फसल में विविधता, औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती के माध्यम से किसान बढ़ा रहे हैं अपनी आय

किसानों को हमेशा खेती में जोखिम का सामना करना पड़ता है, कभी आवारा पशुओं और कीटों से तो कभी तापमान बढ़ने की घटनाओं से। किसानों के नुकसान को कम करने और उनकी आय को बढ़ाने के उद्देश्य से सीएसआईआर-सीआईएमएपी और उत्तर प्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती पर एक कार्यशाला का आयोजन किया।

Ramji MishraRamji Mishra   25 July 2022 1:40 PM GMT

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कटिया (सीतापुर) उत्तर प्रदेश। उदय राज चौहान अपनी 5 एकड़ जमीन पर गेहूं और धान की खेती करते थे। कुछ साल पहले, उन्होंने मेंथा की खेती की तरफ रुख किया, तब से यह मुनाफा कमा रहे हैं।

सीतापुर के परागी पुरवा गाँव के 35 वर्षीय किसान ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं अपनी पांच एकड़ जमीन पर मेंथा की खेती कर रहा हूं। मैं आसानी से प्रति एकड़ लगभग 90 हजार रुपये तक कमा लेता हूं, जबकि प्रति एकड़ में लागत 25 हजार रुपया तक आती है। मेंथा की खेती से पहले मैं गेहूं और धान की खेती करता था। जिससे 50 हजार रुपया कमाना भी मुश्किल था।"

चौहान राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 88 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के कार्यशाला में हिस्सा लेने आए थे, जिसका उद्देश्य किसानों को सुगंधित और औषधीय फसलों की खेती करने का सुझाव देकर उनकी आय बढ़ाने में मदद करना था।

इस महीने की शुरुआत में 5 जुलाई को आयोजित हुई कार्यशाला, किसानों का आय बढ़ाने के सरकारों के प्रयासों का एक हिस्सा थी। इस कार्यशाला को कटिया स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में CSIR-CIMAP (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय औषध एवं सगंध अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था । कार्यक्रम में कम से कम 50 किसानों ने भाग लिया था।

लखनऊ स्थित सीआईएमएपी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सौदान सिंह, जो इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भी थे, ने गाँव कनेक्शन को बताया, "इस कार्यशाला का बुनियादी उद्देश्य किसानों को उनके नुकसान को कम करने के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों के गुणों का उपयोग करने के तरीकों के बारे में बताया था अपनी उपज में विविधता लाने के तरीकों की तलाश करने वाले किसानों के लिए, ऐसी फसलें एक अच्छा विकल्प हो सकती हैं।"

इस महीने की शुरुआत में 5 जुलाई को आयोजित कार्यशाला में किसानों को औषधीय पौधों की खेती के फायदे बताए गए।

औषधीय और सुगंधित पौधे वानस्पतिक कच्चे माल हैं, इन पौधों को हर्बल दवाओं के तौर पर भी जाना जाता है, जिनका उपयोग ज्यादातर सौंदर्य प्रसाधन, स्वास्थ्य, औषधीय उत्पादों और अन्य प्राकृतिक स्वास्थ्य उत्पादों के घटकों के तौर पर औषधीय, सुगंधित और पाक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

वैज्ञानिकों ने कार्यशाला में मेंथा के अलावा लेमन ग्रास, खस, तुलसी और पामारोजा सहित अन्य सुगंधित फसलों के बारे में भी जानकारी दी।

सीतापुर में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक राकेश कुमार ने खुशबूदार पौधों की खेती में दिलचस्पी रखने वाले किसानों को आवश्यक जानकारी प्रदान की।

लेमन ग्रास

राकेश कुमार ने बताया कि सीतापुर जिले की मिट्टी और टोपोग्राफी के आधार पर, लेमन ग्रास जैसी कई सुगंधित पौधों की खेती की जा सकती है। वैज्ञानिक ने बताया, "लेमन ग्रास की पांच मुख्य किस्में हैं- कृष्णा, सिम-शिखर, सिम-स्वर्ण, चिरहरित और कावेरी। यह एक ऐसी फसल है जिसे बुवाई के बाद कई बार काटा जा सकता है।"

