इस युवा किसान ने समझाया गणित, देश के किसान क्यों अपनाएं जहरमुक्त जैविक खेती

राजस्थान के युवा किसान गजानंद बताते हैं, “साल 2004-05 में मैंने मन बना लिया कि अपने नए काम से मुझे लाभ तो कमाना ही है, लेकिन ऐसा लाभ जिससे किसानों को भी लाभ हो। मेरे साथ साथ सभी को लाभ हो, न कि सिर्फ मुझे ही लाभ हो।

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इस युवा किसान ने समझाया गणित, देश के किसान क्यों अपनाएं जहरमुक्त जैविक खेती

मोईनुद्दीन चिश्ती

देश के नागरिकों को स्वस्थ रखने और किसानों को जहरमुक्त जैविक खेती के लिए प्रेरित करने में अपने जीवन की पूरी ऊर्जा से जुटे जयपुर के युवा किसान वैज्ञानिक गजानंद अग्रवाल आज की तारीख में जैविक खेती को प्रमोट करने में जुटे हुए हैं। समूचे देश में आज उनके जैविक नवाचारों की तूती बोलने लगे गई है।


"देश भर में जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और ऐसा हो भी क्यों न? हमारा भविष्य भी तो खेती के इसी शुद्ध स्वरूप से जुड़ा है। हम शुद्ध सब्जियां और अनाज ग्रहण करेंगे तो सब कुछ सही होगा, ठीक इसके विपरीत रासायनिक उर्वरकों और सीवरेज के गंदे पानी से सींची फसल हमको कितना बीमार कर सकती है- यह अंदाजा हम खुद ही लगा सकते हैं। जैविक खेती को एक व्याख्या द्वारा समझा जा सकता है। जीवों से, जीवों द्वारा और जीवों के लिए हो रही खेती ही जैविक खेती है।"

यह कहने वाले युवा किसान वैज्ञानिक गजानंद अग्रवाल से बीते दिनों जयपुर में विशेष बातचीत हुई। जयपुर से 40 किलोमीटर दूर धानोता गाँव के रहने वाले गजानंद को ताऊ जी की कैंसर से मौत होने के बाद जैविक खेती से जोड़ दिया। साल 2000 में गजानंद को एक कृषि कंपनी में नौकरी मिल गई और किसानों के बीच उठने-बैठने लगे।

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गजानंद ने न सिर्फ किसानों की तकलीफों को समझा, बल्कि खेती की समझ को भी विकसित किया। गजानंद बताते हैं, "मुझे जल्द समया आया कि किसान का जीवन सच्चे अर्थों में हम लोगों के लिए ही है। तब तो हमें भी अपने जीवन में इनको फायदा हो, ये सोचकर बदलाव करने चाहिए। तब मैंने वो जॉब छोड़ दी। सोचा जिनका सारा जीवन हमारे लिए खर्च हो जाता है, उनको लाभ हो- ऐसा कुछ किया जाना चाहिए।"

गजानंद बताते हैं, "साल 2004-05 में मैंने मन बना लिया कि अपने नए काम से मुझे लाभ तो कमाना ही है, लेकिन ऐसा लाभ जिससे किसानों को भी लाभ हो। मेरे साथ साथ सभी को लाभ हो, न कि सिर्फ मुझे ही लाभ हो। तब शुरू हुआ सफर 2007-08 तक खेती की व्यवस्थाओं को समझने में ही गुज़र गया।"

तैयार की किसानों के प्रॉफिट लॉस की बैलेंस शीट

गजानंद बताते हैं, "इस बीच मैंने किसानों के साथ गुज़ारे समय को ध्यान में रखते हुए एक बैलेंस शीट तैयार की जिसमें उनके द्वारा जुताई से लेकर फसल की कटाई, मंडी में उपज ले जाने तक और अंत में बचे लाभ तक को जोड़ा, किसान के पास चाहे एक एकड़ जमीन है या एक हेक्टेयर। जब ये बैलेंस शीट लेकर मैं किसानों के बीच गया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। खेती तो किसानों के लिए लाभ का सौदा ही नहीं है। क्यों नहीं है? इसके पीछे की भी सारी कहानी समझ में आई।"

वह कहते हैं, "किसान जुताई, कटाई, मंडी पहुंचने तक के खर्चों का विवरण नहीं रखता, इसी कारण उसे नुकसान होता है क्योंकि वह खर्च अधिक करता है पर उसका गणित नहीं रखता, जोड़ता। इस नुकसान से बचने के लिए लागत खर्चों में छुपे हुए खर्चों को पहचानना जरूरी होता है जिनकी वास्तव में कोई जरूरत नहीं होती।"

