बड़े सूटेड-बूटेड जो लोग हैं उनके लिए काम का है। मगर मैं जानती हूं इस देश का हर किसान आज जानता है कि मौसम बदल रहा है। हर किसान ये जानता है कि आज जो चीजें हो रहीं है वो मैंने अभी तक नहीं देखी है। बेमौसम वर्षा हो रही है, बेमौसम ओले पड़ रहे हैं, जिस तरह से गर्मी पड़ रही है, सर्दी पड़ती नहीं है, जिस महीने आप जानते हैं पडऩी चाहिए। ये जो मौसम का बदलाव हो रहा है ये हमारे पेट के ऊपर लात मार रहा है। किसान मर रहा है और आप इसको जलवायु परिवर्तन कह लें या क्लाइमेट चेंज कह लें। प्रदूषण विकसित देशों, अमीर देशों और भारत के अमीर जिस ईंधन का इस्तेमाल करते हैं जिससे प्रदूषण होता है, उससे  धरती के अन्दर गर्मी बढ़ रही है, मौसम में बदलाव हो रहा है वही आज हमें देखने को मिलता है। 

सवाल : वर्ष 2013 में मौसम बदलाव सेे देश के 15 राज्यों में करीब 180 लाख हेक्टेयर ज़मीन को नुकसान पहुंचा। आपकी संस्था सीएसई ने सर्वे भी किया, उत्तर प्रदेश के मथुरा, शामली, मुजफ्फरनगर और आगरा जिलों में। इतनी सारी समस्याओं में क्लाइमेट चेंज से ताल्लुक रखने वाला, सबसे ज्य़ादा कौन सी चीज आपको परेशान करती है?

जवाब : देखिए, दो चीजें हैं जो मुझे बहुत परेशान करती हैं, जब मैं खेती के बारे में सोचती हूं, किसान के बारे में सोचती हूं। एक हमने हमारे देश में, कभी पूरी तरह से पानी के ऊपर ध्यान नहीं दिया। पहले जो 50 साल भारत के रहे उसमें हम लोग यही सोचते रहे कि हमारी बड़ी-बड़ी सिंचाई की योजनाएं आएंगी और उससे लोगों तक पानी पहुंचेगा। हर खेत में पानी पहुंचेगा। वो सिंचाई की योजना आई, कम आई, और अगर आईं भी तो बहुत मुश्किल से आज भी काम कर रहीं हैं। उसके बाद जो पैसा हमें लगाना था सिंचाई योजना में हमने नहीं लगाया। सरकार की तरफ से तो वो योजनाएं आई ही नहीं लेकिन एक जो विकल्प का तरीका हो सकता था कि आप पानी रोकिए, हर गाँव में पानी रोकिए, हर गाँव के तालाब के अन्दर पानी रोकिए, भूजल की मात्रा आप किस तरह बढ़ा सकते हैं उसके बारे में सोचिए, किसान वर्षा के ऊपर पूरी तरह से निर्भर है, उनके पास और कोई उपाय नहीं है और अगर वर्षा देर से आती है, कम आती है, बेमौसम की वर्षा। उससे उनकी कमर टूटती है। 

तो अगर पानी के ऊपर हम ध्यान देते हैं, हर खेत में पानी पहुंचाते हैं और वर्षा का पानी रोकते हैं, उससे खेती की पैदावार पर बहुत फर्क पड़ता है। अभी भी देश के 50 से 60 फीसदी किसान वर्षा पर निर्भर हैं। अगर आप देखें तो ये भी आंकड़ा कम है क्योंकि अगर आप इसमें उन किसानों को जोड़े जो भूजल पर निर्भर हैं, तो फिर ये होता है कि 80 फीसदी आज किसान वर्षा पर निर्भर है। मुझे लगता है कि पानी के ऊपर हमें बहुत काम करना चाहिए।

और दूसरी जो मेरा सबसे बड़ी चिंता है वो यही है कि जो पैदावार है, जो किसान की लागत बढ़ती जा रही है। मगर दूसरी तरफ से हम गरीब देश भी हैं और सरकार का पूरा इन्ट्रेस्ट रहता है कि कीमत को रोक के रखें। अगर कीमत बढ़ेगी तो सरकार को लगता है कि महंगाई बढ़ेगी और लोगों को खाने की दिक्कत होगी, तो उससे किसान ही मरता है। क्योंकि किसान की लागत बढ़ती जा रही है मगर सरकार वो कीमत दे नहीं पाती। तो ये जो बहुत बड़ा सवाल है हमारे सामने। पूरी दूनिया में जहां किसान को सब्सिडाइज़ किया जाता है, हमारे देश में हम किसान के नाम पर हम फर्टीलाइज़र कम्पनी को पैसा देते हैं। मुझे लगता है ये कुछ चीजें हैं जिनके बारे में खुलकर बात होनी चाहिए और कुछ नयी दिशा निकलनी चाहिए। क्योंकि जो भी हमने आज तक किया है उससे खेती के अन्दर परेशानियां बढ़ी हैं, कम नहीं हुई हैं।

सवाल : इस पर सरकार क्या कर सकती है और एक किसान अपने स्तर पर क्या कर सकता है?

जवाब : देखिए, ये बहुत मुश्किल है। मुझे लगता है सरकार के दो जो सबसे बड़े सवाल होने चाहिए उनमें एक पानी का सवाल होना चाहिए। आपके पास मनरेगा है बड़ी-बड़ी सिंचाई योजनाएं हैं। मगर आपने उनको ठोस तरीके से देखा नहीं है, ठोस तरीके से काम नहीं किया है। मुझे लगता है सबसे बड़ी सरकार की चिन्ता पानी होनी चाहिए।

सवाल : आपने पहले भी मनरेगा के बारे में काफी कुछ कहा हैï?

जवाब :  हम शुरुआत से यही कहते आए हैं कि मनरेगा का जो पैसा है वो प्रोटेक्टिव एसिट में जाना चाहिए। (ऐसी चीज़ों में जाना चाहिए जो काम की चीज़ हों।) आज जो मनरेगा का पैसा है वो गड्ढा खोदने में और सड़क बनाने में जाता है और मैंने देखा है कि एक सीज़न में वो सड़क बह जाती है और दिमाग में सबके यही रहता है, कि अगर एक सीज़न में नहीं बहेगी तो अगले साल काम क्या करेंगे? तो ये तो बिल्कुल ही फिज़ूलखर्चा हुआ। जहां आज सबसे बड़ी जरूरत है मनरेगा का पैसा और ज्यादा पैसा लगना चाहिए पानी के काम में, ज़मीन के काम में। अगर निजी कुएं के लिए पैसा देना है तो देना चाहिए, ताकि भूजल रीचार्ज हो सके। ये जो हम बार-बार सोचते हैं कि किसान को जब भी कुछ पैसा देते है, ये सब्सिडी है, आपको और मुझे जो पैसा मिलता है हमारा जो पीने का पानी है उसमें भी सरकार की सब्सिडी होती है उसको सब्सिडी नहीं कही जाती। वैसे किसान खुद क्या कर सकते हैं? मैं किसान को क्या राय दूं मेरी कोई औकात नहीं है, वो सब जानते हैं उन्हें क्या करना है, सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सरकार की बनती है।

 

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