केले के गढ़ में किसान ने उगाया 400 ग्राम का केला, न्यू इंडिया कॉन्क्लेव में होंगे शामिल

बाराबंकी के एक प्रगतिशील किसान के खेत में 400 ग्राम केले की पैदावार हुई है। बाराबंकी को यूपी में केले का गढ़ कहा जाता है। पढ़िए प्रगतिशील किसान की कहानी।

Arvind ShuklaArvind Shukla   9 July 2018 12:54 PM GMT

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केले के गढ़ में किसान ने उगाया 400 ग्राम का केला, न्यू इंडिया कॉन्क्लेव में होंगे शामिल

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में केले की फसल तैयार होनी शुरू हो गई है। बाराबंकी के एक प्रगतिशील किसान के खेत में 400 ग्राम प्रति केले तक की पैदावार हुई है। बाराबंकी को यूपी में केले का गढ़ कहा जाता है।

"मेरा केला थोड़ा पहले टूटना शुरू हो गया था, आज बेचने के लिए लखनऊ मंडी ले गया तो तौल के दौरान पता चला कि कई केले 400-400 ग्राम तक के निकले हैं। औसतन केले का वजन 200-300 ग्राम तक का होता है। इसलिए मैं खुश हूं। अच्छी पैदावार हुई है, अब रेट भी अच्छा मिल जाए तो बात बन जाए।" प्रगतिशील किसान अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं। अमरेंद्र बाराबंकी के सूरतगंज ब्लॉक के दौलतपुर गाँव में रहते हैं।


भारत में होती है सबसे ज्यादा केले की खेती

दुनिया में सबसे ज्यादा केला भारत में पैदा किया जाता है। भारत में महाराष्ट्र का भोसावल क्षेत्र केले उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र के साथ ही यूपी, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में भी केले की खूब खेती होती है। यूपी में केले की खेती डेढ़ दशक पहले शुरू हुई और देखते ही देखते ये पूरे देश में छा गया।

टिशू कल्चर के चलते यूपी के केले की देश भर में काफी मांग रहती है। बागवानी विभाग के मोटे अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 40 लाख टन सालाना केले का उत्पादन होता है। अकेले बाराबंकी में ही 1500 हेक्टेयर में केले का क्षेत्रफल है।

"बाराबंकी में केले का न सिर्फ उत्पादन ज्यादा होता है, बल्कि अच्छी क्वालिटी के चलते यहां के केले की मांग भी है। एक एकड़ पर पहले साल में लाभार्थी किसान को 30 हजार 738 रुपए दिए जाते हैं। जबकि दूसरे साल में 10 हजार 246 रुपए दिए जाते हैं।" महेंद्र कुमार, जिला बागवानी अधिकारी, बाराबंकी

वहीं, किसान अमरेंद्र बताते हैं, "बाराबंकी केले का गढ़ बन गया है। हमारे यहां करीब 1500 हेक्टेयर में केले की खेती होती है। विभाग की तरफ से केला किसानों को मदद भी की जा रही है, इस बार भी 100 हेक्टेयर में सब्सिडी का लक्ष्य है। बाराबंकी में केले का न सिर्फ उत्पादन ज्यादा होता है, बल्कि अच्छी क्वालिटी के चलते यहां के केले की मांग भी है।"

अमरेंद्र बताते हैं, "अभी केले की आवक ज्यादा नहीं है। करीब 20 जुलाई के बाद आमद बढ़ जाएगी, लेकिन लखनऊ मंडी के साथ बनारस, गोरखपुर, फैजाबाद, गाजीपुर समेत कई जिलों की मंडियों में जो केले आ रहे हैं, उनके मुताबिक मेरा उत्पादन काफी अच्छी जा रहा है। ये केले की जे नाइन वैरायटी है, जिसका पिछले वर्ष भी अच्छा रिजल्ट मिला था।"

सहफसली खेती से कमा रहे मुनाफा

अमरेंद्र के पास भी करीब 12 हेक्टेयर में केले की खेती है। वो वैज्ञानिक पद्धति से केले की खेती करते हैं। फसल में एक साथ कई फसलें उगाकर वो मुनाफा भी कमा रहे हैं। केले में हल्दी और अदरक की सहफसली खेती करते हैं। अमरेद्र जैसे हजारों किसानों को केले की नर्सरी देने वाली कंपनी जैन के मध्य यूपी मैनेजर रवींद्र वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जी नाइन देश की सबसे बेहतर वैरायटी है। हमारी कंपनी विश्व की सबसे अच्छी तकनीकी के जरिए टिशु कल्चर से पौधे तैयार करती है, जिसके चलते खेत में पौधे लगाने से लेकर हार्वेटिंग तक रोग काफी कम लगते हैं। हम लोग कोको पिट में पौधे सप्लाई करते हैं। बाकी लोग बालू और दूसरी खाद में भरकर पौधे दे देते हैं जो कई बार रोग ग्रस्त हो जाते हैं।" रवींद्र आगे बताते हैं, "हमारे पौधे तय समय यानि 90 दिन में ही रोपाई के लिए हर हाल में बेच भेज दिए जाते हैं। इसलिए देश में सबसे महंगा पौधा होने के बावजूद हमारे पास अभी से अगले वर्ष के लिए बुकिंग जारी है।" रवींद्र के मुताबिक, "केले के पौध जिसमें तैयार की जाती है, उसे मीडिया बोलते हैं और हम लोग काफी क्वालिटी इस्तेमाल का करते हैं।"