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गजानंद कहते हैं, "मैंने सोचा कि ऐसी कौनसी जरूरतें हैं, जिन्हें वास्तव में कम किया जा सकता है। खेती, एक व्यापार से अलग कैसे है? यह बात भी समझ में 2009-10 में आई। मैंने 2007 में वर्मी कंपोस्ट आधारित अपने काम की शुरुआत की। मैंने पाया कि खेत की चीज़ों को खेत में इस्तेमाल न करने, मूल्य संवर्द्धन न करने की वजह से किसान को घाटा होता है। जिन आदानों की खेती में वास्तविक रूप में कोई जरूरत नहीं है, उनकी खरीद बन्द कर दे तो भी लाभ होना शुरू हो सकता है। जब उसकी लागत कम होगी, आय में बढ़ोतरी होगी। जब आय में बढ़ोतरी होगी तो निश्चित रूप से उसे एक एकड़ में भी फायदा होगा और एक हेक्टेयर में भी।"


'जैविक खेती है सर्वोत्तम विकल्प'

गजानंद बताते हैं, "किसान को मुनाफा कमाने के लिए उसे अपने खेती के तरीकों में बदलाव करना होगा। मैं इस बात का पक्षधर हूं कि किसान जैविक खेती अपनाए, साथ ही मैं इस बात का भी पक्षधर हूं कि किसान अपनी लागत और आदानों के खर्चे कम करते हुए आय बढ़ाने के लिए जैविक खेती की ओर अग्रसर हो।"

वह कहते हैं, "किसान के लिए पहला लक्ष्य है कि वह अपनी आमदनी को कैसे बढ़ाए? और आमदनी बढ़ाने का विकल्प जैविक खेती है। जैविक खेती में भी सर्वोत्तम विकल्प वह है जिसमें उसे बाज़ार पर निर्भर न होना पड़े, जैविक खेती वह नहीं जिसमें अंततः बाज़ार पर ही निर्भर होना पड़े। किसानों को ‛खुद का खेत, खुद का व्यापार'पद्धति अपनानी होगी। किसान को चाहिए कि वह खुद के खेत से शुरुआत करें, खेती में जैविक पद्धतियों का समावेश करें वह भी खेती से ही, बाहरी आदानों पर निर्भरता छोड़ें। आज मैं इस सोच को मुहिम बनाकर कार्य में जुटा हूं।"

'खेती और जैविक खेती के अंतर को समझना होगा'

किसान गजानंद कहते हैं, "सबसे पहले हमें खेती के स्वरूप को समझना होगा। खेती तो पौराणिक काल से होती आ रही है। पहले खेती वहां होती थी, जहां पानी के स्त्रोत हुआ करते थे और जिन लोगों के पास खेती हुआ करती थी, उनके पास पशुपालन हुआ करता था। पशुपालन और खेती एक दूसरे के पूरक हैं, आज ये बात हम भूल गए हैं। मान लेते हैं कि पहले की खेती का आकार, किसानों की समझ, उत्पादित आदानों को बेचने के लिए विपणन व्यवस्था की कमी थी- फिर भी वह लाभ का सौदा थी। लागत में कटौती, इस लाभ की पहली शर्त हुआ करती थी। वह जो खेती थी, सच में जैविक खेती थी। लेकिन आज हम बीज के लिए बाज़ार पर निर्भर हो गए हैं। भले हमें ऐसा करने से लाभ हुआ हो पर पर लाभ तार्किक नहीं क्षणिक लाभ है।"

'वर्मी कंपोस्ट को लेकर आज तक दुविधा'

किसान गजानंद बताते हैं, "देश में 1990 के बाद से वर्मी कंपोस्ट के लिए लाखों रुपये सरकार की ओर से खर्च किए गए। घर घर जाकर केंचुए पहुंचाए गए, गड्ढे खुदवाए गए, पशुओं का मल विष्ठा भी डलवाया गया। केंचुए मरने की शिकायत भी आई। मैंने अपनी रिसर्च में पाया कि किसी के भी पास कोई पैरामीटर नहीं हैं इस से संबंधित, न ही कोई गाइडलाइन या बुक है। आज भी यह सवाल खड़े हैं कि इसका आकार क्या होना चाहिए? क्या उत्पादन होगा? एक एकड़ या एक बीघा में उत्पादन से यह लाभ होगा। दूसरी तरफ हमने जो आंकड़े तैयार किए हैं, किसानों के साथ रहकर, अपने अनुभव के आधार पर तैयार किए हैं। दावा है कि वर्मी कंपोस्ट अपनाने से 2 से 3 वर्ष में उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।"

