उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने डराने वाला सच, बाढ़ से किसानों की फसलें फिर होंगी तबाह

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उत्तर प्रदेश के किसानों के सामने डराने वाला सच, बाढ़ से किसानों की फसलें फिर होंगी तबाहबाढ़ से किसानों की फसलें फिर होंगी तबाह।

लखनऊ। पिछले वर्ष मई-जून में घाघरा की बाढ़ हर साल की तरह सीतापुर के सोंसरी समेत दर्जनों में वैसी तबाही नहीं मचा पाई। किसानों की मांग पर बनाए गए बांध और स्टड के चलते खेतों का कटान नहीं हुआ। लेकिन वहां से 50 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले में कचनापुर समेत कई गाँवों के सैकड़ों खेत नदी में समा गए।

उत्तर प्रदेश में घाघरा, राप्ती, सरयू और गंगा-यमुना और उनकी सहायक कई नदियां हर साल तबाही लाती हैं। इस बाढ़ में घर और मकान तो ढहते ही हैं, खेती योग्य उपजाऊ जमीन का भी भारी पैमाने पर तबाह होती है। नदियों के किनारे रहने वाले किसान अभी से सहमें हैं जो इस बार बोएंगे वो फसल और खेत बचेंगे कि नहीं। पिछले वर्ष प्रदेश के 25 जिलों की एक करोड़ आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई थी। सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बाढ़ से प्रभावित 73 लाख हेक्टेयर भूमि में से अब तक केवल 23 लाख हेक्टेयर भूमि को सुरक्षित करने का दावा ही सरकार कर पा रही है।

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सिंचाई विभाग के खुद के आंकड़ों के मुताबिक, संवेदनशील और अतिसंवेदनशील मिला कर राज्य के करीब 38 जिले बाढ़ से प्रत्येक वर्ष प्रभावित हो जाते हैं, जिससे किसानों को करोड़ों रुपये की उपज बह जाने का नुकसान होता है। अच्छी बात है कि इस बार सरकार ने अभी से कोशिशें शुरू की हैं, मगर चुनौती बहुत बड़ी है।

लखनऊ से करीब 75 किमी. दूर उत्तर दिशा में हेतमापुर के आसपास के दर्जनों गांव तबाह होंते हैं। इसी जिले के सूरतगंज ब्लॉक महमतियनपुरवा निवासी किसान बाबूराम (45 वर्षीय) बताते हैं, “हमारा गाँव दो नदियों के बीच चौका और चौरारी (घाघरा की सहायक नदियों) से घिरा हुआ है, जिसके कारण महमतियनपुरवा और गोडियनपुरवा गाँवों में पानी भर जाता है। लगभग हर साल किसानों की फसलें बर्बाद हो जाती हैं। अब योगी सरकार से उम्मीद है कि हम किसानों की समस्या को दूर करेंगे।”

सीतापुर जिले में पिछले वर्ष बाढ़ के दौरान रामपुरमथुरा ब्लॉक में पहुंची गांव कनेक्शन की टीम से अंगरौरा निवासी बाबूराम यादव (75 वर्ष) ने जो बताया वो बाढ़ की त्रासदी बयां करती है। उनके पास कभी 2 हजार बीघा जमीन और 17 कमरों वाला पक्का मकान था, लेकिन आज वो छप्पर में हैं।

बाढ़

वो बताते हैं, तराई (बाढ़ प्रभावति) में हमारे जैसे हजारों किसान मिलेंगे, सरकार मुआवजा भी देती है लेकिन वो जमीन की कीमत का 5 फीसदी भी नहीं होता। ये बंधा बन गया है तो बहुत फायदा होगा।” सिंचाई विभाग ने घाघरा के किनारे-किनारे सीतापुर से लेकर बाराबंकी में एल्गिन ब्रिज तक एक तरफ बंधा बना दिया है, इससे लेकिन हजारों गांवों को सहूलियत हो गई है, लेकिन बाकी तमाम जिलों में बंधों का बनाया जाना बाकी है।

बाढ़ प्रभावित इलाके पूर्वाचंल से आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बार वक्त रहते इस दिशा में कदम उठाने के निर्देश हैं। विभाग ने तैयारियां भी तेज कर दी हैं, लेकिन चुनौती बढ़ी हैं। प्रदेश की बाढ़ नियंत्रण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) स्वाती सिंह ने बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं के लिए हाल में आवंटित धनराशि में अब तक किए गए कामों की जानकारी ली, तब जो खुलासा हुआ वह चौंकाने वाला रहा।

बाढ़ की दृष्टि से प्रदेश के 15 जनपद संवेदनशील और 23 जनपद अति संवेदनशील हैं। प्रदेश में अब तक केवल 22.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित किया जा सका है। राज्यमंत्री ने बाढ़ से प्रभावित होने वाले अति संवेदनशील इलाकों में बाढ़ से बचाव को लेकर अब तक किये गये इतने कम काम पर आश्चर्य जताया।

बैठक के बाद बाढ़ नियंत्रण मंत्री ने कहा कि जिन योजनाओँ के पूरा होने से ज्यादा लोगों को लाभ होगा, उनकी सूची मांगी गई है ताकि आपेक्षित बजट स्वीकृत हो सके। पहले से आवंटित बजट के सापेक्ष में काम 15 जून तक पूरा हो जाए, ये अधिकारियों से शपथ ली जा रही है।

ये जिले पिछले साल रहे सबसे अधिक प्रभावित

लखनऊ, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, फैजाबाद, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, गाजीपुर, बलिया, कुशीनगर, रायबरेली, सुल्तानपुर, कानपुर देहात, झांसी, बलरामपुर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, लखीमपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, सहारनपुर, महोबा, उन्नाव और हरदोई बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित हुए थे। करीब एक करोड़ की आबादी बाढ़ से प्रभावित रही।

बांध मरम्मत और कटान रोकने के अभी नहीं इंतजाम

देवरिया के निवासी दिलीप मिश्रा (35 वर्ष) बताते हैं कि उनके गाँव के आसपास नदी के कटान को रोकने को लेकर अगर इंतजाम बारिश से पहले ही हो जाएं तो बेहतर है। मगर अब तक सिंचाई विभाग ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। जिससे तकलीफें होना संभव है। राजधानी लखनऊ में मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर बख्शी के तालाब के गाँव कठवारा के निवासी प्रमोद शुक्ला का कहना है कि प्रत्येक वर्ष गोमती का पानी थोड़ा बढ़ने पर इस इलाके के खेतों में पानी आ जाता है। मगर यहां सिंचाई विभाग सालों से मांग किये जाने के बावजूद कोई इंतजाम नहीं कर रहा है।

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