जगह नहीं है तो क्या हुआ, यूपी के इस बाग में आप गोद ले सकते हैं पौधे

अगर आपसे कहा जाए कि आपके पास जगह नहीं है,फिर भी आप बागवानी कर सकते हैं तो शायद आपको यकीं न हो, लेकिन ऐसा कर दिखाया है कानपुर के एक किसान ने, जहाँ आप भी पौधे गोद ले सकते हैं।

Vinod NigamVinod Nigam   4 Aug 2023 5:43 AM GMT

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जगह नहीं है तो क्या हुआ, यूपी के इस बाग में आप गोद ले सकते हैं पौधे

कानपुर (उत्तर प्रदेश)। पिछले कुछ वर्षों में किसान धान-गेहूँ जैसी परंपरागत फसलों की खेती छोड़कर दूसरी फसलों की रुख कर रहे हैं, ऐसी ही एक शुरुआत की है कानपुर में पत्रकारिता छोड़ किसान बने हरि मिश्र ने। उन्होंने 20 बीघा जमीन पर देसी-विदेशी फलों की अलग-अलग किस्मों के करीब 3500 पौधे लगाए हैं। यही नहीं उन्होंने पौधों को गोद देने का काम भी शुरू किया है।

कानपुर जिले के नर्वल तहसील के बिरहर गाँव में आपको किन्नू, मौसम्बी, थाई कटहल, एप्पल बेर, अनार, ताइवानी अमरूद जैसी दर्जनों किस्म के पेड़ मिल जाएँगे।

25 साल तक पत्रकारिता में रहे हरि मिश्र गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "साल 2018 में एक साथी पत्रकार के साथ कश्मीर घूमने गया था, वहाँ के बाग देखकर हैरान रह गया, अभी तक इन पेड़ों के बारे में सिर्फ पढ़ा था, सामने से देखने का मौका मिला। वहाँ के किसानों से भी इसके बारे में जानकारी ली।"


कश्मीर से वापस आने के बाद नौकरी से रिजाइन देने के बाद हरि चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से मिले और पौधों की जानकारी ली। हरि कहते हैं, "सीएसए में पौधों को लगाने की जानकारी के साथ, कहाँ मिलेंगे जैसी जानकारी मिल गई। इसके बाद 2019 में सबसे पहले पंजाब से पौधे लेकर आए। पिछले चार साल में अब तो दर्जनों किस्मों के 3500 पौधे बाग में लगा दिए हैं। "

सोशल मीडिया के ज़रिए अब दूसरे लोग भी पौधों को ले रहे गोद

बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जो बागवानी करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास जगह नहीं होती है। इसका भी हल हरि मिश्र ने निकाल लिया है। हरि मिश्रा बताते हैं, "बाग के बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी पोस्ट करने पर बहुत से लोगों के कमेंट्स आते थे कि आपके पास तो कृषि भूमि है, लेकिन हमारे पास तो कोई जगह ही नहीं है। इसलिए यह अनुभव हमें नसीब नहीं हो सकता। वहीं बहुत से लोग समय न होने की बात कहते।"

वो आगे कहते हैं, "बस यहीं से मन में विचार आया कि लोगों के पौध प्रेम को नया आयाम दिया जाए। जिसके लिए सोशल मीडिया का ही सहारा लिया, जिसमें लोगों को बताया कि पौधा भी हमने ही लगाया है और परवरिश भी हम ही करेंगे। आप यहाँ पर तैयार हो रहे पौधे को गोद लेकर पुण्य कमा सकते हैं। फिर क्या लोगों का प्रकृति प्रेम उमड़ा और अब तक कई राज्यों के कई सैकड़ों लोग पौधे गोद ले चुके हैं।"


बदायूँ ज़िले के खाद्य उपनिदेशक फूल चंद्र शेखी ने भी किन्नू का पौधा गोद लिया है। फूलचंद्र शेखर गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमारा सपना था कि हम भी एक बाग लगाएँ, पर नौकरी के चलते ऐसा नहीं कर पाए। हरि मिश्रा के चलते हमें भी पौधरोपण का पुण्य मिल गया है।"

वहीं हापुड़ के एसडीएम प्रहलाद सिंह ने भी एप्पल बेर का पौध गोद लिया है। उन्होंने बताया, "जब हमारी पोस्टिंग फतेहपुर के बिंदगी तहसील में थी, तब इस बाग के बारे में जानकारी हुई। परिवार के साथ आए और पौधे को गोद लिया।" इनकी तरह दर्जनों लोगों ने यहाँ पेड़ों को गोद ले रखा है।"

