कम बारिश के बाद अब धान की फसल को प्रभावित कर रही है नई बीमारी

धान की फसल में बीच में कहीं कहीं पौधे बौने रह गए हैं, जबकि अन्य पौधों की पूरी वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों ने धान के पौधों का अध्ययन किया और पाया कि यह बीमारी एक वायरस फीजीवायरस (fijivirus) की वजह से हुई है, इसे सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस' (SRBSDV) भी कहते हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   1 Sep 2022 12:18 PM GMT

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कम बारिश के बाद अब धान की फसल को प्रभावित कर रही है नई बीमारी

उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के जसपुर के किसान पीसी वर्मा अपने धान के खेत में लगे रोग को दिखाते हुए। सभी फोटो: अरेंजमेंट 

जहां एक तरफ कई राज्यों में कम बारिश की वजह से धान की खेती प्रभावित हुई है, वहीं पर अब कई राज्यों में एक नई बीमारी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।

किसान पीसी वर्मा ने हर बार की तरह इस बार भी धान की बढ़िया किस्म लगाई की अच्छा उत्पादन मिलेगा, लेकिन उनकी फसल की वृद्धि रुक गई है। ये सिर्फ पीसी वर्मा अकेले की परेशानी नहीं है, कई राज्यों में धान की फसल में बौना रोग देखा जा रहा है। जोकि सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस' (SRBSDV) रोग है।

पीसी वर्मा उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के जसपुर के रहने वाले है, उन्हीं की तरह ही पंजाब और हरियाणा में धान के पौधे बौने हो गए। कृषि विज्ञान केंद्र, काशीपुर के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. जितेंद्र क्वात्रा बताते हैं, "अभी जसपुर के चारे किसानों की फसल में यह रोग देखा गया है, पंजाब के लुधियाना कृषि विश्वविद्यालय में विकसित धान की पीआर-121 और पीआर 130 प्रजाति में यह रोग देखा जा रहा है।"

वो आगे बताते हैं, "अगर किसी किसान ने एक एकड़ में पीआर -130 की पौध लगाई है तो उसकी पूरी पौध बौनी नहीं हो रही बल्कि चार-पांच प्रतिशत तक पौधे बौने रह जाते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह बौना रोग को लेकर सलाह जारी की है। डॉ अशोक कुमार सिंह कहते हैं, "पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से किसानों की शिकायतें आ रहीं हैं कि उनके खेतों में कुछ बौने पौधे दिख रहे हैं, इन बौने पौधों की संख्या अलग-अलग किस्मों में कम और ज्यादा है, चाहे वो बासमती किस्में हों या गैर बासमती किस्में हों, दोनों में यह शिकायत पायी जा रही है।"


वो आगे कहते हैं, "पीआर 121, पीआर 126, पीआर 114, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1401, इन सभी किस्मों में यह समस्या देखने को मिल रही है। लेकिन मैं बताना चाहूंगा इनका प्रभाव 5 प्रतिशत से लेकर कुछ किस्मों में 10-12 या 15 प्रतिशत तक पायी गई है। कुछ खेतों में यह समस्या दिख रही है कुछ में नहीं दिख रही है।"

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने धान के पौधों का अध्ययन किया और पाया कि यह बीमारी एक वायरस फीजीवायरस (fijivirus) की वजह से हुई है, इसे सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस' (SRBSDV) भी कहते हैं। यह वायरस व्हाइट-ब्लैक प्लांट हॉपर यानी फुदका कीट से बीमार पौधों से स्वस्थ पौधों में प्रसारित होता है। जब यह कीट बीमार पौधों के ऊपर बैठकर उसका रस चूसता है और इसके साथ ही उसका वायरस भी दूसरों पौधों को संक्रमित कर देता है।

इस बीमारी से बचने के लिए व्हाइट-ब्लैक प्लांट हॉपर यानी फुदका कीट का नियंत्रण सबसे जरूरी होता है। खेत में लगे बल्ब के आसपास ये कीट दिखायी देते हैं या पौधे के निचले हिस्से तने में ये दिखायी देते हैं।

गाँव कनेक्शन कम बारिश की वजह से धान की खेती पर पड़ें असर पर धान का दर्द सीरीज कर रहा है। इस सीरीज में प्रमुख धान उत्पादक राज्यों जैसे यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से रिपोर्ट की गई है। रिपोर्ट चिंताजनक हैं, धान की खेती से जुड़े किसान कथित तौर पर फसल के बड़े नुकसान को देख रहे हैं। इस स्थानीय फसल के नुकसान का असर वैश्विक स्तर पर भी पड़ेगा। क्योंकि देश में चावल के उत्पादन में गिरावट से वैश्विक खाद्य आपूर्ति बाधित होने की संभावना है। भारत दुनिया का एक बड़ा चावल निर्यातक है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने सोनीपत, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला और यमुनानगर में 24 क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण से पता चला कि खेत में क्षति 2 से 20 प्रतिशत के बीच थी। सबसे ज्यादा नुकसान पानीपत के खेतों में दर्ज किया गया, जिसमें 20 फीसदी पौधे वायरस से प्रभावित है।

इन लक्षणों को देखते हुए जो बात सामने आती है ये एक विषाणु जनित रोग है। सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस' (SRBSDV) रोग है, जोकि फीजीवायरस (fijivirus) की वजह से होता है।

बौना रोग के लक्षण

बौने पौधों में कल्ले नहीं फूटते हैं और वृद्धि रुक जाती है।

पौधे आकार में छोटे हैं, उनकी वृद्धि नहीं हुई है और उन्हीं के साथ लगाए गए उन्हीं के किस्म के दूसरे पौधे अगर देखें तो उनकी लंबाई काफी बढ़ गई है।

पौधों का रंग गहरे हरे रंग के हैं।

पौधों को उखाड़ते हैं तो ये बड़ी आसानी से उखड़ जाते हैं।

जड़ों का विकास भी इनका बहुत अच्छा नहीं होता है, साथ ही जड़ों कालापन आ गया है।


रोकथाम के उपाय

इस रोग के नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने सलाह जारी की है, इसके अनुसार इस रोग के नियंत्रण के लिए खेत के बंधों और मेड़ों की सफाई करते रहें। खेत में खरपतवार न बढ़ने दें।

रोग की शुरूआती अवस्था में प्रभावित पौधों को उखाड़कर नए पौधे लगाएं।

किसानों को ब्राउन प्लांट हॉपर, ग्रीन प्लांट हॉपर कीट होता है जिसे तेला, चेपा के नाम से भी जानते हैं। इसकी रोकथाम करनी चाहिए इससे बौना रोग आगे फैलता है। इसके नियंत्रण के लिए डाइनेटोफ्यूरान 20 एसजी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या ट्राईफ्लूजोपाइरम 10 एससी 235 मिली प्रति हेक्टेयर या फिर पाइमैट्रोजिन 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव पौधों की जड़ों के पास क इनकी रोकथाम के लिए पेक्सालॉन दवा 94 मिली 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।

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