विदेशी फलों को प्रदेश में मिलेगा बढ़ावा 

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विदेशी फलों को प्रदेश में मिलेगा बढ़ावा केन्द्रीय संस्थान की तरफ से विदेशी फलों के बीजों को प्रदेश में लाने की चल रही है तैयारी

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। अच्छी आमदनी के लिए किसान परंपरागत फसलों के साथ-साथ अब फलों की खेती भी कर रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश में फलों का उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है। केन्द्रीय संस्थान (सीआईएसएच) की तरफ से इस तरह की खेती को बढ़ावा देने के लिए विदेशी फलों के बीजों को प्रदेश में लाने की तैयारी चल रही है।

मलिहाबाद के रहमानखेड़ा (काकोरी) स्थित सीआईएसएच के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन ने बताया, “बहुत से विदेशी फलों की खेती अब देश में शुरू की जा रही है। विदेशी फलों के कई पौधे लगाए गए हैं। जैसे-जैसे लोग जानने लगेंगे इन फलों के बारे में वैसे-वैसे इनकी खेती भी बढ़ेगी।”

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उन्होंने बताया, “ये फल ज्यादातर यूरोप और थाइलैण्ड के हैं। इसके साथ ही कुछ फल तो देखने में देसी फलों की तरह ही दिखते हैं। रंग, आकार और स्वाद में भी ज्यादा अंतर नहीं है।” उन्होंने आगे बताया, “कुछ फल के पौधों को मैंने स्वयं ही प्रयोग के तौर पर लगाकर देखा था। जिसके बाद परिणाम अच्छा देखकर मैंने प्रदेश में भी इसे बढ़ावा देने का विचार किया है। प्रदेश की जलवायु में अगर ये विदेशी फलों के पौधे विकसित हो जाते हैं तो इनकी खेती शुरू कराई जा सकती है।”

डॉ. शैलेन्द्र राजन का कहना है, “प्रयोग के बाद और सही तकनीक के साथ इनके सफल परिणाम के बाद ही इन पौधों को प्रदेश में लोगों को दिए जाएंगे। जो पौधे हमारे पास हैं उन्हीं से ग्राफ्टिंग (कलम बांधने का काम) के जरिए कई पौधे तैयार कर सकते हैं। अब हमें पौधे मंगवाने की जरूरत नहीं है।”

औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र, मलिहाबाद के मुख्य उद्यान विशेषज्ञ डॉ. अतुल कुमार बताते हैं, “लीची और अंगूर भी भारतीय फल नहीं हैं। लोगों ने उसके बारे में जाना, शुरुआत की और अब देखिए, देश में कई जगह इसकी खेती की जा रही है। ऐसे ही लीची भी है।” उन्होंने बताया, “अब हाइब्रिड किस्मों की वजह से भी इन फलों (लीची और अंगूर) की गुणवत्ता में सुधार आ गया है। इसके साथ ही किसानों के लिए भी राहत है कि कम समय और लागत में इन्हें विदेशी फलों से अच्छा उत्पादन मिल रहा है।”

ये हैं कुछ विदेशी फल जो प्रयोग के बाद प्रदेश में लगाए जा सकते हैं

ड्रैगेन फ्रूट

इस फल की खेती मुख्य रूप से नीदरलैंड, इजरायल, श्रीलंका, वियतमान, थाइलैण्ड में की जाती है। प्रदेश के कौशाम्बी जिले में इसकी खेती प्रयोग के तौर पर की जा रही। जिला उद्यान अधिकारी अखण्ड प्रताप सिंह की ओर से 7,000 ड्रैगेन फ्रूट के पौधे जिले के किसानों में बांटे गए। भविष्य में इसके उत्पादन को देखते हुए प्रदेश सहित पूरे देश में इसको बढ़ावा दिया जा सकता है। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग (कौशाम्बी) के वरिष्ठ सहायक सैय्यद ज़फ्फार अस्गर ने बताया, “ड्रैगेन फ्रूट के ये हाइब्रिड बीज कोलकाता से मंगाए गए हैं। वहीं पर बांग्लादेश से इसके बीज मंगवाए जाते हैं। यह फल गुलाबी रंग लिए हुए अन्नास की तरह दिखता है।”

पेपीनो

यह फल पेरू और दक्षिण अमरीका में पाया जाता है। इसे सिक्किम और तमिलनाडु से लाया गया है। वहां भी कहीं-कहीं पर ये फल लगाए गए हैं। इसके साथ राजस्थान के जयपुर में भी इस फल की शुरुआत हो चुकी है। अभी प्रयोग के तौर पर इस फल के कुछ ही पौधे सीआईएसएच के निदेशक द्वारा लगाए गए हैं। इसका पेड़ छोटा होता है। अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाने की वजह से ये फल स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है।

डैन्सी

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से इसके पौधे प्रदेश में उपलब्ध कराए गए हैं। नारंगी रंग का दिखने वाला ये फल किन्नू की तरह ही होता है। यह एक नींबू वर्गीय फल है। इसका छिल्का पतला होता है और यही वजह है कि फल की तुड़ाई के समय इसकी फसल को नुकसान पहुंचने की संभावना बनी होती है।

मुख्य रूप से कैलीफोर्निया में यह पाया जाता है। देश के लुधियाना और जालंधर में कुछ जगह पर इसे लगाया गया है। डैन्सी किन्नू से लगभग दो महीने पहले ही पककर तैयार हो जाता है। इसलिए बाजार में भी इसकी मांग बनी रहती है।

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