यूपी में बाराबंकी के अलावा फैजाबाद का सोहावल ब्लॉक भी कैले की खेती के लिए देशभर में जाना जाता है। बाराबंकी के साथ ही गोंडा, फैजाबाद, लखनऊ, सीतापुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर और प्रतापगढ़ समेत कई जिलों में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से केले की खेती का रकबा बढ़ा है। रविंद्र के मुताबिक एक एकड़ केले में 60 हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक की लागत आती है।उत्पादन अच्छा होने पर डेढ़ से दो लाख रुपए तक का मुनाफा हो सकता है।

लखनऊ विश्वविद्याल और फैजाबाद से पढ़ाई करने वाले अमरेंद्र केला, तरबूज, मशरूम, खरबूजा, हल्दी और खीरा समेत करीब एक दर्जन फसलों की खेती करते हैं। इस इलाके के बाकी ज्यादातर किसानों की तरह उनके घर में पारंपरिक तरीकों से खेती होती थी, लेकिन जिस अनुपात में खेती थी उसके मुकाबले आमदनी काफी कम थीं। लेकिन 3-4 साल पहले जब से खेती की कमान इन्होंने संभाली, खेती के मायने और मुनाफे के नंबर बदल गए हैं। पहले जहां पूरे साल में 15-20 लाख रुपए मिलते थे, अब एक फसल ही इतने रुपए देकर जाती है। अमरेंद्र प्रताप सिंह (32 वर्ष) बताते हैं, "हमारे घर में करीब 250 बीघा जमीन है, जो आंकड़ों में काफी है। लेकिन 2015 तक जब पिता जी और चाचा लोग धान, गेहूं, गन्ना उगाते थे, मुश्किल से 15-20 लाख रुपए मिलते थे, 2016 में मैंने खेती शुरु। पिछले साल 45 लाख रुपए की आमदनी हुई थी, इस बार 2018 ये आंकड़ा 80-85 लाख रुपए सालाना तक पहुंच जाएंगा।"

किसान अमरेंद्र बताते हैं, " मेरी पढ़ाई लिखाई लखनऊ में हुई फिर शिक्षा मित्र के रूप में नौकरी कर ली, गाँव में रहना शुरू किया तो सोचा क्यों ना खेती अपने हाथ में लूं। लेकिन खेती शुरू करने से पहले मैंने कई किसानों के खेतों को देखा, उनके अनुभव, वैज्ञानिक और कृषि अधिकारियों से मिला। फिर वो खेती शुरू की, जिसका नतीजा आज है पिछले वर्ष मेरे खेत में बाराबंकी का सबसे बड़ा और बेहरतीन केला हुआ था, इस बार भी मेरे पूरे खेत में फरवरी महीने में ही फ्लावरिंग (फूल) हो गई थी।" अमरेंद्र की देखादेखी घर के कई युवक भी खेती करने लगे हैं। अमरेंद्र के एक भाई ने पंजाब के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से कृषि में बीएससी करने के बाद मशरूम की बड़े पैमाने पर खेती शुरू की है। अमरेंद्र बताते हैं, "हमारे पास सालाना 500 क्विंटल सालाना मशरूम उत्पादन की यूनिट हैं। हम लोग 100 क्विंटल कंपोस्ट वाले 10 बंगले (अस्थायी-खरपतवार और भूसे वाली यूनिट) बनाते हैं। जिसमें करीब 50 लोगों को रोजगार मिलता है। हमारी देखा-देखी की और ग्रामीणों ने मशरूम उगाना शुरू किया है।"



न्यू इंडिया कॉन्लेव में हुआ चयन, पीएम मोदी होंगे समारोह में शामिल

प्रगतिशील किसान अमरेंद्र को दिल्ली के विज्ञान भवन में 16 जुलाई को होने जा रहे न्यू इंडिया कॉन्लेव शामिल होने के लिए चुना गया है। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हो सकते हैं। इसमें देश भर के युवा और प्रगतिशील किसानों को उनके काम के हिसाब पर वोट के आधार पर चुना गया है। खेती में बेहतर काम करने वाले युवा किसानों को यहां सम्मानित किया जाएगा। यूपी में मेरठ के प्रगतिशील किसान नितिन काजला का भी चुनाव हुआ है। काजला जैविक और प्राकृतिक खेती करते हैं और दूसरे किसानों को भी प्रेरित करते हैं।

       

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