परिवार का भी मिला पूरा साथ

हरी मिश्र के पिता रामस्वरूप मिश्र रिटायर्ड स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी हैं। माँ पदमावती रिटायर्ड टीचर हैं। हरि मिश्रा कहते हैं, "25 साल तक कई संस्थानों में ब्यूरो चीफ के रूप में नौकरी की। माता जी और पिताजी की 80 हजार प्रति माह पेंशन आती है। एक बेटी औरन एक बेटा है। बेटा फिलहाल मुम्बई में जॉब करता है। पौधों को खड़ा करने में अब बेटा भी अहम रोल निभा रहा है। वह भी हमें हर माह 30 से 40 हजार रुपए भेज देता है।"

बाग में लगे हैं दर्जनों किस्म के पौधे

हरि मिश्र के बाग में पंजाबी किन्नू के 850 पौधे, पंजाबी मौसम्बी के 550 पौधे, थाई और देशी कटहल के 200 पौधे, एपल बेर के 400 पौधे, आम के 100 पौधे, अनार के 100 पौधे, ताइवानी अमरूद के 250 पौधे, देशी अमरूद के 300 पौधे, अमेरिकन डेजी किन्नू के 350 पौधे, देशी नींबू के 150 पौधे, लाहौरी नींबू के 200 के फलदारी पौधे लगे हैं।

हरि मिश्रा के मुताबिक, 2023 के अगस्त माह में 500 पौधे किन्नू और मौसंबी लगाएँगे। बागवानी की लागत के बारे हरि मिश्रा कहते हैं, "इनमें सभी पौधों की कीमत 80 रुपए से लेकर 200 रुपए है। ये सभी पौधे पंजाब के अलावा हिमाचल और कश्मीर से मँगवाए गए हैं। बाग में बेरिकेडिंग 350000 रुपए, पौधों की कीमत 450000 रुपए, पौधे लगवाने में खर्च 50000 रुपए, जुताई और सिंचाई में दो लाख रुपए खर्च रुपए आए हैं। कुल लागत 18,50000 रुपए अभी तक आई है।


बाग लगाने से पहले पूरे बीस बीघे में आसपास लोहे के एंगल लगाकर उनमें तार की बेरिकेडिंग कराई और पूरे में नीचे तीन फीट जाली लगाई। जिससे छोटे जानवर भी न घुस सकें। जिसमें करीब साढ़े तीन लाख रुपए पिछले चार साल में खर्च हो चुके हैं। लगातार इन तारों का दुरुस्ती करना चलता रहता है।

हरि मिश्रा बताते हैं, "करीब साढ़े चार लाख के पौधे लगाए। उनको लगवाने में करीब पचास हजार की मजदूरी लगी। हर साल पूरे बाग की तीन बार गुड़ाई होती है। जिसमें गोबर की खाद, दवाओं का खर्च और मजदूरी समेत करीब डेढ़ लाख खर्च होता है। चार साल में करीब छह लाख खर्च हो चुका है। इसके साथ ही जुताई और सिंचाई में हर साल पचास हज़ार से अधिक का खर्च होता है। "

बाग में लगती है किसानों की पाठशाला

हरी मिश्र अपने बाग में किसानों की पाठशाला लगाते हैं। वह बताते हैं, "बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों को हर साल लाखों का नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में हम उन्हें आधुनिक खेती के गुर सिखाते हैं। बागवानी के प्रति जागरूक करने के साथ ही फूल और अन्य प्रकार की फसल की खेती करने के लिए किसानों की मदद करते हैं।"

नर्वल तहसील के अलावा कानपुर के आसपास के किसान आए दिन हरि मिश्रा के बाग में आते हैं। पौधों के साथ समय गुजारने के साथ हरि मिश्रा से पौधरोपण की जानकारी लेते हैं। घाटमपुर के किसान आदित्य शुक्ला भी उन्हीं में से एक हैं और अब उन्होंने भी 2022 में पाँच बीघे का बाग तैयार किया है। आदित्य बताते हैं, "पहले हम धान और गेंहूँ की उपज उगाते थे। लेकिन लागत ज़्यादा और मुनाफा कम होने के कारण अब हमने अपने खेत में बाग तैयार कर लिया है। करीब चार साल के बाद दो से तीन लाख सालाना आमदनी होने लगेगी।"

हरि मिश्रा को बीते दिनों कानपुर के डीएम ने ऑफिस बुलाकर पुरस्कार से नवाज़ा था। हरि मिश्रा बताते हैं, "जिले के अलावा यूपी में हमारा बाग फिलहाल नंबर एक पर है। हम चाहते हैं कि, युवा इस भागमभाग के बीच कुछ समय प्रकृति को दे। जिससे आने वाला भविष्य स्वस्थ रहे।"

वो आगे कहते हैं, "बाग कम होने के चलते इसका असर प्रकृति पर पड़ा और सबसे बड़ी मार किसानों को उठानी पड़ी। हमारी युवा पीढ़ी से अपील है कि, वह अपने घरों पर पौधरोपड़ करें। हमारे बाग पर आएँ और पौधे गोद लेकर पुण्य कमाएँ।


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