किसानों को बेहतर बाजार दिलाने और लोगों को गुड़ की उपयोगिता समझाने का जरिया बना गुड़ महोत्सव
गुड़ महोत्सव में कई जिलों को किसानों को गुड़ बेचने का मौका मिला, साथ ही उन्हें गुड़ बनाने की नई तकनीक की जानकारी भी दी गई।
Divendra Singh 8 March 2021 12:25 PM GMT
लखनऊ। शिवमोहन पांडेय को पहले जितने गुड़ को बेचने में महीनों लग जाते थे, उतना गुड़ उन्होंने दो दिनों में बेच दिया, शिवमोहन की तरह दूसरे कई किसानों को न केवल अच्छा प्लेटफार्म मिल गया, साथ ही भविष्य के लिए भी ग्राहक मिल गए।
अयोध्या के पिलखावा के युवा किसान शिवमोहन पांडेय (24 वर्ष) भी प्रदेश के दूसरे कई किसानों की तरह लखनऊ में आयोजित गुड़ महोत्सव में गुड़ जैसे कई उत्पाद लेकर आए थे। शिव मोहन बताते हैं, "हम जैसे जैविक तरह से गन्ने की खेती करने वाले किसानों के लिए अच्छी पहल है, दो दिन में लोगों का बहुत अच्छा रिस्पांस मिला। यहां पर हम जैसे ज्यादातर किसान जैविक तरीके से गन्ने की खेती करने वाले किसान शामिल हुए, क्योंकि जैविक तरीके से बने गुड़ को अच्छा बाजार नहीं मिल पाता, लेकिन गुड़ महोत्सव एक अच्छा जरिया बना है।"
गुड़ की उपयोगिता बढ़ाने और गुड़ से उत्पाद बनाने वाले किसानों को बेहतर प्लेटफार्म देने के लिए राजधानी लखनऊ में चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग ने 'राज्य गुड़ महोत्सव 2021' का आयोजन किया था। महोत्सव में शिवमोहन की तरह ही अयोध्या, सीतापुर, लखीमपुर, पीलीभीत, मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली, फर्रुखाबाद जैसे जिले के किसानों और स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने स्टॉल लगाकर कई तरह के गुड़ की ब्रिकी की।
लखीमपुर जिले के सेमरिया गाँव की पलजिंदर कौर और शोभा त्यागी स्वयं सहायता समूह चलाती हैं, इनके समूह में महिलाओं को गुड़ से कई तरह के उत्पाद बनाना सिखाया जाता है। पलजिंदर कौर बताती हैं, "हम लोग पूरी तरह से देशी गुड़ बताते हैं, इसके साथ ही उसमें ड्राईफ्रूट, तिल भी डालकर कई तरह के गुड़ बनाते हैं। लखनऊ में आना हम लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है, यहां पर हमें बहुत सी नई चीजें भी सीखने को मिली, जो अब हम गाँव जाकर दूसरी महिलाओं को भी सिखाएंगे।"
गुड़ महोत्सव में किसानों और महिलाओं को विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने गन्ना की खेती और गुड़ उद्योग में नई तकनीकि के प्रयोग के बारे में भी बताया। महोत्सव में गुड़ बनाने वाली नवीनतम तकनीक की मशीनों का प्रदर्शन किया गया। महोत्सव में सोंठ, सौंफ, इलायची, तिल, मूंगफली, काजू, बादाम, केसर युक्त गुड़, गुलाब, मैंगो, ऑरेंज 50 से ज्यादा फ्लेवर के गुड़ के स्टॉल लगाए गए थे। किसान शिवमोहन पांडेय ने बताया, "हमें लगा था कि शायद यहां पर उतनी बिक्री न हो पाए, इसलिए कम ही गुड़ लाए थे, लेकिन पहले ही दिन सारा गुड़ बिक गया, दूसरे दिन और ज्यादा गुड़ मंगाना पड़ा। अब तो बहुत से लोगों से यहां पर संपर्क भी हो गया है, इससे आगे भी बेचने में आसानी हो जाएगी।"
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गांव कनेक्शन भी अपने नए वेंचर, 'स्लो प्रोडक्ट्स' के जरिये गुड़ के पारंपरिक उत्पादों को फिर से लोगों के बीच लाने का प्रयास कर रहा है। ये ऐसे उत्पाद हैं जो हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से उपयोग की जाती रही है, लेकिन जमाने की भागा-दौड़ी में हम इसे भूलते जा रहे हैं। स्लो प्रोडक्ट्स भारतीय किसानों और उत्पाद निर्माताओं को दुनिया भर के बाजारों से जोड़ने का भी काम करता है। ये उत्पाद ना सिर्फ शुद्धता के पैमाने पर खरे उतरते हैं, बल्कि इनकी कीमत भी वाजिब होती है और इसमें किसानों और उत्पादकों को उनकी उपज की लागत के अलावा, शुद्ध लाभ का 10 प्रतिशत भी दिया जाता है।
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राज्य सरकार ने 'एक जिला, एक उत्पाद योजना' (ODOP) के अन्तर्गत तीन जिलों मुजफ्फरनगर, अयोध्या और लखीमपुर खीरी के लिए गुड़ और गुड़ उत्पाद को विशिष्ट उत्पाद के रूप में चिह्नित किया है।
उत्तर प्रदेश गुड़ को बढ़ावा देने के लिए आने वाले समय में ऐसे ही महोत्सव का आयोजन होता रहेगा। इस बारे में अपर मुख्य सचिव (चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास) संजय भूसरेड्डी गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "उत्तर प्रदेश में पुराने समय हमारे खाने की थाली में गुड़ रहा है, पहले लोग सादे गुड़ के बारे में ही जानते थे। हम लोगों ने प्रयास किया कि जो उत्तर प्रदेश में 55 तरह का गुड़ बन रहा है, उसे जनता के बीच में लाएं। वैसे भी गुड़ का औषधीय महत्व भी होता है, गुड़ महोत्सव में 50 रुपए से लेकर पांच हजार रुपए किलो तक गुड़ आया, जिसे लोगों ने पसंद भी किया।"
वो आगे कहते हैं, "पहली बार गुड़ महोत्सव का आयोजन किया गया, इसमें प्रदेश भर से आए 103 गुड़ उत्पादकों के स्टॉल लगाए गए, इसमें से बहुत से लोगों का 80 प्रतिशत का उत्पाद बिक गया, दूसरे दिन लोगों ने फिर से अपने गाँव से गुड़ मंगवाया। आने वाले समय में इसी क्रम महोत्सव होते रहेंगे।"
यूपी ही नहीं महाराष्ट्र के सतारा जिले की भी महिला किसान महोत्सव में शामिल हुईं, सतारा जिले केे चाचेगाँव जयश्री एस कुलकर्णी भी महोत्सव में शामिल हुईं। जयश्री बताती हैं, "हम भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान आते रहते हैं, वहीं से हमें महोत्सव के बारे में पता चला। हम गुड़ बनाने के साथ ही किसानों को गुड़ प्रोसेसिंग की नई टेक्नोलॉजी के बारे में भी किसानों को बताते हैं। यहां पर लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिला है, अगर आगे भी मौका मिला तो हम आते रहेंगे।"
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