'बुवाई से बाज़ार तक सब सम्भव है जैविक खेती में'


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गजानंद आगे बताते हैं, "छोटी जोत वाले किसानों को जैविक खेती से जोड़कर इतिहास रच सकते हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो सिक्किम जैविक राज्य घोषित हुआ है, क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटा है, पहाड़ी इलाका है। उसने अपनी रासायनिक निर्भरता खत्म करते हुए जैविक खेती को अपनाया है। बुवाई से बाज़ार तक की व्यवस्था विकसित न कर पाना हमारी प्रणाली का ही दोष है। गेहूं एक ही है पर ग्रेडिंग और दूसरे प्रयासों से उसे 20 से 34 रुपए तक में बेचा जा रहा है न! हम किसानों को जागरूक और शिक्षित नहीं कर पा रहे हैं।"

वह कहते हैं, "भोजन का एक बड़ा हिस्सा चांवल और गेहूं है। यदि हम इसी को जैविक खेती के रूप में उपजाना शुरू करें तो भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं। मान लेते हैं मैं जैविक खेती करवाता हूं। मैंने किसानों को एक एकड़ में गेहूं के लिए प्रेरित किया। 500 किसानों ने यदि ऐसा किया और एक एकड़ में गेहूं का उत्पादन 12 से 15 क्विन्टल हुआ। कम से कम आंके तो भी 5000 क्विन्टल उत्पादन तो हुआ ही। स्थानीय बाज़ारों में किसानों द्वारा बेचे जाने से पूर्व उसे 25% अधिक दर से खरीद कर ग्रेडिंग इत्यादि कर बेचा जाए तो किसान के साथ हमको भी फ़ायदा। साथ ही आमजन को भी फायदा की अच्छा उत्पाद खाने को मिला, यही तरीका बुवाई से बाज़ार तक का है। हालांकि इसके पंजीकरण के तरीकों में सरलीकरण की अभी गुंजाइश है।"

'सरकारी अनुदान से सस्ते उत्पाद देने में मास्टरी'

जयपुर में ‛दिशा ऑर्गेनिक साइंस टेक इंडस्ट्रीज' और ‛किसान कैंटीन' के नाम से अपनी संस्थान चलाने वाले गजानंद अग्रवाल को ये हुनर भी हासिल है कि वे सरकारी अनुदान से भी कम कीमतों में अपने उत्पाद किसानों को मुहैया करवा सकते हैं। वे कहते हैं,"सब्सिडी न हो और स्वतंत्र व्यवस्था हो तो किसानों को उपलब्ध होने वाले उत्पाद 25% तक सस्ते हो सकते हैं। एचडीपीई वर्मी कंपोस्ट बेड 16000 रुपये का है, सरकारी अनुदान के बाद ये 8000 रुपये में किसान को दिया जाता है और हम मात्र 7000 रुपये में ही दे रहे हैं। हमने अब तक 15 से 20 हज़ार बेड देश के सभी राज्यों में भेजे हैं। यह सब हमारी निजी ख़रीद और निजी विपणन व्यवस्था के चलते संभव हुआ।"

'वर्मी कंपोस्ट के लाभों से अभी भी किसान परिचित नहीं हैं'



वर्मी कंपोस्ट को आज तक किसानों ने खाद का स्वरूप माना है। किसान का तर्क है,"यूरिया, डीएपी डालने से उत्पादन हुआ है तो केंचुआ खाद की जरूरत क्यों?" गजानंद जवाब देते हैं,"केंचुआ किसानों का मित्र है। अपने शरीर के कुल वजन का 5 गुणा मल विष्टा प्रतिदिन त्याग करता है। यदि केंचुए किसानों के खेतों में हों तो 5 साल बाद हल से जुताई की जरूरत ही नहीं रहेगी। लाखों टन मिट्टी को उथल पुथल करने की सामर्थ्य है उनमें। वर्मी कंपोस्ट खाद का स्वरूप नहीं, बल्कि सूक्ष्म जीवों का भोजन है। जैसे हम कच्चा आटा नहीं खा सकते, उसी प्रकार खेत में डाले गए गोबर को भी ये सूक्ष्म जीव नहीं खा सकते, क्योंकि कच्चा है। केंचुए से उत्पादित स्वरूप खेत में मौजूद सूक्ष्म जीवों के लिए आवश्यक है।"

(अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: गजानंद अग्रवाल, 11 नम्बर बस स्टॉप के पास, बेनाड़ फाटक-बेनाड़ स्टैंड, बेनाड़ रोड़, जयपुर- 302012 (राज.) मोबाइल- 08432294052)

(लेखक देश के जाने माने कृषि पत्रकार हैं)

     

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