सिंचाई सिस्टम उपलब्ध होने पर एक हेक्टेयर जमीन पर लेमन ग्रास की खेती के लिए एक बार की लागत 80 हजार रुपये है और मुनाफा 2 लाख रुपये तक का है। अगर सिंचाई उपलब्ध नहीं है तो इनपुट लागत लगभग 45 हजार रुपये है और लाभ लगभग 1 लाख 20 हजार का है।

उन्होंने समझाया, "इस फसल की खास बात यह है कि इसकी खेती उन जमीनों पर भी की जा सकती है जिसकी सिंचाई नहीं होती है। इसलिए, यह धान जैसी मुख्य फसलों की तुलना में बेहतर विकल्प है, जो पानी की खपत वाली फसल है।"

वैज्ञानिक ने आगे बताया कि एक हेक्टेयर सिंचित भूमि की लेमन ग्रास से 200 से 250 लीटर तेल पैदा होता है और यह लगभग पांच वर्षों तक मुनाफा देती रहती है। असिंचित भूमि पर यह 100 लीटर से 125 लीटर तक तेल का उत्पादन करती है।

पामारोजा

पामारोजा या रोशा घास की चार मुख्य किस्में - पीआरसी -1, तृष्णा, तृप्त और सीआईएमएपी हर्ष हैं। लेमन ग्रास की तरह पामारोजा भी लगाए जाने के बाद कई सालों तक मुनाफा देता है।

लेमन ग्रास की तरह ही पामारोजा की खेती बिना सिंचाई के भी की जा सकती है लेकिन सिंचाई उपलब्ध होने पर फसल बेहतर होती है।

वैज्ञानिक कुमार बताया, "सिंचित भूमि पर, इनपुट लागत लगभग 50 हजार रुपये है, जबकि वार्षिक लाभ आसानी से 150,000 रुपये हो सकता है। अगर सिंचाई उपलब्ध नहीं है, तो इनपुट लागत लगभग 30 हजार रुपये और मुनाफा 80,000 रुपये तक हो सकता है।"

उन्होंने बताया, "किसानों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जिस खेत में पल्मरोज की खेती की जा रही है, उसमें पानी जमा न हो क्योंकि पानी इस फसल को खराब कर देता है। पल्मरोज की पत्तियों और फूलों दोनों में सुगंधित तेल होता है जिसकी मांग दुनिया भर में है।"

तुलसी

तुलसी की चार मुख्य किस्में - सिम-सौम्या, सिम ज्योती, सिम शारदा और सिम सुवाश हैं।

कुमार ने कार्यशाला में किसानों को बताया,"तुलसी की फसल साल में तीन बार काटी जाती है और इसकी पत्तियों का उपयोग फार्मास्यूटिकल्स, साबुन बनाने के लिए किया जाता है, और अरोमाथेरेपी के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। एक हेक्टेयर भूमि पर, इसकी खेती के लिए 40,000 रुपये की लागत आती है, जबकि सालाना लाभ एक लाख रुपये तक होता है।

एक हेक्टेयर तुलसी की फसल में लगभग 1 कुंटल 20 किलो तक तेल निकलता है।

खस

खस को वेटिवर के नाम से भी जाना जाता है, इसकी जड़ों को इस्तेमाल किया जाता है जिसमें खुशबूदार तेल होता है। तेल का उपयोग साबुन, इत्र, कमरे के स्प्रे, ताज़ा पेय जैसे उत्पादों के निर्माण के लिए और अन्य सुगंधित तेलों जैसे गुलाब का तेल, चंदन का तेल, लैवेंडर का तेल आदि में मिश्रण के लिए किया जाता है।

कुमार ने कार्यशाला में किसानों से कहा कि खास की जड़ों को आवश्यक तेल के लिए तैयार होने में लगभग 12 महीने लगते हैं।

कुमार ने समझाया, "खर्चों की बात करें तो प्रति हेक्टेयर खस की खेती की लागत लगभग 120,000 रुपये से 150,000 रुपये तक है, लेकिन मुनाफा इनपुट लागत से लगभग दोगुना है।"

औषधीय और सुगंधित फसलों के उगाने के लाभ

कटिया स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक दया शंकर श्रीवास्तव ने गांव कनेक्शन को बताया कि भले ही किसानों को पूरी तरह से नई नकदी फसल को अपनाने में आपत्ति और दिक्कत हो, फिर भी वह अपनी मुख्य खेती के अलावा ऐसी फसल उगा सकते हैं।

श्रीवास्तव ने बताया, "गेहूं और धान जैसी फसलों के साथ साथ इन औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह कीटनाशकों पर हो रहे खर्च को काफी कम करता है। गेहूं और चावल की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े उस खेत पर नहीं मंडराते हैं, जहां पर यह सुगंधित पौधे होते हैं।"

मेंथा जैसे सुगंधित और औषधीय पौधों के किसानों के लिए कई लाभ हैं और इसमें जोखिम कम होता है और फायदे अधिक होते हैं।

कुमार ने बताया, "इन पौधों की तेज सुगंध जानवरों को चरने से रोकती है जो किसानों को एक बड़ा जोखिम पैदा करते हैं। साथ ही फायदे का मार्जिन गेहूं और धान की तुलना में काफी ज्यादा है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए लगातार काम कर रही है। लेकिन अगर किसान मेंथा जैसी फसल उगाने की पहल करते हैं, तो उनकी आय लगभग तीन से चार गुना तक बढ़ सकती है।"

वैज्ञानिक ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मेंथा जैसी सुगंधित फसलों की भी मुख्य फसलों की तरह लंबी शेल्फ लाइफ होती है और भारत को इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ ही दुनिया भर में इसकी बहुत बड़ी मांग है।

श्रीवास्तव ने बताया, "फसल में विविधता भी मिट्टी की उर्वरता की लंबी उम्र सुनिश्चित करने में मदद करती है क्योंकि यह मोनोकल्चर (भूमि पर समान फसलों की वृद्धि) की जांच करता है और समय के साथ मिट्टी से पोषक तत्वों को खत्म नहीं करता है।"

किसानों की आय बढ़ाने का पक्का तरीका

इस बीच, कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक राकेश कुमार ने बताया कि मेंथा के अलावा पचौली, जेरेनियम, जंगली गेंदा, गुलाब, अश्वगंधा, कालमेघ, एलोवेरा और मेहंदी जैसी फसलों की भी बाजार काफी मांग है। और सीतापुर का जलवायु उनके उत्पादन के अनुकूल भी है।

उन्होंने बताया, "ये औषधीय और सुगंधित फसलें आसानी से किसानों की आय कई गुना तक बढ़ा सकती हैं। चूंकि किसानों को शुरुआत में इन फसलों की खेती महारत हासिल करने में कुछ कठिनाई होगी, इसलिए हमारे जैसे वैज्ञानिक हमेशा उन्हें सलाह देने और तकनीकी समस्याओं से निपटने में मदद करने के लिए मौजूद हैं।"

कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों में से एक सत्येंद्र कुमार शुक्ला ने सवाल किया कि उपज की गुणवत्ता का पता कैसे लगाया जाए।

शुक्ला ने खुशी से बताया,"मैंने समारोह में वैज्ञानिकों से इसके बारे में पूछा। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि मेरे जैसे किसान कृषि विज्ञान केंद्र में अपनी उपज का नमूना ला सकते हैं और उसकी गुणवत्ता की जांच करवा सकते हैं, जिसके बाद एक गुणवत्ता प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा जो कि व्यापारियों के साथ सभी विवादों और असहमति को समाप्त कर दे।"

्सीरतापुर में हुई यह कार्यशाला सीएसआईआर के अरोमा मिशन का हिस्सा था, जिसको 2016 में जम्मू कश्मीर से शुरू किया किया गया था इसी वजह से इस मिशन को बैंगनी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, इस मिशन के तहत किसानों ने कामयाबी के साथ लैवेंडर फूलों की खेती की शुरुआत की, जिससे उन्हें अपनी आय बढ़ाने में मदद मिली।

अरोमा मिशन का एक बुनियादी मकसद भारतीय किसानों और घरेलू सुगंध उद्योग को बड़े पैमाने पर मेन्थॉल उत्पादन की तर्ज पर कुछ प्रमुख आवश्यक तेलों के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक नेता बनने में सक्षम बनाना है।

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